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जाति प्रथा की सच्चाई

यह अध्याय मुख्य: रूप से उस विचारधारा के लोगों पर केन्द्रित है जो जन्म आधारित जातिगत भेदभाव का पक्ष लेते हैं। इसीलिए सभी लोगों से प्रार्थना है कि हमारी समीक्षा को केवल इस घृणास्पद प्रथा और ऐसी घृणास्पद प्रथा के सरंक्षक, पोषक और समर्थकों के सन्दर्भ में देखा जाए न कि किसी व्यक्ति, समाज और जाति के सन्दर्भ में। अग्निवीर हर किस्म के जातिवाद को आतंकवाद का सबसे ख़राब और घृणित रूप मानता है और ऐसी घृणास्पद प्रथा के सरंक्षक, पोषक और समर्थकों को दस्यु। बाकी हम सब लोग, चाहे वो इंसान के द्वारा स्वार्थवश बनाई गयी तथाकथित छोटी जाति या ऊंची जाति का हो, एक परिवार, एक जाति, एक नस्ल के ही हैं। हम अपने पाठकों से निवेदन करते हैं कि वो ये न समझें कि यह अध्याय वैदिक विचारधारा “वसुधैव कुटुम्बकम्” के विपरीत किसी व्यक्ति या वर्ग विशेष के लिए लिखा गया है।

जाति-प्रथा से जुड़े हुए कुछ ऐसे तथ्य जिनके बारे में हमें पता होना चाहिए और जिनके बारे में हम सोचें:

ब्राह्मण कौन है?

जाति-प्रथा के बारे में सबसे हँसी की बात ये है कि जन्म आधारित जातिप्रथा अस्पष्ट और निराधार कथाओं पर आधारित हैं। आज ऐसा कोई भी तरीका मौजूद नहीं जिससे इस बात का पता चल सके कि आज के तथाकथित ब्राह्मणों के पूर्वज भी वास्तविक ब्राह्मण ही थे। विभिन्न गोत्र और ऋषि नाम को जोड़ने के बाद भी आज कोई भी तरीका मौजूद नहीं है जिससे कि उनके दावे की परख की जा सके।

अगर हम ये कहें कि आज का ब्राह्मण(जाति/जन्म आधारित) शूद्र से भी ख़राब है क्योंकि ब्राह्मण १००० साल पहले चांडाल के घर में पैदा हुआ था, हमारे इस दावे को नकारने का साहस कोई भला कैसे कर सकता है? अगर आप ये कहें कि ये ब्राह्मण परिवार भरद्वाज गोत्र का है तो हम इस दावे की परख के लिए उसके डी।एन।ए परीक्षण (DNA Test) की मांग करेंगे। और किसी डी।एन।ए परीक्षण के अभाव में तथाकथित ऊँची जाति का दावा करना कुछ और नहीं मानसिक दिवालियापन और खोखला दावा ही है।

क्षत्रिय कौन है?

ऐसा माना जाता है कि परशुराम ने जमीन से कई बार सभी क्षत्रियों का सफाया कर डाला था। स्वाभाविक तौर पर इसीलिए आज के क्षत्रिय और कुछ भी हों पर जन्म के क्षत्रिय नहीं हो सकते!

अगर हम राजपूतों की वंशावली देखें तो ये सभी इन तीन वंशों से सम्बन्ध रखने का दावा करते हैं १। सूर्यवंशी जो कि सूर्य या सूरज से निकले, २। चंद्रवंशी जो कि चंद्रमा या चाँद से निकले और ३। अग्निकुल जो कि अग्नि से निकले। बहुत ही सीधी सी बात है कि इन में से कोई भी सूर्य या सूरज, चंद्रमा या चाँद से जमीन पर नहीं आया। अग्निकुल विचार की उत्पत्ति भी अभी-अभी ही की है। किंवदंतियों-कहानियों के हिसाब से अग्निकुल की उत्पत्ति या जन्म आग से उस समय हुआ जब परशुराम ने सभी क्षत्रियों या राजपूतों का धरती से सफाया कर दिया था। बहुत से राजपूत वंशों में आज भी ऐसा शक या भ्रम है कि उनकी उत्पत्ति या जन्म; सूर्यवंशी, चंद्रवंशी, या अग्निकुल इन वंशो में से किस वंश से हुई है।

स्वाभाविक तौर से इन दंतकथाओं का जिक्र या वर्णन किसी भी प्राचीन वैदिक पुस्तक या ग्रन्थ में नही मिलता। जिसका सीधा-सीधा मतलब ये हुआ कि जिन लोगों ने शौर्य या सेना का पेशा अपनाया वो लोग ही समय-समय पर राजपूत के नाम से जाने गए।

ऊँची जाति के लोग चांडाल हो सकते हैं

अगर तथाकथित ऊँची जाति के लोग ये दावा कर सकते हैं कि दूसरे आदमी तथाकथित छोटी जाति के हैं तो हम भी ये दावा कर सकते हैं कि ये तथाकथित छोटी जाति के लोग ही असली ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य हैं। और ये ऊँची जाति के लोग असल में चांडालों की औलादें हैं जिन्होंने शताब्दियों पहले सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था और सारा इतिहास मिटा या बदल दिया था। आज के उपलब्ध इतिहास को अगर हम इन कुछ तथाकथित ऊँची जाति के लोगों की उत्पत्ति या जन्म की चमत्कारी कहानियों के सन्दर्भ में देखें तो हमारे दावे की और भी पुष्टि हो जाती है।

अब अगर किसी जन्मगत ब्राह्मण वादी को हमारी ऊपर लिखी बातों से बेईज्ज़ती महसूस होती है तो उसका भी किसी आदमी को तथाकथित छोटी जाति का कहना अगर ज्यादा नहीं तो कम बेईज्ज़ती की बात नहीं है।

हम लोगों में से म्लेच्छ कौन है?

