मादर ए वतन से हमको मोहब्बत है बेपनाह
वर्ना चलती तेग पर सीना अड़ा देता है कौन?
बहुत गौरी गजनी आये थे सवार पैगाम ए सैफ
देखने आये थे हिंदी तेग चमकाता है कौन?
खून के दरया थे हर सू बह रहे सरहिंद में
माँ थी रोती अरबी बातिल को फना करता है कौन?
ख़ाक करते थे बुतों को पैरों से वो बुतशिकन
होड़ सी थी हर्ब को ईमान कर देता है कौन?
फिर कोई राणा शिवा तो कोई वैरागी उठा
गरजा हिंदी धरती पे तकबीर गुंजाता है कौन?
है अभी तक हल्दीघाटी की फिजा में गूंजता
जंग में राणा के भाले से जो टकराता है कौन?
पूछती हैं अब तलक भी अफज़लों की चीख ये
घर में आकर चीरने वाला शिवा आखिर है कौन?
अशफाक बिस्मिल नाम थे दहशत के गोरों के लिए
लाश के आज़ाद की नज़दीक जा सकता है कौन?
ख़्वाब में भी कौन हो सकता है सावरकर सा वीर
चलती कश्ती से समंदर कूद कर जाता है कौन?
हम थे नादाँ गा रहे अब तक तराने गैरों के
छोड़ के अपनों के किस्से गैर को गाता है कौन?
हम हैं गाते ये तराने- आजादी खड्गों बिना
देखना है खड्ग शहीदी सीने से लगाता है कौन?
कुछ दीवानापन सा हमको भी हुआ है अब सवार
देखना है बंसी रख रण शंख बजवाता है कौन?
Truly great poem brother Vashi,
अब फिर से देश और धर्म की रक्षा के लिए
देखना है अग्निवीर से जुड़ता है कौन?
please tell us who wrote this poem ?
बहुत अच्छी पोस्ट हैं सर जी. पढ़कर बहुत ही अच्छा लगा.
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
अंतर से, मुख से, कृति से
निश्चल हो निर्मल मति से
श्रद्धा से मस्तक नत से
हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र अभिवादन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
अपने हँसते शैशव से
अपने खिलते यौवन से
प्रौढ़ता पूर्ण जीवन से
हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र का अर्चन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
अपने अतीत को पढ़कर
अपना इतिहास उलट कर
अपना भवितव्य समझ कर
हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र का चिंतन
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
है याद हमें युग युग की
जलती अनेक घटनायें,
जो माँ की सेवा पथ पर
आई बन कर विपदायें,
हमने अभिषेक किया था
जननी का अरि षोणित से,
हमने श्रिंगार किया था
माता का अरि-मुंडों से,
हमने ही उसे दिया था
सांस्कृतिक उच्च सिंहासन,
माँ जिस पर बैठी सुख से
करती थी जग का शासन,
अब काल चक्र की गति से
वह टूट गया सिंहासन,
अपना तन मन धन देकर
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
तन से, मन से, धन से
तन मन धन जीवन से
हम करें राष्ट्र आराधन
हम करें राष्ट्र आराधन.. आराधन
Bhut achhi post he .
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jaYa agNI veeRA !
Naman
Jaya Bhavani !
Surprised to know that there is one more IITian Agniveer who composes poem. I know some of Humanity( Arts) subjects are taught in curriculum of B.Tech Engg. May be that’s why you are interested in poems.
Is kavita mai jo urdu shabd hain unaka arth samaz me nahi ata hain.
Namaste.
Nice poem!
Can you please refer to some good sources of historical records describing demographic/ political changes (like forceful conversions to the ‘Religion Of Peace’, Sharia implementation etc) and resistance to such changes in Indian sub-continent, from after the start of so-called ‘Islamic’ invasions till end of Mughal empire?