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दलित मुस्लिमों को आरक्षण??

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  • दलित मुस्लिमों को आरक्षण??

(दलित) मुस्लिम/ईसाई आरक्षण क्यों देशद्रोह है?

हम अपने पिछले लेख में सुझाए गए पांच सूत्रीय कार्यक्रम पर श्री रामदेव जी और दूसरे नेताओं की रजामंदी की प्रतीक्षा कर ही रहे थे कि हमें श्री रामदेव जी का लिखा हुआ पत्र मिला. यह पत्र हमारे उन विचारों के जवाब में आया है कि जिसमें हमने (दलित) मुस्लिमों के लिए आरक्षण को देशद्रोह करार दिया था. पर इस पत्र ने अब और ज्यादा संशय पैदा कर दिए हैं. क्योंकि अपने पहले बयान के उलट श्री रामदेव जी ने इस पत्र में धर्म या जाति के आधार पर किसी भी तरह के आरक्षण को ही सिरे से खारिज कर दिया है! इसमें उन्होंने कहा है कि आरक्षण केवल आर्थिक स्थिति के आधार पर होना चाहिए. पाठक उनके इस पत्र को यहाँ पढ़ सकते हैं. अनुच्छेद ३४१ पर श्री रामदेव जी के विचार.

अब इन दो परस्पर विरोधी बयानों के बाद यह जरुरी हो जाता है कि श्री रामदेव जी सामने आकर इस मुद्दे पर अपनी स्थिति दो टूक शब्दों में स्पष्ट करें और जनता में फैल रहे अविश्वास और संशय की स्थिति को ख़त्म करें. यहाँ पर व्यक्तिगत मान अपमान का कोई महत्त्व ही नहीं है क्योंकि जब बात माता और मातृभूमि के विषय में होती है तब कोई बड़ा छोटा नहीं देखा जाता.

अब हम उन कारणों को गिनाएंगे जिनकी वजह से मुस्लिम और ईसाई धर्मों को अनुच्छेद ३४१ में शामिल करना बहुत खतरनाक और देशद्रोह है. अग्निवीर सब देशभक्तों से अपील करता है कि ऐसी मांगों का खुल कर विरोध करें.

इस्लाम और ईसाई धर्मों का अपमान

१. मुसलमान और ईसाई अपने अपने धर्मों का प्रचार करते हुए यह बात स्पष्ट करते हैं कि सब मुसलमान बराबर हैं और सब ईसाई बराबर हैं. मुसलमानों और ईसाइयों में अगड़ा या पिछड़ा का भेद करना गैर इस्लामी और ईसाईयत के विरुद्ध है. समानता की यह बांसुरी बार बार मुस्लिम और ईसाई धर्मगुरुओं द्वारा बजाई जाती है. ऐसे में अनुच्छेद ३४१ में मुसलमानों और ईसाइयों को ‘पिछड़ा’ बताकर आरक्षण देना इन धर्मों के मूल सिद्धांतों पर हमला है और इन्हें ख़त्म करने की साजिश है. कोई इमाम या पादरी यह कभी नहीं मान सकता कि मुसलमान और ईसाई भी ‘अगड़े’ या ‘पिछड़े’ होते हैं. अब सवाल उठता है कि जब खुद मुस्लिम धर्मगुरु मुसलमानों में ‘पिछड़े’ जैसे किसी भी तबके के होने से इनकार करते हैं तो फिर औरों को क्या पड़ी है कि इस अस्तित्त्वहीन पिछड़े तबके के अधिकारों की आवाज बुलंद करें?

इस तरह अनुच्छेद ३४१ में ‘अल्पसंख्यक’ समुदाय के धर्मों को पिछड़ी जाति में शामिल करना इन ‘महान’ अल्पसंख्यक धर्मों का अपमान है और पूरी तरह गैर संवैधानिक है. और भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष और सर्व धर्म समभाव रखने वाले देशों में ऐसे किसी भी कदम को मंजूरी नहीं दी जा सकती जो हमारे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के धार्मिक जज्बातों को ठेस पहुंचाएं.

हाँ एक बात हो सकती है कि पूरे के पूरे मुसलमान और ईसाइयों को ही अनुच्छेद ३४१ के तहत आरक्षण मिल जाए. यह बड़ा ही अच्छा होगा. पर फिर बेचारे हिन्दुओं का क्या कसूर है? उनको भी ३४१ में शामिल कर लिया जाए तो क्या नुकसान है? इस तरह हम सब लोगों को अनुच्छेद ३४१ के लाभ मिलेंगे! वैसे भी इस देश में नेता और अभिनेता को छोड़ कर ऐसा कौन है जो पिछड़ा और कुचला हुआ नहीं है?

पर अगर ऐसा माना जाए कि इस्लाम और ईसाईयत भी अगड़े और पिछड़े के भेदभाव करते हैं तो सवाल उठता है कि भेदभाव और जात पात का नाम आते ही सब स्कूल कालेजों की किताबों में केवल हिन्दू धर्म को ही क्यों कोसा जाता है? बजाये इसके कि जात पात और भेदभाव को हिन्दुओं की ऐतिहासिक परम्पराओं से सिद्ध किया जाए और फिर उन्हें कोसा जाए, ऐसा क्यों न किया जाए कि सब धर्मों में फैले जात पात के भेदभाव के खिलाफ आवाज उठाई जाए? क्यों न इस्लामी जाति प्रथा पर किताबों में अध्याय जोड़े जाएँ और लोगों को बताया जाए कि किस किस महापुरुष ने मुसलमानों में फैली इस प्रथा के खिलाफ आवाज उठाई?

