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जातिप्रथा की सच्चाई – 2

इस अध्याय में हम देखेंगे कि जाति-प्रथा क्या है?

जाति-प्रथा एक बकवास विचार है

जाति-प्रथा का कोई भी और किसी भी तरह का वैदिक आधार नहीं है।

हर एक आदमी की चारों जातियां होती हैं

हर एक आदमी में ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र ये चारों खूबियाँ होती हैं। और समझने की आसानी के लिए हम एक आदमी को उसके ख़ास पेशे से जोड़कर देख सकते हैं। हालाँकि जाति-प्रथा आज के दौर और सामाजिक ढांचे में अपनी प्रासंगिकता पहले से ज्यादा खो चुकी है। यजुर्वेद (३२।१६ ) में भगवान् से आदमी ने प्रार्थना की है की “हे ईश्वर, आप मेरी ब्राहमण और क्षत्रिय योग्यताएं बहुत ही अच्छी कर दो”। इससे यह साबित होता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र आदि शब्द असल में गुणों को प्रकट करते हैं न कि किसी आदमी को। तो इससे यह सिद्ध हुआ कि किसी व्यक्ति को शूद्र बता कर उससे घटिया व्यवहार करना वेद विरुद्ध है।

निर्णय करने का कोई तरीका नहीं

आज की तारीख में किसी के पास ऐसा कोई तरीका नहीं है कि जिससे ये फैसला हो सके कि क्या पिछले कई हज़ारों सालों से तथाकथित ऊँची जाति के लोग ऊँचे ही रहे हैं और तथाकथित नीची जाति के लोग तथाकथित नीची जाति के ही रहे हैं!

ये सारी की सारी ऊँची और नीची जाति की कोरी धोखेबाजी वाली कहानियां-गपोडे कुछ लोगों की खुद की राय और पिछली कुछ पीढ़ियों के खोखले सबूतों पर आधारित हैं। हम और आप ये बात भी जानते हैं कि आज की जाति-प्रथा में कमी की वजह से ही कुछ मक्कार और धोखेबाज लोग ऊँची जाति का झूठा प्रमाणपत्र लेकर बाकी जनता को बेवकूफ बना सकते हैं। इसके बिलकुल उलट आज की जाति-प्रथा में नकली तथाकथित ऊँची जाति के लोगों को ये प्रेरणा देने के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं है जिससे कि ये लोग मान लें कि ये लोग असल में किसी चांडाल परिवार से रिश्ता रखते हैं क्योंकि ऐसा करने से इनका समाज में विशेष अधिकार और ओहदा मिट्टी में मिल जायेगा। इसीलिए जाति-प्रथा के जिन्दा रहने से कुछ मक्कार और धोखेबाज लोग हमेशा ही शरीफ लोगों को दुःख और कष्ट ही देंगे। और इसकी तो और भी बहुत ज्यादा सम्भावना है कि आज की तथाकथित नीची जाति से पहचाने जाने वाले लोग ही हकीकत में ऊँची जाति के लोग हैं जिन्हें कि असली नीची जाति के लोगों ने ठगा है। आखिरकार जाति- प्रथा कुछ और नहीं बल्कि लोगों को धोखा देने का सिर्फ एक लालच मात्र है।

लक्षण तो खानदानी माहौल से भी मिल सकते हैं लेकिन?

हद से हद कोई सिर्फ ये कह सकता है कि जन्म के समय के माहौल की वज़ह से कुछ एक परिवारों में कुछ लक्षण प्रभावी रूप से दिखाई देते हैं। इसी तरह से लोग अपना-अपना पेशा भी पीढ़ियों से करते आये हैं। और इसमें कोई बुराई भी नहीं है। लेकिन इसका मतलब ये बिल्कुल भी नहीं है कि एक डॉक्टर का बेटा सिर्फ इसलिए डॉक्टर कहलायेगा क्योंकि वो एक डॉक्टर के घर में पैदा हुआ है। अगर उसे डॉक्टर की उपाधि अपने नाम से जोड़नी है तो उसे सबसे पहले तो बड़ा होना पड़ेगा, फिर इम्तिहान देकर एम बी बी एस बनना ही पड़ेगा।यही बात सभी पेशों, व्यवसायों और वर्णों पर भी लागू होती है।

लेकिन इसका मतलब कोई ये भी न समझे कि एक आदमी डॉक्टर सिर्फ इसीलिए नहीं बन सकता क्योंकि उसके पिता मजदूर थे। ईश्वर का शुक्र है कि ऐसा कुछ भी समाज में देखने के लिए नहीं मिलता। नहीं तो आज ये पूरी दुनिया नरक से भी बदतर बन जाती। अगर इतिहास की किताबों को उठाकर देखें तो पता चलेगा कि आखिरकार जिन भी महान लोगों ने इस दुनिया को अपने ज्ञान, खोज, तदबीर और आविष्कार और अगुवाई से गढ़ा है वो लोग पूरी तरह से अपने खानदान की परम्पराओं के खिलाफ गए हैं।

जाति-प्रथा ने हमें सिर्फ बर्बाद ही किया है

जब से हमारे भारत देश ने इस जात-पात को गंभीरता से लेना शुरू किया है तब से हमारा देश दुनिया को राह दिखाने वाले दर्जे से निकलकर सिर्फ दुनिया का सबसे बड़ा कर्जदार और भिखारी देश बनकर रह गया है। और पश्चिमी दुनिया के देश इसीलिए इतनी तरक्की कर पाए क्योंकि उन्होंने अपनी बहुत सी कमियों के बावजूद सभी आदमियों को सिर्फ उनकी पैदाइश को पैमाना न बनाकर और पैदाइश की परवाह किये बगैर इंसान की इज्ज़त के मामले में बराबरी का हक़ और दर्जा दिया। इसी शैतानी जात-पात के चलते न सिर्फ हमने सदियों तक क़त्ल-ए-आम और बलात्कार को सहा है पर मातृभूमि के खूनी और दर्दनाक बंटवारे को भी सहा है। अब कोई हमसे ये पूछने की गुस्ताखी हर्गिज न करे कि इस शैतानी जात-पात के फायदे और नुकसान क्या हैं?

