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वैदिक ईश्वर

“वह तेजस्वियों का तेज, बलियों का बल, ज्ञानियों का ज्ञान, मुनियों का तप, कवियों का रस, ऋषियों का गाम्भीर्य और बालक की हंसी में विराजमान है। ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। वह शब्द नहीं भाव पढता है, होंठ नहीं हृदय देखता है, वह मंदिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, प्रेम करने वाले के हृदय में रहता है। बुद्धिमानों की बुद्धियों के लिए वह पहेली है पर एक निष्कपट मासूम को वह सदा उपलब्ध है। वह कुछ अलग ही है। पैसे से वह मिलता नहीं और प्रेम रखने वालों को कभी छोड़ता नहीं। उसे डरने वाले पसंद नहीं, प्रेम करने वाले पसंद हैं। वह ईश्वर है, सबसे अलग पर सबमें रहता है।

यही वैदिक हिन्दू धर्म है। इसी धर्म पर हमें गर्व है।”

टिपण्णी : यहाँ ‘ईश्वर’ से हमारा तात्पर्य है “परम सत्ता ” न कि ‘देवता’ । ‘देवता’ एक अलग शब्द है जिसका अशुद्ध प्रयोग अधिकतर ‘परमसत्ता’ के लिए कर लिया जाता है। हालाँकि ईश्वर भी एक ‘देवता’ है। कोई भी पदार्थ – जड़ व चेतन – जो कि हमारे लिए उपयोगी हो व सहायक हो, उसे ‘देवता’ कहा जाता है । किन्तु उसका अर्थ यह नहीं है कि हर कोई ऐसी सत्ता ईश्वर है और उसकी उपासना की जाये । कोई भ्रम न हो इसलिए इस लेख में हम ‘ईश्वर’ शब्द का प्रयोग करेंगे ।

वह परम पुरुष जो निस्वार्थता का प्रतीक है, जो सारे संसार को नियंत्रण में रखता है , हर जगह मौजूद है और सब देवताओं का भी देवता है , एक मात्र वही सुख देने वाला है । जो उसे नहीं समझते वो दुःख में डूबे रहते हैं, और जो उसे अनुभव कर लेते हैं, मुक्ति सुख को पाते हैं । (ऋग्वेद 1.164.39)

प्रश्न : वेदों में कितने ईश्वर हैं ? हमने सुना है कि वेदों में अनेक ईश्वर हैं ।

उत्तर : आपने गलत स्थानों से सुना है । वेदों में स्पष्ट कहा है कि एक और केवल एक ईश्वर है । और वेद में एक भी ऐसा मंत्र नहीं है जिसका कि यह अर्थ निकाला जा सके कि ईश्वर अनेक हैं । और सिर्फ इतना ही नहीं वेद इस बात का भी खंडन करते हैं कि आपके और ईश्वर के बीच में अभिकर्ता (एजेंट) की तरह काम करने के लिए पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरूरत होती है ।

मोटे तौर पर यदि समानता देखी जाये तो :

इस्लाम में शहादा का जो पहला भाग है उसे लिया जाये : ला इलाहा इल्लल्लाह (सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह के सिवाय कोई और ईश्वर नहीं है ) और दूसरे भाग को छोड़ दिया जाये : मुहम्मदुर रसूलल्लाह (मुहम्मद अल्लाह का पैगम्बर है ), तो यह वैदिक ईश्वर की ही मान्यता के समान है ।

इस्लाम में अल्लाह को छोड़कर और किसी को भी पूजना शिर्क (सबसे बड़ा पाप ) माना जाता है । अगर इसी मान्यता को और आगे देखें और अल्लाह के सिवाय और किसी मुहम्मद या गब्रेइल को मानाने से इंकार कर दें तो आप वेदों के अनुसार महापाप से बच जायेंगे ।

प्रश्न: वेदों में वर्णित विभिन्न देवताओं या ईश्वरों के बारे में आप क्या कहेंगे ? 33 करोड़ देवताओं के बारे में क्या?

उत्तर:

1. जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है जो पदार्थ हमारे लिए उपयोगी होते हैं वो देवता कहलाते हैं । लेकिन वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि हमे उनकी उपासना करनी चाहिए । ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है , सिर्फ और सिर्फ उसी की ही उपासना करनी चाहिए ।

2. वेदों में 33 कोटि का अर्थ 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 प्रकार (संस्कृत में कोटि शब्द का अर्थ प्रकार होता है) के देवता हैं । और ये शतपथ ब्राह्मण में बहुत ही स्पष्टतः वर्णित किये गए हैं, जो कि इस प्रकार है :

8 वसु (पृथ्वी, जल, वायु , अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र ), जिनमे सारा संसार निवास करता है ।

10 जीवनी शक्तियां अर्थात प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त , धनञ्जय ), ये तथा 1 जीव ये ग्यारह रूद्र कहलाते हैं

12 आदित्य अर्थात वर्ष के 12 महीने

1 विद्युत् जो कि हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है

1 यज्ञ अर्थात मनुष्यों के द्वारा निरंतर किये जाने वाले निस्वार्थ कर्म ।

शतपथ ब्राहमण के 14 वें कांड के अनुसार इन 33 देवताओं का स्वामी महादेव ही एकमात्र उपासनीय है । 33 देवताओं का विषय अपने आप में ही शोध का विषय है जिसे समझने के लिए सम्यक गहन अध्ययन की आवश्यकता है । लेकिन फिर भी वैदिक शास्त्रों में इतना तो स्पष्ट वर्णित है कि ये देवता ईश्वर नहीं हैं और इसलिए इनकी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

3. ईश्वर अनंत गुणों वाला है । अज्ञानी लोग अपनी अज्ञानतावश उसके विभिन्न गुणों को विभिन्न ईश्वर मान लेते हैं ।

4. ऐसी शंकाओं के निराकरण के लिए वेदों में अनेक मंत्र हैं जो ये स्पष्ट करते हैं कि सिर्फ और सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसके साथ हमारा सम्पर्क कराने के लिए कोई सहायक, पैगम्बर, मसीहा, अभिकर्ता (एजेंट) नहीं होता है ।