जब किसी मुसलमान या ईसाई से पूछा जाता है कि उसका धर्म हिन्दू धर्म से अच्छा क्यों है तो अपने सीने को गर्व से फुलाता हुआ वह कहता है कि हिन्दू धर्म की तरह उसके धर्म में जाति व्यवस्था का भेदभाव नहीं है. पर दूसरी तरफ ‘पिछड़े’ मुसलमानों के लिए आरक्षण मांगते समय यह गर्व न जाने कहाँ चला जाता है? क्या यह दोहरा चरित्र नहीं है?

कुछ सयाने बड़ी चतुरता से इस्लाम और ईसाई धर्मों के जात पात के भेदभाव का ठीकरा भी हिन्दू धर्म पर ही फोड़ देते हैं और कहते हैं कि इन धर्मों ने यह सब हिन्दू धर्म से ही सीखा है. जब ऐसे चतुर सयानों से पूछा जाता है कि क्या हिन्दू धर्म ईसाई और इस्लाम धर्मों का मूल है, तो ये भाग खड़े होते हैं! क्योंकि मीठा मीठा तो ये गड़प कर जाते हैं और कड़वा कड़वा थू थू करते हैं! दुनिया की हर अच्छाई ये दूसरे धर्मों की किताबों से निकाल लाते हैं और सब बुराइयां हिन्दू धर्म के सिर पर डाल देते हैं. हम यह सिद्ध कर सकते हैं कि इस्लाम और ईसाईयत के अधिकतर सिद्धांत, रीति रिवाज सब हिन्दू धर्म से लिए गए हैं. (उदाहरण के लिए, इस्लामी संगीत, क्राइस्ट की कहानी (कृष्ण का अपभ्रंश), इस्लामी मूर्ति कला, इस्लामी भवन निर्माण, मूर्ति की परिक्रमा (हज)…). भारत में शिक्षा के क्षेत्र में इस घोर हिन्दू विरोधी मानसिकता ने, जो हर बुराई की जड़ को हिन्दू धर्म में ही खोज लेती है पर हर धर्म में इसकी अच्छी शिक्षाओं के प्रभाव पर आँखें मूँद लेती है, भारत को सर्वनाश और धर्मान्धता के कगार पर खड़ा कर दिया है.

हम श्री रामदेव जी से आग्रह करेंगे कि पाठ्यक्रम की पुस्तकों में मौजूद इस जहर को ख़त्म करने के लिए अपनी उर्जा और धन लगाएं. हम इसमें तन मन धन से उनके साथ खड़े होंगे. पर (दलित) मुसलमानों को आरक्षण देने जैसी किसी भी सस्ती लोकप्रिय मांग में हम उनके विरोध में ही खड़े होंगे क्योंकि यह मांग गैर मुस्लिम, हिन्दू द्रोही और देशद्रोही है.

किसी को दोहरे लाभ और किसी को एक भी नहीं

२. भारत में ‘अल्पसंख्यक’ होना किसी वरदान से कम नहीं. कहीं विशेष ‘अल्पसंख्यक’ अधिकार, तो कहीं ‘अल्पसंख्यकों के लिए छूट’, कहीं ‘अल्पसंख्यक प्राथमिकताएं’ तो कहीं ‘अल्पसंख्यक सहायता निधि’. इसके साथ ही ओबीसी कोटे में विशेष ‘अल्पसंख्यक’ आरक्षण भी भारत के अल्पसंख्यक समुदाय को प्राप्त हैं. ऐसे में अनुच्छेद ३४१ में उन्हें शामिल करना जहां उनके लिए दोहरे लाभ लेकर आता है वहीं दूसरी तरफ एक गरीब बहुसंख्यक, जिसको कोई आरक्षण नहीं मिलता, को दोहरी मार मारता है. ऐसे में यह जरुरी हो जाता है कि आरक्षण संबंधी किसी भी मांग को करने से पहले यह निश्चय हो जाए कि किसी को भी ‘अल्पसंख्यक’ और ‘अनुसूचित जाति/जनजाति’ दोनों के लाभ एक साथ न मिल सकें.

पिछड़ेपन को उसकी जड़ों से काटना होगा

३. अनुच्छेद ३४१ का उद्देश्य कुछ समय के लिए एक काम चलाऊ व्यवस्था करना था ताकि इतने समय में देश को जात पात की बीमारी से मुक्त किया जा सके और सबको बराबरी के अवसर दिए जा सकें. पर इस देश में मनुष्यों को केवल वोटों का गुच्छा समझा गया और इसकी वजह से यह अनुच्छेद आज तक भी लागू है. अमेरिका जैसे देशों में भी यह समस्या गंभीर थी पर उन्होंने इसका समाधान किसी आरक्षण के लोलीपोप देकर नहीं किया बल्कि सामने आकर इसका मुकाबला किया और इसे ख़त्म किया. इसलिए बजाये इसके कि जात पात के मैदान में दिन ब दिन और खिलाड़ी उतारे जाएँ और योग्यता को रद्दी की टोकरी में फेंका जाए, जोर इस बात पर होना चाहिए कि शिक्षा और अवसर हर गरीब के दरवाजे पर कैसे पहुंचे. (दलित) मुसलमान प्रेमियों को यह याद रखना चाहिए कि दलित और गरीब समानार्थक नहीं होते.

