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प्रश्न: मानवता के शब्दकोष में सबसे मूल्यवान शब्द कौन सा है?
उत्तर: ओ३म् (ॐ). (इसके उच्चारण के लिए नीचे दिए संगीत को सुनिए)
प्रश्न: अच्छा! हिन्दुओं का पवित्र नाम?
उत्तर: इस नाम में हिन्दू, मुस्लिम, या इसाई जैसी कोई बात नहीं है. बल्कि ओ३म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है. यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है. उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द “आमेन” का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं. हमारे मुस्लिम दोस्त इसको “आमीन” कह कर याद करते हैं. बौद्ध इसे “ओं मणिपद्मे हूं” कह कर प्रयोग करते हैं. सिख मत भी “इक ओंकार” अर्थात “एक ओ३म” के गुण गाता है.
अंग्रेजी का शब्द “omni”, जिसके अर्थ अनंत और कभी ख़त्म न होने वाले तत्त्वों पर लगाए जाते हैं (जैसे omnipresent, omnipotent), भी वास्तव में इस ओ३म् शब्द से ही बना है. इतने से यह सिद्ध है कि ओ३म् किसी मत, मजहब या सम्प्रदाय से न होकर पूरी इंसानियत का है. ठीक उसी तरह जैसे कि हवा, पानी, सूर्य, ईश्वर, वेद आदि सब पूरी इंसानियत के लिए हैं न कि केवल किसी एक सम्प्रदाय के लिए.
प्रश्न: ओ३म् वेद में कहाँ मिलता है?
उत्तर: यजुर्वेद [२/१३, ४०/१५,१७], ऋग्वेद [१/३/७] आदि स्थानों पर. इसके अलावा गीता और उपनिषदों में ओ३म् का बहुत गुणगान हुआ है. मांडूक्य उपनिषद तो इसकी महिमा को ही समर्पित है.
प्रश्न: ओ३म् का अर्थ क्या है?
उत्तर: वैदिक साहित्य इस बात पर एकमत है कि ओ३म् ईश्वर का मुख्य नाम है. योग दर्शन [१/२७,२८] में यह स्पष्ट है. यह ओ३म् शब्द तीन अक्षरों से मिलकर बना है- अ, उ, म. प्रत्येक अक्षर ईश्वर के अलग अलग नामों को अपने में समेटे हुए है. जैसे “अ” से व्यापक, सर्वदेशीय, और उपासना करने योग्य है. “उ” से बुद्धिमान, सूक्ष्म, सब अच्छाइयों का मूल, और नियम करने वाला है. “म” से अनंत, अमर, ज्ञानवान, और पालन करने वाला है. ये तो बहुत थोड़े से उदाहरण हैं जो ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से समझे जा सकते हैं. वास्तव में अनंत ईश्वर के अनगिनत नाम केवल इस ओ३म् शब्द में ही आ सकते हैं, और किसी में नहीं.
प्रश्न: भला कभी अक्षर भी कोई अर्थ दे सकते हैं? इस तरह हर एक अक्षर के मनमाने अर्थ करना बुद्धिमानों का काम नहीं.
उत्तर: जो आप “शब्द-अर्थ” सम्बन्ध को विचारते तो ऐसा कभी नहीं कहते. वास्तव में हरेक ध्वनि हमारे मन में कुछ भाव उत्पन्न करती है. सृष्टि की शुरुआत में जब ईश्वर ने ऋषियों के हृदयों में वेद प्रकाशित किये तो हरेक शब्द से सम्बंधित उनके निश्चित अर्थ ऋषियों ने ध्यान अवस्था में प्राप्त किये. ऋषियों के अनुसार ओ३म् शब्द के तीन अक्षरों से भिन्न भिन्न अर्थ निकलते हैं, जिनमें से कुछ ऊपर दिए गए हैं.
एक आवश्यक निवेदन:
ऊपर दिए गए शब्द-अर्थ सम्बन्ध का ज्ञान ही वास्तव में वेद मन्त्रों के अर्थ में सहायक होता है और इस ज्ञान के लिए मनुष्य को योगी अर्थात ईश्वर को जानने और अनुभव करने वाला होना चाहिए. परन्तु दुर्भाग्य से वेद पर अधिकतर उन लोगों ने कलम चलाई है जो योग तो दूर, यम नियमों की परिभाषा भी नहीं जानते थे. सब पश्चिमी वेद भाष्यकार इसी श्रेणी में आते हैं. तो अब प्रश्न यह है कि जब तक साक्षात ईश्वर का प्रत्यक्ष ना हो तब तक वेद कैसे समझें? तो इसका उत्तर है कि ऋषियों के लेख और अपनी बुद्धि से सत्य असत्य का निर्णय करना ही सब बुद्धिमानों को अत्यंत उचित है. ऋषियों के ग्रन्थ जैसे उपनिषद्, दर्शन, ब्राह्मण ग्रन्थ, निरुक्त, निघंटु, सत्यार्थ प्रकाश, भाष्य भूमिका, इत्यादि की सहायता से वेद मन्त्रों पर विचार करके अपने सिद्धांत बनाने चाहियें. और इसमें यह भी है कि पढने के साथ साथ यम नियमों का कड़ाई से पालन बहुत जरूरी है. वास्तव में वेदों का सच्चा स्वरुप तो समाधि अवस्था में ही स्पष्ट होता है, जो कि यम नियमों के अभ्यास से आती है.