यह सारा संसार एक और मात्र एक ईश्वर से पूर्णतः आच्छादित और नियंत्रित है । इसलिए कभी भी अन्याय से किसी के धन की प्राप्ति की इच्छा नहीं करनी चाहिए अपितु न्यायपूर्ण आचरण के द्वारा ईश्वर के आनंद को भोगना चाहिए । आखिर वही सब सुखों का देने वाला है ।यजुर्वेद 40.1

ऋग्वेद 10.48.1

एक मात्र ईश्वर ही सर्वव्यापक और सारे संसार का नियंता है । वही सब विजयों का दाता और सारे संसार का मूल कारण है । सब जीवों को ईश्वर को ऐसे ही पुकारना चाहिए जैसे एक बच्चा अपने पिता को पुकारता है । वही एक मात्र सब जीवों का पालन पोषण करता और सब सुखों का देने वाला है ।

ऋग्वेद 10.48.5

ईश्वर सारे संसार का प्रकाशक है । वह कभी पराजित नहीं होता और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होता है । वह संसार का बनाने वाला है । सभी जीवों को ज्ञान प्राप्ति के लिए तथा उसके अनुसार कर्म करके सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उन्हें ईश्वर की मित्रता से कभी अलग नहीं होना चाहिए ।

ऋग्वेद 10.49.1

केवल एक ईश्वर ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक ईश्वर को छोड़कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

यजुर्वेद 13.4

सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है । एक वही पृथ्वी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है । वह स्वयं सुखस्वरूप है । एक मात्र वही हमारे लिए उपासनीय है ।

अथर्ववेद 13.4.16-21

वह न दो हैं, न ही तीन, न ही चार, न ही पाँच, न ही छः, न ही सात, न ही आठ, न ही नौ , और न ही दस हैं । इसके विपरीत वह सिर्फ और सिर्फ एक ही है । उसके सिवाय और कोई ईश्वर नहीं है । सब देवता उसमे निवास करते हैं और उसी से नियंत्रित होते हैं । इसलिए केवल उसी की उपासना करनी चाहिए और किसी की नहीं ।

अथर्ववेद 10.7.38

मात्र एक ईश्वर ही सबसे महान है और उपासना करने के योग्य है । वही समस्त ज्ञान और क्रियाओं का आधार है ।

यजुर्वेद 32.11

ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है । कोई भी स्थान उससे खाली नहीं है । वह स्वयंभू है और अपने कर्मों को करने के लिए उसे किसी सहायक, पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरुरत नहीं होती । जो जीव उसका अनुभव कर लेते हैं वो उसके बंधनरहित मोक्ष सुख को भोगते हैं ।

वेदों में ऐसे असंख्य मंत्र हैं जो कि एक और मात्र एक ईश्वर का वर्णन करते हैं और हमें अन्य किसी अवतार, पैगम्बर या मसीहा की शरण में जाये बिना सीधे ईश्वर की उपासना का निर्देश देते हैं।

प्रश्न: आप ईश्वर के अस्तित्व को कैसे सिद्ध करते हैं ?

उत्तर: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों के द्वारा ।

प्रश्न: लेकिन ईश्वर में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं घट सकता, तब फिर आप उसके अस्तित्व को कैसे सिद्ध करेंगे ?

उत्तर:

1. प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट रूप से जाना गया निर्भ्रांत ज्ञान । परन्तु यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि ज्ञानेन्द्रियों से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं ।

उदाहरण के लिए जब आप इस लेख को पढ़ते हैं तो आपको अग्निवीर के होने का ज्ञान नहीं होता बल्कि पर्दे (कंप्यूटर की स्क्रीन ) पर कुछ आकृतियाँ दिखाई देती हैं जिन्हें आप स्वयं समझकर कुछ अर्थ निकालते हैं । और फिर आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस लेख को लिखने वाला कोई न कोई तो जरूर होगा और फिर आप दावा करते हैं कि आपके पास अग्निवीर के होने का प्रमाण है । यह “अप्रत्यक्ष” प्रमाण है हालाँकि यह “प्रत्यक्ष” प्रतीत होता है ।

ठीक इसी तरह पूरी सृष्टि, जिसे कि हम, उसके गुणों को अपनी ज्ञानेन्द्रियों से ग्रहण करके, अनुभव करते हैं, ईश्वर के अस्तित्व की ओर संकेत करती है ।

2. जब किसी इन्द्रिय गृहीत विषय से हम किसी पदार्थ का सीधा सम्बन्ध जोड़ पाते हैं, तो हम उसके “प्रत्यक्ष प्रमाणित” के होने का दावा करते हैं । उदहारण के लिए जब आप आम खाते हैं तो मिठास का अनुभव करते हैं और उस मिठास को अपने खाए हुए आम से जोड़ देते हैं । यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि आप ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण केवल उस इन्द्रिय से जोड़ सकते हैं जिसे कि आपने उस विषय का अनुभव करने के लिए प्रयोग किया है ।

इस प्रकार पूर्वोक्त उदहारण में आम का ‘प्रत्यक्ष’ ‘कान’ से नहीं कर सकते, बल्कि ‘जीभ’, ‘नाक’ या ‘आँखों’ से ही कर सकते हैं ।

हालाँकि समझने में सरलता हो इसलिए हम इसे ‘प्रत्यक्ष प्रमाण’ कह रहे हैं लेकिन वास्तव में यह भी ‘अप्रत्यक्ष प्रमाण’ ही है।

अब क्यूंकि ईश्वर सबसे सूक्ष्म पदार्थ है इसलिए स्थूल इन्द्रियों ‘आँख’, ‘नाक’, ‘कान’, ‘जीभ’ और ‘त्वचा’ से उसका प्रत्यक्ष असंभव है । जैसे की हम सर्वोच्च क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी के होते हुए भी अत्यंत सूक्ष्म कणों को नहीं देख सकते, अत्यंत लघु तथा अत्यंत उच्च आवृत्ति की तरंगों को नहीं सुन सकते, प्रत्येक अणु के स्पर्श का अनुभव नहीं कर सकते ।

