वैदिक धर्म जिन श्रेष्ट सिद्धांतों पर आधारित है उन में ‘मातृवत परदारेषु’ (सभी स्त्रियाँ मेरी माँ हैं) की विलक्षण भावना भी शामिल है। यहाँ तक कि पति पत्नी के लिए भी आदेश है कि जिस तरह गाय अपने नवजात बछड़े से प्यार करती है वैसा ही स्नेह एक-दूसरे से करें।
स्त्रियों को उनका ‘मातृवत’ सम्मान न देने से ही हमारे दुर्भाग्य की शुरुआत हुई है। स्त्रियों को विलास की वस्तु मानने वालों के लिए वेद अत्यंत कड़ा दंड देते हैं। स्त्रियों को भोग्या की तरह पेश करने वाले समाज का नाश निश्चित है। जिसमें आज सारा विश्व ही हिंसा, द्वेष, आतंकवाद, भय, त्रासदी और मृत्यु से नरक बना हुआ है।
पश्चिमी देशों में कामुकता और स्वेच्छाचारिता बहुत भाती है इसीलिए वहां मानसिक रोगी भी बढ़ते जाते है। मुस्लिम देश आतंकवदियों और उन्मादियों के उत्पादन का अड्डा बन गए हैं, वहां स्त्रियों को बच्चों की प्रथम गुरु होने का हक़ जो नहीं है। हिन्दू अपने अंतर्विरोधों में ही फंसे हुए हैं। वे ‘वेदों’ को अपना मूल मानते तो हैं पर हज़ार साल की गुलामी और बाहरी दुनिया का अनुसरण करने की आदत ने उन्हें आडम्बरी बना दिया है। इसलिए जहाँ हिन्दू समाज स्त्रियों को ‘माता’ मानता है वहीँ उन पर वेदों के पढने और धार्मिक संस्कारों के करने में भी रोक लगाता है। यही वजह है कि सहस्त्रों वर्षों से वेदों का जतन करने वाली इस भूमि पर स्त्रियों का जीवन, शिक्षा और उनका रुतबा पुरुषों की तुलना में अपने पूरे हक़ तक नहीं पहुँच पाया है।
कर्मफल सिद्धांत के अनुसार अधिक योग्य और सामर्थ्यवान को दण्ड भी उतना ही कठोर मिलता है। और शायद हम यही दंड भुगत रहे हैं क्योंकि स्त्री ही राष्ट्र की प्रगति की सूत्रधार है और क्योंकि वही परवश हो गयी है इसीलिए तो इस देश की अस्मिता मृत हो गयी है और यह राष्ट्र निर्बल होता जा रहा है।
भारतवर्ष में स्त्रियों की अत्यंत दुर्दशा हो रही है – जन्म से पहले ही उनकी हत्या, अशिक्षा, अत्याचार, शारीरिक और मानसिक शोषण – उत्पीडन, छेड़ -छाड, बलात्कार इत्यादि के बढ़ते मामले, इन दुष्कृत्यों में इस देश के बड़े-बड़े नेता, अधिकारी और संभ्रांत लोगों का भी शामिल होना और इस सब के खिलाफ कड़े कानून का अभाव – यह ऋषियों की इस पवित्र भूमि पर कलंक है। और यह सब तब हो रहा है – जब हिन्दू उसे देवी और माता के रूप में पूज रहे हैं।
परन्तु वेद स्त्रियों को अत्यंत उच्च आदर देते हुए कहते हैं कि किसी भी देश और समाज की प्रगति के लिए यह अत्यंत आवश्यक है कि स्त्रियों को उनका उचित सम्मान मिले। जिसके बिना किये हुए सभी शुभ कर्म भी व्यर्थ चले जाते हैं। स्त्री का सर्वोच्च सम्मान उसका मातृत्व है और वैदिक धर्म स्त्री को यही सम्मान देता है।