इतिहास से साफ़ साफ़ पता लगता है कि यूनानी, हूण, शक, मंगोल आदि इनके सत्ता पर काबिज़ होने के समय में भारतीय समाज में सम्मिलित होते रहे हैं। इन में से कुछों ने तो लम्बे समय तक भारत के कुछ हिस्सों पर राज भी किया है और इसीलिए आज ये बता पाना बहुत मुश्किल है कि हम में से कौन यूनानी, हूण, शक, मंगोल आदि-आदि हैं!

ये सारी बातें वैदिक विचारधारा – एक मानवता – एक जाति से पूरी तरह से मेल खाती है लेकिन जन्म आधारित जातिप्रथा को पूरी तरह से उखाड़ देती हैं क्योंकि उन लोगों के लिए म्लेच्छ इन तथाकथित चार जातियों से भी निम्न हैं।

जाति निर्धारण के तरीके की खोज में

आप ये बात तो भूल ही जाओ कि क्या वेदों ने जातिप्रथा को सहारा दिया है या फिर नकारा है? ये सारी बातें दूसरे दर्जे की हैं। जैसा कि हम सब देख चुके हैं कि असल में “वेद” तो जन्म आधारित जातिप्रथा और लिंग भेद के ख्याल के ही खिलाफ हैं। इन सारी बातों से भी ज्यादा जरूरी बात ये है कि हमारे में से किसी के पास भी ऐसा कोई तरीका नहीं है कि हम सिर्फ वंशावली के आधार पर ये निश्चित कर सकें कि वेदों कि उत्पत्ति के समय से हम में से कौन ऊँची जाति का है और कौन नीची जाति का। अगर हम लोगों के स्वयं घोषित और खोखले दावों की बातों को छोड़ दें तो किसी भी व्यक्ति के जाति के दावों को विचारणीय रूप से देखने का कोई भी कारण हमारे पास नहीं है।

इसलिए अगर वेद जन्म आधारित जातिप्रथा को उचित मानते तो वेदों में हमें किसी व्यक्ति की जाति निर्धारण करने का भरोसेमंद तरीका भी मिलना चाहिए था। ऐसे किसी भरोसेमंद तरीके की गैरहाजिरी में जन्म आधारित जातिप्रथा के दावे औंधे मुंह गिर पड़ते हैं।

इसी वज़ह से ज्यादा से ज्यादा कोई भी आदमी सिर्फ ये बहस कर सकता है कि हो सकता है की वेदों की उत्पत्ति के समय पर जातिप्रथा प्रासांगिक रही हो, पर आज की तारीख में जातिप्रथा का कोई भी मतलब नहीं रह जाता।
हालाँकि हमारा विचार ये है – जो कि सिर्फ वैदिक विचारधारा और तर्क पर आधारित है – जातिप्रथा कभी भी प्रासंगिक रही ही नहीं और जातिप्रथा वैदिक विचारधारा को बिगाड़ कर दिखाया जाना वाला रूप है। और ये विकृति हमारे समाज की सबसे महंगी विकृति साबित हुई जिसने कि हमसे हमारा सारा का सारा गर्व, शक्ति और भविष्य छीन लिया है।
नाम में क्या रखा है?

कृपया ये बात भी ध्यान में रखें की गोत्र प्रयोग करने की प्रथा सिर्फ कुछ ही शताब्दियों पुरानी है। आपको किसी भी प्राचीन साहित्य में ‘राम सूर्यवंशी’ और ‘कृष्ण यादव’ जैसे शब्द नहीं मिलेंगे। आज के समय में भी एक बहुत बड़ी गिनती के लोगों ने अपने गाँव, पेशा और शहर के ऊपर अपना गोत्र रख लिया है। दक्षिण भारत के लोग मूलत: अपने पिता के नाम के साथ अपने गाँव आदि का नाम प्रयोग करते हैं। आज की तारीख में शायद ही ऐसे कोई गोत्र हैं जो वेदों की उत्पत्ति के समय से चले आ रहे हों।

प्राचीन समाज गोत्र के प्रयोग को हमेशा ही हतोत्साहित किया करता था। उस समय लोगों की इज्ज़त सिर्फ उनके गुण, कर्म और स्वाभाव को देखकर की जाती थी न कि उनकी जन्म लेने की मोहर पर। ना तो लोगों को किसी जाति प्रमाण पत्र की जरूरत थी और ना ही लोगों का दूर दराज़ की जगहों पर जाने में मनाही थी जैसा कि हिन्दुओं के दुर्भाग्य के दिनों में हुआ करता था। इसीलिए किसी की जाति की पुष्टि करने के लिए किसी के पास कोई भी तरीका ही नहीं था। किसी आदमी की प्रतिभा या उसके गुण ही उसकी एकमात्र जाति हुआ करती थी। हाँ ये भी सच है कि कुछ स्वार्थी लोगों की वज़ह से समय के साथ साथ विकृतियाँ आती चली गयीं। और आज हम देखते हैं कि राजनीति और बॉलीवुड भी जातिगत हो चुके हैं। और इसमें कोई भी शक की गुंजाईश नहीं है कि स्वार्थी लोगों की वज़ह से ही दुष्टता से भरी इस जातिप्रथा को मजबूती मिली। इन सबके बावजूद जातिप्रथा की नींव और पुष्टि हमेशा से ही पूर्णरूप से गलत रही है।