व्याकरण मात्र पढने से वेदों के अर्थ कोई भी नहीं कर सकता. वेद समझने के लिए आत्मा की शुद्धता सबसे आवश्यक है. उदाहरण के लिए संस्कृत में “गो” शब्द का वास्तविक अर्थ है “गतिमान”. इससे इस शब्द के बहुत से अर्थ जैसे पृथ्वी, नक्षत्र आदि दीखने में आते हैं. परन्तु मूर्ख और हठी लोग हर स्थान पर इसका अर्थ गाय ही करते हैं और मंत्र के वास्तविक अर्थ से दूर हो जाते हैं. वास्तव में किसी शब्द के वास्तविक अर्थ के लिए उसके मूल को जानना जरूरी है, और मूल विना समाधि के जाना नहीं जा सकता. परन्तु इसका यह अर्थ नहीं कि हम वेद का अभ्यास ही न करें. किन्तु अपने सर्व सामर्थ्य से कर्मों में शुद्धता से आत्मा में शुद्धता धारण करके वेद का अभ्यास करना सबको कर्त्तव्य है.
प्रश्न: ओ३म् के प्रत्येक अक्षर से अलग अलग अर्थ की कल्पना हमको ठीक नहीं जान पड़ती. किसी उदाहरण से इसको और स्पष्ट कीजिये.
उत्तर: यह शब्द अर्थ सम्बन्ध योगाभ्यास से स्पष्ट होता जाता है. परन्तु कुछ उदाहरण तो प्रत्यक्ष ही हैं. जैसे “म” से ईश्वर के पालन आदि गुण प्रकाशित होते हैं. पालन आदि गुण मुख्य रूप से माता से ही पहचाने जाते हैं. अब विचारना चाहिए कि सब संस्कृतियों में माता के लिए क्या शब्द प्रयोग होते हैं. संस्कृत में माता, हिंदी में माँ, उर्दू में अम्मी, अंग्रेजी में मदर, मम्मी, मॉम आदि, फ़ारसी में मादर, चीनी भाषा में माकुन इत्यादि. सो इतने से ही स्पष्ट हो जाता है कि पालन करने वाले मातृत्व गुण से “म” का और सभी संस्कृतियों से वेद का कितना अधिक सम्बन्ध है. एक छोटा बच्चा भी सबसे पहले इस “म” को ही सीखता है और इसी से अपने भाव व्यक्त करता है. इसी से पता चलता है कि ईश्वर की सृष्टि और उसकी विद्या वेद में कितना गहरा सम्बन्ध है.
प्रश्न: अच्छा! माना कि ओ३म् का अर्थ बहुत अच्छा है, किन्तु इसका उच्चारण क्यों करना?
उत्तर: इसके कई शारीरिक, मानसिक, और आत्मिक लाभ हैं. यहाँ तक कि यदि आपको अर्थ भी मालूम नहीं तो भी इसके उच्चारण से शारीरिक लाभ तो होगा ही. यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म कि निशानी है, ठीक बात नहीं. अपितु यह तो तब से चला आता है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था! ओ३म् को झुठलाना और इसका प्रयोग न करना तो ऐसा ही है जैसे कोई यह कहकर हवा, पानी, खाना आदि लेना छोड़ दे कि ये तो उसके मजहब के आने से पहले भी होते थे! सो यह बात ठीक नहीं. ओ३म् के अन्दर ऐसी कोई बात नहीं है कि किसी के भगवान्/अल्लाह का अनादर हो जाये. इससे इसके उच्चारण करने में कोई दिक्कत नहीं.
