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मनुस्मृति और दंडविधान

इस संक्षिप्त अध्याय में हम महर्षि मनु पर लगाये गए एक और आरोप – शूद्रों के लिए कठोर दण्ड का विधान करना तथा ऊँची जाति, खासतौर से ब्राह्मणों के लिए कानून में विशेष प्रावधान रखना के बारे में विचार करेंगे।

पहले अध्याय मनुस्मृति और शूद्र में हम ने देखा कि मनुस्मृति के २६८५ में से १४७१ श्लोक प्रक्षिप्त पाए गए हैं – मतलब आधी से ज्यादा मनुस्मृति मिलावटी है।

अत: सभी वह श्लोक जो ऊँची जाति को विशेष सहूलियत देने तथा शूद्रों के लिए कठोर दण्ड का विधान करने वाले हैं – इन मनमानी मिलावटों का ही हिस्सा हैं और उन्हें आसानी से पहचाना जा सकता है।

यदि, हम वेदों पर आधारित मूल मनुस्मृति का अवलोकन करें तो हम पाएंगे कि स्थिति बिलकुल विपरीत है। मनु की दण्ड व्यवस्था अपराध का स्वरूप और प्रभाव, अपराधी की शिक्षा, पद और समाज में उसके रुतबे पर निर्भर है। ज्ञानसम्पन्न लोगों को मनु ब्राह्मण का दर्जा देकर अधिक सम्मान देते हैं। जो विद्या, ज्ञान और संस्कार से दूसरा जन्म प्राप्त कर द्विज बन चुके हैं, वे अपने सदाचार से ही समाज में प्रतिष्ठा पाते हैं। अधिक सामर्थ्यवान व्यक्ति की जवाबदेही भी अधिक होती है, अत: यदि वे अपने उत्तरदायित्व को नहीं निभाते हैं तो वे अधिक कठोर दण्ड के भागी हैं।

(हम एक बार फ़िर बताना चाहेंगे कि जन्म से ही कोई ब्राह्मण या द्विज नहीं होता – इस का सम्बन्ध शिक्षा प्राप्ति से है।)
यदि, इस दण्ड–व्यवस्था को हम फ़िर से अपना लें तो भ्रष्टाचार और बहुत से अपराधों पर लगाम लगेगी। आजकल की तरह अपराधी प्रवृत्ति के लोग राजनीति में प्रवेश नहीं कर सकेंगे और राजनीति दूषित होने से बच जाएगी।

दण्ड और अपराधी का सामाजिक स्तर

यहां पर हम इस से संबंधित कुछ श्लोक प्रस्तुत कर रहे हैं –

मनुस्मृति ८।३३५
जो भी अपराध करे वह अवश्य दण्डनीय है चाहे वह पिता, माता, गुरु, मित्र, पत्नी, पुत्र या पुरोहित ही क्यों न हो।

मनुस्मृति ८।३३६
जिस अपराध में सामान्य जन को एक पैसा दण्ड दिया जाए वहां शासक वर्ग को एक हजार गुणा दण्ड देना चाहिए। दूसरे शब्दों में जो कानूनविद् हैं, प्रशासनिक अधिकारी हैं या न्यायपालिका में हैं वे अपराध करने पर सामान्य नागरिक से १००० गुणा अधिक दण्ड के भागी हैं।

न्यायाधीश और सांसदों को विधि-विधान से परे रखने और अपदस्त होने से बचाने की बात मनु के मत से घोर विरोध रखती है।

स्वामी दयानन्द यहां अपनी ओर से कहते हैं कि शासन में काम करने वाले एक चपरासी को सजा में आम लोगों के लिए जो प्रावधान हो उससे ८ गुणा सजा मिलनी चाहिए और बाकी पदाधिकारियों के लिए भी उनके पदों के अनुपात से जो प्रावधान आम लोगों के लिए हो उस से कई गुणा अधिक और सबसे बड़े पदाधिकारी के लिए यह १००० गुणा तक होना चाहिए। क्योंकि जब तक सरकारी पदाधिकारियों को साधारण नागरिकों की तुलना में कठोर दण्ड का विधान नहीं होगा, तब तक शासन प्रजा का हनन ही करता रहेगा। जैसे एक सिंह को वश में रखने के लिए बकरी की अपेक्षा अधिक कठोर नियंत्रण चाहिए उसी प्रकार प्रजा की सुरक्षा को निश्चित करने के लिए सरकारी कर्मचारीयों पर अत्यंत कठोर दण्ड आवश्यक है।

इस परिपाटी या सिद्धांत से भटकना, भ्रष्टाचार की सारी समस्याओं का मूल कारण है। जब तक इस में सुधार नहीं होगा, तब तक राष्ट्र में परिवर्तन लाने के लिए किए गए सारे प्रयास व्यर्थ ही जायेंगे।

