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हिंदू धर्म में अश्लीलता?

भारतवर्ष आज धर्मांतरण के रोग की प्रमुख आश्रय स्थली बन चुका है | चीन और उसके पार वाले देश इस विषाणु के लिए अप्रवेश्य हैं | और बाकी दुनिया में, भारतवर्ष के पश्चिम में जितना धर्मांतरण हो सकता था – हो चुका है – अब तो बस वहां एक शाखा ( ईसाईयत) से दूसरी शाखा ( इस्लाम) को लपकना और उनकी छोटी-छोटी उपशाखाओं को पकड़ कर झूलने का ही खेल बचा है |

परंतु भारत में हिन्दू और गैर हिन्दू जनसंख्या का अच्छा खासा मिश्रण मौजूद है जो अल्लाह या यीशु के मिशन को आगे ले जाने के लिये बड़ी संख्या में संभावित अनुयायी, बड़ी संख्या में दलाल और समर्थक आधार को पेश करता है | जैसे भारतवर्ष इतिहास के महापुरुषों को जन्म देने के लिए प्रसिद्ध है वैसे यहां की भूमि दगाबाजों को पैदा करने और पालने में भी उतनी ही उर्वरक है – जो आत्मघात में ही गौरव समझते हैं |  इस बात का इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि एक राष्ट्रीय शर्म के प्रतीक (बाबरी मस्जिद) – जिसे एक समलैंगिक, बच्चों के यौन शोषण की विकृति से ग्रस्त, कत्ले आम में माहिर और नशे की लत के आदी बाबर ने खड़ा किया था – के विध्वंस की घटना को देश में गौरव का प्रसंग मानने की बजाए उसे एक बड़ी समस्या बना दिया गया है ! देखें – Babri Masjid demolition . जिसके पास किसी प्रकार का नियंत्रण ही नहीं ऐसे अत्यंत निर्बल नेतृत्व ने यह बिलकुल सरल कर दिया है कि अन्य कोई अज़मल कसाब या अफ़ज़ल आराम से अपनी इच्छा और ज़रुरत अनुसार अपने लोग, पैसे, आर डी एक्स ला कर हिन्दुओं की संख्या को आसानी से कम कर सकें|

अनेक कारण दिए जा सकते हैं लेकिन यह इस लेख का प्रयोजन नहीं है| संक्षेप में, भारतवर्ष किसी भी विदेशी मत के फ़लने-फूलने के लिए पोषक वातावरण मुहैया कराता है| धर्मांतरण ने अब एक चतुर खेल की शक्ल अख्तियार कर ली है | एक ही मतप्रसार के लिए अनेक प्रकार के उपायों का प्रचुर दाव – पेचों के साथ उपयोग किया जा रहा है | व्यापक स्तर पर धर्मांतरण करने के लिए जो हिन्दुओं को सिर्फ इस्लाम में शामिल करना चाहते हैं या जो चाहते हैं कि हिन्दू बाइबल को ही गले लगायें, उनकी प्रमुख कूट चाल है – हिन्दुत्व को दुनिया के समक्ष सर्वाधिक अश्लील धर्म के रूप में प्रस्तुत करना | वैसे यह इनके मत प्रसार का कोई नवीनतम उपाय भी नहीं है परंतु आज के संदर्भ में यह हथकंडा कई कारणों से महत्वपूर्ण हो जाता है जिसकी चर्चा यहां स्थानाभाव की वजह से करना प्रासंगिक नहीं होगा |

यह बहुत ही हास्यास्पद है कि बाइबल या कुरान और हदीसों के आशिक, हिंदुत्व पर अश्लीलता से भरे होने का आरोप लगाते हैं | क्योंकि अंतिम अक्षर तक सर्वाधिक अश्लील किताबों की फ़हरिस्त में इन किताबों ( बाइबल, कुरान+ हदीस) ने चरम स्थान हासिल कर रखा है| jesusallah.wordpress.com और बहुत सी अन्य साइट्स पर आप इससे संबंधित अनगिनत लेख पाएंगे| किन्तु ये धर्मांतरण के विषाणु इतने बेशर्म हैं कि आम जनता का छलावा करके पतित करने की प्रवृत्ति से उनकी आंखें तनिक भी झपकती नहीं हैं – तभी तो वे लोग अधिक से अधिक जनता को किसी भी तरीके से खींचते हैं ताकि उनको जन्नत में ज्यादा से ज्यादा ऐशो- आराम और हूरें मिलें|

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पर आज यह बेहद गंभीर मसला बन चुका है| भारी संख्या में अपने सत्य धर्म से अनजान हिन्दू, आतंरिक और बाहरी चालबाजियों का शिकार बन रहें हैं और अंततः इस अपप्रचार में फंस कर भ्रान्तिवश अपने धर्म से नफ़रत करना शुरू कर देते हैं | उनके लिए हिंदुत्व का मतलब – राधा-कृष्ण के अश्लील प्रणय दृश्य, शिवलिंग के रूप में पुरुष जननेंद्रिय की पूजा, शिव का मोहिनी पर रीझना, विष्णु और शिव द्वारा स्त्रियों का सतीत्व नष्ट करना, ब्रह्मा का अपनी पुत्री सरस्वती पर आसक्त होना इत्यादि, इत्यादि से ज्यादा और कुछ नहीं रह जाता | हमारी जानकारी में ऐसे कई पत्रक (pamphlets) भारतभर में वितरित किए जा रहे हैं और उन में हिन्दुओं से अपील की जा रही है कि वे सच्चे ईश्वर और सच्ची मुक्ति को पाने के लिए विदेशी मज़हबों को अपनाएं | बहुत से हिन्दू अपनी बुनियाद से घृणा भी करने लगे हैं और जो हिंदुत्व के चाहनेवाले हैं, वे निश्चित नहीं कर पाते हैं कि कैसे इन कहानियों का स्पष्टीकरण दिया जाए और अपने धर्म को बचाया जाए| छद्म धर्मनिरपेक्षतावादी कम्युनिस्ट इस को हवा देने में लगे हुए हैं|