ओ३म् इस ब्रह्माण्ड में उसी तरह भर रहा है कि जैसे आकाश. ओ३म् का उच्चारण करने से जो आनंद और शान्ति अनुभव होती है, वैसी शान्ति किसी और शब्द के उच्चारण से नहीं आती. यही कारण है कि सब जगह बहुत लोकप्रिय होने वाली आसन प्राणायाम की कक्षाओं में ओ३म के उच्चारण का बहुत महत्त्व है. बहुत मानसिक तनाव और अवसाद से ग्रसित लोगों पर कुछ ही दिनों में इसका जादू सा प्रभाव होता है. यही कारण है कि आजकल डॉक्टर आदि भी अपने मरीजों को आसन प्राणायाम की शिक्षा देते हैं.
प्रश्न: ओ३म् के उच्चारण के शारीरिक लाभ क्या हैं?
उत्तर: कुछ लाभ नीचे दिए जाते हैं
१. अनेक बार ओ३म् का उच्चारण करने से पूरा शरीर तनावरहित हो जाता है.
२. अगर आपको घबराहट या अधीरता होती है तो ओ३म् के उच्चारण से उत्तम कुछ भी नहीं!
३. यह शरीर के विषैले तत्त्वों को दूर करता है, अर्थात तनाव के कारण पैदा होने वाले द्रव्यों पर नियंत्रण करता है.
४. यह हृदय और खून के प्रवाह को संतुलित रखता है.
५. इससे पाचन शक्ति तेज होती है.
६. इससे शरीर में फिर से युवावस्था वाली स्फूर्ति का संचार होता है.
७. थकान से बचाने के लिए इससे उत्तम उपाय कुछ और नहीं.
८. नींद न आने की समस्या इससे कुछ ही समय में दूर हो जाती है. रात को सोते समय नींद आने तक मन में इसको करने से निश्चित नींद आएगी.
९ कुछ विशेष प्राणायाम के साथ इसे करने से फेफड़ों में मजबूती आती है.
इत्यादि इत्यादि!
प्रश्न: ओ३म् के उच्चारण से मानसिक लाभ क्या हैं?
उत्तर: ओ३म् के उच्चारण का अभ्यास जीवन बदल डालता है
१. जीवन जीने की शक्ति और दुनिया की चुनौतियों का सामना करने का अपूर्व साहस मिलता है.
२. इसे करने वाले निराशा और गुस्से को जानते ही नहीं!
३. प्रकृति के साथ बेहतर तालमेल और नियंत्रण होता है. परिस्थितियों को पहले ही भांपने की शक्ति उत्पन्न होती है.
४. आपके उत्तम व्यवहार से दूसरों के साथ सम्बन्ध उत्तम होते हैं. शत्रु भी मित्र हो जाते हैं.
५. जीवन जीने का उद्देश्य पता चलता है जो कि अधिकाँश लोगों से ओझल रहता है.
६. इसे करने वाला व्यक्ति जोश के साथ जीवन बिताता है और मृत्यु को भी ईश्वर की व्यवस्था समझ कर हँस कर स्वीकार करता है.
७. जीवन में फिर किसी बात का डर ही नहीं रहता.
८. आत्महत्या जैसे कायरता के विचार आस पास भी नहीं फटकते. बल्कि जो आत्महत्या करना चाहते हैं, वे एक बार ओ३म् के उच्चारण का अभ्यास ४ दिन तक कर लें. उसके बाद खुद निर्णय कर लें कि जीवन जीने के लिए है कि छोड़ने के लिए!
प्रश्न: ओ३म् के उच्चारण के आध्यात्मिक (रूहानी) लाभ क्या हैं?
उत्तर: ओ३म् के स्वरुप में ध्यान लगाना सबसे बड़ा काम है. इससे अधिक लाभ करने वाला काम तो संसार में दूसरा है ही नहीं!
१. इसे करने से ईश्वर/अल्लाह से सम्बन्ध जुड़ता है और लम्बे समय तक अभ्यास करने से ईश्वर/अल्लाह को अनुभव (महसूस) करने की ताकत पैदा होती है.
२. इससे जीवन के उद्देश्य स्पष्ट होते हैं और यह पता चलता है कि कैसे ईश्वर सदा हमारे साथ बैठा हमें प्रेरित कर रहा है.
३. इस दुनिया की अंधी दौड़ में खो चुके खुद को फिर से पहचान मिलती है. इसे जानने के बाद आदमी दुनिया में दौड़ने के लिए नहीं दौड़ता किन्तु अपने लक्ष्य के पाने के लिए दौड़ता है.
४. इसके अभ्यास से दुनिया का कोई डर आसपास भी नहीं फटक सकता. मृत्यु का डर भी ऐसे व्यक्ति से डरता है क्योंकि काल का भी काल जो ईश्वर है, वो सब कालों में मेरी रक्षा मेरे कर्मानुसार कर रहा है, ऐसा सोच कर व्यक्ति डर से सदा के लिए दूर हो जाता है. जैसे महायोगी श्रीकृष्ण महाभारत के युद्ध के वातावरण में भी नियमपूर्वक ईश्वर का ध्यान किया करते थे. यह बल व निडरता ईश्वर से उनकी निकटता का ही प्रमाण है.