देश में आज कोई इसलिए पिछड़ा नहीं है कि आज भी किसी और ने उसको पिछड़ा रहने पर मजबूर कर रखा है. मुद्दा केवल सही संसाधन और अवसर मिलने का है जो दूसरों की योग्यता को टक्कर देने लायक योग्यता पैदा करते हैं. इसलिए मांग नौकरियों में आरक्षण की नहीं बल्कि नौकरियों के योग्य बनने के लिए जरुरी संसाधन और अवसरों के एक समान बंटवारे की होनी चाहिए. और यह मांग किसी जाति या धर्म के लिए नहीं बल्कि हर गरीब के लिए होनी चाहिए.

क्या डॉ ए पी जे अब्दुल कलाम देश के बड़े वैज्ञानिक और फिर राष्ट्रपति नहीं बने? क्या कभी उन्हें जाति आरक्षण या अल्पसंख्यक प्रमाण पत्र की जरुरत पड़ी? हम उनके जैसे एपीजे और क्यों नहीं पैदा कर सकते?

अनैतिक धर्मांतरण का खतरा

४. मुसलमानों और ईसाइयों को अनुच्छेद ३४१ में शामिल करने का मतलब है एक पूरी हिन्दू जनसँख्या से हाथ धो बैठना. और वह दिन दूर नहीं होगा कि जब हिन्दू अपने ही देश में अल्पसंख्यक बन जायेंगे. यह कोई ढकी छुपी बात नहीं है कि इस्लाम और ईसाई धर्मान्तरक/तबलीगी सम्प्रदाय हैं. इनका अंतिम उद्देश्य दुनिया को मुसलमान/ईसाई बनाना है. किसी गैर मुसलमान या गैर ईसाई को मुसलमान या ईसाई बनाना इन धर्मों में स्वर्ग की सीढ़ी माना जाता है. यही कारण है कि देश में हजारों ऐसे समर्पित धर्मान्तारक गुट/तबलीगी जमात सक्रिय हैं जो कुछ भी करके भोले हिन्दुओं को ईसाई और मुसलमान बनाने में जुटे हैं. जिस किसी को यकीन न हो तो जाकर केरल, बंगाल, असम, मिजोरम, नागालैंड, मणिपुर आदि राज्यों के आज की हिन्दू जनसँख्या के आंकड़े और २० साल पहले के आंकड़े पढ़ ले.

यूरोप और अरब देशों से अरबों डॉलर भारत में हर साल हिन्दुओं के धर्मांतरण के लिए भेजे जाते हैं. और ये डॉलर अपना काम कर भी रहे हैं.

हिन्दुओं को ईसाई और मुसलमान बनाने के लिए ऐसे गुट हर जगह सक्रिय हैं. अगर यकीन न आये तो किसी भी पास के चर्च या मस्जिद में जाकर बस इतना कहो कि आप धर्म बदलना चाहते हो. और आप देखोगे कि कुछ ही मिनटों में रीति रिवाज से लेकर कानूनी कागज़ तक के सारे काम पूरे हो चुके होंगे. अब आप किसी मंदिर में जाना और कहना कि आप हिन्दू होना चाहते हो. वहां का पुजारी पहले तो कुछ समझ ही नहीं सकेगा और फिर आपको वकील से मिलने की सलाह देगा. ऐसा इसलिए है कि हिन्दुओं का उद्देश्य कभी भी धर्मांतरण करना नहीं रहा. और कुछ थोडा बहुत जो अभी कुछ समय से आपने सुना होगा वो तबलीगी गुटों के कारनामों की जवाबी कार्रवाई ज्यादा थी. हिन्दू धर्म धार्मिक आजादी में यकीन रखता है और इसलिए बाकी मजहबों की तरह दूसरे धर्मों के लोगों को जहन्नम/नर्क की धमकी नहीं देता.

आज के दिन भारत धर्मांतरण करवाने वाले तबलीगी गुटों को बहुत आकर्षित करता है. इसका बड़ा कारण हिन्दुओं का खुलापन है जो वो धर्म के मामलों में रखते हैं. हिन्दू जनसँख्या में किसी भी तरह की कमी न केवल हिन्दुओं को ले डूबेगी बल्कि पूरी दुनिया को प्रभावित करेगी क्योंकि भारत की भौगोलिक स्थिति और जनसँख्या को कोई भी देश नजरअंदाज नहीं कर सकता. हिन्दुओं को छोड़कर भारत के पश्चिम में दुनिया पहले ही मुसलमान और ईसाई गुटों में बँट चुकी है. और इस जनसँख्या का ईसाईकरण और इस्लामीकरण तलवार की ताकत पर कैसे हुआ, इसके किस्से यूरोप और एशिया के इतिहास के पन्ने पन्ने पर दर्ज हैं.