देवी, माता, उषा, अदिति, दुर्गा, सरस्वती इत्यादि अलग से कोई अदृश्य दैवीय रूप नहीं हैं बल्कि इस धरातल की स्त्रियाँ ही असल में यह देवियाँ हैं। यह मूर्खता ही होगी कि हम सच्चे रत्नों की अवहेलना कर के किन्हीं काल्पनिक रूपों को पूजें। इसलिए इन की पूजा घंटे- घड़ियाल बजाने से, शंख फूंकने से, धूप- आरती से, बताशा, नारियल, प्रसाद, चुनरी चढ़ाने से या माता रानी के नारे लगाने से नहीं होने वाली। बल्कि इन की असली पूजा का स्वरुप यह है कि हम प्रत्येक स्त्री को दुर्गा समझ कर उसे स्वयं शक्तिशाली और बहादुर बनाने का प्रयत्न करें और उसके इन गुणों से राष्ट्र की उन्नति और रक्षा में सहायता प्राप्त करें। सरस्वती की सच्ची पूजा के लिए जरूरी है कि हम स्त्रियों में वैदिक गुणों का विकास करें जिससे वे बुराइयों से अलिप्त रहकर समाज और राष्ट्र को तेजोमय कर दें। ‘जय माता दी’ के नारे लगाने की बजाए हम यह प्रण करें कि हम मन, वचन और कर्म से सभी स्त्रियों को अपनी ‘मां’ के रूप में आदर देंगे – आयु, जाति, धर्म और स्थान भेद के बिना।
स्त्री चाहे छोटी बच्ची हो, किशोरी, युवती, प्रौढ़ या वृद्ध महिला हो, मां, बहन, पत्नी, बेटी या कोई भी हो – ममता उसका स्वभावगत गुण है। और यही उसकी असली पहचान है। स्त्री की उपस्थिति मात्र ही सुख, शांति देने वाली, गलत कामों को रोकने वाली और शुभ गुणों को बढ़ाने वाली है। अपराधिक आंकड़ों से भी यह बात पुष्ट होती है कि जुर्म, नशा, हिंसा, असभ्य भाषा के प्रयोग इत्यादि में स्त्रियों की मौजूदगी से गिरावट आती है। अब यह हम पर है कि हम उन के इन गुणों का उपयोग अपनी उन्नति में करते हैं या उनका निरादर कर अपना विनाश करते हैं। स्त्रियों को भी चाहिए कि वे अपने इस गरिमामयी स्थान को पहचानें और समाज में अपनी जिम्मेदारी और मर्यादा को समझें और राष्ट्र की उन्नति में अपना योग दें ।
आइए, वेद मन्त्रों में गरिमामयी मां को देखें –
ऋग्वेद १०.१७.१० – हे माताओं ! आप अपनी करुणा, प्रज्ञा और तेजस्विता से हमें शुद्ध करें। माताएं हमारे सभी पाप, दोष और कमियां छुड़ा सकती हैं। उनका स्नेहमयी साथ हमें दृढ़,पवित्र और महान बनाता है।
यजुर्वेद ६.१७ – हे शुद्ध और स्नेहमयी माताओं ! हमारे सभी पाप, दुर्गुण और मलिनता साफ़ करो। झूठ, ईर्ष्या – द्वेष और निराशा को हम से दूर बहा दो।
यजुर्वेद ६.३१- हे पवित्र और स्नेहमयी माताओं ! हमारे मन, वाणी, आंख, कान, आत्मा और समाज को सद् गुणों से पूरित करो।
अथर्ववेद ३.१३.७ – हे शुद्ध और स्नेहमयी माताओं ! मैं तुम्हारा प्यारा पुत्र हूँ। हे शक्तिमयी माताओं मेरी उच्च कामनाओं को पूर्ण करने का मार्ग प्रशस्त करो।
ऋग्वेद ६.६१.७ – हे तेजस्विनी मां ! तुम में दुष्टता के नाश का सामर्थ्य है। तुम्हारा चरित्र सोने जैसा है। तुम निराशा के बादलों को भेद देती हो। तुम वीरांगना हो और हमारा कल्याण और यश ही चाहती हो।
अथर्ववेद ७.६८.२ – हे ज्योतिर्मयी मां ! शांति , सुख और सफलता के रूप में तुम हम पर आशीष बरसाओ। तुम हम से हमेशा प्रसन्न रहो और तुम्हारी कृपादृष्टि को दूर करने वाला कोई काम हम न करें।