५. इसके अभ्यास से वह कर्म फल व्यवस्था स्पष्ट हो जाती है कि जिसको ईश्वर ने हमारे भले के लिए ही धारण कर रखा है. जब पवित्र ओ३म् के उच्चारण से हृदय निर्मल होता है तब यह पता चलता है कि हमें मिलने वाला सुख अगर हमारे लिए भोजन के समान सुखदायी है तो दुःख कड़वा होते हुए भी औषधि के समान सुखदायी है जो आत्मा के रोगों को नष्ट कर दोबारा इसे स्वस्थ कर देता है. इस तरह ईश्वर के दंड में भी उसकी दया का जब बोध जब होता है तो उस परम दयालु जगत माता को देखने और पाने की इच्छा प्रबल हो जाती है और फिर आदमी उसे पाए बिना चैन से नहीं बैठ सकता. इस तरह व्यक्ति मुक्ति के रास्तों पर पहला कदम धरता है!
प्रश्न: ऊपर दिए लाभ पाने के लिए हमें करना चाहिए?
उत्तर: यम नियमों का अभ्यास इसका सबसे बड़ा साधन है. यम व नियम संक्षेप से नीचे दिए जाते हैं
यम
१. अहिंसा (किसी सज्जन और बेगुनाह को मन, वचन या कर्म से दुःख न देना)
२. सत्य (जो मन में सोचा हो वही वाणी से बोलना और वही अपने कर्म में करना)
३. अस्तेय (किसी की कोई चीज विना पूछे न लेना)
४. ब्रह्मचर्य (अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखना विशेषकर अपनी यौन इच्छाओं पर पूर्ण नियंत्रण)
५. अपरिग्रह (सांसारिक वस्तु भोग व धन आदि में लिप्त न होना)
नियम
१. शौच (मन, वाणी व शरीर की शुद्धता)
२. संतोष (पूरे प्रयास करते हुए सदा प्रसन्न रहना, विपरीत परिस्थितियों से दुखी न होना)
३. तप (सुख, दुःख, हानि, लाभ, सर्दी, गर्मी, भूख, प्यास, डर आदि की वजह से कभी भी धर्म को न छोड़ना)
४. स्वाध्याय (अच्छे ज्ञान, विज्ञान की प्राप्ति के लिए प्रयास करना)
५. ईश्वर प्रणिधान (अपने सब काम ऐसे करना जैसे कि ईश्वर सदा देख रहा है और फिर काम करके उसके फल की चिंता ईश्वर पर ही छोड़ देना)
प्रश्न: क्या यम नियम के पालन करने के अलावा सुबह शाम ध्यान करना चाहिए और उसकी क्या विधि है?
उत्तर: जरूर. यम नियम तो आत्मा रुपी बर्तन की सफाई के लिए है ताकि उसमें ईश्वर अपने प्रेम का भोजन दे सके. वह भोजन सुबह शाम एकाग्र मन के साथ ईश्वर से माँगना चाहिए. ओ३म् का उच्चारण इसी भोजन मांगने की प्रक्रिया है. अब क्या करना चाहिए वह नीचे लिखते हैं
१. किसी जगह जहाँ शुद्ध हवा हो, वहां अच्छी जगह पर कमर सीधी कर के बैठ जाएँ. आँख बंद करके थोड़ी देर गहरे सांस धीरे धीरे लीजिये और छोड़िये जिससे शरीर में कोई तनाव न रहे.
२. दिन में ४ बार ओ३म् का उच्चारण बहुत उपयोगी है. पहला सुबह सोकर उठते ही, दूसरा शौच व स्नान के बाद, तीसरा सूर्यास्त के समय शाम को और चौथा रात सोने से एकदम पहले. इसके अलावा जब कभी खाली बैठे किसी की प्रतीक्षा या यात्रा कर रहे हों तो भी इसे कर सकते हैं.
३. धीरे धीरे उच्चारण की लम्बाई बढ़ा सकते हैं, पर उतनी ही जितनी अपने सामर्थ्य में हो.
४. कम से कम एक समय में ५ बार जरूर उच्चारण करें. मुंह से बोलने के बजाय मन में भी उच्चारण कर सकते हैं.
५. अपने हर बार के उच्चारण में ईश्वर को पाने की इच्छा और उसके लिए प्रयास करने का वादा मन ही मन ईश्वर से करना चाहिए.