इस लेख का प्रयोजन इन सभी आरोपों को सही परिपेक्ष्य में रखना और सभी धर्मप्रेमियों के हाथ में ऐसी कसौटी प्रदान करना है, जिससे वे न केवल सत्य का रक्षण ही कर सकें बल्कि इस मिथ्या प्रचार पर तमाचा भी जड़ सकें |

१. अश्लीलता के प्रत्येक आरोप पर विचार करने से पहले यह तय किया जाना जरूरी है कि क्या ये धर्म की परिधि में आता भी है हिंदुत्व में धर्म की अवधारणा, कुरान और बाइबल की अंध विश्वासों की व्यवस्था से पूर्णतः भिन्न है | हिंदुत्व के सभी वर्गों में स्वीकृत की गई, धर्म की सार्वभौमिक व्याख्या, मनुस्मृति (६। ९२) में प्रतिपादित धर्म के ११ लक्षण हैं – अहिंसा, धृति (धैर्य), क्षमा, इन्द्रिय-निग्रह, अस्तेय (चोरी न करना), शौच (शुद्धि), आत्म- संयम, धी: (बुद्धि), अक्रोध, सत्य, और विद्या प्राप्ति | Vedic Religion in Brief में इन्हें विस्तार से समझाया गया है |

कुछ भी और सबकुछ जो इन ११ लक्षणों का उल्लंघन करे या इनको दूषित करे वह हिंदुत्व या हिन्दू धर्म नहीं है |

२. धर्म की दूसरी कसौटी हैं वेद| सभी हिन्दू ग्रंथ सुस्पष्ट और असंदिग्धता से वेदों को अंतिम प्रमाण मानते हैं |

अतः कुछ भी और सबकुछ जो वेदों के विपरीत है, धर्म नहीं है |

मूलतः ऊपर बताई गई दोनों कसौटियां, अपने आप में एक ही हैं किन्तु थोड़े से अलग अभिगम से |

३.योगदर्शन में यही कसौटी थोड़ी सी भिन्नता से यम और नियमों के रूप में प्रस्तुत की गई है –

यम – अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य (आत्म-संयम और शालीनता), अपरिग्रह (अनावश्यक संग्रह न करना)|

नियम – शौच (शुद्धि), संतोष, तप (उत्तम कर्तव्य के लिए तीव्र और कठोर प्रयत्न), स्वाध्याय या आत्म- निरिक्षण,ईश्वर प्रणिधान (ईश्वर के प्रति समर्पण)|

४. हिंदुत्व के प्रत्येक वर्ग द्वारा अपनाई गई, इन आधारभूत कसौटियों को स्पष्ट करने के बाद, हम इन आक्षेपों का जवाब बड़ी ही आसानी से दे सकते हैं क्योंकि अब हमारा दृष्टिकोण बिलकुल साफ़ है – हम उनका प्रतिवाद नहीं करते बल्कि उन्हें सिरे से नकारते हैं|


उ.
१. हिन्दू धर्म के मूलाधार वेदों में – इन में से एक भी कथा नहीं दिखायी देती |
प्र. सिक्युलर (sickular) या धर्मांतरण के लिए सक्रिय लोगों द्वारा हमारे ग्रंथों में असभ्य कथाओं का जो आरोप लगाया जाता है – इस पर आप क्या कहेंगे ?

२. अधिकांश कथाएं पुराणों, रामायण या महाभारत में पाई जाती हैं और वेदों के अलावा हिन्दू धर्म में दूसरा कोई भी ग्रंथ ईश्वर कृत नहीं माना जाता है| इसके अतिरिक्त, यह सभी ग्रंथ (पुराण,रामायण और महाभारत) प्रक्षेपण से अछूते भी नहीं रहे| पिछले हज़ार वर्षों की विदेशी दासता में भ्रष्ट मर्गियों द्वारा, जिनका एक मात्र उद्देश्य इस देश की सांस्कृतिक बुनियाद को ध्वस्त करना ही था – इन ग्रंथों में मिलावट की गई है | अतः इन ग्रंथों के वेदानुकूल अंश को ही प्रमाणित माना जा सकता है |शेष भाग प्रक्षेपण मात्र है, जो अस्वीकार किया जाना चाहिए और जो यथार्थ में हिन्दुओं के आचरण में नकारा जा चुका है |

प्र. क्या आप स्पष्ट करेंगे कि आप कैसे इन ग्रंथों को प्रक्षिप्त मानते हैं ?

उ. इसके बहुत से प्रमाण हैं |

१.भविष्य पुराण में अकबर,विक्टोरिया, मुहम्मद, ईसा आदि की कहानियां पाई जाती हैं | इसके श्लोकों में सन्डे, मंडे आदि का प्रयोग भी किया गया है | हालाँकि, मुद्रण कला (छपाई) के  प्रचलित होने पर १९ वें सदी के आखिर में यह कहानियां लिखी जानी थम सकी | इस से साफ़ ज़ाहिर है कि १९ वें सदी के अंत तक इस में श्लोक जोड़े जाते रहे |

२.गीताप्रेस गोरखपुर द्वारा प्रकाशित रामायण और महाभारत में जो श्लोक स्पष्टत: प्रकरण से बाहर (संदर्भहीन) हैं, उन्हें प्रक्षिप्त के तौर पर चिन्हित किया गया है |

३.आश्चर्यजनक रूप से महाभारत  २६५। ९४ के शांतिपर्व में भी यह दावा आता है कि कपटी लोगों द्वारा वैदिक धर्म को कलंकित करने के लिए मदिरा, मांस- भक्षण,अश्लीलता इत्यादि के श्लोक मिलाये गये हैं |

४. गरुड़ पुराण ब्रह्म कांड  १। ५९ कहता है कि वैदिक धर्म को असभ्य दिखाने के लिए महाभारत दूषित किया गया है | इत्यादि ऐसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं |

५. इन ग्रंथों के सतही अवलोकन से भी यह पता लग जाता है कि किस भारी मात्रा में मिलावट की गई है और इन कहानियों का मतलब गलत अनुवादों से बदल दिया गया है ताकि यह छलावे से धर्मांतरण के विषाणुओं और उनके वाहकों के अनुकूल हो सके |

प्र. आप यह दावा कैसे करते हैं कि ये पुस्तकें हमारे धर्म का अंग नहीं हैं ?