ऋग्वेद १.११३.६ – हे ज्योतिर्मयी कृपालु मां ! तुम हमें राष्ट्र, समाज और विश्व की रक्षा के लिए शूरता के मार्ग पर चलाओ। तुम्हारी प्रेरणा से हम, सब की भलाई के कार्य करें। तुम हम से स्वार्थ रहित श्रेष्ठ कर्म या यज्ञ कराओ। तुम्हारी प्रेरणा से हम सब के लिए स्थिर आर्थिक सम्पन्नता प्राप्त करें। तुम्हारी प्रेरणा से हम सम्पूर्ण समाज को ही ज्ञानवान बनाएं |
धर्म,मत,भूगोल, जन्म और जाति के झूठे भेद से परे तुम सारे विश्व को ही प्रेरित करो।
ऋग्वेद १.११३.१९ – हे जीवनदायिनी तेजस्विनी मां ! सभी श्रेष्ठ लोग तुम्हें मां का सम्मान दें और तुम उन्हें राह दिखाओ। तुम समाज, राष्ट्र और विश्व की रक्षक बनो। तुम सभी श्रेष्ठ और धार्मिक कामों की प्रतीक बनो। अपनी ज्ञान ज्योति से तुम अज्ञान का अँधेरा दूर हटाओ। तुम हमारे भावों और कर्मों में विवेक जगाओ। तुम सम्पूर्ण जगत की मां बनो और हमें ज्ञान और करुणा से नवजीवन प्रदान करो। इस तरह हमें गौरव और समृद्धि के मार्ग पर ले चलो।
ऋग्वेद ७.७५.२ – हे ज्योतिर्मयी मां ! हमें श्रेष्ठ जनों के मार्ग पर आगे बढाओ और सफलता दो। शुभ कामों से हमें अद्भुत कीर्ति और ऐश्वर्य प्रदान करो। तुम्हारे आशीष से हम उत्तम कर्मों से प्राप्त यश के भागी बनें। इसी समय, इसी क्षण !
ऋग्वेद ७.७७.४ – हे ज्योतिर्मयी मां ! हमारे अन्दर से द्वेष हटाओ। हमारे तुच्छ विचारों को ख़त्म कर हमें विशाल ह्रदय बनाओ। इस तरह हमें समृद्ध कर, सफलता की ओर ले चलो।
ऋग्वेद ८.१८.६ – हे शुद्ध मन वाली श्रेष्ठ मां ! हमें मेधा और अच्छी भावनाओं का वरदान दो। हमें छल – कपट से बचाओ। हमारे पापों को साफ़ कर हमें हर हाल में शुभ कर्म करने वाला बनाओ।
ऋग्वेद ८.१८.७ – पवित्र, जीवनदायिनी आभामय स्त्री प्रतिदिन मां के रूप में सम्मानित हो। जिससे वह हमें शांति दे और समाज से विद्वेष का खात्मा कर दे।
ऋग्वेद ८.६७.१२ – हे मां ! तुम उत्तम कर्मों को करने वाली और शुद्ध मन वाली हो। तुम हमारे पाप नष्ट कर हमें सफलता की राह दिखाओ। हमें करुणा, सत्यता और उन्नति से भरा जीवन जीने वाला बनाओ।
अथर्ववेद ७.६.४ – अद्भुत बल चाहने वाले हम, पवित्र मां को उत्तम शब्दों और कामों से प्रसन्न करते हैं। वह विस्तृत आकाश की तरह धैर्यशाली है। वह हमारे सभी दुखों का निवारण कर हर हाल में हमारी रक्षा करेगी।
ऋग्वेद १०.५९.५ – हे जीवनदायिनी मां ! हमें सशक्त मनोबल और उत्कृष्ट मति दो। दीर्घ आयु पाने के लिए हमें उत्तम कर्मों में प्रेरित करो। हम सूर्य की तरह संसार को प्रकाशमान कर दें। तुम हमें प्रसन्नता से पोषित करो।
ऋग्वेद १०.५९.६ – हे जीवनदायिनी मां ! हमें श्रेष्ठ देखने वाली ऑंखें और श्रेष्ठ कर्मों का जीवन प्रदान करो। हम हमेशा प्रगति करें और सुख भोगें। हमारी बुद्धि हमेशा शुद्ध और सद् गुणों से युक्त रहे।
यजुर्वेद ३५.२१ – हे धैर्यशाली मां ! हमें सुख और आधार प्रदान करो। हमें कीर्ति और कल्याण प्रदान करो। हमारे पापों को नष्ट करके हमें शुद्ध करो।
