निज प्राण प्रिया की आँखों के प्यारे मोहन मेहमान हुए
रह गयी सती चित्रित सी जब सम्मुख प्राणों के प्राण हुए
था दिनकर के आ जाने से वह भवन कमल सम खिला हुआ
शुभ द्युति के उमड़ रहे सोते, अणु अणु का मुख था मिला हुआ
बेसुध कानों ने पंकज बन अलि मुख से शब्द सुधा पाली
विस्मित अँखियाँ रस की प्यासी रस में डूबी रस से खाली
था प्रश्न रुक्मिणी के मन में किस विध प्रियतम का मान करूँ
घर आये निज परदेसी का कर तुलादान सम्मान करूँ
झट तुला मंगाई सोने की धर रतन दिए उसमें लाकर
पलड़ा था स्वर्ण तुला का क्या था एक सुनहरा रत्नाकर
थे मणि माणिक हीरे पन्ने नीलम पखराज भरे उसमें
बन साज दूसरे पलड़े का बाँके घनश्याम लगे हंसने
थी मुग्ध रुक्मिणी भर भरकर शुभ थाल मोतियों के लाती
हाँ रत्नराज हों सफल आज कह मणि मणिका मुख सहलाती
कर खाली गृह भण्डार राज्य के रत्नागार उधार लिए
निज तन के भूषण पर्वत से पलड़े में पर्वत बना दिए
विस्मय से हार रही रानी प्रिय का पलड़ा न उठा न उठा
इन भारी रत्नागारों से हल्का सांवर न तुला न तुला
थक गयी रुक्मिणी ला लाकर हा हा कठोर मणि थे कितने
कर कमलों पर दीखे छाले थे स्वर्ण तुला पर मणि जितने
ध्रुव देख तुला के कांटे को अबला की छाती बिंधती थी
दृग गढ़े हुए थे धरणी में सांवर से आँख न मिलती थी
रह गया अधूरा तुलादान कुछ लाज हुई कुछ रोष हुआ
झट लगी पटकने मणियों को यह काँकरियों का कोष हुआ
झर रहा पसीना था तुषार रह रह कर लाल कपोलों पर
वह ओले गिरते शोलों पर वह शोले लपके ओलों पर
बेबस अबला की आँखों से दो आँसू बरबस टपक पड़े
थी दो बूंदों की महिमा क्या, अचल सांवरे उचक पड़े
थे एक एक आँसू में मोहन आभा के मिस घुले हुए
थे पलक पलक के कांटे पर मोहन आँसू बन तुले हुए
अब एक नहीं चटपट अनेक हो जाते तुलादान क्षण क्षण
अनछिदे मोतियों ने आँखों के तोल दिए लाखों मोहन
– पंडित चमूपति
Agniveer
Lacks mettle…Not good Sir.
OM
Chaste love depicted in chaste Hindi, an appropriate gift on Janmashtami.
Nice !!!
इतना वजन रखने के बावजूद भी कृष्ण तुले क्यूँ नहीं ? इससे हम कृष्ण को क्या समझे महापुरष या अवतार ?
shri krishnji ki patni rukmani ji ke alava satybhama adianek patniyo ko kyo joda jata hai ! aur radha ka astitv kya hai ? iske vishay me ham jankarichahte hai 16108 raniya kya thi ? kya inhone bhi patni dharm nibhaya tha !
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