अगर कोई भी ये दावा करता है कि शर्मा ब्राहमणों के द्वारा प्रयोग किया जाने वाला गोत्र है, तो यह विवादास्पद है क्योंकि महाभारत और रामायण के काल में लोग इसका अनिवार्य रूप से प्रयोग करते थे, इस बात का कोई प्रमाण नहीं। तो हम ज्यादा से ज्यादा ये मान सकते हैं कि हम किसी को भी शर्मा ब्राह्मण सिर्फ इसीलिए मानते हैं क्योंकि वो लोग शर्मा ब्राह्मण गोत्र का प्रयोग करते हैं। ये भी हो सकता है कि उसके दादा और पड़दादा ने भी शर्मा ब्राह्मण गोत्र का प्रयोग किया हो। लेकिन अगर एक चांडाल भी शर्मा ब्राह्मण गोत्र का प्रयोग करने लगता है और उसकी औलादें भी ऐसा ही करती हैं तो फिर आप ये कैसे बता सकते हो कि वो आदमी चांडाल है या फिर ब्राह्मण? आपको सिर्फ और सिर्फ हमारे दावों पर ही भरोसा करना पड़ेगा। कोई भी तथाकथित जातिगत ब्राह्मण यह बात नहीं करता कि वो असल में एक चांडाल के वंश से भी हो सकता है, क्योंकि सिर्फ ब्राहमण होने से उसे इतने विशेष अधिकार और खास फायदे मिले हुए हैं।

मध्य युग के बाहरी हमले

पश्चिम और मध्य एशिया के उन्मादी कबीलों के द्वारा हजार साल के हमलों से शहरों के शहरों ने बलात्कार का मंज़र देखा। भारत के इस सबसे काले और अन्धकार भरे काल में स्त्रियाँ ही हमेशा से हमलों का मुख्य निशाना रही हैं। जब भी कासिम, तैमूर, ग़ज़नी और गौरी जैसे लुटेरों ने हमला किया तो इन्होंने ये सुनिश्चित किया कि एक भी घर ऐसा ना हो की जिसकी स्त्रियों का उसके सिपाहियों ने बलात्कार ना किया हो। खुद दिल्ली को ही कई बार लूटा और बर्बाद किया गया। उत्तर और पश्चमी भारत का मध्य एशिया से आने वाला रास्ता इस अत्याचार को सदियों से झेलता रहा है। भगवान् करे कि ऐसे बुरे दिन किसी भी समाज को ना देखने पड़ें। लेकिन हमारे पूर्वजों ने तो इसके साक्षात् दर्शन किये हैं। अब आप ही बताइए कि ऐसे पीड़ित व्यक्तियों के बच्चों को तथाकथित जातिप्रथा के हिसाब से “जाति से बहिष्कृत” लोगों के सिवाय और क्या नाम दे सकते हैं? लेकिन तसल्ली कि बात ये है कि ऐसी कोई बात नहीं है।

हमारे ऋषियों को ये पता था कि विषम हालातों में स्त्रियाँ ही ज्यादा असुरक्षित होती हैं। इसीलिए उन्होंने “मनु स्मृति” में कहा कि “एक स्त्री चाहे कितनी भी पतित हो, अगर उसका पति उत्कृष्ट है तो वो भी उत्कृष्ट बन सकती है। लेकिन पति को हमेशा ही ये सुनिश्चित करना चाहिए कि वो पतित ना हो।

ये ही वो आदेश था जिसने पुरुषों को स्त्रियों की गरिमा की रक्षा करने के लिए प्रेरित किया और भगवान ना करे, अगर फिर से कुछ ऐसा होता है तो पुरुष फिर से ऐसी स्त्री को अपना लेंगे और अपने एक नए जीवन की शुरुआत करेंगे। विधवाएं दुबारा से शादी करेंगी और बलात्कार की शिकार पीड़ित स्त्रियों का घर बस पायेगा। अगर ऐसा ना हुआ होता तो हमलावरों के कुछ हमलों के बाद से हम “जाति से बहिष्कृत” लोगों का समाज बन चुके होते।

निश्चित तौर से, उसके बाद वाले काल में स्त्री गरिमा और धर्म के नाम पर विधवा और बलात्कार की शिकार स्त्रियों के पास सिर्फ मौत, यातना और वेश्यावृति का ही रास्ता बचा। इस बेवकूफी ने हमें पहले से भी ज्यादा नपुंसक बना दिया।
कुछ जन्म आधारित तथाकथित ऊँची-जातियों के ठेकेदार इस बात को उचित ठहरा सकते हैं कि बलात्कार की शिकार स्त्रियाँ ही “जाति से बहिष्कृत” हो जाती हैं। अगर ऐसा है तो हम सिर्फ इतना ही कहेंगे कि ये विकृति की हद है।
जाति व्यवस्था में हिंदू कुछ भी नहीं है। यह तो वह सामाजिक प्रणाली है जो हमारे पूर्वजों के सम्मुख उपस्थित चुनौतियों की उपज है।

हां, अपने पूर्वजों का गौरव एक उत्कृष्ट विचार है। हमें अपने पूर्वजों पर तथा उनके योगदान पर गौरवान्वित होना ही चाहिए, आज हम जो भी हैं वह उनके सत्कर्मों के कारण हैं। पूर्वजों के प्रति यह गौरव ही ‘पितृ ऋण’ है। परंतु इस गौरव के लिए आगे का मार्ग यह हो कि हम अपने श्रेष्ठ कर्मों के नए कीर्तिमान स्थापित करें, न कि किसी की वंश परंपरा को लेकर उसका उपहास उड़ाएं।

कृपया इसे लेख को आप हमारी श्रृंखला की एक कड़ी के रूप में ही पढ़े और विशेषत: लेख,  http://agniveer.com/vedas-caste-discrimination/

This article is also available in English here http://agniveer.com/the-reality-of-caste-system/

Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
I am founder of Agniveer. Pursuing Karma Yog. I am an alumnus of IIT-IIM and hence try to find my humble ways to repay for the most wonderful educational experience that my nation gifted me with.