हाँ ये जरूर है कि पिछले कुछ समय में जब से इस शैतानी जात-पात की पकड़ काफी कम हुई है तो हमने राहत की एक सांस ली है। आप एक बात और समझ लें कि जहाँ भी इस शैतानी जात-पात का सरदर्द बना हुआ है उसकी एक बहुत बड़ी वज़ह है इस जात-पात का राजनीतिकरण। और इस राजनीतिकरण के गोरखधंधे और मक्कारी वाली दुकानदारी के बंद न होने लिए हम सब जिम्मेवार इसीलिए हैं कि हम सब खुद से आगे बढ़कर उन सब रस्मों, किताबों और रीति-रिवाजों, जो जन्म आधारित जाति-पाति को मानते हैं, को कूड़ा करकट जैसी गंदगी समझकर कूड़ेदान में नहीं डालते बल्कि इस गन्दगी को अपने समाज रुपी जिस्म पर लपेटे हुए हैं। लानत है उन सब लोगों पर जो इस शैतानी जात-पात को ख़त्म करने के लिए आगे नहीं आते।

जातिवादी दिमाग का उल्टा – नकारात्मक योगदान

अगर किसी भी जातिवादी दिमाग वाले आदमी से पूछा जाए कि वो पिछले १००० सालों में किसी भी जातिवादी दिमाग का कोई महत्वपूर्ण योगदान गिनवा दे, तो या तो वो आदमी बगलें झाँकने लगेगा या फिर उसकी आँखों के सामने अन्धकार छा जाएगा और फिर आखिर में उसे कोई जवाब ही नहीं सूझेगा। ये भी हो सकता है कि कोई जातिवादी दिमाग वाला आदमी कुछ एक पागलपन और खुद की गढ़ी हुई साजिशों से भरपूर बिना सिर पैर वाली कहानियां सुना कर आपका हल्का सा मनोरंजन भी कर दे। लेकिन मन को दुखी करने वाली और कड़वी सच्चाई ये है कि बकवास, बेवकूफाना और जिल्लत से भरे अंधविश्वास, सिद्धांतों और रस्मों के अलावा इन सब धर्म नगरियों के पेटू पंडो और पाक मजारों के मालिकों ने, जिन्हें ईश्वर ने खूब माल और धन दौलत दिया है कुछ भी आज तक ऐसा नहीं किया जो कि गिनती करने के भी लायक हो। (पद्मनाभन मंदिर से मिले धन-दौलत कि बात देख लें। अग्निवीर के मन में बार-बार ये विचार आता है कि कितना अच्छा होता अगर ये धन-दौलत इस देश पर हजारों सालों से हमला करने वालों का मुंहतोड़ जवाब देने के लिए या फिर इस देश को ऐसा बनाने में लगाया जाता कि यहाँ पर सिर्फ और सिर्फ लायक लोगों की ही इज्ज़त होती।)

वो सारे तथाकथित म्लेछ – आइन्स्टीन, न्यूटन और फैराडे जैसे लोग और दूसरे अनगिनत पश्चिमी लोग जिन्होंने दुनिया को नयी राह दिखाई है, इन सब जन्मजात तथाकथित पंडितों से जो कि बड़ी ही बेशर्मी से अपने पैदा होने में भी भगवान की प्रेरणा के साथ-साथ बड़ी ही मक्कारी और धूर्तता के साथ श्री हरी की विशेष कृपा और दया होने का खोखला दावा करते हैं, ज्यादा शुद्ध और पवित्र मन, विचार और कर्म करने वाले हैं। केवल इतना ही फर्क है कि पिछले ३०० सालों में पश्चिमी सभ्यता के लोगों ने बाइबिल की अनैतिक और विज्ञान विरुद्ध बातों को एक सिरे से खारिज कर दिया है और लगातार समाज के सभी वर्गों को बराबरी का हक़ दिया है। हम इसी निष्कर्ष के साथ ये वाली बात ख़त्म करना चाहेंगे कि एक जातिवादी रहित म्लेच्छ का दिमाग (जिसे कि इन भोंदू, मूर्ख और स्वयम् घोषित ब्राह्मणों ने शूद्र से भी खराब माना है) इन सारे के सारे तथाकथित ब्राह्मणों के ईश्वरीय प्रेरित दिमाग से हज़ारों गुणा ज्यादा बढ़िया बुद्धिमान है। इस बात से ये भी साबित हो जाता है कि ये सारे के सारे ईश्वर के मुंह से पैदा होने का दावा करने वाले जन्म से ‘ब्राह्मण’ सिर्फ मुंगेरीलाल और तीसमारखां से बढ़कर दूसरे कारनामे नहीं कर सकते। हाँ, इस देश और समाज को बर्बाद और जात-पात से कलंकित करने में तन, मन और धन से अपने योगदान दे सकते हैं।

अग्निवीर उन सब तथाकथित और स्वयम्-घोषित (अपने मुंह मियां मिट्ठू ) लोगों को खुले तौर पर ललकारता है कि जो भी लोग ये दावा करते हैं कि ऊँची जाति के लोग ज्यादा लायक होते हैं वो सभी हम पर ये बताने का एहसान करें और सबूत दें कि पिछले ३०० सालों के इतिहास में उनकी अद्भुत लायिकी ने कौन सी महान खोज की है। उनके सबूत देने पर ही उनकी बात को गंभीरता से लिया जाएगा नहीं तो अक्लमंद आदमी की तरह उन्हें भी ये मानना होगा कि जाति-पाति एक बुराई है और वेदों के खिलाफ है। उन्हें अग्निवीर कि तरह से ये भी कसम खानी होगी और हुंकार भरनी होगी कि अब जाति-पाति के जहरीले पेड़ को जड़ से उखाड़कर ही दम लेंगे और फिर एक जात-पात रहित भारत का निर्माण करेंगे।