६. हर बार उठने से पहले यह प्रतिज्ञा करनी कि अगली बार बैठूँगा तो इस बार से श्रेष्ठ चरित्र का व्यक्ति होकर बैठूँगा. अर्थात हर बार उठने के बाद अपने जीवन का हर काम अपनी इस प्रतिज्ञा को पूरा करते हुए करना. कभी ईश्वर को दी हुई प्रतिज्ञा नहीं तोड़ना.
जरूरी बात: ईश्वर ही सबका पालक, माता और पिता है. इसलिए कोई आदमी ईश्वर का ध्यान करते हुए किसी गुरु, पीर, बाबा आदि का ध्यान न करे. क्योंकि सब बाबा, गुरु, पीर आदि अपने भक्तों का ही उद्धार करते हुए दीखते हैं औरों का नहीं, और इसी से वे सब पक्षपाती सिद्ध होते हैं. किन्तु ईश्वर सबका पालक होने से पक्षपात आदि दोषों से दूर है और इसलिए केवल वही ध्यान करने और भजने योग्य है, और कोई नहीं.
प्रश्न: मैं एक मुसलमान हूँ और तुम तो हमसे विरोध करते हो. फिर मैं तुम्हारी बात क्यों सुनूँ?
उत्तर:
१. जैसे हम पहले लिख चुके हैं कि ओ३म् में हिन्दू मुसलमान जैसी कोई बात नहीं. क्या कोई मुसलमान भाई/बहन केवल इसलिए आम खाने से इनकार कर सकता/सकती है कि कुरआन में इसका वर्णन नहीं या यह अरब देश में नहीं मिलता? ओ३म् तो एक ईश्वर/अल्लाह के गुणों को अपने में समेटे हुए है तो फिर दिक्कत क्या है?
२. हम कई बात में मुसलमानों से और वे कई बात में हमसे से इक्तलाफ (विरोध) कर सकते हैं. लेकिन फलसफे पर अलग राय होना कोई गलत बात तो नहीं. क्या आप अपनी अम्मी के हाथ की रोटी केवल इसलिए खानी बंद कर देते हो कि वो किसी मामले में आपसे जुदा राय रखती हैं? यदि नहीं तो अपने और भाइयों के सवालों या इक्तलाफ से आप उन्हें दुश्मन क्यों समझते हो?
३. जिस तरह बैठ कर आप नमाज पढ़ते हो, वह तरीका हमारे योग की किताबों में वज्रासन नाम से लिखा है. तो क्या आप नमाज भी पढना छोड़ देंगे? नहीं, जब ऐसी बात नहीं तो फिर ओ३म् में विरोध क्यों?
४. चलो अगर मान भी लिया कि आप हमसे नफरत करते हैं तो भी ओ३म् से नफरत क्यों? क्या आप हवाई जहाज, रेलगाड़ी, कार, कंप्यूटर, रेशम, फ़ोन आदि का प्रयोग नहीं करते जो ईसाइयों, हिन्दुओं, और यहूदियों ने बनायी हैं? यदि हाँ तो ओ३म् का विरोध क्यों?
५. और वैसे भी, बातचीत और सवाल जवाब तो अल्लाह/ईश्वर को और उस की इस कायनात को समझने का जरिया हैं. अगर ऐसा नहीं होता तो अल्लाह हमारे अन्दर ये कुव्वत (शक्ति) ही नहीं देता कि हम सवाल कर सकें. तो इसलिए यह समझना चाहिए कि भाइयों का आपस में सवाल जवाब करना तो अल्लाह की इबादत करने जैसा ही है क्योंकि ऐसा करना हकपरस्ती (सत्य की खोज) की राहों पर कदम बढाने जैसा है.
६. तो मेरे अज़ीज़ भाई, कुछ भी हो, गुस्सा भी करो, हम पर सवाल भी करो, लेकिन जो सबके फायदे की चीज है, उस पर अमल जरूर करो. यही कामयाब जिंदगी का राज है.
७. नमाज के बाद तीन बार ओ३म् का जाप उसके मतलब के साथ करके देखें और ४ दिन बाद खुद फैसला कर लें कि जिन्दगी में कुछ बदलाव हुआ कि नहीं. इसे आप मन में भी इबादत करते वक़्त याद कर सकते हैं क्योंकि यह तो अल्लाह का ही नाम है.
प्रश्न: अभी भी एक सवाल है. इस भागदौड़ भरी जिन्दगी में केवल एक शब्द का उच्चारण करके क्या हो जाएगा? बल्कि ऐसा लगता है कि यह तो जिन्दगी की चुनौतियों से भागने का एक तरीका है!