मनुस्मृति ८।३३७–८।३३८
अगर कोई अपनी स्वेच्छा से और अपने पूरे होशोहवास में चोरी करता है तो उसे एक सामान्य चोर से ८ गुणा सजा का प्रावधान होना चाहिए – यदि वह शूद्र है, अगर वैश्य है तो १६ गुणा, क्षत्रिय है तो ३२ गुणा और अगर ब्राह्मण है तो ६४ गुणा। यहां तक कि ब्राह्मण के लिए दण्ड १०० गुणा या १२८ गुणा तक भी हो सकता है। दूसरे शब्दों में दण्ड अपराध करने वाले की शिक्षा और सामाजिक स्तर के अनुपात में होना चाहिए।

अतः जैसी कि प्रचलित धारणा है – मनु उसके पूर्णत: विपरीत शूद्रों के लिए शिक्षा के अभाव में सबसे कम दण्ड का विधान करते हैं। मनु ब्राह्मणों को कठोरतर और शासकीय अधिकारीयों को कठोरतम दण्ड का विधान करते हैं। आज के संदर्भ में देखा जाए तो प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मुख्य न्यायाधीश, राष्ट्रिय दलों के नेता यदि दुराचरण करते हैं तो कठोरतम दण्ड के भागी हैं। इसके बाद मंत्रियों, सांसदों, विधायकों, राज्याधिकारियों और न्यायाधीशों की बारी है। जितने भी प्रशासनिक अधिकारी, नौकरशाह हैं, यहां तक कि एक सरकारी विभाग के चपरासी तक को भी सामान्य नागरिक की तुलना में अधिक कठोर दण्ड मिलना चाहिए।

सामान्य नागरिकों में से भी शिक्षित तथा प्रभावशाली वर्ग, यदि अपने कर्तव्यों से मुंह मोड़ता है तो कठोर दण्ड के लायक है। जिस तरह समाज में सबसे श्रेष्ठ को सबसे अधिक महत्त्व प्राप्त है इसलिए उनके आदर्शच्युत होने से सारा समाज प्रभावित होता है।

अत: मनु के अनुसार अपराधी की पद की गरिमा के साथ ही उसका दण्ड भी बढ़ता जाना चाहिए।
यदि कथित जन्मना ब्राह्मण, कथित जन्मना शूद्रों पर अपना श्रेष्ठत्व जताना ही चाहते हैं तो उन्हें कठोर दण्ड के विधान को भी स्वीकार करना चाहिए। बहुसंख्यक जन्मना ब्राह्मण वेदों के बारे में कुछ नहीं जानते। मनुस्मृति २।१६८ के अनुसार जो ब्राह्मण वेदों के अलावा अन्यत्र परिश्रम करते हैं – वह शूद्र हैं। मनुस्मृति में मिलाए गए नकली श्लोकों के अनुसार तो यदि किसी व्यक्ति के शब्दों से ही ब्राह्मण को यह लगता है कि उसका अपमान किया गया है तो उस व्यक्ति के लिए कम से कम एक दिन बिना खाए रहने की सजा है। इसलिए, जो मनुस्मृति के नकली श्लोकों के आधार पर अपना ब्राह्मणत्व हांकने में लगे हैं, उन्हें कम से कम लगातार ६४ दिनों का उपवास करना चाहिए – जब तक कि वह सम्पूर्ण वेदों का अध्ययन न कर लें और पूरी तरह से अपने दुर्गुणों से मुक्त न हो जाएं जिस में कटु वचन बोलना भी शामिल है। (क्योंकि साधारण लोगों की तुलना में ब्राह्मणों को ६४ से १२८ गुणा ज्यादा दण्ड दिया जाना चाहिए।)

ऐसा तो हो नहीं सकता कि चित भी मेरी और पट भी मेरी, आप ब्राह्मण भी बने रहें और जैसा चाहे वैसा कानून भी अपने लिए बनाएं। या तो आप सत्यनिष्ठा से असली मनुस्मृति को अपनाएं और जन्माधारित जाति-व्यवस्था को पूर्णत: नकार दें। या फ़िर कम से कम ६४ दिनों की भूख हड़ताल के लिए तैयार रहिये जब तक आप वेदों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त न कर लें और अगर फ़िर भी वेदों को न पढ़ पाएं तो अगले ६४ दिनों के लिए अनशन फ़िर से जारी रखें।
जन्म आधारित जाति-व्यवस्था महर्षि मनु द्वारा प्रतिपादित समाज व्यवस्था का कहीं से भी हिस्सा नहीं है। जो जन्मना ब्राह्मण अपने लिए दण्डव्यवस्था में छूट या विशेष सहूलियत चाहते हैं – वे मनु, वेद और सम्पूर्ण मानवता के घोर विरोधी हैं और महर्षि मनु के अनुसार ऐसे समाज कंटक अत्यंत कड़े दण्ड के लायक हैं।

