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ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मन्दिर – सौ प्रमाण (भाग आठ)

This entry is part [part not set] of 14 in the series ताज महल - एक ज्योतिर्लिंग मंदिर

खजानेवाला कुआँ

49. मस्जिद कहलानेवाली इमारत और नक्कारखाने (संगीत घर) के बीच में बहुमंजिला अष्टकोणी कुआँ है, जिसमें जलस्तर तक उतरने के लिए घुमावदार सीढियां बनी हुई हैं। यह हिन्दू राजमंदिरों में ख़जाना रखने के लिए बनाई गई पारंपरिक बावड़ी है. खजाने की पेटियां निचली मंजिल में रखी जाती थीं तथा ऊपरी मंजिल में खजाने के कर्मचारियों के दफ्तर रहा करते थे. कुँए की घुमावदार सीढियों के कारण किसी घुसपैठिए के लिए यह आसान नहीं था कि वह किसी की नजरों में आए बिना तिजोरीवाली निचली मंजिल तक उतर सके या वहां से भाग सके।

यदि कभी उस इलाके पर शत्रु का घेरा पड जाए और शत्रु की शरण जाना पड़े तो तिजोरियां कुँए के पानी में ढ़केल दी जाती थीं ताकि शत्रु से छिपी रहें और वह परिसर वापस जीत लिए जाने पर तिजोरियां सुरक्षित वापस निकाली जा सकें। ऐसी बहुत ही विचारपूर्वक बनाई गई बहुमंजिला बावड़ी की जरुरत एक मकबरे के लिए समझ में नहीं आती, महज़ एक कब्र के लिए ऐसी भव्य बावड़ी बनाने का कोई अर्थ ही नहीं है।

दफ़न की अज्ञात तारीख़

50. यदि शाहजहाँ ताज महल का वास्तविक निर्माता होता तो ताज महल में मुमताज को शाही ठाठ के साथ दफ़नाने की तिथि जरुर दर्ज़ होती। लेकिन, ऐसी किसी तिथि का इतिहास में उल्लेख नहीं मिलता। इतने महत्वपूर्ण विवरण की इतिहास में अनुपस्थिति इस कहानी का झूठापन दर्शाती है।

51. यहाँ तक कि मुमताज की मृत्यु का वर्ष भी अज्ञात है, इसके भी कई अनुमान लगाए गए हैं – सन् १६२९, १६३०, १६३१ या १६३२। यदि वह सचमुच इस शानदार दफ़न की हकदार थी – जैसा कि दावा किया जाता है, तो उसकी मृत्यु की तारीख में इतना घोटाला नहीं होता। पांच हज़ार स्त्रियोंवाले हरम में किस-किस की मृत्यु का हिसाब रखेंगे? स्पष्ट है कि उसकी मृत्यु इतनी महत्वपूर्ण घटना भी नहीं थी कि कोई उसकी तारीख याद रखें, तो उसकी याद में ताज का निर्माण तो दूर की बात है!

निराधार प्रेम कहानियां

52. शाहजहाँ और मुमताज के अनन्य प्रेम की कहानियां कपटजाल मात्र हैं, उनका कोई ऐतिहासिक आधार नहीं है और न ही उनकी इस कल्पित प्रेम कथा पर कोई साहित्य उपलब्ध है। इन कहानियों को बाद में गढ़ा गया ताकि शाहजहाँ को ताज के निर्माता के रूप में पेश किया जा सके।

लागत

53. ताज को बनाने में आई लागत का उल्लेख शाहजहाँ के किसी दरबारी दस्तावेज में नहीं मिलता क्योंकि शाहजहाँ ने ताज कभी बनवाया ही नहीं। इसीलिए तो कई दिग्भ्रमित लेखकों ने ताज के निर्माण की लागत का एक काल्पनिक अनुमान (४ लाख से ९१.७ लाख रुपए) लगाने की कोशिश की है।

निर्माण की अवधि

54. इसी तरह, निर्माण की अवधि भी स्पष्ट नहीं है। ताज महल का निर्माणकाल दस से बाईस वर्षों तक होने का अंदाजा लगाया जाता है। यदि शाहजहाँ ने ही ताज महल बनवाया होता तो इस तरह अंदाजे लगाने की कोई आवश्यकता ही नहीं थी क्योंकि दरबारी दस्तावेजों में उसकी प्रविष्टि अवश्य ही की गई होती।

वास्तुकार

55. ताज महल के शिल्पकार के रूप में भी विभिन्न नामों का उल्लेख मिलता है। जैसे ईसा एफंदी – एक तुर्क, या अहमद मेहंदिस या आस्तिन् द. बोर्दो – एक फ़्रांसिसी या जेरेनियो विरोनियो – एक इतालवी या फिर कुछ का कहना है कि शाहजहाँ स्वयं ही ताज का वास्तुकार था।

दस्तावेज कहाँ हैं?