ये बात भी याद रहे कि कुछ एक वैज्ञानिक जैसे कि रमण और चंद्रशेखर का नाम इन बारे में यहाँ लेना बहुत बड़ी बेवकूफी की बात होगी क्योंकि सभी अक्लमंद लोगों को ये पता है कि इन महान आत्माओं ने जो भी किया वो सब म्लेच्छों की किताबों को अपनाकर और पढ़कर ही पाया है न कि तथाकथित और स्वयम्-घोषित (अपने मुंह मियां मिट्ठू ) निरे निपट, कोरे और बंजर दिमाग वाले तथाकथित ऊँची जाति के लोगों के पोथे पढ़ कर। न केवल रमण और चंद्रशेखर ने जो भी किया वो सब म्लेच्छों की किताबों को अपनाकर और पढ़कर ही पाया है बल्कि इनकी सिद्ध की हुई बातों को सिर्फ और सिर्फ पश्चिमी ‘म्लेच्छों’ ने ही माना और सराहा है।

बुद्धिमान लोगों को तो इन जातिवादी शिक्षा के गढ़ों; काशी, कांची, तिरुपति आदि के सारे पाखंडी, मक्कार, धूर्त जातिवादियों से ये सवाल करना चाहिए कि ये सब बताएं कि उस गुप्त ज्ञान से जो इन्हें इनका महान और दैवीय जन्म होने से भगवान से तोहफे में मिला था इन्होंने कौन सी महत्वपूर्ण खोज भारत देश और समाज को दी है? इन जात-पात के लम्पट ठेकेदारों ने इन सब विश्वप्रसिद्ध संस्थानों की महान वैज्ञानिक परंपरा का स्तर मिट्टी में मिलाकर अपने घटिया किस्म के हथकंडे, तिकड़मबाज़ी और चालबाजी से इन्हें अपनी दक्षिणा का अड्डा बनाकर छोड़ दिया है। इस “महान” योगदान के अलावा इन “महान” वेज्ञानिकों का योगदान देश निर्माण में जीरो – शून्य ही रहा है। हालाँकि इन्हीं तीर्थ स्थानों से ऐसे महापुरुष भी निकले हैं जो जातिवाद के विरुद्ध बिगुल बजाकर हमारे आदर्श बन चुके हैं। उनके विषय में यहाँ बात नहीं हो रही।

और ये भी याद रखें कि एक गैर-जातिवादी म्लेच्छ योद्धा और लड़ाकू वीर एक जातिवादी क्षत्रिय से कहीं ज्यादा वीर और शक्तिशाली हैं। यही कारण था कि हम शूरवीर और पता नहीं क्या-क्या दावे करने वाले राजपूतों के बावजूद हमें हजारों सालों तक उन लोगों ने गुलाम बनाकर रखा जिन्हें गुलामों के गुलाम माना जाता था (देखें गुलाम राजवंश)। हमें लड़ाई के मैदान में गजब बहादुरी दिखाने के बाद भी मजबूरी में अपनी बेटियों कि शादी अकबर जैसे मानसिक रोगी से करनी पड़ी थी। इन तथाकथित वैदिक विद्वानों और भगवान के द्वारा बनाये गए वीर राजपूतों के होते हुए काशी विश्वनाथ को एक कुँए में छुपकर शरण लेनी पड़ी थी। और गजिनी का सोमनाथ के मंदिर में हमारी माता-बहिनों का जबरन सामूहिक बलात्कार हम कैसे भूल सकते हैं। इन सारी उपलब्धियों के लिए हमें जन्म आधारित जाति-प्रथा को ही धन्यवाद देना चाहिए जिसने सिर्फ कुछ गिने-चुने परिवारों को ही लड़ाई के गुर सीखने का हक़ दिया। इतना ही नहीं इन लोगों ने उसके बाद ये भी घोषणा कर दी कि जातिवादी क्षत्रिय सिर्फ उस समय तक हिन्दू रहने का अधिकारी है कि जब तक कोई म्लेच्छ उसे छू नहीं लेता और अगर किसी कोई म्लेच्छ भूल से भी उसे छू लेता है तो जातिवादी क्षत्रिय उसी समय हिन्दू धर्म से बाहर हो जाएगा।

निष्पक्ष सोचने से पता चलेगा कि हमसे कहीं कम गुणी अंग्रेज सिर्फ हम पर ही नहीं लगभग आधी दुनिया पर केवल इसी वज़ह से राज कर पाए कि उन्होंने अपने समाज के अन्दर नकली और घटिया भेदभाव को बिलकुल नकार दिया और और वो हमारे ढोंगी पंडो जैसे लोगों के चक्कर में नहीं पड़े।

लेकिन ये बात निर्विविद रूप से सच है कि भारत देश ने सदियों से एक से बढ़कर एक उत्तम ‘गुलाम’ और ‘शूद्र’ (अज्ञानी) पैदा किये हैं। अगर कुछ एक विद्रोही अपवादों की बात छोड़ दें तो, एक समाज के तौर पर, हमारे ब्राहमण, क्षत्रिय और वैश्य होने के बड़े-बड़े दावों के बावजूद हम हमारे विदेशी और विधर्मी शासकों, चाहे जिसने भी हम पर राज किया हो, के जूते चाटते और चापलूसी करते रहे हैं। हमने अपने आकाओं की नौकरी-चाकरी करने में हमेशा अपनी शान समझी है। मुग़ल सेनाएं मुख्य: रूप से राजपूत वीर और सेनापतियों से बनी हुई थीं। हल्दी-घाटी की लड़ाई में वो राजपूती सेनाएं ही थीं जो वीर प्रताप को हराने की कोशिशें कर रही थीं। इसी तरह से ज्यादातर लड़ाईयां जो वीर शिवाजी महाराज ने लड़ीं वो उन तथाकथित राजपूतों और मराठों के खिलाफ थीं जो मुग़ल सल्तनत के जूते चाटने में महारथी थे।

इसीलिए वो सभी लोग जो ऊँची जाति का होने का दावा करते हैं और जन्म आधारित जाति-प्रथा को जायज ठहराते हैं वो हकीकत में अपने कामों की वज़ह से गुलाम, दास और शूद्रों से भी बुरे हैं। अब ये बात साफ़ हो जाती है कि ऊपर लिखे गए कारणों की वज़ह से ही ये नकली ऊँची जाति वाले लोग जन्म आधारित जाति-प्रथा को जायज ठहराते हैं। लेकिन अग्निवीर ने आप सब समझदार लोगों के सामने इन सब जन्म आधारित जाति-प्रथा के ठेकेदारों कि पोल खोल दी है।