दुसरे शब्दों में कहें तो जैसे हम कानों से आम का प्रत्यक्ष नहीं कर सकते और यहाँ तक की किसी भी इन्द्रिय से अत्यंत सूक्ष्म कणों को नहीं अनुभव कर सकते, ठीक ऐसे ही ईश्वर को भी क्सिसिं स्थूल और क्षुद्र इन्द्रियों से प्रत्यक्ष करना असंभव है ।

3. एक मात्र इन्द्रिय जिससे ईश्वर का अनुभव होता है वह है मन । जब मन पूर्णतः नियंत्रण में होता है और किसी भी प्रकार के अनैच्छिक विघ्नों (जैसे कि हर समय मन में आने वाले विभिन्न प्रकार के विचार ) से दूर होता है और जब अध्ययन और अभ्यास के द्वारा ईश्वर के गुणों का सम्यक ज्ञान हो जाता है तब बुद्धि से ईश्वर का प्रत्यक्ष ज्ञान ठीक उसी प्रकार होता है जैसे कि आम का अनुभव उसके स्वाद से ।

यही जीवन का लक्ष्य है और इसी के लिए योगी विभिन्न प्रकार के उपायों से मन को नियंत्रण में करने का प्रयास करता है । इन उपायों में से कुछ इस प्रकार हैं: अहिंसा, सत्य की खोज, सद्भाव, सबके सुख के लिए प्रयास, उच्च चरित्र, अन्याय के विरुद्ध लड़ना, एकता के लिए प्रयास इत्यादि ।

4. एक प्रकार से देखा जाये तो अपने दैनिक जीवन में भी हमे इश्वर के होने के प्रत्यक्ष संकेत मिलते हैं । जब भी कभी हम चोरी, क्रूरता धोखा आदि किसी बुरे काम को करने की शुरुआत करते हैं तभी हमे अपने अन्दर से एक भय, लज्जा या शंका के रूप में एक अनुभूति होती है । और जब हम दूसरों की सहायता करना आदि शुभ कर्म करते हैं तब निर्भयता, आनंद , संतोष, और उत्साह का अनुभव, ये सब ईश्वर के होने का प्रत्यक्ष संकेत है ।
यह ‘अंतरात्मा की आवाज़’ ईश्वर की ओर से है । अधिकतर हम अपनी मूर्खतापूर्ण प्रवृत्तियों के छद्म आनंददायी गीतों के शोर से दबाकर इस आवाज़ को सुनने की क्षमता को कम कर देते हैं । लेकिन जब कभी हम अपेक्षाकृत शांत होते हैं तब हम सभी इस ‘अंतरात्मा की आवाज़’ की तीव्रता को बढ़ा हुआ अनुभव करते हैं ।

5. और जब आत्मा अपने आप को इन मानसिक विक्षोभों/हलचलों/तरंगों से छुड़ाकर इन छाद्मआनंददायी गीतों की दुनिया से दूर कर लेता है तब वह स्वयं तथा ईश्वर दोनों का प्रत्यक्ष अनुभव कर पाता है ।

इस प्रकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के प्रमाणों से ईश्वर के होने का उतना ही स्पष्ट अनुभव होता है जितना कि उन सब पदार्थों के होने का जिन्हें की हम स्थूल इन्द्रियों के द्वारा अनुभव करते हैं ।

प्रश्न- ईश्वर कहाँ रहता है ?

उत्तर-

(1) ईश्वर सर्वव्यापक है अर्थात सब जगह रहता है । यदि वह किसी विशेष स्थान जैसे किसी आसमान या किसी विशेष सिंहासन पर रहता तो फिर वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सबका उत्पादक, नियंत्रक और विनाश करने वाला नहीं हो सकता । आप जिस स्थान पर नहीं हैं उस स्थान पर आप कोई भी क्रिया कैसे कर सकते हैं ?

(2) यदि आप यह कहते हैं कि ईश्वर एक ही स्थान पर रहकर सारे संसार को इसी प्रकार नियंत्रण में रखता है जैसे कि सूर्य आकाश में एक ही स्थान पर रहकर सारे संसार को प्रकाशित करता है या जैसे हम रिमोट कण्ट्रोल का प्रयोग टी वी देखने के लिए करते हैं, तो आपका यह तर्क अनुपयुक्त है । क्यूंकि सूर्य का पृथ्वी को प्रकाशित करना और रिमोट कण्ट्रोल से टी वी चलना ये दोनों ही तरंगो के आकाश में संचरण के द्वारा होते हैं । हम उसे रिमोट कण्ट्रोल सिर्फ इसलिए कहते हैं क्यूंकि हम उन तरंगों को देख नहीं सकते। इसलिए ईश्वर का किसी भी चीज को नियंत्रित करना खुद ये सिद्ध करता है कि ईश्वर उस चीज में है ।

(3) यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह स्वयं को छोटी सी जगह में करके क्यूँ रखेगा ? तो ईश्वर जायेगा । ईसाई कहते हैं कि गॉड चौथे आसमान है और कहते हैं कि अल्लाह पर है । और उनके अनुयायी अपने आपको सही करने के लिए आपस में लड़ते रहते हैं । क्या इसका मतलब ये न समझा जाये कि अल्लाह और गॉड अलग अलग आसमानों में इसलिए रहते हैं कि कहीं वो भी अपने क्रोधी अनुयायियों की न लग जाएँ ?

वास्तव में ये एकदम बच्चों जैसी बातें हैं । जब ईश्वर सर्वशक्तिमान और सरे संसार को नियंत्रण में रखता है तो फिर कोई कारण नहीं है कि वह खुद को किसी छोटी सी जगह में सीमित कर के रखे । और अगर ऐसा है तो फिर उसे सर्वशक्तिमान नहीं कहा जा सकता ।

प्रश्न- तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि ईश्वर अपवित्र वस्तुओं जैसे कि मदिरा, मल और मूत्र में भी रहता है ?