उत्तर: नहीं. ऐसा तब होता जब इसे करने के लिए जंगल जाने की शर्त होती! पर ऐसा नहीं है. युद्ध के मैदान में तलवार को निरंतर धार लगानी पड़ती है नहीं तो इसकी मार कम हो जाती है. ठीक इसी तरह, अगर एक घंटे धार लगा कर पूरे दिन के शत्रुओं पर विजय पायी जाए तो यह कोई घाटे का सौदा तो नहीं! और यही तो समय होता है कि जब व्यक्ति ईश्वर को दिए वादों पर सोच विचार करता है और तोड़े गए अपने वादों पर क्षमा याचना करके आगे से उन्हें ना तोड़ने का दृढ संकल्प करता है. पूरे दिन विपरीत परिस्थितियों से जूझता हुआ अगर लक्ष्य से थोडा भटक गया हो तो इसी समय फिर से वह खुद को लक्ष्य की ओर केन्द्रित करता है और फिर अगले दिन उसकी ओर बढ़ने के लिए घमासान करता है. अतः भावनापूर्ण ढंग से ईश्वर का ध्यान सब चुनौतियों को पार करवाने वाला सिद्ध होता है.
प्रश्न: अभी भी कुछ संदेह नहीं मिट रहे, क्या करूँ?
उत्तर: जिस तरह हवा को देखने के बजाय स्पर्श से पहचाना जाता है उसी तरह करने योग्य बात को बोलकर अधिक समझाया नहीं जा सकता. तो स्वयं कुछ दिन इसका अभ्यास करें और फैसला कर लें!
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very good description of aum
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What is the difference between ओ३म् and ॐ ?
ओ३म् उच्चारण का द्योतक है – ३ स्वर ‘ओ’ के एवं ‘म’ का आधा स्वर| ॐ उसी का एक संक्षिप्त चिन्ह है|
What is the difference between O 3 Am and?
O 3 is indicative of pronunciation Am – 3 voice 'o' and the 'm' half tone | A brief of the same symbol | Recently Posted Agniveer .. Practitioner's guide submit extreme happiness
Agniveerji, a nice description on “ओ३म्”
ओ३म को जानो, ओ३म को मानो, ओ३म का करो विचार,
परमेश्वरके इसमें सारे नाम समाये, ओ३म जीवनका आधार,
सर्वशक्तिमान – सर्वव्यापक – सर्वरक्षक, सारे जिवोंका आधार,
कर्मआधिन फल देनेहारा, बिन पक्षपात जिवोंका न्यायकार,
जीवनमरणके चक्रसे छुडानेहारा, मुक्तिमें परमानंद देनेहारा,
मनुष्योद्ध्धार प्रयोजन ईश्वरने सर्वोत्तम वेद और मंत्र रचायें,
फिरभि अविद्यासे हमने बहुविद देवता-देवीओंको गले लगाये,
अब सत्यता जानकर-स्वीकार कर, आओ वेद-मंत्र पढें-पढायें,
अविद्या-असत्यका नाशकर, विद्या-धर्मकी व्रुध्धि करें-करायें,
जो परमेश्वर होता एकदेशी, तो स्वयं उसका होता आकार,
जिवोंसेभी सूक्ष्म, सर्व स्थानो पर व्यापक वो है निराकार,
आओ हम उपासना करें उस सर्वोच्च मंगल निराकारकी,
फिर क्यों चक्करमें पडे हम पूजा-प्रदक्षिणा मूर्ति-पाषाण की |
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A am a student, preparing for IAS.
I want to take help of Maditation and Pranayam.
Pls tell me what and how should I do?
Regards
Pradeep
A am a student, preparing for IAS.
I want to take help of Maditation and Pranayam to improve Brain or memorizing power. Can it help me?
Pls tell me what and how should I do?
Regards
Pradeep
@Pradeep:
May I suggest you join a Yoga course? I was lucky enough to have learned this (Yoga and Pranayama) in my young school days. I cannot say that it improves “memorizing power”. But it certainly leads to increase in mental concentration and peace of an otherwise restless mind.
Best wishes.
[…] 2Avoid troubles Remove guilt- Ishopanishad Mantra 3This article is also available in Hindi at http://agniveer.com/2827/om-hindi/Q: What do you consider as the greatest word in all human dictionaries?A: Om or Aum or ॐ or […]
bahut achcha laga om ka meaning jan ke , maine dekha hai ki sabhi devi dewatao ki aarati mai om hota hai
ॐ!ॐ!ॐ!ॐ!ॐ!
सादर प्रणाम!