जातिवाद से हिन्दू धर्म में गिरावट आई है

ये हमारी भयंकर भूल ही थी कि हमने जबरन दूसरे धर्म को अपनाने वाले अपने हिन्दू भाइयों को हिन्दू धर्म में लेने से मना कर दिया । आप लोगों को ये जानकार अजीब लगेगा कि आज भी पूरी दुनिया में हिन्दू धर्म ही एक ऐसा धर्म है जिसमे ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है कि जिससे इसमें किसी और धर्म में पैदा होने वाला व्यक्ति शामिल हो सके। बेशक, अगर आपके पास पैसा है तो आजकल आप वाराणसी में जाकर हिन्दू रिवाजों के हिसाब से शादी करवा सकते हैं ताकि आप अपने फोटो वगैरह निकाल सकें। लेकिन ये न भूलें कि ये सब भी आर्य समाज के शुद्धि आन्दोलन के बाद शुरू हुआ है। आर्य समाज का शुद्धि आन्दोलन लगभग १२५ साल पहले शुरू हुआ था जिसका पुरजोर विरोध भी कुछ नकली, नीच और ढोंगी पंडो ने अपना धर्म समझकर किया था। अग्निवीर के विचार से ऐसे लोग तो ‘शूद्र’ से भी बुरे हैं।

बहुत सारे तथाकथित नकली ब्राहमण (नकली इसीलिए कि अग्निवीर की खुली ललकार के बावजूद इन में से कोई भी अपने ब्राह्मण होने का डीएनए प्रमाण नहीं दे पा रहा है) आपको ये खोखली बात कहते मिलेंगे कि गैर-हिन्दुओं को हिन्दू धर्म में लिया तो जा सकता है लेकिन सिर्फ शूद्र के रूप में और न कि ब्राह्मण या क्षत्रिय के रूप में। इससे बड़ी बदमाशी की बात और क्या हो सकती है कि समाज का एक वर्ग अपनी पकड़ बनाए रखने के लिए साजिश रचने में लगा हुआ है और वो भी इस बात की परवाह किये बिना कि उसकी इस नापाक हरकत से देश, समाज और धर्म का कितना बड़ा नुकसान हो चुका है और लगातार हो भी रहा है। ये वो ही बेवकूफ पण्डे (धर्म के ठेकेदार) हैं जिन्होंने उस स्टीफन नॅप, जिसने कि वाराणसी के सभी पंडो से ज्यादा अकेले ही हिन्दू धर्म के लिए काम किया है, को काशी विश्वनाथ में अन्दर जाने से सिर्फ इसीलिए मना कर दिया क्योंकि वो जन्म से ही ब्राह्मण नहीं है। अब इन धूर्त पंडों की बात को अगर स्टीफन नॅप माने तो उसे काशी विश्वनाथ में अन्दर जाने के लिए इस जन्म में तो प्रायश्चित करना पड़ेगा और अगले जन्म में इन्हीं जैसे किसी पण्डे के घर पैदा होना पड़ेगा! हिन्दू धर्म के लिए इससे बड़े दुर्भाग्य की बात और क्या होगी? हमारा देश बर्बाद करने के लिए क्या हमें बाहर या विदेश के दुश्मनों की जरूरत है ?

हम हिन्दू धर्म को मानने वाले भोले-भाले लोग सदियों से इस जात-पात की बेवकूफी को मानते आये हैं और दुर्भाग्य से अब भी समझने को तैयार नहीं हैं। ऐ मेरे भोले-भाले और सदियों से लुटने-पिटने वाले हिन्दू! क्या तुम्हें मालूम भी है कि पूरी दुनिया में कोई भी आदमी दुनिया की किसी भी मस्जिद में जाकर अपने मुस्लिम बनने की ख्वाहिश को जाहिर कर सकता है? ऐसा होने पर उस मस्जिद का मौलवी सब कुछ छोड़-छाड़कर, हमारे मोटे-ताज़े और गोल-मटोल पंडों के बिलकुल उल्टा, फटाफट एकदम से सारे इंतजामात करके उस आदमी को जल्दी से मुसलमान बना लेता है? इसी तरह अगर कोई आदमी किसी चर्च में जाता है तो वहां का फादर ईसाई बन जाने पर पैसा भी देता है और इसके साथ-साथ ईसाई बनने वाले की नौकरी भी लगवाई जाती है?

लेकिन अगर कोई हमारा बिछुड़ा हुआ भाई जिसे सदियों पहले जबरन मुसलमान या ईसाई बनाया गया था किसी भी हिन्दू धर्म के मंदिर में अपने पुरखों के धर्म में लौटने के लिए जाता है सबसे पहले तो ये मक्कार, लोभी, लम्पट, धूर्त, धर्मद्रोही, समाजद्रोही, राष्ट्रद्रोही जातिवादी उस भोले-भाले आदमी को ऐसी ख़राब और पैनी नज़र से देखते हैं कि जैसे उसने कोई समलैंगिक मजाक सुन लिया हो। उसके बाद वो पंडा अपने किसी बड़े पुरोहित को बुलाता है। हाँ, कुछ एक मंदिरों में तो वो भोला-भला आदमी अन्दर भी नहीं जा सकता। उदाहरण के लिए जैसे कि काशी विश्वनाथ के मंदिर के आंतरिक भाग में सिर्फ तथाकथित ब्राहमण ही जा सकते हैं। इन सब के बाद उसे प्रायश्चित की एक लम्बी सी लिस्ट दी जायेगी ताकि वो हिन्दू धर्म में आकर एक “शूद्र” बन सके। एक साधु महाराज और उनके जैसे स्वनामधन्य कुछ लोगों के अनुसार प्रायश्चित के लिए हिन्दू बनने वाले को हिन्दू धर्म में आकर एक “शूद्र” बनने के लिए कई दिनों तक गाय का गोबर खाना जरूरी है। कुछ दूसरे संप्रदाय जैसे कि इस्कोन (ISKCON) ने हिन्दू धर्म में आकर एक “शूद्र” बनने के लिए काफी हद तक तरीका आसान किया है क्योंकि वो उन कुछ लोगों में से हैं जिन्होंने हमारे बहुत दिनों से खोये हुए भाइयों को अपने धर्म में वापस लाने के काम की जरूरत को समझा है।