उ.मैंने ऐसा नहीं कहा कि यह पुस्तकें हमारे धर्म का हिस्सा नहीं हैं, मेरा कहना है कि वे हमारे धर्म का भाग वहीं तक हैं जहां तक वे वेदों से एकमत हैं |

इसका प्रमाण समाज में देखा जा सकता है-

१.कोई भी नए असंपादित पुराणों को महत्त्व नहीं देता (सिवाय कुछ लोगों के जिन्हें हिन्दू धर्म से कोई सरोकार नहीं है वरन् वे सिर्फ अपना अधिपत्य जमाना चाहते हैं – झूठी जन्मगत जाति व्यवस्था के बल पर. वास्तव में यह लोग धर्मांतरण के वायरस के सबसे बड़े  मिले हुए साझीदार हैं – जो धर्म को अन्दर से ख़त्म करते हैं | ) हिन्दू जनसाधारण या उनके नेता भी सारे पुराणों का तो नाम तक नहीं जानते | पुराण आदि के सम्पूर्ण संस्करण भी आसानी से प्राप्य नहीं हैं |

२. इन पुस्तकों के संक्षिप्त या कुछ चुने हुए अंश ही जनसाधारण में उपलब्ध हैं | इसलिए बहुत से हिन्दू रामायण मांगने पर रामचरितमानस ला कर देंगे,  महाभारत के लिए पूछने पर गीता मिलेगी और पुराणों की बजाए इन की नैतिक कथाओं का संकलन मिल सकता है | यह दर्शाता है कि हिन्दू इन पुस्तकों को वहीं तक ही स्वीकार करते हैं जहां तक वे उन्हें वेदानुकूल पाते हैं |

वे लोग अज्ञानता में गलतियाँ कर सकते हैं लेकिन लक्ष्य हमेशा वैदिक धर्म के दायरे में रहकर उपदेश देना और अनुसरण करना ही है |

प्र. अगर हिन्दू  इन असभ्य कथाओं को अस्वीकार करते हैं, तो फ़िर राधा – कृष्ण और शिव लिंग को पूजते क्यों हैं ?

उ. नहीं, हिन्दू इन प्रतीकों को उस रूप में नहीं पूजते जैसे अर्थ यह धर्मांतरण के वायरस फ़ैला रहे हैं|

१. हिन्दू मूलतः ही इतने सीधे हैं कि वे आसानी से अन्यों पर भरोसा कर लेते हैं और इसीलिए विदेशी आक्रान्ताओं द्वारा सदियों तक छले जाते रहे |  उनकी सहज वृत्ति ही किसी पर भी विश्वास करने की है |  ठेठ जाकिर की किस्म के मुस्लिमों के विपरीत जो कुरान और रसूल और अरब की आदिम परम्पराओं का पालन कोई जब तक न करे, उस पर अविश्वास ही करने के लिए प्रशिक्षित हैं, एक भोला हिन्दू अन्य व्यक्ति पर महज़ इसलिए विश्वास रखता है क्योंकि वह मनुष्य है| यह विश्वसनीयता का भाव होना एक महान सामर्थ्य तो है पर साथ ही में यह एक बहुत बड़ी कमजोरी भी है खासकर, जब आप ऐसे इलाकों में रहते हों जहां डेंगू और मलेरिया फैलानेवाले बहुत अधिक मच्छर मंडरा रहें हों|

तो जैसे अग्निवीर की साईट को हैकिंग और वायरस के हमले झेलने पड़ रहें हैं – हिन्दुत्व भी ऐसा ही हो गया है |  अब ऐसा समय आ गया है की इसी साईट को बनाए रखने की बजाए मौजूदा वायरस को मिटाकर, उसी विषय वस्तु को रखते हुए भविष्य में वायरस के हमलों से बचाव के लिए हम अपने सुरक्षा प्रबंध को अधिक कड़ा और मजबूत करके साईट को फ़िर से बनाकर शुरू करें|

२.हिन्दुत्व की सीधी प्रकृति के कारण हिन्दू परंपरागत रूप से कोई बहुत समालोचक नहीं हैं | एक अवधि के दौरान हर कहीं से अच्छाई की तलाश में वे विभिन्न पूजा पद्धतियों को अपनाते गये और उन्हें अपने अनुसार  ढ़ालते गये| लेकिन इस प्रक्रिया में उन्हें इस बात का आभास भी नहीं हुआ कि वे अपने मूल स्रोत से विमुख होकर बहुत दूर भटक गये हैं जहां धर्मांतरण का वायरस उनको निगलने के लिए तत्पर है|