ईसाई मिशनरी पहले ही भारत के सब आदिवासी क्षेत्रों और कम विकसित जगहों पर जबरदस्त धर्मांतरण कर चुके हैं और कुछ ही दशकों में इन जगहों की हिन्दू जनसँख्या पर बड़ा झपट्टा मार चुके हैं. पर हिन्दुओं के धर्मांतरण के इतने भीषण प्रयासों के बीच अनुच्छेद ३४१ इन तबलीगी गुटों के काम में सबसे बड़ा रोड़ा है. अनुच्छेद ३४१ क्योंकि गैर हिन्दू पर लागू नहीं होता, इसलिए वे लोग जो हिन्दू से ईसाई बन चुके हैं, वे भी सरकारी कागजों में खुद को हिन्दू ही लिखते हैं. इसलिए सरकारी आंकड़ों में ईसाई जनसँख्या असली से बहुत कम रहती है.

वहीँ दूसरी तरफ मुस्लिम तबलीगी जोशीले ‘गजवा ए हिंद’ (भारत पर कब्जा) नाम की एक भविष्यवाणी में यकीन रखते हैं जिसके अनुसार ईसा मसीह दोबारा जिन्दा होंगे उस दिन जिस दिन भारत इस्लामी देश बन जाएगा. इस भविष्यवाणी को पूरा करने के लिए उन्हें भारत के हिन्दुओं को मुसलमान बनाना जरुरी है. पर धार्मिक कट्टरता के चलते ऐसे लोग कभी किसी नए मुसलमान (जो हिन्दू से मुसलमान बना हो) को सरकारी कागजों में हिन्दू लिखने की इजाजत नहीं दे सकते. क्योंकि ऐसा करना इस्लामी शरियत के विद्वानों के अनुसार हराम है. इस कारण इतनी कोशिशों के बावजूद भी मुसलमानों की जनसंख्या वृद्धि का मुख्य कारण जन्म दर (जो सब धर्मों में सबसे ज्यादा है) ही रहता है. पर अगर अनुच्छेद ३४१ में मुसलमानों को शामिल कर लिया गया तो भोले पिछड़े हिन्दुओं के इस्लामीकरण को कोई नहीं रोक पायेगा.

यहाँ यह याद रहे कि हम हिन्दुओं की किसी १ या २% की नहीं बल्कि २५% जनसँख्या की बात कर रहे हैं जो अनुसूचित जाति/जनजाति के अंतर्गत आती है.

अग्निवीर को भेजे गए अपने पत्र में श्री रामदेव जी ने लिखा है कि वो किसी भी तरह के अनैतिक या बलपूर्वक किये गए धर्मांतरण के खिलाफ हैं और उस पर पाबंदी की मांग करते हैं. पर वह यह स्पष्ट करने में नाकाम रहे कि नैतिक और अनैतिक धर्मांतरण की कसौटी क्या हैं? क्या कोई पादरी या पीर अगर किसी की बीमारी ठीक करता है या चमत्कार कर देता है और फिर उसका धर्म बदलता है तो यह नैतिक है या अनैतिक? अग्निवीर ने अभी हाल ही में १०,००० से ज्यादा लोगों की हिन्दू धर्म में वापसी कराई है और बहुत से दलित मुसलमान और ईसाइयों को वैदिक संस्कार सिखाकर ब्राह्मण बनाया है. पर बहुत से तबलीगी गुट अग्निवीर के खिलाफ लामबंद हो गए हैं क्योंकि उनको उन्हीं की औषधि का सेवन अग्निवीर से पहले और किसी ने इतनी बड़ी मात्रा में नहीं कराया था. खैर, हम श्री रामदेव जी से यही जानना चाहेंगे कि वे अग्निवीर द्वारा कराई गयी शुद्धियों के बारे में क्या सोचते हैं?

बात यह है कि जिस देश में किसी को अपने धर्म का पालन करने की आजादी है तो उसे फैलाने की भी आजादी है. जिस तरह अग्निवीर वेदों को और श्री रामदेव जी हठयोग को फैलाने में स्वतंत्र हैं, उसी तरह कोई पादरी या इमाम भी यहाँ ईसाइयत या इस्लाम फ़ैलाने में स्वतंत्र हैं. और ऐसा कोई तरीका नहीं जिससे हम इनमें से किसी को भी अनैतिक कह सकें भले ही हम उनके विचारों से पूरे ही असहमत क्यों न हों. उदाहरण के लिए सउदी अरब में अग्निवीर, स्वामी विवेकानंद, या कोई पादरी अपने काम के लिए वहां मुश्किल में पड़ सकता है और जैसे अमेरिका में गंभीर रोगों के लिए बिना परीक्षण की दवाई और नुस्खे बेचने पर श्री रामदेव जी को गंभीर कानूनी परिणाम भुगतने पड़ते. असल में ये काम सही हैं या गलत, इन बातों पर बहस हो सकती है और इन सब पर हम सबकी अलग अलग राय हो सकती है. इस तरह नैतिकता या अनैतिकता के पैमाने हर व्यक्ति/स्थान के लिए अलग होते हैं. और फिर जब बात धर्म के फैलाने की हो तो नैतिकता-अनैतिकता की कठिनाई और भी बढ़ जाती है.