56. प्रचलित मान्यता के अनुसार शाहजहाँ की हुकुमत में बीस हज़ार कारीगरों ने लगभग बाईस वर्षों तक सतत ताज का निर्माण किया। यदि यही सच्चाई है तो इससे सम्बन्धित दरबारी दस्तावेज, प्रारंभिक रेखा-चित्र, नक़्शे (Design and drawings), कारीगरों की हाजिरी का ब्यौरा, मजदूरी के हिसाब, दैनिक खर्च का ब्यौरा, निर्माण की सामग्री के नोट, बिल और रसीदें, निर्माण कार्य शुरू करने के आदेश इत्यादि कागजात शाही अभिलेखागार में होने चाहिए थे। परन्तु वहां इस प्रकार के कागज का एक टुकड़ा भी उपलब्ध नहीं है।

57. इसलिए ताज महल पर शाहजहाँ की इस काल्पनिक मिल्कियत को बताने के जिम्मेदार यह लोग हैं – भयंकर भूल करने वाले – गप्पेबाज इतिहासकार, अनदेखी करनेवाले पुरातत्वविद्, कल्पित कथा लेखक, मूर्ख, सठियाए हुए कवी, लापरवाह पर्यटन अधिकारी, भटके हुए स्थलप्रदर्शक (Guides)।

58. शाहजहाँ काल में ताज के उद्यानों में केतकी, जाई, जूही, चम्पा, मौलश्री, हरसिंगार और बेल इत्यादि वृक्षवलियों के होने का उल्लेख मिलता है। यह सभी वह वृक्षवलियां है जिनके फूल-पत्ते इत्यादि हिन्दू देवताओं की पूजा विधि में इस्तेमाल होते हैं। बेल पत्र का प्रयोग विशेषत: भगवान शिव की पूजा में किया में जाता है। जबकि किसी कब्रिस्तान में केवल छायादार वृक्ष ही लगाए जाते हैं, फल-फूलों के पेड़ नहीं। क्योंकि कब्रिस्तान में उगे पेड़ों के फल या फूल मनुष्यों के इस्तेमाल योग्य नहीं समझे जाते। कब्रिस्तान के फल–फूलों को घृणित समझ मानव अन्तः करण स्वीकार नहीं करता।

59. बहुधा हिन्दू मंदिर नदी तट या सागर किनारे बनाए जाते हैं। ताज भी यमुना किनारे बना एक ऐसा ही शिव मंदिर है। यमुना तट शिव मंदिर के लिए एक आदर्श स्थान है।

60. पैगम्बर मुहम्मद के आदेशानुसार तो मुस्लिमों के दफ़न स्थान बिलकुल छिपे हुए होने चाहिएं, उस पर कोई निशान का पत्थर या कब्र का टीला इत्यादि बना हुआ न हो। परन्तु, पैगम्बर मुहम्मद के इस आदेश का स्पष्ट उल्लंघन करते हुए ताज में मुमताज की एक छोड़, दो कब्रें बनी हुई हैं। एक नीचे तहखाने में और दूसरी उसी के ऊपर पहली मंजिल के कक्ष में है। असल में यह दोनों कब्रें शाहजहाँ को ताज में स्थापित दो स्तरीय शिवलिंगों को गाड़ने के लिए बनवानी पड़ी। हिन्दुओं में एक के ऊपर एक मंजिल में शिवलिंग बनाने का रिवाज़ रहा है। जैसे कि उज्जैन के महाकालेश्वर मंदिर में और अहिल्याबाई होलकर द्वारा बनवाये गए सोमनाथ मंदिर में भी देखा जा सकता है।

61. ताज के चारों मेहराबदार प्रवेशद्वार एक समान हैं। यह हिन्दू स्थापत्य कला का एक विशिष्ट प्रकार है, जिसे चतुर्मुखी कहते हैं।

For original post in English, visit Taj Mahal is a Shiva Temple – 100 evidences (Part 8)

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From: Works of P.N. Oak

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