३. राधा का अर्थ है सफ़लता | यजुर्वेद के प्रथम अध्याय का पांचवा मंत्र, ईश्वर से सत्य को स्वीकारने तथा असत्य को त्यागने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ रहने में सफ़लता की कामना करता है | कृष्ण अपनी जिंदगी में इन दृढ़ संकल्पों और संयम का मूर्तिमान आदर्श थे | पश्चात किसी ने किसी समय में इस राधा (सफ़लता) को मूर्ति में ढाल लिया | उसका आशय ठीक होगा परंतु उसी प्रक्रिया में ईश्वर पूजा के मूलभूत आधार से हम भटक गये, तुरंत बाद में अतिरंजित कल्पनाओं को छूट दे गई और राधा को स्त्री के रूप में गढ़ लिया, यह प्रवृत्ति निरंतर जारी रही तो कृष्ण के बारे में अपनी पत्नी के अलावा अन्य स्त्री के साथ व्यभिचार चित्रित करनेवाली कहानियां गढ़ ली गयीं और यह खेल चालू रहा|  इस कालक्रम में आई विकृति से पूर्णत गाफ़िल सरल हिन्दू  राधा-कृष्ण की पूजा आज भी उसी पवित्र भावना से ज़ारी रखे हुए हैं | यदि, आप किसी हिन्दू से राधा के उल्लेखवाला धर्म ग्रंथ पूछेंगे तो उसके पास कोई जवाब नहीं होगा, शायद ही कोई हिन्दू जानता भी हो| महाभारत या हरिवंश या भागवत या किसी भी अन्य प्रमाणिक ग्रंथ में राधा की कोई चर्चा नहीं है| अतः सभी व्यवहारिक मामलों में हिन्दुओं द्वारा राधा पर झूठी कहानियों और झूठी पुस्तकों को मान्यता नहीं दी गई है|

एक हिन्दू के लिए राधा पवित्रता का प्रतिक है, भले ही वह नहीं जानता क्यों और कैसे ? यदि हिन्दुओं के मन में राधा  – कृष्ण के संबंधों के प्रति कोई अशालीन भाव होता वह राधा के भक्तों के जीवन में झलकना चाहिए था परंतु कृष्ण के उपासक तो एक पत्नीव्रती, बहुधा ब्रह्मचारी रहनेवाले होते हैं जो सहसा अपने से विपरीत लिंग के लोगों में घुलते-मिलते भी नहीं हैं|

अतः सभी व्यावहारिक मामलों में हिन्दू राधा – कृष्ण पर सभी झूठी कथाओं और झूठी पुस्तकों को नामंजूर करते हैं|

४.शिवलिंग का मतलब है पवित्रता का प्रतीक | दीपक की प्रतिमा बनाये जाने से इस की शुरुआत हुई, बहुत से हठ योगी दीपशिखा पर ध्यान लगाते हैं | हवा में दीपक की ज्योति टिमटिमा जाती है और स्थिर ध्यान लगाने की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न करती है इसलिए दीपक की प्रतिमा का निर्माण किया गया ताकि एकाग्र ध्यान लग सके | लेकिन कुछ विकृत दिमागों ने इस में जननागों की कल्पना कर ली और झूठी कुत्सित कहानियां बना ली और इस पीछे के रहस्य से अनभिज्ञ भोले हिन्दुओं द्वारा इस प्रतिमा का पूजन पवित्रता के प्रतिक के रूप में करना शुरू कर दिया गया|

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एक हिन्दू को क्यों और कैसे यह जानने में कोई रूचि नहीं है | वह सिर्फ चीज़ों को ऊपर से देख कर स्वीकारता है और हर कहीं से अच्छाई  को पाने का प्रयास करता रहता है| किसी हिन्दू  ने शिव पुराण या शिव लिंग से संबंधित अन्य पुस्तकें पढ़ी भी नहीं हैं| वे शिवालय में सिर्फ अपनी पवित्र भावनाएं  ईश चरणों  में अर्पित करने जाते हैं| अतः सभी व्यावहारिक मामलों में हिन्दुओं द्वारा शिव लिंग के बारे में सभी झूठी  कथाओं और झूठी पुस्तकों को अस्वीकार किया गया है|

५.हिन्दू लोग अपने धर्म का मर्म यही मानते हैं कि एक ही सत्य का साक्षात्कार अलग-अलग तरीकों से किया जा सकता है | अतः वे हर किसी को विद्वान समझ बैठते हैं, उसके पीछे चलने लगते हैं और भ्रम में रहते हैं  कि वे भलाई के मार्ग पर हैं | लिहाज़ा कुछ हिन्दू  अजमेर शरीफ़ की दरगाह पर चादर चढ़ाने के लिए दौड़े जाते हैं – जो पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ़ -मुहम्मद गौरी का साथ देनेवाले गद्दार की मज़ार है | शिवाजी के हाथों मारे गये -कुख्यात लुटेरे और बलात्कारी अफ़ज़ल खान की कब्र पर भी हिन्दू माथा टेकते नज़र आएंगे | हिन्दुओं की हर किसी में अच्छाई ही देखने की मूलभूत प्रवृति जो उनको उपासना की हर एक पद्धति को अपनाने के लिए प्रेरित करती है – आज उसके विनाश का कारण बन गयी है|

जिस तरह आप यदि  स्वास्थ के नियमों का पालन, पथ्यापथ्य, औषध इत्यादि का ध्यान नहीं रखेंगे तो आप नयी दिल्ली जैसी जगह पर डेंगू से नही बच सकते | उसी तरह, हमारे वेदों के मूलभूत विचारों को अगर हम ने पकड़ कर नहीं रखा, कोई सशक्त उपाय नहीं किया एवं चौकन्ने नहीं हुए तो बहुत आसानी से हिन्दू समाज भी संक्रमित हो जाएगा|

संक्षेप में,  हिन्दू सिर्फ अच्छाई को ही पूजते हैं | वे इस अच्छाई को पूजा के हर स्वरुप में तलाशते हैं | वे इसके पीछे की कहानियों की परवाह नहीं करते इस प्रकार की पूजाओं की उत्पत्ति कैसे हुई और उनके पीछे क्या षड्यंत्र है , इस बारे में भी नहीं विचारते और अच्छाई ढूंढते रहते हैं|

इसलिए यद्यपि हिन्दुओं को बहुत सावधानी बरतनी चाहिए किन्तु यह भी सच्ची बात है कि हिन्दू धर्म के सिद्धांतों या व्यवहारों में ऐसी कथाएं और पुस्तकें समाहित नहीं हैं|