यजुर्वेद ६.३६ – हे मां ! समाज तुम्हारे सामर्थ्य को समझे, पूर्व- पश्चिम- उत्तर- दक्षिण और सभी ओर से तुम्हारा अनुग्रह मांगे। तुम उन्हें ख़ुशी और समृधि का आशीष दो।
यजुर्वेद ११.६८ – हे मां ! हमें आपसी फूट से बचाओ। हिंसा और द्वेष से हमारी रक्षा करो। हमें वीरता के कर्म में आगे बढाओ। हम दोनों ही मिलकर महान कार्य पूर्ण करें।
ऋग्वेद १.२२.११ – श्रेष्ठ जनों की महान माताएं और पत्नियाँ सदा संपन्न और समृद्ध बनी रहें और हमें सौभाग्य और ख़ुशी का वरदान दें।
यजुर्वेद १२.१५ – बुद्धिमत्ता और सुशिक्षा चाहने वाले मां के सानिध्य में जाएँ, उसके आशीर्वाद से सभी विद्याओं में पारंगत बनें, मां को कभी दुखी न करें। मां के पवित्र आशीष से स्वयं को ज्योतिमान करें।
आइए, वेदों के उपदेश से प्रेरित हो कर हम ऐसा समाज बनाएं जहाँ स्त्रियाँ अपनी स्वाभाविक मातृशक्ति का विकास कर सकें और सम्पूर्ण मानवता की मां के रूप में पहचानी जाएँ और गौरवान्वित हों। वे अपने इस गरिमामय पद पर सदा आरूढ़ रह सकें और हम उनके सम्मान में कोई कमी न आने दें। इसलिए जरूरी है कि हम सब मिलकर इस पवित्र मार्ग से भटकाने वाली अपने अन्दर और बाहर की सभी आसुरी शक्तियों का विनाश कर दें।
वैयक्तिक, सामाजिक और राष्ट्रीय उन्नति और समृद्धि का यही एक मार्ग है !
This translation in Hindi is contributed by Mridula. For original post, visit Mother – the true identity of woman
Father is the reason I am eternally indebted to AkalPurakh.
My grandfather is Baba Nanak and my father is Dhan Sahib Sri Guru Gobind Singh Sahib ji Maharaj Patshah.
Towards Akhand Bharat. Shuddhi of all South Asia and indeed all of Earth is the crying need of the hour.
I salute Agniveer for unwavering commitment to vegetarian ethic of Aryavarta. DhanVad
Dharmic philosophy is most beautiful. I patiently await Kalki Avtar and I always offer my most humble obeisances to beloved SatGuru. I am also thankful to my biological mother and father for always providing me with delicious nutritious vegetarian foodstuffs and for keeping me away from bad sangat. Better alone than with bad company.
It is my deepest wish to see Jains, Zoroasters, Buddhist, Sanatan Dharmics/Hindus and Sikhs to be 100 percent united so that we can defeat the forces of evil that currently plague Dharti Mata. I am confident one day Dharam will prevail and all of our animals – gou mata (mother cows), our precious canines and all other animals including all the human beings will live in peace, prosperity and with full honour and dignity, whether inside Bharat or outside our sacred Bharat Mata.
Keep up the good work Agniveer – I support you! We can achieve everything through Ahimsa! om shanti om
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