उत्तर-

(1) पूरा संसार ईश्वर में है । क्यूंकि ईश्वर इन सब के बाहर भी है लेकिन ईश्वर के बाहर कुछ नहीं है । इसलिए संसार में सब कुछ ईश्वर से अभिव्याप्त है । मोटे तौर पर अगर इसकी समानता देखी जाये तो हम सब ईश्वर के अन्दर वैसे ही हैं जैसे कि जल से भरे बर्तन में कपडा । उस कपडे के अन्दर बाहर हर ओर जल ही जल है । उस कपडे का कोई भाग ऐसा नहीं है जो जल से भीगा न हो लेकिन उस कपडे के बाहर भी हर ओर जल ही जल है ।

(2) कोई वस्तु हमारे लिए स्वच्छ या अस्वच्छ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे लिए उस वस्तु की क्या उपयोगिता है । जिस आम का स्वाद हमको इतना प्रिय होता है वह जिन परमाणुओं से बनता है वही परमाणु जब अलग अलग हो जाते हैं और अन्य पदार्थों के साथ क्रिया करके मल का रूप ले लेते हैं तो वही हमारे लिए अपवित्र हो जाते हैं । वास्तव में ये सब प्राकृतिक कणों के योग से बने भिन्न भिन्न सम्मिश्रण ही हैं । हम सब का इस संसार में होने का कुछ उद्देश्य है, हम हर चीज को उस उद्देश्य की तरफ़ बढ़ने की दृष्टि से देखते हैं और कुछ को स्वीकार करते हैं जो कि उस उद्देश्य के अनुकूल हों और बाकि सब को छोड़ते चले जाते हैं । जो हम छोड़ते हैं वो सब हमारे लिए अपवित्र / बेकार होता है, और जो हम स्वीकार करते हैं मात्र वही हमारे लिए उपयोगी होता है । लेकिन ईश्वर के लिए इस संसार का ऐसा कोई उपयोग नहीं है, इसलिए उसके लिए कुछ अपवित्र नहीं है । इसके ठीक विपरीत उसका प्रयोजन हम सबको न्यायपूर्वक मुक्ति सुख का देना है, इसलिए पूरी सृष्टि में कोई भी वस्तु उसके लिए अस्पृश्य नहीं है ।

(3) दूसरी तरह से अगर समानता देखी जाये तो ईश्वर कोई ऐसे समाजसेवी की तरह नहीं है जो कि अपने वालानुकूलित कार्यालय में बैठकर योजनायें बनाना तो पसंद करता है लेकिन उन मलिन बस्तियों में जाने से गुरेज करता है जहाँ कि समाज-सेवा की वास्तविक आवश्यकता है । इसके विपरीत ईश्वर संसार के सबसे अपवित्र पदार्थ में भी रहकर उसे हमारे लाभ के लिए नियंत्रित करता है ।

(4) क्यूंकि एक मात्र वही शुद्ध्स्वरूप है इसलिए उसके हर वस्तु में होने और हर वस्तु के उसमे होने के बावजूद भी वह सबसे भिन्न और पृथक है ।

प्रश्न- क्या ईश्वर दयालु और न्यायकारी है ?

उत्तर- हाँ! वह दया और न्याय का साक्षात् उदहारण है ।

प्रश्न- लेकिन यह दोनों गुण तो एक दुसरे के विपरीत हैं । दया का अर्थ है किसी का अपराध क्षमा कर देना और न्याय का अर्थ है अपराधी को दंड देना । ये दोनों गुण एक साथ कैसे हो सकते हैं ?

उत्तर- दया और न्याय वास्तव में एक ही हैं । क्यूंकि दोनों का उद्देश्य एक ही है ।

(1) दया का अर्थ अपराधी को क्षमा कर देना नहीं है । क्यूंकि अगर ऐसा हो तो बहुत से निर्दोष लोगों के प्रति अत्याचार होगा । इसलिए जब तक अपराधी के साथ न्याय नहीं किया जायेगा तब तक निर्दोष लोगों पर दया नहीं हो सकती । और अपराधी को क्षमा करना, यह अपराधी के प्रति भी दया नहीं होगी क्यूंकि ऐसा करने से उसे आगे अपराध करने के लिए बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, अगर एक डाकू को बिना दंड दिए छोड़ दिया जाये तो वह अनेक निर्दोषों को हानि पहुंचाएगा । किन्तु यदि उसे कारगर में रखा जाये तो इससे वह न सिर्फ दूसरों को हानि पहुँचाने से रुकेगा बल्कि उसे खुद को सुधारने का एक मौका मिलेगा और वह आगे अपराध नहीं कर पायेगा । इसलिए न्याय में ही सबके प्रति दया निहित है ।

(2) वास्तव में दया इश्वर का उद्देश्य है और न्याय उस उद्देश्य को पूरा करने का तरीका है । जब इश्वर किसी अपराधी को दंड देता है तो वास्तव में वह उसे आगे और अपराध करने से रोकता है । और निर्दोषों की उनके अत्याचारों से रक्षा करता है । इस प्रकार न्याय का मुख्य उद्देश्य सबके प्रति दया करना है ।

(3) वेदों के अनुसार और जो कुछ हम संसार में देखते हैं उसके अनुसार भी दुःख का मूल कारण अज्ञान है, यही अज्ञान दुष्कर्मों को जन्म देता है जिन्हें की हम अपराध कहते हैं । इस्ल्ये जब कोई जीव दुष्कर्म करता है तो ईश्वर उसकी दुष्कर्म करने की स्वतंत्रता को बाधित कर देता है और उसे अपनी अज्ञानता और दुखों को दूर करने का मौका देता है ।

(4) माफ़ी मांग लेने भर से ईश्वर अपराधों को क्षमा नहीं कर देता । पापों और अपराधों का मूल कारण अज्ञानता का होना है और जब तक वो नहीं मिट जाता तब तक जीव कई जन्मों तक निरंतर अपने अच्छे और बुरे कर्मों के फल को भोगता रहता है । और इस सब न्याय का उद्देश्य जीव के प्रति दया करना है जिससे की वह परम आनंद को भोग सके ।

प्रश्न- तो क्या इसका अर्थ ये है कि ईश्वर मेरे पापों को कभी भी क्षमा नहीं करेगा ? इससे तो इस्लाम और ईसाइयत अच्छे हैं। वहां अगर मैं अपने अपराध क़ुबूल कर लूं या माफ़ी मांग लूं तो मेरे पिछले सारे गुनाहों के दस्तावेज नष्ट कर दिए जाते हैं और मुझे नए सिरे से जीने का अवसर मिल जाता है ।