उ.
इसका उत्तर भी वही है जो पहले था कि ये कथाएं हिन्दुत्व का हिस्सा नहीं हैं | ये वेदों में कहीं दृष्टिगोचर नहीं होती और वस्तुतः वेदों में इस स्वरुप की कोई भी कथा नहीं है | इस्लाम और ईसाईयत के विपरीत हिन्दू धर्म में इन कथाओं के लिए कोई स्थान है ही  नहीं | हिन्दू धर्म पूर्णतः सिद्धांतों और आदर्श संकल्पनाओं पर आधारित है | कथाएँ समय -समय बदलती रहती हैं, वो परिवर्तित की जा सकती हैं, उन में जोड़-तोड़ की जा सकती है, उन्हें दूषित किया जा सकता है, वे विस्मृत हो सकती हैं या उनमें कुछ भी किया जा सकता है | परंतु धर्म सनातन है अर्थात् शाश्वत है -जो पहले भी एक ही था और आगे भी वही होगा|
प्र. ब्रह्मा का अपनी कन्या पर आसक्त होना और शिव का मोहिनी के पीछे भागना इत्यादि कथाओं के बारे में आप क्या कहेंगे ?

प्र. तो क्या आप का मतलब है कि राम, कृष्ण, विष्णु इत्यादि से हिन्दू धर्म नहीं बनता ?

उ. राम, कृष्ण विष्णु, शंकर, ब्रह्मा इत्यादि हिन्दू धर्म नहीं हैं बल्कि वे तो वैदिक धर्म के अनुयायी थे | वे हमारे आदर्श और अनुकरणीय हैं | हम उन्हें चाहते हैं क्योंकि उन्होंने महान उदाहरण प्रस्तुत किए जिनका अनुशीलन किया जाना चाहिए | उन्होंने वेदों को अपने आचरण में उतारा था और जनसमुदाय को प्रेरित करने के लिए और सही दिशा में चलाने के लिए ऐसे महा पुरुषों की आवश्यकता रहती है | परंतु, जैसा ऊपर बताया जा चुका है कि धर्म शाश्वत है – अब से अरबों वर्ष बाद हो सकता है कि किन्ही  दूसरे आदर्शों का अनुसरण किया जा रहा होगा | राम या कृष्ण के जन्म से पूर्व के आदर्श कोई और होंगे और राम या कृष्ण को कोई जानता भी न होगा, पर धर्म तब भी था | यह शाश्वत वैदिक धर्म ही हिंदुत्व है और क्योंकि राम, कृष्ण और विष्णु ने इसका पालन पूर्णता से किया – वे हमारी संस्कृति, प्रेरणा, विचारों और संकल्पों का अनिवार्य अंग हैं |

प्र. आप चतुर हैं, मैं समझ रहा था कि आप अश्लील कथाओं का विश्लेषण करेंगे और उनके अश्लील नहीं होने की सफाई पेश करेंगे | लेकिन आप तो इसे हिंदुत्व का हिस्सा मानने से ही इंकार कर रहें हैं |

उ. मैं  केवल सत्यनिष्ठ हूं | और हिंदुत्व इस्लाम की तरह नहीं है कि जहां कुरान में मुहम्मद के जीवन की व्यक्तिगत घटनाओं का वर्णन किया गया है और उसे न्यायसंगत भी ठहराया गया है | कुरान और हदीसों में इन पर कहानियां भरी हुई हैं कि आयशा जब बच्ची थी तभी मुहम्मद ने उससे शादी क्यों की, क्यों उस ने अपनी पुत्र-वधू से शादी की इच्छा ज़ाहिर की और वास्तव में बिना शादी किए ही सम्बन्ध रखे (दावा किया कि शादी आसमान में हो गई है !) क्यों पैगम्बरों के लिए सामान्य मुस्लिमों से ज्यादा शादियां कर सकने का ख़ास प्रावधान है, वगैरा, वगैरा —|

यह कहानियां संसार के अंत तक यह बताने के लिए प्रस्तुत नहीं रहेंगी कि किसने अल्लाह की आखिरी किताब उतारी और न ही वे कोई बहुत उम्दा उदाहरण ही पेश करती हैं लेकिन (किन्तु) इन आयतों को मुहम्मद का चरित्र बचाने के वास्ते गलत करार देकर नकारने के बजाए धर्मांध मुसलमानों ने इन भद्दी आयतों को मुहम्मद के चरित्र को बेहतर और उम्दा बनाने की प्रक्रिया का भाग बताकर सही दिखाने की कोशिश की है |

इसी प्रकार ईसाई हैं, जो ये मानने के बजाए कि बाइबल में मनघडंत कहानियां भरी हुई हैं – ईसा मसीह को संसार का एकमात्र तारणहार बताते हैं |

हिंदुत्व की आधारशिला बहुत दृढ़ है और ऐसी क्षुद्र कहानियों से वह लडखडाई नहीं जा सकती |  जिन बनावटी कथाओं को हम पहले ही नकार चुके हैं, उन्हें प्रस्तुत करना आपके कपट को प्रकट कर रहा है | दिखाएँ कि, Vedic Religion in brief और What is Vedic Religion में क्या गलती है ?

आप कुछ भी गलत नहीं दिखा सकते और इसीलिए हमारा दावा है कि वैदिक धर्म या हिंदुत्व ही एकमात्र स्वीकार किए जाने योग्य धर्म है |

इस सब के बावजूद, झूठी कुरान और छद्म बाइबल के असभ्य पाठों के प्रत्येक अक्षर का समर्थन करनेवालों द्वारा शाश्वत सनातन वैदिक हिन्दू धर्म पर उंगली उठाने की धृष्टता किए जाना घोर खेद का विषय है |

प्र. वेदों में अभद्र वर्णन होने के बारे में आप क्या कहेंगे ?

