अब तक के अध्यायों में हम ने दास, दस्यु और राक्षस के सही अर्थों को देखा और वेदों में उनके विनाश की आज्ञा का कारण जाना। इस के साथ ही साम्यवादी और कथित बुद्धिवादियों द्वारा फैलाई गई आर्यों के आक्रमण की मनगढ़ंत कहानियों की सच्चाई को भी जाना। वेदों में शूद्रों के गौरव और उनके उच्च स्थान को भी हम देख चुके हैं। अब इस अध्याय में हम श्रम के बारे में वेद क्या कहते हैं यह जानेंगे।
वेद मन्त्र और श्रम
वेद श्रम का अत्यंत गौरव करते हुए हर एक मनुष्य के लिए निरंतर पुरुषार्थ की आज्ञा देते हैं। वेदों में निठल्लापन पाप है। वेदों में कर्म करते हुए ही सौ वर्ष तक जीने की आज्ञा है (यजुर्वेद ४०।२)। मनुष्य जीवन के प्रत्येक पड़ाव को ही ‘आश्रम’ कहा गया है – ब्रम्हचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और सन्यास, इन के साथ ही मनुष्य को शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति करने का उपदेश है। वैदिक वर्ण व्यवस्था भी कर्म और श्रम पर ही आधारित व्यवस्था है।
आजकल जिन श्रम आधारित व्यवसायों को छोटा समझा जाता है, आइए देखें कि वेद उनके बारे में क्या कह रहे हैं –
कृषि:
ऋग्वेद १।११७।२१
राजा और मंत्री दोनों मिल कर बीज बोयें और समय-समय पर खेती कर प्रशंसा पाते हुए, आर्यों का आदर्श बनें।
ऋग्वेद ८।२२।६ भी राजा और मंत्री से यही कह रहा है।
ऋग्वेद ४।५७।४
राजा हल पकड़ कर मौसम आते ही खेती की शुरुआत करे और दूध देने वाली स्वस्थ गायों के लिए भी प्रबंध करे।
वेद, कृषि को कितना उच्च स्थान और महत्त्व देते हैं कि स्वयं राजा को इस की शुरुआत करने के लिए कहते हैं। इस की एक प्रसिद्ध मिसाल रामायण (१।६६।४) में राजा जनक द्वारा हल चलाते हुए सीता की प्राप्ति है। इस से पता चलता है कि राजा-महाराजा भी वेदों की आज्ञा का पालन करते हुए स्वयं खेती किया करते थे।
ऋग्वेद १०।१०४।४ और १०।१०१।३ में परमात्मा विद्वानों से भी हल चलाने के लिए कहते हैं।
महाभारत आदिपर्व में ऋषि धौम्य अपने शिष्य आरुणि को खेत का पानी बांधने के लिए भेजते हैं अर्थात् ऋषि जन भी खेती के कार्यों में संलग्न हुआ करते थे।
ऋग्वेद का सम्पूर्ण ४।५७ सूक्त ही सभी के लिए कृषि की महिमा लिए हुए है।
जुलाहे और दर्जी:
सभी के हित के लिए ऋषि यज्ञ करते हैं, परिवहन की विद्या जानते हैं, भेड़ों के पालन से ऊन प्राप्त कर वस्त्र बुनते हैं और उन्हें साफ़ भी करते हैं (ऋग्वेद १०।२६)।
यजुर्वेद १९।८० विद्वानों द्वारा विविध प्रकार के वस्त्र बुनने का वर्णन करता है।
ऋग्वेद १०।५३।६ बुनाई का महत्व बता रहा है।
ऋग्वेद ६।९।२ और ६।९।३ – इन मंत्रों में बुनाई सिखाने के लिए अलग से शाला खोलने के लिए कहा गया है –जहां सभी को बुनाई सीखने का उपदेश है।
शिल्पकार और कारीगर:
शिल्पकार, कारीगर, मिस्त्री, बढई, लुहार, स्वर्णकार इत्यादि को वेद ‘तक्क्षा’ कह कर पुकारते हैं।
ऋग्वेद ४।३६।१ रथ और विमान बनाने वालों की कीर्ति गा रहा है।
ऋग्वेद ४।३६।२ रथ और विमान बनाने वाले बढई और शिल्पियों को यज्ञ इत्यादि शुभ कर्मों में निमंत्रित कर उनका सत्कार करने के लिए कहता है।
इसी सूक्त का मंत्र ६ ‘तक्क्षा’ का स्तुति गान कर रहा है और मंत्र ७ उन्हें विद्वान, धैर्यशाली और सृजन करने वाला कहता है।
वाहन, कपडे, बर्तन, किले, अस्त्र, खिलौने, घड़ा, कुआँ, इमारतें और नगर इत्यादि बनाने वालों का महत्त्व दर्शाते कुछ मंत्रों के संदर्भ:
• ऋग्वेद १०।३९।१४, १०।५३।१०, १०।५३।८,
• अथर्ववेद १४।१।५३,
• ऋग्वेद १।२०।२,
• अथर्ववेद १४।२।२२, १४।२।२३, १४।२।६७, १५।२।६५,
• ऋग्वेद २।४१।५, ७।३।७, ७।१५।१४।
• ऋग्वेद के मंत्र १।११६।३-५ और ७।८८।३ जहाज बनाने वालों की प्रशंसा के गीत गाते हुए आर्यों को समुद्र यात्रा से विश्व भ्रमण का सन्देश दे रहे हैं।
अन्य कई व्यवसायों के कुछ मंत्र संदर्भ:
• वाणिज्य – ऋग्वेद ५।४५।६, १।११२।११,
• मल्लाह – ऋग्वेद १०।५३।८, यजुर्वेद २१।३, यजुर्वेद २१।७, अथर्ववेद ५।४।४, ३।६।७,
• नाई – अथर्ववेद ८।२।१९,
• स्वर्णकार और माली – ऋग्वेद ८।४७।१५,
• लोहा गलाने वाले और लुहार – ऋग्वेद ५।९।५,
• धातु व्यवसाय – यजुर्वेद २८।१३।
निष्कर्ष
इतने उदाहरणों से वेदों में श्रम की महत्ता स्पष्ट है और यह कहना निराधार है कि वेद श्रम आधारित व्यवसाय का आदर नहीं करते। अगर हम वेदों की इन शिक्षाओं को नहीं भुलाते तो न यहां हड़तालें होती, न इस देश का किसान आत्महत्या करता, न भुखमरी होती और न बेरोजगारी, न जहरीले विचारों वाले संगठन पनपते और न लाल आतंक इस देश में फैलता।
आइए इन सब से मुक्त एक संतुलित समाज और संगठित भारत बनाएं।
अनुवादक- आर्यबाला
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बहुत ही सुंदर! यही राम राज्य है
Good One..
I think some of our friends will try to hear the words of Vedas.They will work harder to achieve anything in their life.Well!What should we do?We have 24 hours.Should we sleep all the time?No.We should sleep of 6-8 hours only.Many of our friends sleep even in day time.Remember,excessive sleep is also dangerous.
Then if we remain awake then should we remain just sitting?No.We should work.But what should We or I do?We should live life according to four Ashramas.Why?Because we need knowledge to do anything so first is Brahmacharya.Then we require money.So grihasth is best.Then we require purification of soul.So Vanprasth is the best.Then we require to give wealth.Sanyas is the best.