लेकिन इस्कोन को उनके इस काम के लिए बाकी स्वयम्-घोषित दूसरे संप्रदाय वाले धर्म के ठेकेदार धोखेबाज़ मानते हैं। इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा कि हिन्दू धर्म में आने के बावजूद वो लोग कांचीपुरम, जगन्नाथ और द्वारका के मंदिरों में प्रवेश तक नहीं पा सकते वहां पर पूजा करके पुजारी बनने की बात तो आप भूल ही जाओ। वो लोग किसी भी तथाकथित ऊँची-जाति के हिन्दू से शादी नहीं कर सकते। वो लोग न तो वेद पढ़ सकते हैं और न ही पढ़ा सकते हैं। यहाँ तक कि सभी संभलकर कदम रखना चाहते हैं और इसी बात पर जोर और ध्यान देते हैं कि वो लोग सिर्फ गीता और भागवत पुराण आदि ही पढ़ें और वेद न पढ़ें।

आर्य समाज के अलावा किसी भी दूसरे हिन्दू धर्म के लोगों में ये हिम्मत और हौसला नहीं है कि एक मस्जिद के मौलाना को वेद पढ़ने और पढ़ाने वाला पंडित बना सकें। और इसी कारण उन्हें पिछले १२५ साल से रास्ते से भटका हुआ माना जाता रहा है। दुःख की बात ये है कि आज आर्य समाज भी सिर्फ एक किटी पार्टी (Kitty party) बनकर रह गया है और अपने मुख्य उद्देश्य (जाति-प्रथा का जड़ से विनाश) को भूल चुका है। आज आर्य समाज भी सिर्फ भगोड़े लड़के-लड़कियों की शादी करवाकर एक दान-दक्षिणा बटोरने वाली संस्था बनकर रह गयी है। क्या कोई ईसाई या मुसलमान पागल है जो अपनी इज्ज़त और आत्म-सम्मान की कीमत पर हिन्दू धर्म को अपनाएगा?

अग्निवीर किसी एक संप्रदाय या आदमी विशेष को अपराधी नहीं ठहरा रहा है बल्कि अग्निवीर की नज़र में इसकी अपराधी एक “जातिवादी दिमागी सोच” है। हर समाज में वन्दनीय रत्न भी हैं। किंतु आज के समय की सबसे बड़ी समस्या ये बेवकूफाना जाति-प्रथा और “जातिवादी दिमागी सोच” की वज़ह से इसका समर्थन करने वाले लोग ही हैं।

अगर हम कभी दास या गुलाम बने तो वो भी इसी की वज़ह से था। अगर हमारा कभी बलात्कार और क़त्ल-ए-आम हुआ तो वो भी इसी की वज़ह से हुआ। अगर हम आतंकवाद का सामना कर रहे हैं तो वो भी इसी की वज़ह से ही है। और फिर भी हम आगे बढ़कर इसे छोड़ना नहीं चाहते। ये बात हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं कि इसका न तो कोई आधार है, न कोई बुनियाद है और न ही ऐसा कोई तरीका है जिससे की इन बातों की जांच-परख हो सके, इसके बावजूद भोला-भाला और सदियों से लुटता-पिटता रहा हिन्दू, आज भी उसी सांप को खिला-पिला रहा है जिस सांप ने हमारे सगे-सम्बन्धियों को सदियों से न सिर्फ डसा है बल्कि बेरहमी से उनकी जान भी ली है।

जातिवाद ने भारत का खूनी बंटवारा तक करवा दिया

आज की तारिख में हिन्दू समाज का एक हिस्सा १९४७ के भारत के बंटवारे का रंज मनाता है और उसी तरह से तथाकथित इस्लामी कट्टरवाद का भी रोना बड़े-बड़े आंसू टपकाकर रोता है। लेकिन शायद सिर्फ कुछ ही लोगों को मालूम हो कि “मोहम्मद अली जिन्ना” के परदादा या पुरखे हिन्दू ही थे, जो किन्ही बेवकूफाना कारणों की वज़ह से ही मुसलमान बनने के लिए मजबूर हुए थे। इकबाल के दादा एक ब्राहमण परिवार में पैदा हुए थे। हमारे जातिवाद के हिसाब से तो हिन्दू धर्मी किसी म्लेच्छ के साथ सिर्फ खाना खाने से ही म्लेच्छ हो जाता था और उसके पास अपने सत्य सनातन हिन्दू धर्म में वापस लौटने का कोई भी रास्ता इन नीच, पापी पंडों ने नहीं छोड़ा था।

बाद के समय में जब स्वामी दयानंद सरस्वती और स्वामी श्रद्धानंद ने शुद्धि आन्दोलन शुरू किया और स्वातंत्र्य वीर सावरकर ने शुद्धि आन्दोलन को खुले तौर पर समर्थन दिया तब इन मौकापरस्त धर्म के दलालों को दुःख तो बहुत हुआ लेकिन इन्हें हिन्दू धर्म के दरवाजे अपने भाइयों के लिए खोलने पड़े। लेकिन फिर भी ये मौकापरस्त धर्म के दलाल अपनी नापाक हरकतों से बाज़ नहीं आये और अपने बिछुड़े भाइयों को तथाकथित छोटी जाति में जगह दी। अब भी क्या आपको कोई शक या मुगालता है कि हिन्दू धर्म के सबसे बड़े दुश्मन ये मौकापरस्त धर्म के दलाल ही हैं?

सारे भारतीय उपमहाद्वीप की मुसलमान और ईसाई जनसँख्या आज हमारे ही उन पापों और अपराधों का परिणाम है जिसके हिसाब से किसी भी आदमी को कैसे भी काम की वज़ह से हिन्दू धर्म से बाहर निकाला जा सकता था। आज हमें जरूरत इस बात की है कि हम दूसरों के धर्मों की बुराइयाँ और उसमे कमियां निकालने कि बजाय, खुद से ये सवाल करें कि “क्या हमारे पास ऐसी कोई भी चीज़ ऐसी है जिससे कि सदियों पहले अपने छोटे-छोटे दूध पीते बच्चों की जान बचाने के लिए, बहू-बेटियों की इज्ज़त बचाने के लिए, डर और मजबूरी से अलग हुए हमारे अपने ही भाइयों को इज्ज़त के साथ हिन्दू धर्म में आने के लिए मना सकें और उन्हें अपने दिल से लगा सकें।” “क्या हमारे पास उन्हें भला-बुरा कहने का कोई हक़ है जब हम अपनी झूठी और बकवास तथकथित नकली किताबों को मानते हैं और जाति-प्रथा और पुरुष-स्त्री में भेदभाव को सही मानते हैं?”