उ.एक भी वेद मंत्र ऐसा दिखाएँ जिसमें भद्दापन हो या चारों वेदों में से एक भी अश्लील प्रसंग निकल कर दिखा दें | ग्रिफिथ या मैक्स मूलर के अनुवादों पर मत जाइए – वे मूलतः धर्मांतरण के विषाणु ही थे | शब्दों के अर्थ सहित किसी भी वेद मंत्र को अशिष्ट क्यों माना जाए ? – इसका कारण बताएं | अब तक एक भी ऐसा मंत्र कोई नहीं दिखा सका | ज्यादा से ज्यादा, लोग सिर्फ़ कुछ नष्ट बुद्धियों के उलजुलूल अनुवादों की नक़ल उतार कर रख देते हैं, यह जाने बिना ही कि वे इस तरह के बेतुके अर्थों पर पहुंचे कैसे ?

सभी की स्पष्टता के लिए – चारों वेदों में किसी प्रकार की अभद्रता, अवैज्ञानिकता या अतार्किकता का लवलेश भी नहीं है|

प्र. हिन्दू पुराणों में से उत्सवों का पालन करते हैं और पुराणों में यह अशालीन कथाएं हैं, फ़िर हिंदुत्व को इन कथाओं से अलग कैसे मानेंगे ?

उ. यह तर्क व्यर्थ है क्योंकि उत्सव धर्म से प्रेरित सामाजिक क्रिया कलाप है – अपने आप में धर्म नहीं है | उत्सव और उनकी विधियाँ भारत में दो-दो किलोमीटर के फ़ासले पर बदलती जाती हैं – इस वैविध्य को जहां तक वेदानुकूल है – उत्साहित किया गया है | हिन्दू लोग त्यौहारों को सामाजिक प्रसंग की तरह लेते हैं ताकि अपने आदर्शों के प्रति सम्मान प्रकट कर सकें और अच्छाई के प्रति कृतसंकल्प हो सकें | त्यौहारों को मनाने का स्वरुप हमेशा समय, स्थान और समाज के अनुसार बदलता रहता है | समय-समय पर स्वरुप बिगड़ भी जाता है पर इसका धर्म से कोई सम्बन्ध नहीं, जो हमेशा शाश्वत बना रहता है | किसी भी उत्सव में इन अश्लील कहानियों का पाठ नहीं किया जाता बल्कि अपनी श्रद्धा और वचन बद्धता को प्रदर्शित करने के लिए इन दिनों संयम का पालन किया जाता है |

प्र. तब फ़िर ये कथाएं आपकी संस्कृति का हिस्सा क्यों हैं ?

उ. किसने कहा कि यह कहानियां हमारी संस्कृति का हिस्सा हैं ?जन्मना ब्राह्मण धार्मिक ग्रंथों के सबसे नजदीक हैं | अगर ये हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग होती,तो यह कैसे कहा जा सकता है कि –

१.ब्राह्मण समाज (इस लेख में ब्राह्मण से मेरा आशय जन्मना ब्राह्मण से है| ) मात्र भारत में ही नहीं अपितु पूरे विश्व में सर्वाधिक एक पत्नीव्रती समाज है |

२. कई ब्राह्मण ब्रह्मचर्य और आत्म- संयम का पालन उस स्तर तक करते हैं जिसे अरबी मानसिकता वाले शायद अस्वाभाविक मानें |

३. किसी ब्राह्मण ने कभी काशी या मथुरा में ऐसा कोई यज्ञ संयोजित नहीं किया – जिसमें हिंसा, असभ्यता या अश्लीलता समाविष्ट हो |

४.जैसा कि इन गलत कथाओं में प्रचलित किया गया है, कोई भी ब्राह्मण इस तरह रखैल नहीं रखता या व्यभिचारी नहीं है |

इन कथाओं को संस्कृति का हिस्सा बनाने के बदले इन से उपेक्षा बरती गई है, इन्हें अस्वीकार किया गया है या वैदिक धर्म की परिधि ( जो लेख के पहले तीन बिन्दुओं में वर्णित हैं | ) में इनका अलंकारिक अर्थ लिया गया है |

प्र. बहुत से नकली गुरुओं के सेक्स – स्कैंडल ( अनैतिक आचरण ) में फंसे होने की खबरें आती रहती हैं ?

उ. अगर इस तरह की अनर्गल बातें हिन्दू धर्म का हिस्सा होती, तो इसे ” स्कैंडल” (कलंकपूर्ण कृत्य) कहा ही नहीं जाता | किसी पाखंडी गुरु की ऐसी करतूतें सामने आते ही, अन्य किसी भी अपराधी की तरह ही समाज में उसका कड़ा निषेध किया जाता है | और यदि हिन्दू धर्म में किसी भी तरह की लम्पटता का कोई स्थान होता तो यह खबर सुर्ख़ियों में आती ही नहीं बल्कि यह तो समाज में व्याप्त एक सामान्य बात होती ! मिसाल के तौर पर इरान जैसे देश में किसी इमाम के मुता या अस्थायी विवाह कर लेने को कोई चर्चा का विषय नहीं बनाता क्योंकि वहां मुता अनिवार्यतः समाज का हिस्सा है |

जिस तरह यह नहीं कहा जा सकता कि इस्लाम औरतों के बिकिनी शो को जायज़ ठहराता है चूँकि एक अरब महिला ने मिस अमेरिका का ख़िताब हासिल कर लिया है, उसी तरह किसी झूठे गुरु के कारनामों से हिन्दू धर्म का कोई वास्ता नहीं है | इसके विपरीत, उसके दुष्कृत्यों के लिए उसे निन्दित किए जाने की वास्तविकता से यह प्रकट होता है कि इस तरह के विकारों का हिन्दू धर्म में कोई स्थान नहीं है |

प्र. मुस्लिम भी उन सब का अनुसरण नहीं करते, जिनको आप अपनी साइट पर नाम धरते रहते हैं, फ़िर यह दोहरा मापदंड क्यों ?