उदाहरण के लिए, जरा गौर करें कि अब से डेढ़ हजार साल पहले तक १००% हिन्दू/बौद्ध भारतीय उपमहाद्वीप आज के दिन ३५% मुस्लिम-ईसाई कैसे बन गया? क्या इस्लाम और ईसाईयत को फैलाने में गौरी, गजनी और बाबर आदि ‘संतों’ ने नैतिकता का सहारा लिया था? क्या भारत के पिछले हजार साल का इतिहास अनैतिक और बर्बर धर्मांतरण से नहीं भरा हुआ? अगर हाँ तो आज अचानक नैतिकता को बीच में लाकर क्या इन लोगों को वापस लाने के सारे प्रयास बंद कर दिए जाएँ? अगर नहीं तो क्या किया जाए? क्या नैतिकता-अनैतिकता के नाम पर हर बार ठगे जाने का एकाधिकार इस देश में शांतिप्रिय बहुसंख्यकों को ही है? आखिर धर्मांतरण के क्षेत्र में नैतिकता-अनैतिकता के पैमाने क्या हैं?  

जो भी हो, ऐसी कोई भी मांग रद्दी की टोकरी में फेंके जाने योग्य है जिससे इस देश के शांतिप्रिय बहुसंख्यकों की जनसँख्या को ज़रा सा भी खतरा हो. और जब तक धर्मांतरण के खतरे इस देश में मंडरा रहे हैं, तब तक ऐसी कोई भी मांग देश विरोधी ही रहेगी.

देश के सब बड़े और प्रभावशाली नेताओं को ध्यान रखना चाहिए कि इतने संवेदनशील मुद्दे पर बिना किसी ठोस तर्क, प्रमाण, और शोध के मुंह नहीं खोलना चाहिए. सस्ती वाहवाही बटोरने के और भी तरीके हो सकते हैं. उसके लिए पूरे देश को मजहबी जूनून की आग में झोंक देना ठीक नहीं. मूर्खता की कोई सीमा नहीं होती. कल कोई भारतीय सेना में भी धार्मिक आरक्षण मांगने लगेगा तब क्या होगा?

संत महात्माओं के लिए देश सर्वोपरि होना चाहिए, और खासकर सन्यासी जिसके आदर्श स्वामी दयानंद जैसे ऊंचे महापुरुष हों, उससे इस तरह की बातों की कभी आशा नहीं की जा सकती. हमें आशा है कि श्री रामदेव जी इस विषय पर शीघ्र ही अपने पक्ष को ठीक करेंगे क्योंकि सन्यासी का धर्म सत्य है, वह असत्य पर टिक कर नहीं बैठ सकता.

बड़ी जनसँख्या को खतरा

५. भारत सरकार के जनसँख्या आंकड़ों के अनुसार ईसाई ‘दलितों’ की संख्या देश में केवल ०.७५% है और मुसलमान ‘दलितों’ की संख्या तो बस ०.१३% है.

इस तरह यदि अनुच्छेद ३४१ में ‘दलित’ मुसलमान और ईसाइयों को शामिल भी किया जाए तो भी इनकी कुल संख्या भारत में १% से भी कम है! ज़रा सोचिये, १% से भी कम संख्या के लिए २५% जनसँख्या को खतरे में डालना कहाँ की बुद्धिमानी है?

मजे की बात यह है कि अल्पसंख्यक प्रेम की होड़ में सबसे आगे रहने वाली कांग्रेस ने भी कभी यह मुद्दा नहीं उठाया था. काले धन पर कांग्रेस को झाड़ने वाले मित्र यह ध्यान रखें कि अस्तित्त्व पर ख़तरा काले धन से ज्यादा बड़ा मुद्दा है. हम चाहते हैं कि श्री रामदेव जी एक बार सामने आकर अपने अनुच्छेद ३४१ संबंधी शब्द वापस ले लें और फिर काले धन की लड़ाई पूरे जोश के साथ चालू रखें.

दलित शब्द अपमानजनक है. गरीब हर जाति और धर्म में है

६. वास्तव में दलित तो एक अपमानजनक शब्द है जो हमारे संविधान में भी कहीं नहीं मिलता. कुछ लोग जो ठोस तथ्य और तर्क से बात न करके अक्सर मुहावरों और हल्की फुल्की बातों से ही काम चलाना जानते हैं वो दलित और गरीब को एक ही समझते हैं. दलित का मतलब गरीब या गरीब का मतलब दलित नहीं होता! अमीर लोग तथाकथित नीची जातियों में भी मिलते हैं और भूख से मरने वालों में तथाकथित ऊंची जाति के लोग भी होते हैं. तो इसलिए अगर आरक्षण देना भी है तो केवल आर्थिक आधार पर होना चाहिए धार्मिक आधार पर नहीं. श्री रामदेव जी ने अपने पत्र में इस बात को स्वीकार किया है. हम आशा करते हैं कि वो अब अनुच्छेद ३४१ संबंधी अपने बयान को वापस ले लेंगे.

मुस्लिम पिछड़ापन अंतर्राष्ट्रीय समस्या है. उसकी जड़ तक जाने की जरुरत है.