उत्तर –

(1) ईश्वर तुम्हारे पापों को वास्तव में क्षमा तो करता है । ईश्वर की माफ़ी तुम्हारे कर्मों का न्यायपूर्वक फल देने में ही निहित है न कि पिछले कर्मों के दस्तावेज नष्ट कर देने में ।

(2) अगर वह तुम्हारे गुनाहों के दस्तावेज नष्ट कर दे तो यह उसका तुम्हारे प्रति घोर अन्याय और क्रूरता होगी । यह ऐसा ही होगा जैसे कि तुम्हे तुम्हारी वर्तमान कक्षा की योग्यता प्राप्त किये बिना ही अगली कक्षा के लिए प्रोन्नत कर देना । ऐसा करके वह तुमसे जुड़े हुए अन्य व्यक्तियों के साथ भी अन्याय करेगा।

(3) क्षमा करने का अर्थ होता है एक नया अवसर देना न कि 100% अंक दे देना जबकि आप 0 की पात्रता रखते हों । और ईश्वर यही करता है । और याद रखिये कि योग्यता का बढ़ना कोई एक पल में नहीं हो जाता, और न ही माफ़ी मांग लेने से योग्यता बढ़ जाती है । इसके लिए लम्बे समय तक समर्पण के साथ अभ्यास करना पड़ता है । केवल प्रमादी व्यक्ति ही बिना पूरा अध्ययन किये 100% अंक लेने के तरीके खोजते हैं ।

(4) यह दुर्भाग्य की बात है कि जो लोग ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के नाम पर लोगों को अपने मत/ सम्प्रदायों की ओर आकर्षित करते हैं वो खुद को और दूसरों को बेवकूफ बना रहे हैं। मान लीजिये किसी को मधुमेह की समस्या है क्या वह माफ़ी मांगने से ठीक हो सकती है ? जब एक शारीरिक समस्या का उपचार करने के लिए माफ़ी मांगना पर्याप्त नहीं है तो फिर मन जो कि मनुष्य को ज्ञात संसार का सबसे जटिल तंत्र है उसका उपचार मात्र एक माफ़ी मांग लेने से कैसे हो सकता है ।

(5) वास्तव में इनके सिद्धांतों में एक स्पष्ट त्रुटि/दोष है और वो ये है कि ये सिर्फ एक जन्म में विश्वास रखते हैं पुनर्जन्म में नहीं । इसलिए वो लोगों को आकर्षित करने के लिए ईश्वर तक पहुँचने के झूठे तरीके गढ़ना चाहते हैं। और अगर कोई उनकी बात न माने तो उसे नरक की झूठी कहानियां सुनाकर डराते हैं। अपने लेख Is God testing us? के द्वारा हम पहले ही एक जन्म वाली अवधारणा की खामियों को उजागर कर चुके हैं ।

(6) वैदिक दर्शन अधिक सहज, वास्तविकता के अनुरूप और तार्किक है । उसमे न कोई नरक है जहाँ माँ के समान प्रेम करने वाला ईश्वर आपको हमेशा के लिए आग में जलने के लिए डाल देगा और न ही वो आपको अपने प्रयासों के द्वारा अपनी योग्यता बढाने और अपनी योग्यता के अनुरूप उपलब्धियां प्राप्त करने के अवसरों से वंचित करेगा । आप खुद ही देह्खिये की क्या अधिक संतोषप्रद होगा:
(अ) आपको सर्वोच्च अंक दिलाने वाला झूठा अंकपत्र, जबकि आप जानते हैं की वास्तव में आपको 0 प्राप्त हुआ है ।
(ब) दिन रात कठिन परिश्रम करके प्राप्त किये गए सर्वोच्च अंक, जबकि आप जानते हैं कि आपने विषय में विशेषज्ञता अर्जित करने के लिए अपनी ओर से अधिकतम प्रयास किया ।

इसलिए वेदों में सफलता के लिए कोई आसान या कठिन रास्ते नहीं हैं वहां तो केवल एक ही सही मार्ग है ! और सफलता उन सबसे अधिक संतोष दायक है जो कि इन छद्म आसान रास्तों पर चलने से प्राप्त होता हुआ प्रतीत होता है ।

The-Vedic-God

प्रश्न- ईश्वर साकार है या निराकार ?
उत्तर- वेदों के अनुसार और सामान्य समझ के आधार पर भी ईश्वर निराकार है ।

(1) अगर वो साकार है तो हर जगह नहीं हो सकता । क्यूंकि आकार वाली वस्तु की अपनी कोई न कोई तो परिसीमा होती है । इसलिए अगर वो साकार होगा तो वह उस परिसीमा के बाहर नहीं होगा ।

(2) हम ईश्वर के आकार को देख पायें यह यह तभी संभव है जब कि वह स्थूल हो। क्यूँकि प्रकाश को परावर्तित करने वाले पदार्थों से सूक्ष्म पदार्थों को देखा नहीं जा सकता । किन्तु वेदों में ईश्वर को स्पष्ट रूप से सूक्ष्मतम, छिद्रों से रहित तथा एकरस कहा है (यजुर्वेद 40.8) । इसलिए ईश्वर साकार नहीं हो सकता ।

(3) ईश्वर साकार है तो इसका अर्थ है कि उसका आकार किसी ने बनाया है । लेकिन ये कैसे हो सकता है क्यूंकि उसीने तो सबको बनाया है तो उससे पहले तो कोई था ही नहीं तो फिर उसे कोई कैसे बना सकता है । और अगर ये कहें कि उसने खुद अपना आकार बनाया तो इसका अर्थ हुआ कि उसके पहले वो निराकार था ।

(4) और अगर आप ये कहें की ईश्वर साकार और निराकार दोनों है तो यह तो कैसे भी संभव नहीं है क्यूंकि ये दोनों गुण एक ही पदार्थ में नहीं हो सकते ।

(5) और अगर आप ये कहें कि ईश्वर समय समय पर दिव्य रूप धारण करता है तो कृपया ये भी बता दें कि किसका दिव्य रूप लेता है क्यूंकि अगर कहें कि ईश्वर मनुष्य का दिव्य रूप धारण करता है तो आप ईश्वरीय परमाणु और अनीश्वरीय परमाणु की सीमा कैसे निर्धारित करेंगे ? और क्यूंकि ईश्वर सर्वत्र एकरस (एक समान ) है तो फिर हम मानवीय- ईश्वर और शेष संसार में अंतर कैसे करें ? और यदि हर जगह एक ही ईश्वर है तो फिर हम सीमा कैसे देख रहे हैं ?