उ. कृपया हमारे लेखों को ज़रा ध्यानपूर्वक पढ़िए | सामान्यतः हमने कभी भी सम्पूर्ण मुस्लिम समाज या मुहम्मद को निन्दित नहीं किया | हम तो सिर्फ़ नई कुरान और हदीसों को दोषी मानते हैं और उन कठमुल्लाओं या उन्मादियों को निंदनीय मानता हैं, जो इन किताबों (नई कुरान और हदीसों ) के प्रत्येक शब्द को बिलकुल सही और अंतिम मानते हैं | अगर ये धर्म जुनूनी यह मान लें कि कुरान या हदीस की वह सभी आयतें जो आपत्तिजनक हैं ( अश्लील, मुहम्मद को कलंकित करने वाली, कामुकता के लिए गुलामी को ज़ायज ठहरानेवाली, जिस लड़की से शारीरिक सम्बन्ध रहा हो उसकी माँ से भी शादी की इजाजत, गैर – मुस्लिमों के लिए दोज़ख की व्यवस्था, महिलाओं की बुद्धि को आधा ही आंकना, स्त्रियों को बांदी रख लेने पर कोई पाबन्दी न होना, इत्यादि, इत्यादि –)  इस्लाम का हिस्सा नहीं हैं और उन्हें ख़ारिज कर देना चाहिए, तो हमें इस्लाम पर बिलकुल कोई आपत्ति नहीं होगी बल्कि हदीसों और कुरान की अनुचित आयतों को निकल देने पर इस्लाम वैदिक धर्म की ही शाखा बन जाएगा |

प्र. आपका सिद्धांत विचित्र है, हिन्दू जो भी करें आप उसका समर्थन कर रहे हैं और फ़िर भी उन सभी कथाओं को अस्वीकार कर रहें हैं जो हिन्दुओं के आचरण  का आधार हैं ?

उ. १.हिन्दुओं के द्वारा कुछ भी किए जाने को मैंने कभी उचित नहीं ठहराया | हिन्दुओं की कार्य प्रणाली में भी छिद्र हैं अन्यथा कैसे ये बर्बर विदेशी पंथ भारतवर्ष में सेंध लगा पाते? वास्तविक हिन्दू धर्म जो वेदों पर आधारित है ( वैदिक धर्म ) और जिसे हम आज अज्ञानतावश अपनाये बैठे हैं – इन दोनों में निश्चित तौर पर अंतर है |

२.पर यह फर्क हिन्दू धर्म के नहीं बल्कि उसके अनुगामियों के दोष इंगित करता है | मैं जाकिर नाइक से एक बिंदु पर सहमत हूं कि ‘ कार की परख उसके चालक से नहीं, उसके इंजिन से की जानी चाहिए | इसी तरह, हिन्दुत्व का मूल्यांकन वेदों से और उसके मूलभूत सिद्धांतों से किया जाना चाहिए ना कि गलत अनुगामियों से या मिथ्या कथाओं से – जो बाद में गढ़ ली गईं |

३.यह सही है कि आज के प्रचलित स्वरुप में हिन्दू प्रथाओं में ( सामान्यतः ) कई खामियां हैं, जैसे-

– जन्मगत जाति व्यवस्था का होना जो समाज को खंडित कर रही है |

– अपने मूलाधार वेदों और वैदिक धर्म की अवहेलना करना |

– ऊपरी दिखावे पर भरोसा करना और हर किसी पर आसानी से विश्वास करने की प्रवृत्ति |

– झूठ और अधर्म से सख्ती से निपटने में बचते रहने की आदत |

– लव जिहाद के बढ़ते खतरे, धर्मांतरण के वायरस, छद्म धर्मनिरपेक्षता की मनोवृत्ति, इत्यादि की तरफ़ निष्क्रिय रवैया रखना |

– अपने धर्म के मूल और उसके तत्वों को जानने में कम रुझान रखना,  इत्यादि हिन्दुओं की दुर्दशा के कई कारण हैं |

निश्चित तौर पर हम इन सभी से छूटने का प्रयास कर रहे हैं ताकि धर्मांतरण के वायरस से हम अपने धर्म का रक्षण कर सकें और वैदिक आदर्शों के समीप पहुँच सकें |

४. परंतु इन सब के बावजूद यह साफ़ है कि हिन्दू धर्म में कहीं या हिन्दुओं के दृष्टिकोण में – जिस किसी रूप में भी वे अपने धर्म का अनुपालन करते हैं, कहीं कोई अभद्रता का स्थान नहीं है | हो सकता है वे गुमराह हों, अनभिज्ञ हों, आसानी से ठगे जा सकते हों, विरुद्ध समीक्षा न कर पाते हों, हद से ज्यादा सरल हों पर वे धर्म के प्रसंग में अश्लील या अशिष्ट नहीं हैं | कुछ लोग ऐसे हो सकते हैं जो निर्लज्जता और फूहड़ता में ही लिप्त रहते हों जैसे फ़िल्मी सितारे और उनके भक्तगण, लेकिन इस में उनके हिन्दू होने से कोई ताल्लुक नहीं है |

५. यह अग्निवीर की चुनौती है – उन सभी को जो हिन्दुत्व में अश्लीलता दिखाने का प्रयास कर रहे हैं – प्रमाणित करें कि वेद अश्लील हैं अथवा लेख के पहले तीन बिन्दुओं में वर्णित धर्म के लक्षणों को अश्लील प्रमाणित कर के दिखाएँ | ऐसी भूली- बिसरी पुस्तकें जिन्हें हिन्दू संजीदगी से नहीं लेते, उनकी रट लगाने से काम नहीं चलेगा क्योंकि हिन्दुत्व स्वतः ही किसी भी ऐसी बेहूदगी को निकाल फेंकता है – चाहे उसका स्रोत या कारण कोई भी रहा हो | तो इन फर्जी प्रचार के आयोजकों को उनकी आधारहीन कोशिशें बंद कर देनी चाहिए| इसके स्थान पर उनकी अपनी मज़हबी किताबों (आखिरी शब्द तक जिसे वे पूर्ण और अंतिम मानते हैं|) के उन अंशों की एक सूची बना कर तैयार करनी चाहिए जिनकी मौजूदगी में उनका मज़हब  अश्लीलता से सराबोर हो रहा है और इस कलंक से बचने के लिए जिन्हें तुरंत निरस्त किए जाने की आवश्यकता है|

प्र. वेद ,वेद,वेद. लगता है कि आप पर वेदों का भूत सवार है | पर उन मतों के बारे में क्या कहेंगे जो वेदों को ईश्वरीय नहीं मानते और गीता तथा उपनिषदों के बारे में क्या कहना चाहेंगे ?