७. मुसलमानों की बहुत बड़ी संख्या को ओबीसी के तहत पहले ही आरक्षण मिलता है. पर सच्चर कमेटी ने पाया कि इस आरक्षण के बावजूद भी ‘ओबीसी मुस्लिम’ अपने ‘ओबीसी गैर मुस्लिमों’ से प्रतियोगिता में पिछड़ जाते हैं. और यह केवल भारत का ही हाल नहीं है. पूरी दुनिया में ही मुस्लिम समुदाय शिक्षा और आर्थिक क्षेत्र में सबसे पिछड़ा हुआ है. यह हाल वहां और भी खराब है जहाँ मुस्लिम समुदाय बहुसंख्यक है. मानव अधिकार उल्लंघन की घटनाएं  सबसे ज्यादा इन्हीं देशों में होती हैं. इससे यह पता चलता है कि मुस्लिम पिछड़ेपन की जड़ें नौकरियों में कमी के कारण नहीं बल्कि और गहरी और बुनियादी हैं.

यह सच है कि सब मुसलमान आतंकवादी नहीं होते. यह भी सच है कि मुसलमानों में ऐसे देशभक्त भी पैदा हुए हैं जिन पर हम सब को गर्व है जैसे अशफाकुल्ला खान, हाकिम सूरी, अब्दुल हमीद, ए पी जे आदि. पर यह भी एक कड़वी सच्चाई है कि दुनिया के ९९% खूंखार आतंकवादी खुद को इस्लाम का मुजाहिद/लड़ाका/गाजी कहते हैं.

अब सच्चे (दलित) मुसलमान हितैषियों को चाहिए कि समस्याओं के इन मूल बिन्दुओं का समाधान करें बजाये इसके कि सस्ती और हल्की किस्म की बातें करके अपना वोट बैंक बढाने की कोशिश करें. क्योंकि इस तरह की बातें केवल उन लोगों के ही पक्ष में जाती हैं जिन्होंने इस्लाम का अपहरण कर लिया है और जो सीधे सादे लोगों को इन गैर जरुरी मांगों के लिए उकसाते हैं और समाज में नफरत फैलाते हैं.

इससे अगले लेख में हम देखेंगे कि सामाजिक बराबरी लाने के लिए क्या क्या किया जा सकता है.

यह लेख इस श्रृंखला में दूसरा है. पहले लेख को पढने के लिए यहाँ जाइए. For English, visit here.

 

Agniveer
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Vedic Dharma, honest history, genuine human rights, impactful life hacks, honest social change, fight against terror, and sincere humanism.

82 COMMENTS

  1. इस्लाम धर्म ने अपने अनुयायियों को प्रेरित किया, उत्साहित किया और उनके हौसले बुलंद रखे। जब हम मुस्लिम इतिहास पर दृष्टिपात करते हैं तो पाते हैं कि हजरत मुहम्मद की मृत्यु के केवल 10 साल बाद के समय में कबायली मुसलमानों ने अरब में अपना साम्राज्य स्थापित कर लिया था और हजरत मुहम्मद साहब की मृत्यु के 100 साल बाद की अवधि में स्पेन, सिसिली, उत्तरी अफ्रिका, मिस्र, फिलस्तीन, सीरिया, इराक, ईरान, खुरासान और सिंध तक उसकी सीमाएं फैल गई थी।

    इतने थोड़े समय में जीत पर जीत का क्या कारण था ?

    इसका उत्तर देते हुए एक मुस्लिम इतिहासकार ने लिखा है —-

    “मुसलमानों की फारस (वर्तमान ईरान) और रोम पर विजय का मुख्य कारण उनका धार्मिक साहस और दृढ़ता थी। वे अपनी पूरी शक्ति से अपने धर्म अर्थात् इस्लाम के लिए लड़े और इसके लिए वे मर मिटने को सदा तैयार रहते थे। उनका विश्वास था कि इस्लाम ते लिए एक विशेष योग्यता है। यह पुण्य हर एक को प्राप्त नहीं होता। जो मुसलमान इस्लाम के लिए मरता है, अगली दुनिया में पुरस्कृत होता है। अतः वे शत्रु के हाथों पड़ने की अपेक्षा इस्लाम के लिए मरने को प्राथमिकता देते थे, जब कि उन के शत्रुओं के पास भविष्य के विषय में इस तरह के उत्साहदायी विचार नहीं थे।”

    – (ए स्टडी आफ इस्लामिक हिस्ट्री, (प्रो० के० अली) पृष्ठ 101, तीसरा संशोधित संस्करण, 1974)

  2. इस प्रकार, जब हम भारत के प्राचीन इतिहास पर एक विहंगम दृष्टि डालते हैं तब पाते है कि यह पराजयों, घुटने टेकने, निराशा और विवशता की एक लम्बी मगर दुःखदायी दास्तान है, जिसके लिए काफी हद तक खुद भारतीय ही दोषी थे।