(6) वास्तव में जो मानव शरीर हम देख रहे हैं ये द्रव्य और ऊर्जा का शेष संसार के साथ निरंतर स्थानान्तरण है । किसी परमाणु विशेष के लिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि ये मानव शरीर का है या शेष संसार का । इसलिए मानवीय-ईश्वर के शरीर तक को अलग नहीं किया जा सकता। उदहारण के लिए, क्या उसके थूक, मल, मूत्र, पसीना आदि भी दिव्य होंगे ?

(7) वेदों में कहीं पर भी साकार ईश्वर की अवधारणा नहीं है । और फिर ऐसा कोई काम नहीं है जो की ईश्वर बिना शरीर के न कर सके और जिसके लिए कि उसे शरीर में आने की आवश्यकता हो ।

(8) जिन्हें हम ईश्वर के दिव्य रूप मानते हैं जैसे कि राम और कृष्ण, वास्तव में वो दिव्य प्रेरणा से कर्म करने वाले थे । याद कीजिये कि हमने ‘अंतरात्मा की आवाज़’ के बारे में बात की थी । ये महापुरुष ईश्वर भक्ति तथा पवित्र मन का साक्षात् उदहारण थे । इसलिए साधारण व्यक्तियों की दृष्टि में वे स्वयं ही ईश्वर थे । किन्तु वेद, ईश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी की भी उपासना का निषेध करते हैं । इसलिए बजाय उनकी पूजा करने के, हमे अपने जीवन में उनके आदर्शों का अनुकरण करना चाहिए, यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी । यह महापुरुषों का अनुकरण वेदानुकूल है और इसका विवरण The power of Now! – Know Vedas. में दिया गया है ।

(9) यदि ईश्वर अवतार लेता और उन अवतारों की पूजा से मुक्ति हो जाती तो वेदों में इस विषय का विस्तृत वर्णन अवश्य ही होता। लेकिन वेद में ऐसे किसी विषय का संकेत तक नहीं है ।

प्रश्न- तो इसका यह अर्थ है की राम, कृष्ण, दुर्गा और लक्ष्मी के मंदिर और इनकी पूजा करना सब गलत है ?
उत्तर- इसे समझने के लिए उदहारण के तौर पर किसी दूर दराज के गाँव में रहने वाली एक माता को देखिये जिसके बेटे को सांप ने काट लिया है। वो अपने बच्चे की जान बचाने के लिए झाड़-फूँक कराने के लिए किसी पास ही के के पास जाती है । आप उसे सही कहेंगे या गलत ? आज के समय में अधिकतर ईश्वर भक्त चाहे वो हिन्दू हों, मुस्लिम हों , ईसाई हों या फिर कोई भी हों, इसी प्रकार के हैं । उनकी भावनाएं सच्ची हैं और सम्मान के योग्य हैं । लेकिन अज्ञानतावश वो ईश्वर भक्ति का गलत रास्ता चुन लेते हैं । इसका स्पष्ट पता इस बात से ही चल जाता है कि यहाँ तक कि वेदों के बारे में जानने वाले व्यक्ति ही विरले हैं । फिर भी कम से कम हिन्दू तो हैं ही जो कि इनको सर्वोच्च मानते हैं ।

अपने पूर्ववर्ती महापुरुषों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती हैं कि हम उनके गुणों को आत्मसात करके उनके अनुसार शुभ कर्म करें । उदहारण के लिए, हम सब ओर फैले भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अनैतिकता आदि रावणों को देखते हैं । यदि हम न्यायपूर्वक इनका प्रतिकार करने के लिए एकजुट हो जाएँ तो यह श्री राम का सच्चा गुणगान होगा । इसी प्रकार श्री कृष्णा, दुर्गा, हनुमान आदि के लिए भी । मैं जीवन भर श्री हनुमान जी का प्रशंसक रहा हूँ और उनका गुणगान करने का मेरा तरीका ये है कि मैं अपना उच्च नैतिक चरित्र बनाये रखूँ और अपने शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयास करूँ जिससे कि मैं समाज की सेवा कर सकूं । हनुमान जी की पूजा करने का मतलब ही क्या है अगर हमारा शरीर कमजोर हो और पेट ख़राब और फिर भी हम उसमे भारी लड्डू भरते जाएँ ! हालाँकि पूजा करने के इन सब तरीकोण के पीछे जो उद्देश्य है वह वास्तव में सरहानीय हैं और हम किसी भी संप्रदाय के भक्तों की पवित्र भावनाओं पर नतमस्तक हैं, किन्तु हमारी कामना है कि सब ईश्वर भक्त पूजा करने का एक ही तरीका अपना लें वही जो कि श्री राम और श्री कृष्ण ने अपने जीवन में अपनाया था ।

प्रश्न- क्या ईश्वर सर्वशक्तिमान है ?
उत्तर- हाँ, वह सर्वशक्तिमान है । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वह जो चाहे वो कर सकता है । अपनी इच्छा से कुछ भी करते जाना तो अनुशासनहीनता का संकेत है । इसके विपरीत ईश्वर तो सबसे अधिक अनुशासनपूर्ण है । सर्वशक्तिमत्ता का अर्थ यह है की उसे अपने कर्तव्य कर्मों – सृष्टि की उतपत्ति, स्थिति और प्रलय , को करने के लिए अन्य किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती । वह स्वयं ही अपने सब कर्त्तव्य कर्मों को करने में समर्थ है ।

लेकिन वह केवल अपने कर्तव्य कर्मों को ही करता है । उदाहरण के लिए, वह दूसरा ईश्वर बनाकर खुद को नहीं मार सकता । वह खुद को मूर्ख नहीं बना सकता । वह चोरी, डकैती अदि नहीं कर सकता ।

प्रश्न- क्या ईश्वर का कोई आदि (आरम्भ) है ?