जी हमारी एक मित्र हैँ, “रूबिना परवीन”।
वह भी अपनी जिन्दगी से तंग आ गयी थी। हमने उसे ॐ के उच्चारण करने व योगाभ्यास की विस्तृत सलाह दी। वो करने भी लगी। आश्चर्यजनक तरीके से काफी कुछ परिवर्तन व मानसिक शुध्दता हुई।
परन्तु एक बार ॐ जपते समय उसके अब्बूजान आ गये और उसको बहुत डाँटा। कहने लगे मैँ हम कट्टर मुस्लिम हैँ, अल्लाह ताला हमेँ जहन्नुम मेँ झोँक देँगें आईन्दा आज के बाद ऐसा करते पकड़ी गयी, तो समझो तुम्हारी खैर नहीँ?
वो बेचारी अब क्या करे। कहती है कि मैँ नहीँ रहना चाहती ऐसे कौम मेँ जिसमेँ मानवता और स्वतन्त्रता न हो, वो अपना धर्म परिवर्तन कर सनातन धर्म मेँ आना चाहती है।
परन्तु यह कैसे सम्भव हो सकता है?
आदरणीय श्री अग्निवीर जी के प्रत्युत्तर की प्रतिक्षा मेँ……..
असतो मा सद्गमय!
ॐ!ॐ!ॐ!ॐ!ॐ!
usse kahe ki wo kewal sacch ka saath dein koi bhi vyakti ek baar dharam ko chod bhi de kewal saath de tab bhi aap paayeinge ki dharm galat hai hi nahi or jo galat hai wo dharm hi kahan.
Ex: Ahinsa
jaise dusre ko maarne se kast hota hai usi tarah khud ko chott markar dekhe ki kya dard hota hai ,agar hota hai to dusre prani ko bhi hoga . isiliye to dharm mein ahinsa pramukh hai.
Ahina parmo dharamh.
Satya swayam bhagwan hai.
aadi aise anek baatein hain jo ki hindu or jain dharm dono mein hi kahi gayi hai.
धर्म जिसे धारण किया जा सके जो धारण करने योग्य हो….. धर्म के कइ प्रकार है… मुझे राष्ट्र धर्म सबसे अच्छा लगता है… और मैं अग्नीवीर जी आपसे बहुत प्रभावित हूँ…. आपको को मेरा प्रणाम
ॐॐ
”ॐ” बना है तीन शब्द से
अ, उ और म है ये
अ अकार उ उकार म मकार कहलाता है
सृष्टि के प्रणव में ये सब
अखिल विश्व दर्शाता है ।।
ओउम्…
ॐ!!!
Very nice
arya aur anarya me antar bataiye aur dono ki paribhasha bhi bataiye
sansaar me koi bhi samudaay ho “dusre ke saath vahi vyavhaar kare jo apne liye bhi pasadn aye ” ka ek sutriy vyavhar apne jivan me apnata hai usko arya kaha jayega aur jo uske pratikul acharan karta hai usko anary kaha jayega bhale hi vah hindu dharm ka shankarachary hi kyo n ho?
Dear sir
Abhi hal hi me ek pustak gyan ganga padhi jo ki kabir panth ki he usme tteen prakki he us me teen prakar se braham ki bykhya ki gai he jisme geeta ji ko adhar mana he r bataya he ki om tat sat ye guptra mantra he jjisme tat r sat ek naam he jo ye naam dene bale sant hote he un se ddikhcha lene se moksh sambav he
koi mantr gupt nahi hota
mantr kya hai
ek vichaar !