181 COMMENTS

  1. Shi hAi insaan pad likh k bhi gawaar h . cast system hona hi nhi chahiye. Chamaro se dosti kr lega kha pee lega lekin agr baat ho shadi ki toh dosti gai bhaad m. Had h kb badlenge log. Soch ko badlo toh aane wali garnation badlegi warna. BAs ladaiya hi hogi. Khte h hum Ek h kha se ek h jati vaad kbhi nhi badlega. Bhagwaan ne khubsurat chiz banai insaan jo apna acha bura khud soch sakta h lakin jhuti izaat ka dava karta h. I hate those people jo aisi soch rakt

  2. hiii…..
    aap sahi kahe rahe hai.
    i agree with you.
    waise bhi insan ko chot lag ne se lal rang ka khoon hi to nikalta hai .
    phir chahe vo kisi bhi jati ka kyu na ho …
    par hai to insan hiii….

  3. Mene 1 jain ki laoundry dekhi, Brahman ko wine pite ,vaishya ka hair cutting saloon dekha ,Non wege khate dekha,unchi jati ke ladko ko nichi jati ki ladki ke sath sote dekha, Agrawal Spa & Bueaty Parlour dekha , Thakur ko interest khate dekha, dhanwan ko nirdhan ki majburi ka fayda uthate hue dekha.
    AB AAP SAB MILKAR INKI JATI BATA DIJIYE

    • JAATI KA MATLAB SIRF OR SIRF अहंकार (EGO) SE HAI,,, KISKO JAAT PE KISIKO PARIVAR PE KISIKO APNE BACHO PE,SHARIR PAR , BEAUTY PAR, BUDDHI PAR, JINKO अहंकार HAI JAATI SIRF UNKI KE LIYE HAI,,,, ITIHAS KUCH OR THA USE MITA KAR ,TOD MARODKAR BADLA JA CHUKA HAI. ME APNI BAAT KARU TO KARAM SE VASYA HUN KATHAN SE BRAHMAN OR साहसी HU TO ME KSHATRIYA HUN,,, TO ISME JAAT KAHA SE AYI,,, HAMARI QUALITY HI HAMARI JAAT HAI. DHARAM NAHI JAAT BADLO

  4. hello me bs itna bolna chahti hu ki cast ko le kr bohot hi mazak banaya jata h aj ke tym so ap log sab casts ko khtam karo baki ke jo rull h like kisi ne bola reserbation ko leke to vo khud sab khatam ho jayega jab sab equll ho jyga. mene sab ki bate to ni. padhi ku6 logo ki padhi h nd logoko bohot problem h shudro se.

  5. brahman of 10yrs n akshtriya of 100yrs stand to each other in relation of father n son ; but between those two the brahman is father sudra can’t marry a girl from outside caste but brahman can marry in other 3castes also in addition to his own caste , similarly akshtriya n vaisya r allowed to marry in girls from lower than their own castes beside their own caste . IF 100 BRAHMANS BEG THE COW ( OF HIM ) THE GODS HAVE SAID , SHE, VERILY , BELONGS TO WHO IS LEARNED
    .

  6. jatiwad ke name se logo me matbhed sabse pahle aata h log apne aapko aalg aalg jati ka batata h or kahta hum ese h lekin wesa bilkul nahi h agar history dekhe to hum sab ek hi insan ki den h jo bahut pahle ho chuka h jese jese jansankhya badi wese hi bantwara hota chala gaya or apne aapko ko aalg aalg jati ka batane lag gaye

  7. JAATI KA MATLAB SIRF OR SIRF अहंकार (EGO) SE HAI,,, KISKO JAAT PE KISIKO PARIVAR PE KISIKO APNE BACHO PE,SHARIR PAR , BEAUTY PAR, BUDDHI PAR, JINKO अहंकार HAI JAATI SIRF UNKI KE LIYE HAI,,,, ITIHAS KUCH OR THA USE MITA KAR ,TOD MARODKAR BADLA JA CHUKA HAI. ME APNI BAAT KARU TO KARAM SE VASYA HUN KATHAN SE BRAHMAN OR साहसी HU TO ME KSHATRIYA HUN,,, TO ISME JAAT KAHA SE AYI,,, HAMARI QUALITY HI HAMARI JAAT HAI. DHARAM NAHI JAAT BADLO, MATLAB EGO KO DUR KARO KHUD SE ,, HAM SAB EK HI GOD KE BACHE HE

  8. Jati pratha ek sachhai hai…..hindu dhram janam pe aadharait hai….HINDU hone k liea hindu kul mai hi janam lena padta hai………or jati to sachhai hai bhagwan RAM chhatriya they…or bhagwan shri krishna ek Gawaal……mahabharat, Ramayan or gita mai bhi jati pratha ka warnan hai…….or ye pura system janam ke base par aadharit hai……..even Ohio university ki theory(LEADERS ARE BORN THEY CANNOT BE CREATED) bhi isi pe based hai……ha or ek baat DHARAM PE KABHI SAWAAL NAHI UTHATE……..jaise daily routine follow karte hai waise hi dharam ko follow karna chayihea……….or upper aap ne jo bakwas lihka hai wo manipulated history padhane ka natija hai………

  9. सबसे पहले अपने दिमाग को जांच लो फिर हिन्दुओ के बारे में लिखना समझ आया अपने पिता जी से पूछ जाकर की तू हिन्दू ही है न भड़वा साला

    • भाई अखिल सिंह जी, आपकी मीठी वाणी, उच्च स्तरीय भाषा संवाद, सभ्यक व सुसंकृत बोली को नमन! हिंदुत्व का नाम बहुत अच्छी उचाईयों तक ले जा रहे हो भाई|

      मेरी ओर से आपको साधूवाद|

  10. जिस महापुरुष ने अपने ग्रंथों को रखने के लिए ‘राजगृह’ जैसा विशाल भवन बनवाया था, उसी ने २५ दिसंबर १९२७ के दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?