जातिवादियों को पहले अपने पापों और अपराधों को देखना चाहिए

अगर हम हिन्दू और कुछ भी नहीं कर सकते तो कम से कम खुद के साथ तो इमानदार बनें। अग्निवीर एक निष्पक्ष आलोचक के तौर पर एक वैज्ञानिक की तरह से इस्लाम के इतिहास, कुरान और बाइबिल को सबके सामने रखता है। अग्निवीर किसी भी धर्म या संप्रदाय से नफरत नहीं करता। अग्निवीर विचारों पर लिखता है न कि किसी खास आदमी पर। इसके साथ अग्निवीर अपने साहस, हिम्मत और हुंकार के साथ ये भी कहता है कि उन सभी किताबों को एकदम बिना कोई देर किये जो किसी भी तरीके से जातिवाद और स्त्री-पुरुष में भेदभाव जैसे शर्मनाक रस्मों को सही मानती हैं, या तो कूड़ेदान में डाल देना चाहिए या फिर आग के हवाले कर देना चाहिए। अग्निवीर इस बात की रत्ती भर भी परवाह नहीं करता कोई आदमी ऐसी किसी किताब, रस्म और पूजा के तरीके से कितने भावनात्मक रूप से और किस हद तक जुड़ा हुआ है। अग्निवीर फिर भी इन खून चूसने वाली जोंक और परजीवियों से छुटकारा पाने के लिए संघर्ष करता रहेगा।
जब तक हम सभी धर्म और संप्रदाय के लोग इतनी ईमानदारी नहीं दिखा सकते तब तक तुलनात्मक धर्म पर कोई भी बहस करना अपने घृणित पापों और अपराधों पर पर्दा डालने की एक बेशर्म कोशिश से ज्यादा कुछ नहीं होगा।

जातिवाद जाएं भाड़ में

और तथाकथित नीची-जाति के लोगों के पास तथाकथित ऊँची-जाति बनने के लिए कोई व्यवस्था नहीं थी। हिन्दू ने कहा “योग्यता जाएं भाड़ में” तो नियति ने कहा “हिन्दू जाएं भाड़ में”।

इसीलिए, अग्निवीर आज आप सब लोगों से अपने-अपने जीवन में
ये बात अपनाने के लिए निवेदन करता है कि

‘वो लोग जाएं भाड़ में जो कहते हैं “योग्यता जाए भाड़ में”।

अगले भाग में भी जारी रहेगा  http://agniveer.com/5415/the-reality-of-caste-system-3/

Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
I am founder of Agniveer. Pursuing Karma Yog. I am an alumnus of IIT-IIM and hence try to find my humble ways to repay for the most wonderful educational experience that my nation gifted me with.

31 COMMENTS

  1. Hindu caste system was the most scientific organization of society, where people with least useful skills were treated like children by those who were efficient enough. This system gave equal opportunities to practice and realise the truth. Most of the bad traditions were developed within the hard time of invasions and they are not more them few generations old.
    Reader and writers of this site may be interested to read this peace on caste system.
    सुद्ध हिंदी में: चातुर्वर्णं मया सृष्टं http://shuddhahindimein.blogspot.com/2012/01/blog-post.html

  2. Apne Bilkul sahi likha hai Mitra. Jatipratha ko dur karne ke liye mere vichar se sabse kargar upay Antarjati Vivah ko protsahan hai. Magar ye tabhi ho sakta hai jab sabhi Jati ke samaj iske liye taiyar ho jaye..Koi ladka kisi Gauv me ladki dekhane jaye to wo ye mat puchhe ki is Gauv me is jati ki ladki hai kya? Balki ye puchhe ki is Gauv me Ladki hai kya? Jati ka bilkul ullekh na ho…aisa jis din hone lagega us din samjhenge ki Jatipratha ka bandhan ab toot gaya….Sabhi Hindu ek ho gaye…Jatipratha ko Jatigat Aarakshan ke karan badava mil raha hai. nahi to jati ka kam hi kya hai aaj ke samay me?Log apni Jati ko Aaj Aarakshan ke karan hi yad karte hai…Agar Jatipratha ko Todna hai to Jatigat Aarakshan ko Samapt karna hi padega…Magar mujhe nahi lagta ki Bharat me Jatigat Aarakshan kabhi Samapt hoga?!!!Jai Shree Ram!!! Jai Hindu!!! Jai Hind!!!