    दर असल असली दोष था उनका धर्म, जिसने उन्हे पहले तो एक (मानव) से चार (वर्ण) बनाया, फिर हजारों उपजातियों में विभक्त किया, सबको अपने-अपने दायरों में रहने को धार्मिक आदेशों एवं आज्ञाओं से विवश किया, शस्त्र उठाने का काम केवल एक वर्ण के जिम्मे सौंपा, उस वर्ण के भी केवल युवाओं के, जो कि बहुत ज्यादा नहीं हो सकते थे। इस जाति विभाजन ने परस्पर फूट और एक-दूसरे के प्रति उदासीनता के विष-बीज बोए, क्षुद्र स्वार्थों से हर एक को अभिभूत किया।

    जो क्षत्रिय वर्ण शस्त्र उठाने का अधिकारी था भी, वह भी धर्म एवं धर्म और धर्म शास्त्रों के कारण पैदा व पुष्ट की गई रूढ़िवादिता के कारण कदम-कदम पर पिटता रहा, मगर उस सारे आत्मघाती धार्मिक तानेबाने से मुक्त होने को कभी मानसिक तोर पर पूरी तरह तैयार नहीं हुआ। यही कारण है कि चतुरंगिणी सेना के नाम पर यह वर्ण हाथियों से चिपटा रहा, जो अनेक बार विजय को पराजय में बदलते रहे, जो शत्रु सेना का मुकाबला करने के स्थान पर अपने ही सैनिकों को पैरों तले रौंदते रहे और यह क्रम तब तक बराबर चलता रहा, जब तक कि हिंदू धर्म के अनुयायी 1565 ई० में अंतिम युद्ध में हार कर पूर्णतया दास नहीं बन गए।

    उपर्युक्त वर्णित ऐतिहासिक घटनाओं में हिंदुओं की पराजय का पूरा दोष हिंदू धर्म पर थोपे जाने का विरोध करते हुए हम कहना चाहेंगे कि जो कुछ भी तात्कालिक समय में हुआ, वह होना तय था और आगे जो होगा वह भी तय है, अधोलिखित लेख पर नजरें जमाए ———-

  3. जब मोहम्मद गौरी दूसरी बार फौज लेकर आया तो पृथ्वीराज ने चित्तोड़ के राजा समरसिंह से सहायता माँगी । समरसिंह पृथ्वीराज का मित्र था । समरसिंह ने कहलवा भेजा कि वह दिल्ली के लिये रवाना हो रहे हैं । जब समरसिंह दिल्ली पहुँचे तब महाराज पृथ्वीराज अपने महलों से बाहर आकर समरसिंह को अंदर ले गए और बड़ा दरबार किया । प्रजा ने पृथ्वीराज व समरसिंह को बराबर बैठाकर बहुत प्रसन्नता जाहिर की । जब इस तरह से उत्सव मनाया जा रहा था तो दरबार चौक की बिचली शिला फटी और उसमें से शंकर भगवान के वीरभद्र नाम के गण प्रकट हुए ।

  4. इसका वर्णन कवि चंद्र ने निम्न प्रकार से किया है —

    “इस समय जो यह शिला फट गई थी, य़ह अस्सी हाथ लम्बी, पच्चीस हाथ चौड़ी और दस हाथ मोटी थी । इस शिला के नीचे एक गुफा थी । उस गुफा से रूद्राक्ष की माला धारण किये, हाथ में खड़ग और नरकपाल लिये ‘शम्भू शम्भू’ उच्चारण करता हुआ वीरभद्र निकला । पृथ्वीराज ने उस भयंकर मूर्ति वाले पुरूष को आगे बढ़कर प्रणाम किया, परंतु वह पुरुष कुछ भी न बोला । तब सदाशिव के भक्त महाराणा समरसिंह रावल ने उसको आगे बढ़कर प्रणाम किया । उस समय चंद्र ने वीरभद्र से कहा कि अब आगे क्या-क्या होगा सो महाराज को बताइये ।
    तब वीरभद्र सबके सम्मुख इस प्रकार से कहने लगा,
    “मैंने दक्ष प्रजापति का यज्ञ विध्वंस करके अपने पिता महादेव जी का क्रोध शांत किया, फिर उनकी आज्ञा लेकर यहाँ निश्चिंत हो विश्राम लेने के लिये आया, इस समय में गाढ़ी नींद में सो रहा था परंतु आज इस तुम्हारी विलक्षण गड़बड़ी और कोलाहल से मेरी नींद टूटी तथा मैं बड़ा दुःखी हुआ । महादेव जी ने मुझे वर दिया था कि जो कोई तुम्हारी निद्रा भंग करेगा, उसका नाश हो जाएगा । इसी कारण से अब तुम्हारा नाश होगा । अब आगे मलेच्छ लोग प्रबल होकर दिल्ली को जीत लेंगे, पृथ्वीराज की पराजय होगी । इस समय सबल समरसिंह बहुत काम आवेंगे, चामुण्डराय और रामगुरू युद्ध में मर जायेंगे, पृथ्वीराज पराजित होकर ६ मास तक बंदी रहेगा और दुःख पावेगा । शहाबुद्दीन गौरी प्रबल होकर हिंदुस्तान में अत्यंत उपद्रव मचाएगा, हिंदू राजाओं के किले व मंदिर छिन्न-भिन्न करेगा । इस प्रकार एक वर्ष तक बड़ा भारी अनर्थ रहेगा । अनन्तर मुगलों की चढ़ाई हिंदुस्तान पर होगी और यह भी अत्यंत उपद्रव करेंगे । वे राजा लोगों के घरों में घुस-घुसकर उनकी बेटियों के साथ विवाह करेंगे । फिर दक्षिण से कुछ सेना उनकों परास्त करने के लिये आवेगी । इस सेना में उसका कुछ प्रबंध न हो सकेगा । टोपी वाले आवेंगे, उनके राज की मालिक रानी होगी जो कि सब हिंदू एवं मुसलमानों को अपने वश में कर लेगी । वह दिल्ली के तख्त पर अपनी स्थापना करके राज्याभिषिक्त होगी, उसके राज्य में सबकों सुख मिलेगा । वह धर्मानुसार राज्य करके न्यायपूर्वक प्रजा का प्रतिपालन करेगी, परंतु आगे जैसे ही उसकी न्यायरीति का बंधन छूटेगा, वैसे ही टोपी वालों को निकालकर काबुल और बलखवाले तथा एक भट्टीराजा एकत्र होकर दिल्ली पर अपना अधिकार जमावेंगे । इनकी अमलदारी ६ माह तक दिल्ली में रहेगी,…