    जिस महापुरुष के पास लगभग तीस हज़ार से भी अधिक मूल्य की निजी पुस्तकें थीं, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?

    जिस महापुरुष का पुस्तक-प्रेम संसार के अनेक विद्वानों के लिए नहीं, अनेक पुस्तक-प्रकाशकों और विक्रेताओं तक के लिए आश्चर्य का विषय था, उसी ने एक दिन एक पुस्तक जला दी थी. आखिर क्यों?

    उस पुस्तक का नाम क्या था?

    उसका नाम था ‘मनु-स्मृति’. आइये हम जाने कि वह क्यों जलाई गयी?

    इस पुस्तक में ऐसा हलाहल विष भरा है कि जिसके चलते इस देश में कभी राष्ट्रीय एकीकरण का पौधा कभी पुष्पित और पल्लवित नहीं हो सकता!

    वैसे तों इस पुस्तक में सृष्टि की उत्पत्ति की जानकारी भी दी गयी है लेकिन असलियत यह सब अज्ञानी मन के तुतलाने से अधिक कुछ भी नहीं हैं.

    मनु स्मृति की इतने बढ़-चढ कर ज्ञान की डींगे बघारी गयी है उसका असली उद्देश्य जातिवाद का निर्माण और स्त्री को निंदनीय तथा निम्न बताना भर है. इसमे निहित आदेश निर्लज्जता से ब्राह्मणों के हित में हैं.

    कहने वाले तो कहते हैं कि मनुस्मृति और उसकी आज्ञाएं कब कि मर चुकी हैं, अब गड़े मुर्दे उखाडने से क्या फायदा?

    लेकिन सच पूछे कि क्या वाकई मनुस्मृति मर चुकी है.

    ऐसा नहीं हैं, आज भी विश्वविद्यालयों में मनुस्मृति पाठ्यपुस्तक के रूप में पढाई जाती है. जयपुर हाईकोर्ट के परिसर में आज भी मनु की मूर्ति भारत के संविधान को चिढ़ाते स्थित है.

    यूँ तो आज नये नए कानून बन गए हैं परन्तु दुःख कि बात है कि आज भी वास्तव में हम मनु स्मृति से ही संचालित हो रहे हैं.न जाने हम कब इस कब्र से बाहर निकलेंगे.

    प्रश्न है कि डॉ बाबासाहेब आम्बेडकर ने आखिर यही पुस्तक क्यों जलाई?

    इसका उत्तर साफ़ है कि जिस कारण महात्मा गाँधी ने अनगिनत विदेशी कपड़े जलवाये थे. धर्मशास्त्र माने जाने वाले इस कुकृत्य को नष्ट करने के लिए क्या इसे जलाना अनिवार्य नहीं था?

    कहने वाले कहते हैं कि आज मनुस्मृति को कौन जानता और मानता है, इसलिए अब मनु स्मृति पर हाथ धो कर पड़ने से क्या फायदा- यह एक मरे हुए सांप को मारना है. हमारा कहना है कि कई सांप इतने जहरीले होते हैं कि उन्हें सिर्फ मारना ही पर्याप्त नहीं समझा जाता बल्कि उसके मृत शरीर से निकला जहर किसी को हानि न पहुंचा दे इसलिए उसे जलाना भी पड़ता है.

    वैसे मनु स्मृति जैसी घटिया किताब कि तुलना बेचारे सांप से करना मुझे अच्छा नहीं लग रहा. बेचारे सांप तों यूँ ही बदनाम हैं, और अधिकाँश तों यूँ ही मार दिए जाते हैं. फिर भी सांप के काटने से एकाध आदमी ही मरता हैं जबकि मनु स्मृति जैसे ग्रन्थ तों दीर्घकाल तक पूरे समाज को डस लेते हैं. क्या ऐसे कृतियों की अंत्येष्टि यथासंभव किया जाना अनिवार्य नहीं हैं?

    वैसे मनुस्मृति के अलावा भी हिंदुओं की तमाम स्मृतियाँ और ग्रन्थ में शूद्रों (आज के ओबीसी और दलित) तथा महिलाओं को हेय दृष्टि से देखते हुए उन्हें ताडन का अधिकारी बताती है. बाबासाहेब ने १९२७ में जो मनुस्मृति जलाई थी वह अकेली एक पुस्तक से घृणा होने के कारण नहीं, बल्कि इसे अन्य तमाम स्मृतियों और किताबों का प्रतिनिधि ग्रन्थ मानकर की थी. लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि भारत सरकार आज तक इस राष्ट्र-विरोधी किताब पर प्रतिबन्ध लगाकर इसे जब्त नहीं कर रही.

    मनुवादी व्यवस्था और शुद्र

    मनुवादी अथवा ब्राह्मणवादी व्यवस्था के अधीन रामचरित मानस , व्यास स्मृति और मनु स्मृति प्रमाणित करती है कि भारत का समस्त पिछड़ा वर्ग एवं अछूत वर्ग शूद्र और अतिशूद्र कहलाता है जैसे कि तेली , कुम्हार , चाण्डाल , भील , कोल , कल्हार , बढई , नाई , ग्वाल , बनिया , किरात , कायस्थ , भंगी , सुनार इत्यादि । मनुविधान अर्थात मनुस्मृति में उक्त शूद्रों के लिए मनु भगवान द्वारा उच्च संस्कारी कानून बनाये गए हैं जिनको पढ़ कर उनका अनुसरण करने से उक्त समाज के सभी लोगों का उद्धार हो जायेगा और हमारा भारत पुनः सोने की चिड़िया बन जायेगा । आपके समक्ष मनु भगवान के अमृतमयी क़ानूनी वचन पेश हैं –
    -जिस देश का राजा शूद्र अर्थात पिछड़े वर्ग का हो , उस देश में ब्राह्मण निवास न करें क्योंकि शूद्रों को राजा बनने का अधिकार नही है ।
    -राजा प्रातःकाल उठकर तीनों वेदों के ज्ञाता और विद्वान ब्राह्मणों की सेवा करें और उनके कहने के अनुसार कार्य करें ।
    -जिस राजा के यहाँ शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है ।
    -ब्राह्मण की सम्पत्ति राजा द्वारा कभी भी नही ली जानी चाहिए , यह एक निश्चित नियम है , मर्यादा है , लेकिन अन्य जाति के व्यक्तियों की सम्पत्ति उनके उत्तराधिकारियों के न रहने पर राजा ले सकता है ।
    -नीच वर्ण का जो मनुष्य