  3. 1.मैं ब्रह्मा, विष्णु और महेश में कोई विश्वास नहीं करूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
    2.मैं राम और कृष्ण, जो भगवान के अवतार माने जाते हैं, में कोई आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा
    3.मैं गौरी, गणपति और हिन्दुओं के अन्य देवी-देवताओं में आस्था नहीं रखूँगा और न ही मैं उनकी पूजा करूँगा.
    4.मैं भगवान के अवतार में विश्वास नहीं करता हूँ
    5.मैं यह नहीं मानता और न कभी मानूंगा कि भगवान बुद्ध विष्णु के अवतार थे. मैं इसे पागलपन और झूठा प्रचार-प्रसार मानता हूँ
    6.मैं श्रद्धा (श्राद्ध) में भाग नहीं लूँगा और न ही पिंड-दान दूँगा.
    7.मैं बुद्ध के सिद्धांतों और उपदेशों का उल्लंघन करने वाले तरीके से कार्य नहीं करूँगा
    8.मैं ब्राह्मणों द्वारा निष्पादित होने वाले किसी भी समारोह को स्वीकार नहीं करूँगा
    9.मैं मनुष्य की समानता में विश्वास करता हूँ
    10.मैं समानता स्थापित करने का प्रयास करूँगा
    11.मैं बुद्ध के आष्टांगिक मार्ग का अनुशरण करूँगा
    12.मैं बुद्ध द्वारा निर्धारित परमितों का पालन करूँगा.
    13.मैं सभी जीवित प्राणियों के प्रति दया और प्यार भरी दयालुता रखूँगा तथा उनकी रक्षा करूँगा.
    14.मैं चोरी नहीं करूँगा.
    15.मैं झूठ नहीं बोलूँगा
    16.मैं कामुक पापों को नहीं करूँगा.
    17.मैं शराब, ड्रग्स जैसे मादक पदार्थों का सेवन नहीं करूँगा.
    18.मैं महान आष्टांगिक मार्ग के पालन का प्रयास करूँगा एवं सहानुभूति और प्यार भरी दयालुता का दैनिक जीवन में अभ्यास करूँगा.
    19.मैं हिंदू धर्म का त्याग करता हूँ जो मानवता के लिए हानिकारक है और उन्नति और मानवता के विकास में बाधक है क्योंकि यह असमानता पर आधारित है, और स्व-धर्मं के रूप में बौद्ध धर्म को अपनाता हूँ
    20.मैं दृढ़ता के साथ यह विश्वास करता हूँ की बुद्ध का धम्म ही सच्चा धर्म है.
    21.मुझे विश्वास है कि मैं फिर से जन्म ले रहा हूँ (इस धर्म परिवर्तन के द्वारा).
    22.मैं गंभीरता एवं दृढ़ता के साथ घोषित करता हूँ कि मैं इसके (धर्म परिवर्तन के) बाद अपने जीवन का बुद्ध के सिद्धांतों व शिक्षाओं एवं उनके धम्म के अनुसार मार्गदर्शन करूँगा.
    डा बी.आर. अम्बेडकर

    • sahi baat he , hamara hindu dharm me se agar paakhandvaad juth , maakkari , uchh nichh ki manasikata ka paakhand , duniya bhar ke paakhandvaad thoss thoss ke bhara he ,, paakhandi vedo, purano ,grandtho ka paakhandiyo drara racha gaya aur ye agniveer ki website paakahndiyo ka paakhandvaad thoss thoss ke bhara he ,, me bhi aaj se kutrim devi devta aur paakhandi vedo , jo gandi nasal ke najayaj janavar ki napaak pedaase naapak gandaki = paakhandi drara rachi gayi he use laat marta hu thukta hu.. kyoki koi dharm me jina chahata hu ,, muje paakhand vaad ko laat marna he

  4. Dear Agniveer Ji,

    Me apke subh vicharon subh ko bar-bar naman karta hun, or is desh ke logon se request karta hun ki yadi desh ko duniya me age dekhna chahte ho to sabse pahle jati pratha ko mitana hoga, jab tak jati pratha ki bimari hamare samaj me he tab tak desh tarakki nanhi kar sakta or na hi khushhali aasakti he.

    Jay Hind!!!!

    Birendra Singh

  5. Ye bilkul teek hai ki aaj hindu dharm ka sabse bada dushman jaatiwad hai agar hame waps vishav guru ban na hai to es burai ko khatam karna hoga tabhi hum aage bad sakte hain.

  6. Sir mera parshan apake point no. 11 ke sambandh me he .. Aap jeena or iqkabal ka example dekar , unke parti satruta ka bhav dikha rhe he ya fir sahanubhuti? Tese vivekanand ne kha tha jo vaykati hindu dharam ki paridhhi se bahar nikal gaya vo paraya kam or satru jyada ho jata he . Ir sandarbh me me kya mai bi apka satru hu .

    • adarniy tarif ji,hm kisi ko bhi shatru nahi samajhte hai jinki mansikta dusri ho unko bhi apna banane ki cheshta rahati hai. shatru ko nuksan ya nasht karne ki mansikta hoti hai .jab ki prem apna banata hai

  7. Dear Agniveer,
    I refer to a book (an autobiography) of Sh Balraj Madhok, one of the co-founders of ‘Bhartiya Jana Sangh’, now popularly known as BJP. The name of this book is “Jindagi Ka Safar” (Edition-1994, Hindu World Publications). On page- 25 of part 1, Sh Madhok categorically recalled one of the significant historical eye opening incidents, unnoticed and untouched by scholars in the following words:

    “Muslims of Kashmir requested Maharaja Ranbir Singh when the State came under the control of Dogra State in the middle of 19thcentury that they could be taken back to their ancestor’s Vedic Hindu religion. For this purpose, Maharishi Dayanand Saraswati wrote a booklet ‘Ranbir Prakash’ for the king for proper guidance and laid down the process to bring the Muslims of Kashmir back into the Hindu fold. But few Kashmiri Pundits opposed this sacred effort. They thought that when Muslims would again be brought back into the Vedic Hindu fold they would loose their monopoly over the government services. They threatened Maharaja Ranbir Singh that they would initiate the dharna and would commit suicide at his palace. Dharambhiru Maharaja came under their pressure and he rejected the request of the Muslims. Today, the dreadful result of that decision is not only being faced by Kashmiri Pundits but also by entire India”.

    His Highness could not make the right decision, why?

    Divinely yours

  8. Kisi bhi dharam me vishvash karana or uska samman karana to thik he lekin uski kurutiyo ko ankhe band karke
    mante rahna, andhvishwas, jati pratha, unch nich or dusro par usko thopan or apne ko shreshth batana ye sab
    galat he yadi koi bhi desh samaj parivar gar aage bara he to in sab baton ka tyag karke hi aage bara he, meri rai to yahi he ki admi ko langot ka pakka or hath ka sachcha hona chahiye vahi shreshth he. Jai Hind!!! Jai Bharat!!!!