उ.

१. कृपया Vedic Religion in Brief और what is Vedic Religion को ध्यान से पढ़ें साथ ही लेख की शुरुआत में दिए गये धर्म के ११ लक्षणों का भी पुनरावलोकन करें |जो मत या पंथ वेदों के ईश्वरीय होने में संदेह करते हैं वे भी इन्हें अपनाये हुए हैं |

२.जिन मतों के बारे में आप का दावा है कि वे वेद विरोधी हैं दरअसल वेदों के नाम पर थोपी गई दुष्प्रथाओं का विरोध कर के अपरोक्षतया वे भी वेदों का ही अनुसरण कर रहे हैं |

३.कुरान और बाइबल की तरह वेद किसी काल्पनिक जन्नत को हासिल करने के लिए स्वयं को ईश्वरीय या दैवी घोषित नहीं करते| वेदों के अनुसार निरंतर सत्य का स्वीकार करने से और  झूठ को त्यागते रहने से सत्य अपने आप स्पष्ट होता चला जाता है | मेरे लिए वेदों को ईश्वरीय मानने के तर्क और प्रमाण उपस्थित हैं | पर यदि कोई वेदों के ईश्वरीय होने में विश्वास नहीं करता है लेकिन वह पूर्वाग्रहों से रहित होकर अपनी समझ और मंशा का सही उपयोग करे तो वह वेदों का ही अनुकरण कर रहा है |

४. गीता और उपनिषद अद्भुत ग्रंथ हैं, देखा जाए तो गीता के उपदेशों का आधार यजुर्वेद का ४० वां अध्याय ही है | सभी प्रमुख उपनिषदें बौद्धिक खुराक का काम करती हैं, छ: दर्शन और अन्य धर्म ग्रंथ भी इसी तरह हैं | हमारी उन पर श्रद्धा है और वहीं तक है जहां तक वे वेदों के अनुसार हैं | मसलन, अल्लोपनिषद किसी धर्मांतरण के विषाणु का बनाया हुआ एक ज़ाली उपनिषद है |

५.  आप को गीता और उपनिषद में क्या अश्लील नज़र आया ? हिन्दुत्व पर जैसे- तैसे अश्लीलता थोपने की कुचेष्टा की बजाए अगर आप गीता के दूसरे और  तीसरे अध्याय या इशोपनिषद के १७ मंत्रों का स्वाध्याय कर लें तो खरे अर्थों में यहीं पर आप ज़न्नत  हासिल कर लेंगे | वैदिक बनें क्योंकि वेदों के अलावा अन्य कहीं धर्म नहीं है |

और हिन्दुओं के लिए मैं हिन्दुत्व के आधार को दुहराना चाहूंगा – कुछ भी और सब कुछ  जो वेदों के ख़िलाफ़ है, धर्म नहीं है | अतः हिन्दुत्व सिर्फ़ नैतिकता,शुद्धता और चरित्र पर ही आधारित है |

सभी  निष्ठावान और देशभक्त हिन्दुओं को हिन्दुत्व के इस मूलाधार का चहुँ ओर विस्तार करना चाहिए ताकि हम सफलतापूर्वक धर्मांतरण के वायरस के खतरे से उबार सकें |

अग्निवीर की साइट को तो हैक कर लिया गया था | लेकिन हमारे धर्म को विदेशी जड़वादी, हठाग्रही और ज़ुनूनी लोग असहिष्णुता और छल (जो हमारे धर्म का हिस्सा और विचार कभी रहा ही नहीं ) में विश्वास करनेवाले छीन कर ले जाएं यह हम कभी बरदाश्त नहीं करेंगे |

नान्यः पन्थाः विद्यते अयनाय (यजुर्वेद ३१। १८ )

इस से भिन्न दूसरा कोई मार्ग (मुक्ति का ) नहीं है !


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Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
I am founder of Agniveer. Pursuing Karma Yog. I am an alumnus of IIT-IIM and hence try to find my humble ways to repay for the most wonderful educational experience that my nation gifted me with.

219 COMMENTS

  1. WHERE HINDUISM/HINDUTWA STANDS IN THE WORLD??? There are about one dozen prominent religious faith in the world out of which the major more than 90 percent constitutes the three viz., Jews, Christians and muslims. The majority of world accepts and defines that Adam is the first prophet of Jews, Christians and Muslims.Conflict is for last prophet.Jews believe that their last is Moses,Christians considers Jesus and for muslims their last prophet is Muhammad.SO HINDUISM IS WORLDWIDE A MINORITY.The majority left hinduism to convert into jewish, christianity and islam (HINDUs MUST THINK WHY?) what is wrong in hindutwa???No evidence is available for a person who left Hinduism revert back to be again Hindu Babylon culture (Established by Ibraham, the prophet of majority) is >1000 year older than Harappa /Mohan Judaro .Idol worship in India was introduced by from Egyptian (The original Aryans and founders).Sanatan dharma has common believe of God as jews, christain and muslims. Mosque of Aqsa , the prayer place of Jews and christians, Kaba the prayer place of muslims are the oldest creations by their prophets and are about 15,000 years old after that Veds and puran (Only believed by hindues comes in the world.Is this i am wrong.?

  2. Mujhe bas itna pata hai ki hindu chutiye hote hai…unke dharm k bare me kuch pucho to jawab nhi de payenge aur islam ko ulta sidha kehna shuru kar dengey

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