    • ye sahi kaha gaya h ki ja chudra naya karta ho जिस राजा के यहाँ शूद्र न्यायाधीश होता है उस राजा का देश कीचड़ में धँसी हुई गाय की भांति दुःख पाता है ।

    • जो अपने बाप को छोड़कर पडोसी को अपना बाप कहता हो उसका ज्ञान कैसा होगा यह आपसे सिखने की जरुरत नहीं है विदेशियों की शिक्षा प्राप्त डरपोक कायर मैंने आंबेडकर जैसा कही नहीं देखा जहा तक मई जानतहुँ मनुस्मृतिके बारे में मेरे हिसाब से आपने एक भी शालीन भाषा का प्रोग नहीं किया इसलिए जैसे को तैसा मेरे एक भी सवाल का जवाब जिस किसी आंबेडकर के नाजायज औलाद में दम है दे कर दिखाए आंबेडकर के डरपोक और दलाल होने का प्रमाण मई दूंगा जिस कोर्ट में बुलाना है जहा बुलाना है मेरा नाम शैलेष कुमार ९५९४०२३२१३ मनुस्मृति जैसा संविधान आंबेडकर का बाप, भी नहीं बना सकता कॉपी भी सवाल हो कॉल कर सकते है या व्हाट्सप्प कर सकते है यह मेरा अपना लिखा है कही से कॉपी पेस्ट नहीं है अगर सच में आंबेडकर की औलाद है तो जवाब देना