  9. जा ति प्रथा नहीं यह दैवी प्रकृति की व्यवहारिक प्रक्रिया है अर्थात जातियां कल्पित नहीं वास्तविक हैं और इन के अस्तित्व का क्षेत्र केवल भारत वर्ष है इससे बाहर के भूभागो में जातियां अपना अस्तित्व कायम नहीं रख सकती हैं कारण वे जडशक्ति के फ्यूजन क्षेत्र हैं भारत चितशक्ति का फिशन क्षेत्र है। यहां एटमिक शक्ति से अधिक न्यूक्लानिक शक्ति है और इससे अधिक न्यूट्रानिक ऊर्जा जो न्यूक्लान को अपने क्षेत्र में समायोजित रखती है और एटम्स को भटकने नहीं देती उसे उसकी निम्नतम अवस्था में बनाए रखती है।भारत बूध्दि के स्वातंत्र्य का क्षेत्र है मन व अहंकार का नहीं भारत से बाहर फ्यूजन वाले अहंकार की आजादी की भूमिया हैं।जाति व्यवस्था परमेश्वर की अपनी प्रकृति से अपनी सृष्टि का कार्य कराने की तकनीक है। स्वतंत्र बुध्दि से ही यह जाना व समझा जा सकता है जो मलिन बूध्दि पथ भ्रष्ट वर्ण संकर जाति व्यवस्था उनकी समझ से बाहर है, उनके लिए इसे समझना ऐसा ही जैसे ऊल्लू के लिए दिन की छटा देखना समझना है।जो जातिभेद को गलत समझते तो समझो वे बुध्दि हीन मन के गुलाम अहंकारी पशु मानव है जिनके लिये ‘मनुष्य रूपेण मृग:चरन्ती कहा गया है ये राष्ट्र समाज और पर्यावरण तीनो की क्षति करने वाले महानीच हैं इनसे सावधान रहने की आवश्यकता होती है।

    https://www.facebook.com/shriyagyadev

    • कोई भी व्यक्ति जाति से नहीं बल्कि अपने कर्म से श्रेष्ठ बनता है अगर व्यक्ति कर्मभ्रष्ट हो तो वह कुख (गर्भ ) से श्रेष्ठ कुल में पैदा होकर भी श्रेष्ठ कुल का नहीं कह सकते । धम्मपद के ब्राम्हण वग्गो में कहा है ,
      न जटाहि न गोत्तेन ,न जच्चा होति ब्राम्हणो ।
      यम्हि सच्चज्च धम्मोच , सो सूचि सो च ब्राह्मणो ।। २६
      कोई व्यक्ति न जटा से ,न गोत्र से और न ही जन्म से ब्राम्हण होता है ,जिस व्यक्तिमें सत्य ,और धर्म ( अच्छे गुणोंको धारण करनेवाला )
      है वही पवित्र है और वही ब्राम्हण है., ब्राम्हण वग्गो में कहा है की ,जो बाहर से बार-बार स्नान करता है लेकिन मन ( अंदरसे ) से मैला है वह कैसा ब्राह्मण, ब्राम्हण वह है जो अशोक ( शोकरहित ) है,मन, वाचा ,कर्म से किसीको भी पीड़ा नहीं देते है ,निर्लोभी हैं, सम्यकशील है ,गंभीर और मेधावी है ,शांत है, अहिंसक है ,करुणाशील है, अनासक्त है, क्षमाशील है ,प्रज्ञावान है ,काम भोगसे अलिप्त है ,हमेशा सन्मार्ग पर चलनेवाला है जो इस संसारमे कमल -पुष्प समान है,अर्थात इस विषयसागर रूपी संसार के कीचड़ में रहकर भी कमल पुष्प समान भोगोसे अलिप्त है वही सच्चा-सच्चा ब्राम्हण है अब कहे ऐसे इस धरती पर कितने ब्राम्हण है ,जो जातिसे श्रेष्ठता दिखाते हो और कर्म अगर नीच है तो कैसा ब्राह्मण आज मै ऐसे लोगो के बारेमे कहना चाहता हुँ , कुछ ऐसे भी है जो अपने पवित्र धारणाओं पर चलते है वह जाति से भी ब्राह्मण और कर्म से भी सच्चे ब्राह्मण है ,केवल भगवान को अलग-अलग मंदिरोंमें बिठाकर पूजा पाठ करके केवल दक्षिणा लेने से, दान लेने से ब्राह्मण नहीं हो सकते, अगर दान करना है तो जरुरतमन्द गरीब व्यक्तिको करो, कोई भी ग्रहपीड़ा ,साढ़ेसाती ,पितृदोष दान या पूजा करनेसे नहीं बल्कि अपने कर्म को श्रेष्ठ करो जब मै अच्छी के मार्ग पर चलु तो मेरा बुरा हो ही नहीं सकता अगर है तो जरूर मेरे कर्म कही न कही ख़राब है।

  10. ap ne pahle likha ki mai kisi jati ki burai nahi karu ga fir har jagah muslim ki birai karte rahe kabhi jinaa ka nam lekar to kabhi ikbal ka nam le kar kabhi dharm pariwartan ke nam par ye kiya bat hui

  11. Agniveer ,sahi h pr you are not the best kyuki sbhi dram thik h apni jgha ,insan apne kram k adhar pr hi ucha hota h hindu dram ek snatan dram h jo kafi purana h isliye esa krna bebkufi hogi

  12. Accoridng to Manu there are only 4 varnas. The Shudras are infact today upper castes among Hindus. Kshatriya and Vysya numbers are negligible.

    Vast majority of OBCs and Dalits were once considered Chandalas (outcastes from 4 varnas) and not shudras. Atrocities against Dalits are perpetuated by OBCs today. The fact is they both were treated chandals. caste must be a responsibility and not previlige. There is a big difference between a vedic Brahmin and a shudra in my opinion but not much differences between the many so called caster Hindus (who are shudras), OBC and Dalits.

    Personally i dont find any people superior to another intelectually. A superior cultured Aryan must be pure at heart ;less egoisitc but never intelectually superior in modern sense.

    Pseudo intelectuals always criticise some imaginary enemies like Brahminism, fuedalistic and patriarchial values etc as they do not want to use their brains to resolve real issues concerning all people rather use jargons and expect people to beleive that they are liberal, intelectually superior and open minded.

    Grave human rights violation and abuse of young girls (to win olympic medals in gymnastics and athletics) happended in USSR. corporate culture also consider women inferior and exploit them. But when some thing happens in Delhi or elsewhere in India against women, “fuedalism” (also patriarchial values ???) is blamed.

    Zakir naik got an award from king Salman but he did not return it when a Saudi employer cutoff hands of a poor women from AP or TN, India. Saudi police said that she fell down and lost her hand

  13. mere pyaare brother’s…. Bol kar nahi kar ke dekho…..jaat paat khatam hogi to ham aage badenge nahi to uski wajah se hamara youth bhi khraab ho raha hai.

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