उत्तर- ईश्वर का न कोई आदि है और न ही कोई अंत । वह हमेशा से था , है और हमेशा रहेगा । और उसके सभी गुण हमेशा एक समान रहते हैं ।
जीव और प्रकृति अन्य दो अनादि , अनंत वस्तुएं हैं ।

प्रश्न- ईश्वर क्या चाहता है ?

उत्तर- ईश्वर सब जीवों के लिए सुख चाहता है और वह चाहता है कि जीव उस सुख के लिए प्रयास करके अपनी योग्यता के आधार पर उसे प्राप्त करें ।

प्रश्न- क्या हमें ईश्वर की उपासना करनी चाहिए ? और क्यूँ ? आखिर वो हमे कभी माफ़ नहीं करता !

उत्तर- हाँ हमें ईश्वर की उपासना करनी चाहिए और एकमात्र वही उपासनीय है । ये ठीक है की ईश्वर की उपासना करने से आपको कोई उत्तीर्णता का प्रमाणपत्र यूं ही नहीं मिल जायेगा यदि आप वास्तव में अनुत्तीर्ण हुए हैं । केवल आलसी और धोखेबाज लोग ही सफलता के लिये ऐसे अनैतिक उपायों का सहारा लेते हैं ।

ईश्वर की स्तुति के लाभ और ही हैं :

अ) ईश्वर की स्तुति करने से हम उसे और उसकी रची सृष्टि को अधिक अच्छे से समझ पाते हैं ।
ब) ईश्वर की स्तुति करने से हम उसके गुणों को अधिक अच्छे से समझकर अपने जीवन में धारण कर पाते हैं।
स) ईश्वर की स्तुति करने से हम ‘अन्तरात्मा की आवाज़’ को अधिक अच्छे से सुन पाते हैं और उसका निरंतर तथा स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त कर पाते हैं ।
द) ईश्वर की स्तुति करने से हमारी अविद्या का नाश होता है, शक्ति प्राप्त होती है और हम जीवन की कठिनतम चुनौतियों का सामना दृढ आत्मविश्वास के साथ सहजता से कर पाते हैं ।
इ ) अंततः हम अविद्या को पूर्ण रूप से हटाने में सक्षम हो जाते हैं और मुक्ति के परम आनंद को प्राप्त करते हैं ।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि स्तुति का अर्थ मंत्रोच्चारण या मन को विचारशून्य करना नहीं है । यह तो कर्म, ज्ञान और उपासना के द्वारा ज्ञान को आत्मसात करने की क्रियात्मक रीति है । इसे हम बाद में विस्तारपूर्वक बताएँगे । अभी के लिए आप How to worship? का अध्ययन कर सकते हैं ।

प्रश्न- जब ईश्वर के अंग और ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं है तो फिर वो अपने कर्मों को कैसे करता है ?

उत्तर- उसकी क्रियाएं जो कि अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर होती हैं उन्हें करने के लिए उसे इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं होती । वह अपनी स्वाभाविक शक्ति से उन्हें करता है । वह बिना आँखों के देखता है क्यूंकि उसकी आँखें आकाश में प्रत्येक बिंदु पर हैं, उसके चरण नहीं है फिर भी वह सबसे तेज है, उसके कान नहीं हैं फिर भी वह सब कुछ सुनता है । वह सब कुछ जानता है फिर भी सबके पूर्ण प्रज्ञान से परे है । यह श्लोक उपनिषद् में आता है । ईशोपनिषद भी इसका विस्तृत वर्णन करता है ।

प्रश्न- क्या ईश्वर को सीमायें ज्ञात हैं ?
उत्तर- ईश्वर सर्वज्ञ है। इसका अर्थ है कि जो कुछ भी सत्य है वह सब जानता है । क्यूंकि ईश्वर असीमित है इसलिए वह जानता है की वह असीमित है । यदि ईश्वर अपनी सीमाओं को जानने का प्रयास करेगा जो कि हैं ही नहीं तब तो वो अज्ञानी हो जायेगा ।

प्रश्न- ईश्वर सगुण है या निर्गुण ?
उत्तर- दोनों। यदि ईश्वर के दया, न्याय, उत्पत्ति, स्थिति आदि गुणों की बात करें तो वह सगुण है । लेकिन यदि उन गुणों की बात करें जो कि उसमे नहीं है जैसे कि मूर्खता, क्रोध, छल , जन्म, मृत्यु आदि, तो ईश्वर निर्गुण है । यह अंतर केवल शब्दगत है ।

प्रश्न- कृपया ईश्वर के मुख्य गुणों को संक्षेप में बताएं ।
उत्तर- उसके गुण अनंत हैं और शब्दों में वर्णन नहीं किये जा सकते । फिर भी कुछ मुख्या गुण इस प्रकार हैं :

1. उसका अस्तित्व है ।
2. वह चेतन है ।
3. वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है ।
4. वह निराकार है ।
5. वह अपरिवर्तनीय है ।
6. वह सर्वशक्तिमान है ।
7. वह न्यायकारी है ।
8. वह दयालु है ।
9. वह अजन्मा है ।
10.वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता ।
11. वह अनंत है ।
12. वह सर्वव्यापक है ।
13. वह सब से रहित है ।
14. उसका देश अथवा काल की अपेक्षा से कोई आदि अथवा अंत नहीं है ।
15. वह अनुपम है ।
16. वह संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है ।
17. वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है ।
18. वह सब कुछ जानता है।
19. उसका कभी क्षय नहीं होता, वह सदैव परिपूर्ण है ।
20. उसको किसी का भय नहीं है ।
21. वह शुद्धस्वरूप है ।
22. उसके कोई अभिकर्ता (एजेंट) नहीं है । उसका सभी जीवों के साथ सीधा सम्बन्ध है।

एक मात्र वही उपासना करने के योग्य है, अन्य किसी की सहायता के बिना।

यही एक मात्र विपत्तियों को दूर करने और सुख को पाने का पथ है ।

This translation has been contributed by one of our sisters. Original post in English is available at http://agniveer.com/vedic-god/. This post is also available in Gujarati at http://agniveer.com/the-vedic-god-gu/*

Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
I am founder of Agniveer. Pursuing Karma Yog. I am an alumnus of IIT-IIM and hence try to find my humble ways to repay for the most wonderful educational experience that my nation gifted me with.