      60 साल में 99 संशोधन भारतीय संविधान में करने पड़े ऐसा दुनिया के किस संविधान में नहीं हुआ है ऐसा तभी संभव है जब कोई बहुत बड़ी (कमी ) खराबी हो इस बात को कोई भी झुटला नहीं सकता की भारत का संविधान दुनिया का सबसे घटिया संविधान है हम बड़े गर्व से कहते है की भारत का संविधान अमेडकर की देंन है यह कहना बिलकुल गलत है नेहरू को तो अपनी योग्यता पर भी विश्वास नहीं था इसलिए वो संविधान का प्रारूप एक ब्रिटिश विद्वान सर ईवोर जैनिन से करवाना चाहता था लेकिन गाँधी जी के विरोध पर उसने ६ कार्य करनी समिति का गठन किया और अपनी इस कमिटी के माध्यम से किया और वि. येन . राओ ने २७ अक्टूबर १९४७ को भारत के संविधान का प्रारंभिक प्रारूप रखा जिसमे ४४३ अनुच्छेद और १३ अनुसूचियाँ थी बाद में इसी पर डिबेट हुआ संविधान सभा के लिए नेहरू द्वारा जिन ६ कार्यकारिणी समितियों का गठन किया गया था उसमे 1)असफ अली ,2) के.एम्. मुंशी ,3) के. टी. शाह, 4) के. शांताराम,5) हुमायु कबीर, 6) डी. आर .गाडगीळ ये सभी लोगो ने संविधान को बनाया और उसके बाद जो संविधान निकलकर आया वो आंबेडकर की नहीं नेहरू की देंन थी आंबेडकर को बाद में दिया गया फाइनल शेप देने के लिए
      मुर्ख लोग कहते है की हमारे संविधान में बड़े बड़े देशो से बड़ी बड़ी चीजे ले ली गयी जरा देखिये क्या लिया पहला हमने हमारा पार्लिअमेंटरी सिस्टम ब्रिटेन से लिया गया जिसके हम गुलाम थे ,
      दूसरा मौलिक अधिकार , संविधान की सर्वोच्चता , संघवाद में उपराष्ट्रपति ,वित्तीय आपदा ,ये सब हमने अमेरिका के संविधान से लिया और अमेरिका का संविधान क्या है ब्रिटिशर्स जिसने जाकर वह से स्पेनिस लोगो को भगा दिया था और यूरोपियन ने जाकर वह पर कब्ज़ा कर लिया था ये ब्रिटेन का ही उपनिवेश तो था अमेरिका ब्रिटिश मानसिकता के लोगो ने ही तो स्पेनिस लोगो को भगा दिया था अमेरिका का वास्तविक मूलनिवासी जो की रेड इंडियन है वो आज भी अमेरिका में नहीं है
      तीसरा कनाडा ब्रिटिश उपनिवेश चौथा आयरलैंड ब्रिटिश उपनिवेश , ऑस्ट्रेलिया ब्रिटिश उपनिवेश , पश्चिम जर्मन ब्रिटिश उपनिवेश हमने क्या बहार से ले लिया हमने सब कुछ वही से लिया जैसा की ब्रिटिश की सरकार चाहती थी रही भारत के संविधान के अंदर की बात तो
      दुनिया के सबसे ख़राब संविधान पर सवाल मैं संविधान की दुहाई देने वाले कानून के दलालो से पूंछता हु जिसके पास संविधान का ज्यादा ज्ञान हो वो जवाब दे /
      १) संविधान के किस आर्टिकल में भारत को राष्ट्र कहकर सम्बोधित किया गया है ? नहीं किया गया तो क्यों ?
      २) हमारे भारतीय संविधान का लीगल फाॅर्स (विधिक शक्ति) कहाँ /क्या है ?
      ३) भारत को डोमिनियन स्टेट कहा गया है संविधान में तो भारत किसका डोमिनियन स्टेट है ?
      ४) अगर हम सच में आजाद है तो भारतीय संविधान के अनुच्छेद ३३३ के तहत आज भी हमारे लोकसभा में दो अंग्रेजो को रखने की बाध्यता क्यों है ? अर्थात दो अंग्रेज सांसद राष्ट्रपति नामित करेगा (रखेगा ) क्यों ?
      ५) भारतीय संविधान के किस आर्टिकल में राजनैतिक पार्टियों के गठन का प्रावधान है ?
      ६) कॉमन वेल्थ कंट्री में जैसे श्रीलंका , पाकिस्तान , ब्रिटैन में हाई कमिश्स्नेर ( HIGH COMMISSIONOR ) पोस्ट करते है और जापान , रूस , चीन, में राजदूत (AMBESSDOR ) पोस्ट करते है क्यों ?
      ७) नागरिकता अधिनियम सेक्शन १०/११ के अनुसार कोम्मोंवेल्थ कंट्री का कोई भी नागरिक उस नागरिकता के आधार पर भारत के अंदर कामनवेल्थ कंट्री की नागरिकता रखता है क्यों ? क्यों आज तक भारत के संविधान में नागरिक शब्द को डिफाइन (परिभाषित ) नहीं किया गया ?
      ८) जनरल क्लॉज़ेज़ एक्ट का सेक्शन ३ सब क्लॉज़ ६ के अनुसार भारत के अंदर जहा भी केंद्र सर्कार के कानून लागु होंगे वो सभी ब्रिटिश उपनिवेश के अंतर्गत मन जायेगा क्यों ?
      ९) संसद का सदस्य होने के लिए कुछ तो है की आदमी आदमी पागल नहीं होना चाहिए दिवालिया नहीं होना चाहिए भारत का नागरिक होना चाहिए कोई योग्यता होनी चाहिए लेकिन मंत्री होने की कोई योग्यता नहीं है ,कोई क्वालिफिकेशन नहीं है क्यों ?
      १०) भारतीय संविधान की अनुसूची ८ में जिन २२ भारतीय भाषाओ का उल्लेख है उसमे अंग्रेजी भाषा कही नहीं है फिर भी सारे सरकारी कामकाज और कानूनी करवाई अंग्रेजी में क्यों होते है ?
      ११) एक और सवाल हमारा ये देश संविधान से चलता है या संवैधानिक विधि से चलता है ?
      क्युकी संविधान के अंदर बहुत सी ऐसी चीजे नहीं है जो हमारे देश की सर्कार को चला रही है
      12) जैसे मंत्री का त्यागपत्र मुझे यह बताये की संविधान के किस अनुच्छेद में मंत्री के त्यागपत्र देने का अधिकार है ?
      13) जैसे की बिना सदन की सदस्यता के प्रधानमंत्री बना देना किस अनुच्छेद में यह है ?
      14) जैसे की मंत्री का सदन के अंदर बैठकर मत देना लेजिस्लेचर अलग है एग्जीक्यूटिव अलग है इसकी खिचड़ी कैसे बना दी जाती है कंस्टीटूशन में कहा PROVISION है की मंत्री सदन के अंदर बैठकर सांसदों के साथ मत देगा और बिल पास करेगा ?
      15) जैसे की न्यायमूर्ति और न्ययाधिपतियो में लॉ मिनिस्टर (कानून मंत्री ) का हस्तक्षेप जब जुडिशरी (न्याय व्यवस्था) इंडिपेंडेंट (स्वतंत्र) है तो राष्ट्रपति और सी. जी. आयी. मिलकर के न्यायाधीशों की नियुक्ति कर रहे है कंस्टीटूशन में क्लियर कट प्रोविजन है तो प्रधानमंत्री और कानूनमंत्री हाउस फाइल जाने की जरुरत क्यों पड़ती है? अप्प्रूवाल के लिए इसका सीधा मतलब है कार्यपालिका के आधीन न्यायपालिका को रखना चाहते है
      16) जैसे की हमारे यहाँ दो बार उप प्रधानमंत्री हुए है कंस्टीटूशन में कहा प्रोविजन है की उप प्रधानमंत्री का पद होगा और उसके लिए भी आदमी रखा जायेगा ?
      17) जैसे नेता विरोधी दल कहा है भाई संविधान में ?
      18) अल्पमत पे सर्कार को गिरा देना कहा संविधान में ऐसा प्रोविजन है? की बहुमत वाली सर्कार बनाएगा उसके लिए चुनाव होंगे और अल्पमत हो जाता है तो १ वोट के आभाव में सर्कार गिरा दी जाएगी
      19) जैसे शून्यकालीन सत्र को चलना शून्यकालीन सत्र का प्रोविजन कहा संविधान में है ?
      20) जैसे की सांसदों के वेतन और भत्ते का निर्धारण स्वयं सांसद करेंगे का प्रोविजन कहा संविधान में है ?
      यह तो कुछ भी नहीं अभी तो और भी कई सवाल है पहले इतना ही काफी है