मनुस्मृति में शूद्रों के लिए कठोर दण्ड विधान की धारणा बिलकुल निराधार, झूठी और बनाई हुई है।
आइए, मनुस्मृति के इस संविधान को फ़िर से अपनाकर देश को भ्रष्ट राजनेताओं, भ्रष्ट न्याय व्यवस्था, धूर्त और कथित बुद्धिवादियों के चंगुल से बचाएं।

सारांश: मनुस्मृति ७।१७-२०

• वस्तुतः एक शक्तिशाली और उचित दण्ड ही शासक है।
• दण्ड न्याय का प्रचारक है।
• दण्ड अनुशासनकर्ता है।
• दण्ड प्रशासक है।
• दण्ड ही चार वर्णों और जीवन के चार आश्रमों का रक्षक है।
• दण्ड ही सबका रक्षक है, वह राष्ट्र को जागृत रखता है – इसलिए विद्वान उसी को ‘धर्म’ कहते हैं।
• यदि भली-भांति विचारपूर्वक दण्ड का प्रयोग किया जाए तो वह समृद्धि और प्रसन्नता लाता है परंतु बिना सोचे समझे प्रयोग करने पर दण्ड उन्हीं का विनाश कर देता है जो इसका दुरूपयोग करते हैं।

इसलिए अब समय आ गया है कि भ्रष्ट नेता और अधिकारीयों का विनाश हो क्योंकि वे इस दण्ड का बहुत दुरूपयोग कर चुके हैं। आइए, समाज, राष्ट्र और मानवता की रक्षा के लिए – किसी भी रूप में जन्मगत भेदभाव का समर्थन करनेवालों को हम दण्ड से ही सीधा करें।

समाज, राष्ट्र और मानवता की रक्षा का यही एक उपाय है,
अन्य कोई मार्ग नहीं!

This translation in Hindi has been contributed by sister Aryabala. Original post in English is available at http://agniveer.com/manu-smriti-and-punishment/

संदर्भ – डा. सुरेन्द्र कुमार, पं. गंगाप्रसाद उपाध्याय और ऋषि दयानंद के कार्य |

Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
I am founder of Agniveer. Pursuing Karma Yog. I am an alumnus of IIT-IIM and hence try to find my humble ways to repay for the most wonderful educational experience that my nation gifted me with.

7 COMMENTS

  1. to geeta me bhawan krishn ne khud ko bhagwan bataya hai to krishn he bhagwan hue.fir shiv ji kya hai dev ya bhagwan.vastaw me bhagwan ki pooja kis naam se ke ja sakti hai.

    • bahgvaan aur ishvar me kafi antar ho skata hai bhagvaan to doctor ko bhi kah diya jata hai yah to kai hajar ki sankhya me sirf apne hi desh me hai ! ishvar vah hai jo ham sabko svanso ke maadhyam se jivaan deta hai aur jo is shrishti ka niraman kiya tha ! ishvar ki aradhn aam janta sirf “om” ka jap karke bhi kar sakti aur apne jivan me ek matr sutr “dusre ke saath vahi vyavhaar karo jo apne liye bhi pasand aye ” yahi sutr hai manvta ka aur sare sansar me shanti lane ka bhi

  2. A ah 2015 chal that has use bad bi log narrow mind me has log general wale kehte hai humme guts hai hum to kehte studio ki tarah jeevan jeekar to dekho uske bad dekhu tumhara guts humne educated logo ko bi ye kehte sun a hai but ye scientifically proof Ho Chi kam hai ki intelligence community par adharit nah I intelligence environment, heridity, khan paan par depend karti hai

  3. koi ishvar ko mane na mane lekin ye bat sbko pta honi chahiye ki aj jitne log b duniya me h wo sb ishvar ki kripa se hi kama re h….agar ishvr chahe to apko do minute me nicha dikha de…or rahi bat sudra ki to bhagwan ne nahi insano ne hi jaatiya baat di warna ishvar to sbko barabar manta h or wo sbki ichha puri karte agr ishvar ko bhed bhav krna hota sudra or thakur brahman me to log ko b manna chodh dete …sirf or sirf ye insan ki galat soch h ki sudra me bhed bhav krna ye uchi jaatiyo me bahut hi jyada galat soch apne dimag me dal rakhi h….ek sudra IAS or PM ban jaye to log uske peche peche bhagte h agr ye sahi to sare neche caste ko izzat respect krni chaiye jaruri ni har nichi caste paisa.wala hi ho ….logo ki insaniyat dkhni chahiye paisa.ni…..so mera manna h chahe koi b nechi caste ho sbko respect barabar milni chahiye….
    rachna singh

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