naam matr se moksh nahi milta
uske liye sara jivan achhe kary karne padate hai
diksha bhi kya hai
ajivan achhe kary karna
ॐ के बारे मे जानकर बहुत अछा लगा और जानने का प्रयासः करूँगा
ॐ शब्द का अर्थ ही है मै आत्मा हुँ , जब ॐ शब्द का उच्चारण करते है तब मै शरीरधारी नहीं बल्कि आत्मा हुँ स्वयं को आत्मा समझने पर ही परमात्मा का बोध होता है, आप जब आत्मभिमानी स्थिति मे होते है तब ही परमात्मा से योग लगा सकते है , देहभान में आने से ही हम इंद्रियवश होते है जब शरीर के साथ ( चमड़ी ) परमात्माको याद करते हो तो परमात्मा से योग नहीं लगता है ,मंदिरों में जब दर्शन करने जाते है तो कहते है चमड़ी ( जहां समझते है जूते ,चप्पल को बाहर छोडो ) बाहर छोड़ो अर्थात देह को याद न करो आत्मिक स्थिति में स्थित हो जाओ क्योंकि परमात्मा निराकार सर्वशक्तिमान ज्योतिर्बिंदु हैं ,हम आत्माए भी ज्योतिबिंदु है (एक अतिसुक्ष्म चमकते सितारे है ) जब आत्मा शरीर में प्रवेश करती हैं तब जीवात्मा बनती है जब परमात्मासे योग लगाना हो तो आत्मा और परमात्मा की स्थिती एक होना आवशक है , ॐ नमः शिवाय अर्थात मै आत्मा शिवजी को नमन करती हुँ इसलिए हर देवता के मंत्र में ॐ को आगे लगाते है . बाकि शास्रोमे ॐ का अलग – अलग अर्थ है ,जैसे उत्पत्ति ,स्थिति ,प्रलय। ब्रम्हा (रचैता ),विष्णु (पालनकर्ता ) शंकर ( प्रलयकर्ता ) अगर ॐ का अर्थ ही ईश्वर है तो ईश्वर के नाम के आगे फिर से ॐ क्यू लगाया जाता है . कोई भी मंत्र जाप से या ॐ मंत्र जाप से ईश्वर प्राप्ति नहीं होती , जाप करने से सिर्फ मन की एकाग्रता बढ़ती है मंत्र जाप करना ,प्रार्थना करना केवल एक तरफा वार्तालाफ है (One way communication) आत्माका परमात्मासे योग लगाना, दोनों तरफा का संवाद( Two way communication) है, प्रार्थना अर्थात मांगना , अब माँगते कौन है !
परमात्मा प्राप्ति के लिए महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग का वर्णन किया है हमारे जीवन में (यम, नियम, प्राणायाम ,ध्यान ,धारणा, आसन, मुद्रा ,और समाधि ) कुछ अच्छे कर्म होना जरुरी है,जीवन मे अच्छे गुणोंकी धारणा चाहिए यही है रूहानी यात्रा परमात्मा के तरफ ले जाने वाला रास्ता बाकी जिस्मानी यात्रासे (तीर्थयात्रा) कुछ नहीं प्राप्त होता है ,हाँ अल्प काल के लिए थोड़ी शांति जरूर मिलती है .
anand ji apnai man prashan kar diya.please share mail id in face book.
Om lagane se mantra pura hita hai ye astro me likha hai
namh shiya : shiv ko naman. yahi earth hona chahiye.
om namh shiya.: ab iska kya arth hona chahiye . agar om = aatma . tab kya hoga mai aatma shiv ko naman karta hu.
agar om = bhagwaan , god , paramatma , bramh tab kya arth nikalna chahiye. bhagwaan shiv ko naman karte hai. ab bhagwaan bhagwaan ko kaise naman kar sakata hai jabke bhagwaan ek hai
om shanti iska arth kariye
om== a-u-m– niraman- sthirta – dhvans yah srishti anek baar bani aur dhvast huyi hai iska nirmata ishvar hai isliye om ishvar ka nij nam hai !
om nam:shivay! — ham us ishvar ko naman karate hai jo kalyan karta hai ! har pal ham sabko svanso ke madhyam se jivan dekar ham sabka kalyan kar raha hai !
आपने कहाँ ॐ अर्थात अ +ऊ +म दूसरे शब्दो मे निर्माण ,स्थिरता तथा विध्वंस जो की अनेक बार हुआ है क्योकि यह सृष्टिचक्र है और इसका निर्माता ईश्वर है अर्थात एक ईश्वर का निज (मूल ) नाम है अर्थात एक परमात्मा का निज नाम है फिर सभी देवताओ के आगे भी ॐ लगाते है जैसे ॐ गणपतये नमः , ॐ विष्णवे नमः , ॐ भास्कराय नमः ( ग्रह नाम के आगे भी ) तो ॐ माना एक ईश्वर (परमात्मा ) ने उन उपासक दिव्य गुण धारण करनेवाले दिव्यात्मा ( देंवताऒ ) क़ो बनायां उनको भीं इश्वर नमन करें , आपनें यह भी कहाँ कि ,ॐ नमः शिवाए – ह्म उस इश्वर क़ो नमन करते हैं ज़ो कल्याण (शिव) करता है यहाँ हम या मै अर्थात आत्मा शिव को नमन करता हुँ यही अर्थ है आत्मा परमात्मा को नमन करता है आप अर्थ बताते है ॐ माने ईश्वर फिर कहते है हम , तो क्या आत्मा ही परमात्मा है अगर हाँ तो क्या मैं मेरी ही वन्दना करू ।
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om hari om
Om Shanti gyan hi jeevan ka anmol ratan hain aatma hi parmatma hai he manas Tera mera karna chod man ko manse jod tabhi to jeevan ka ahisas hoga agniveer ban ke sabhi ka man mod