    • भाई पहले तो ये जान लो की हमारी किसी भी वेद में किसी भी जाती का बहिष्कार नहीं किया गया ये तो बाद के लोगो ने खुदको श्रेष्ठ कहलाने क लिए बताया जैसे प्रजापति लेकिन वो सब छोड़ो दूसरी चीज़ किसी भी धर्म की किसी भी कृति में सबसे श्रेष्ठ इंसानियत को बताया ह न की जाती को जाती विवरण इसलिए किया था ताकि कार्य बोध हो न की जाती बोध समय समय पर इसका फायदा लोगों ने अपने निजीकरण के लिए किया गाँधी जी ने गोलमेज़ सम्मलेन के दौरान बाबा आंबेडकर के हाथ से पानी लेने से मन कर दिया था क्यों
      क्यूंकि वो नीची जाती के थे और खुद अश्पृश्यता और छुआछूत की लड़ाई लड़ते थे इसी वाकये के बाद बाबा ने अपने संग्रहालय को ख़ाक कर दिया था ईश्वर ने सिर्फ इंसान बनाया था वर्ण व्यवस्था की थी
      जाट पात तो ढकोसले ह और ये हर जगह ह हिन्दुओ में मुस्लिमो में सिया सुन्नी पुर्तगाल यहूदी ईसाई उपरवाले ने सिर्फ दुनिया बनायीं और इंसान जात पात द्वेष ईर्ष्या सब इंसान ने खुद गधे ह और थोप दिया कभी धर्म के ठेकेदारों क नाम कभी भगवान् के नाम आये दिन बम ब्लास्ट ह्यूमन ट्रैफिकिंग और न जाने क्या क्या दुनिया में हो रहा ह तो क्या सब का दोष किताबो को देते रहोगे खुद के दिमाग नहीं है लोग तो कुएं में भी कूदने को बोलते ह क्यों नहीं कूद जाते जानते ह की मर जायेंगे लेकिन बात हो की इस चीज़ को करने से वर्चस्वा तुम्हारा और तुम्हारी आने वाली पीढ़ी का होगा तो करने लग जायेंगे अब आतंकियों से पूछो की किस किताब में लिखा ह की किसी को मारो लेकिन वो मारते ह याद रखो शक नफरत का बीज और हथियार का वार किसी को नहीं पहचानता चाहे अपना हो या पराया तो इन सब चीज़ो से देर रहे और खुद की बुद्धि का प्रयोग करें नहीं कर सकते तो किसी भी मुर्ख की बातो को तो बिलकुल न सुने और सुने तो याद न रखें माँ बाप कहते ह ये पढ़ो १२, ग्रेजुएशन तक करते हो फिर वही चुनते ह न जो पसंद होता ह तो उसी तरह सुनो सबकी करो दिल की
      अब मैं अपने शब्दों को विराम देता हु क्यूंकि ऑफिस में हु जिन भाई साहब ने ये वेबसाइट बनायीं ह वो उनके निजी विचार ह ये इंडिया ह यहाँ राहुल भाई अगर आलू से सोना बना सकते ह तो इन भाई को भी अयोग्य संत मिला होगा तो लिख दिया उनके सफ्ज़ो को वेबसाइट पे उतार दिया और इंडिया मूर्खो का देश भी ह कोई कुछ अलग करे तो उसके पीछे हो लेते ह.

      जय श्री राम
      जय महाकाल
      जय हिन्द जय भारत !

  11. Agar kuchh badlana hai to shuruvat khud se karni padti hai… history ka chhodo …jativad galat hai isko khtam kare..
    Lekin kare kon ?????

  12. Sab bakwas likha hai kon hai ye pagal bevkoof jo man m aaya likh diya .
    Phle vishunu puran pdo usme diya h k parshuram ne jin kshatriyo ka nash kiya tha bo yadav kshatriye the pr bo khtm nhi ho paaye the fir aage chl ke usi yadav kshatriye vansh m shri krishna ka janm hua tha or unke aage ki generayion aaj bi hai yha or bhi hai… Bakawass km kiya kro

  13. Abe Agniveer ke laudon tum sab ka dimag sahi nahi hai lagata hai BRAHMANO ke baare mein kya bol rahe ho tum sab saale how mein reh kar baat kar samjhe tum log ek ek ko kaat ke phek Diya jayege jaban sambhal ke baat kar BRAHMANO ke baare mein samjhe tum log aur rahi baat Bharat ke sanvidhan ki toh mujhe isse nafrat hai aur main isse nahi manta isiliye juban sambhal ke baat kar nahi toh sar kat ke phek Diya jayege nale mein samjha jalne ke liye samshan bhi nahi pahunchega tum log ka sharir saare suar ke bacche ambedkar madharchod
    Jai Shri Ram
    Jai Parshuram

    • परमपिता परमेश्वर ने जो कुछ बनाया वो सब उसके अंश है वो परमेश्वर अपने अंश से भेदभाव नहीं करता …..

      और रही बात वर्णव्यस्था की तो ये वर्णव्यस्था महर्षि मनु ने बनायीं उन्होंने अपनी संतानों को वर्णो में बात दिया ……. किन्तु जातिव्यवस्था कुछ गधे लालची लोगो की देन है

  14. Chorichod ka koi chmaar h yo jo bhamna ke bare me asa likha h sale ko ghnta bhi gyaan na h bss likh diya bc adhura gyaan hmesa nasverdk hi hota h

  15. Me mitau ga jatiwad pyar ko jite jarur dilau ga koi mare sath aay ya na aay suru me keru ga kyo ki ish duniya me sabh matlabi logh he jabh tak inke uper nahi aati tabh tak in sabh ki aankh nahi khulti ager koi ladki kishi dushri jati ke ladke se sadi ker le to unki family ka mezzak udan ke liya sabh teyar rahte he lakin koi galt kam ho reha he us nahi rok sekt ager koi mare shat aana chahta he to mujh se contact ker le 6378607910

  16. Shi hAi insaan pad likh k bhi gawaar h . cast system hona hi nhi chahiye. Chamaro se dosti kr lega kha pee lega lekin agr baat ho shadi ki toh dosti gai bhaad m. Had h kb badlenge log. Khte h hum Ek h kha se ek h jati vaad kbhi nhi badlega. Bhagwaan ne khubsurat chiz banai insaan jo apna acha bura khud soch sakta h lakin jhuti izaat ka dava karta h. I hate those people jo aisi soch rakte h

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