  5. फिर उदयपुर के शिशोदिया वंश वाले राजा होंगे । वह ३५ वर्ष तक राज करेंगे, फिर अजमेर का पीर उठेगा तत्पश्चात् तुवर और तुवर के पीछे कठोर वंश का राजा होकर वह धर्मनीति की स्थापना करेगा ।”

  6. उपर्युक्त घटना को यदि हम सत्य माने, तो हमें यह भी मानना होगा कि 1000 वर्षों से लेकर अब तक भारत में हिंदुओं व हिंदू धर्म के साथ जो-जो अमानवीय घटनाएँ हुई, उन सब का कारण वीरभद्र को शिव जी द्वारा दिया गया वरदान था। न वीरभद्र को शिव जी का वरदान मिलता और न पृथ्वीराज की पराजय होती और न ही तुर्क, मुगल, अंग्रेजों का विस्तार भारत में होता और न ही हमारी दुर्गति होती।

    इस प्रकार हम कह सकते है कि हमारे नाश के जिम्मेदार अप्रत्यक्ष रूप से शिव जी ही हैं। ऐसे में हमारे प्राचीन पुराण, जिनकों आधुनिक विद्वान अप्रामाणिक मानते हैं, सत्य प्रतीत होते हैं, जिनमें ब्रम्हा को सृष्टिकर्ता, विष्णु को पालनकर्ता व शिव को सृष्टि का नाश करने वाला बताया गया है।

    अब वह बात कुछ समझ में आती है, जिसमें विष्णु जी द्वारा शिव जी को बार-बार यह क्यों कहा जाता है —

    “भगवन वरदान सोच-समझ कर देवे, क्योंकि वरदान तो आप दे देते हैं, परंतु उसको सम्भालना हमें पड़ता हैं।”

  7. अग्निवीर के इस मंच पर उपस्थित सभी विद्वानों से हमारा अनुरोध है कि हमारे द्वारा उपर्युक्त वर्णित सभी प्रकार के तथ्यों व तर्कों के समर्थन/विरोध में अपने-अपने विचार व दृष्टिकोण यहाँ प्रस्तुत करे, ताकि भविष्य में वेदों व धर्म से परिपूर्ण समाज की स्थापना की पृष्ठभूमि तैयार की जा सके व सम्पूर्ण विश्व को पुनः वैदिक धर्म से परिपूर्ण किया जा सके।

  8. musalmano me islami tor par sabhi barabar he
    par hum me bhi kai alag alag upjaniya hoti he
    kuran shreef me is kazikr he “koi bhi musalman kisi dusre musalman se jat rang jagah etc. k adhar par bada ya chota nahi he par ye fark banaya gaya he taki aap ek dusre ko pehchan sako”(ye anuvaad mene pada tha aur apni zaban me likh diya he isme jo bhi galti agar ho to wo mere gyan ki kami ki wajah se hogi) ab inme se kuch jatiya agar pichad gayi to un k aage badne k liye alag se madad karna kiyo galat he?

  9. jo jatiya pichdgayi vah apne karmo se pichdi fir vah apne karmo se age bhi badh jayengi fir mdad kisiliye ? agar muslim sab barabar hote to batlaiye kitne sunni m,uslim shiya masjid me jakar namaz padhte hai kitne sunni muslimapni kanyao ka nikah shiya muslim se karte hai aur kitne shiya muslimsunni muslim se apni kanyao ka nikahkarte hai isliye islam me sab barabara hai iski” narebaji “chod dijiye !

  10. bhai kuran shareef me saf likha he kisi bhi musalman ko dusre musalman se jati rang etc k aadhar par badaii hasil nahi
    per agar virodha bhaas he to ye insano ki galti he aap islam ko isme dosh nahi de sakte
    nikah k liye muslim ko azadi he ki wo ek momin ladki se ya ladke se nikah kar sakti/te he

    jo pichad gayi wo apne karmo se pichad gayi ye aap kis aadhar par kah rahe he
    aur apne karmo se aage bhi bad jayegi ye kis aaghar par kah rahe he
    espast kare

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