266 COMMENTS

  1. sabhi darma wale mane hai. Shiv janam na lene se karma bandhan se mukta hai Baki sabhi atmaye janam leti hai
    atmaka pach tatv k sharir me pravesh kiya to koi na koi karma hota hi hai aur atmaye punar janam lete lete endriya vah ho kar Karma bandhan me fasti hai ab karbandhan se koun Mukta kar sakta hai jo es jivan mrutyu k chakkar me na ho . Aaj sari Duniya kum adhik rup me Vikarome gir k dukhi hua hai .Ek Satya Shiv ko bhul alag alag dehdhari ko bhagwan man ne lage hai .Shiv arthat Kalyan kari sabhi atmaoko agyan andhere se nikal gyan prakash k aur le jate hai Shivratri ka mahatva yahi…

  2. Gita gyan dene wala bhi krishna nahi Shiv hi hai. sabhi atmao ko jo amarkatha sunai vah gita hi hai .Mahabharat me jo ahisak ladai dikhai hai vah nahi hai . Gita sare gyan arjan karne wale arjun atmao k liye hai vah keval ek atma ka kalyan nahi balki sabhi atmao ka kalyan hetu gyan hai. Manush ki sacchi ladai Vikaro se hai .Vikaro ne hi hame dhukhi banaya hai hum en vikaro par kaise vijai paye ,kase purushottam bane uska gyan hai u se samaz dharna kar k hum sukhi ban sakte hai na ki gitapath karne se.gita me rachaita Shiv k jagah Rachana krishna ka naam dala hai .yah badi bhool hai .

    • kis shiv ki baat aap karte hai ? ishvar ke asankhy gun hai aur uske asnkhy naam bhi hai ! brahma vishnu shiv[mahesh] adi bhi ishvar ke gunvachak naam hai !
      jab geeta mahabharat ke yuddh ke maidan me arjun ke shnshay ko dur karne ko sunaai gayi the tab shiv ki baat kaise shamil ho sakti hai

      • Doaton ved sirf us bramha ki baat karta he Jo hame banaya he lekin gita us param bramha parameswar ki batt kehta he jisne bramha ko banaya he ….shree Krishna WO parameswar he jisne bramha ko banaya ..

        भगवद् गीता अध्याय: 8
        श्लोक 16

        श्लोक:
        आब्रह्मभुवनाल्लोकाः पुनरावर्तिनोऽर्जुन।
        मामुपेत्य तु कौन्तेय पुनर्जन्म न विद्यते॥

        भावार्थ:
        हे अर्जुन! ब्रह्मलोकपर्यंत सब लोक पुनरावर्ती हैं, परन्तु हे कुन्तीपुत्र! मुझको प्राप्त होकर पुनर्जन्म नहीं होता, क्योंकि मैं कालातीत हूँ और ये सब ब्रह्मादि के लोक काल द्वारा सीमित होने से अनित्य हैं
        ॥16॥

      • apke batalye shlok me bhi shiv ka jikar nahi hai ! brahma ko kisi ne nahi banaya hai baliki ishvar ka ek gunvachak nam brahma jarur hai ,
        yah updeshb bhi moksh ki baat kartavha ji ishvar ke guno ke sabs ejyada najdik ho jatahai vah janm- mrityu ke chakkar se anemk kalpo ke liye dur ho jata hia baad me uska janm fir se hota hai

  3. vah bevkuf to qurani allah hai jisne quran me is baat ka jikar kiya hai agar qurani allah satve asman me ek singhsan me majud nahi hai to muhammad ji ne kalpit meraz kyo ki thi vah sidhe kalpit qurani allah se quran ki sirf do ayate kyo laye the jo suarat bakar me shamil hai !
    kalpit jibrail farishta quran ki ayte kahan se lakar muhammad ji ko deta tha vah to batla dijiye !
    saath me yah bhi batal dijiye ki kalpit farishta asman se quran ki ayte kis tarike se lata tha uska vaahan kaun sa tha ! jhuth ko pakdana bahut asaan hota hai andh bhakt jarur nahi pakad pate hai !

  4. सत्य है, , स्वयं ब्रह्मा को परब्रह्म परमेश्वर ने ही उत्पन्न किया, इस सृष्टि के निर्माण के लिए, जिस तरह एक बाप अपनी हर औलाद का पालन पोषण करता है परंतु उन्हें मृत्यु नहीं दे सकता ठीक उसी तरह परमेश्वर ने पालन का काम अपने जिम्मे लिया और सृष्टि के संहार का कार्य शंकर के हिस्से कर दिया, ताकि अपने ही अंश का संहार उसे न करना पड़े, वेद भी पूर्णरूपेण सही हैं बस हम उसे सही ढंग से समझने के बजाय अपने ढंग से उसका अर्थ निकालने लगते हैं, वेदों में तो वास्तव में मनुष्य जीवन किस तरह चलना चाहिए किस तरह रहना चाहिए, किस तरह कार्य करना चाहिए, किस तरह जीवन व्यतीत करना चाहिए

    • brahma ko parmeshvar ne utpann nahi kiya balki ishvar ka ek gunvachak naam brahma hai !
      har ek minat me karib 100 admi se jyada is sansaar me marte hai ! kya ishvar praan haran nahi karta hai? aur kai hajarckide makode jiv jantu pakshi janvar adi marte hai
      ishvar ke asankhy guno me se vishnu aur shiv bhi unhi ka gun vachak naam hai yah koi ishvar se alag nahi hai baaki aapki baat thik hai ki ved ka gyaan sabhi manav ke liye samaan rup se hai

  5. किस तरह कार्य करना चाहिए, किस तरह जीवन व्यतीत करना चाहिए और इसके अलावा मनुष्य जीवन में काम आनेवाले विषयों का समावेश है, इस दौरान जो देवताओं द्वारा घटनाएँ घटित हुई उसे दर्ज किया गया है। आप देखो सिवाय कृष्ण के किसी भी देवता ने ये कभी नहीं कहा “अहम् ब्रह्मास्मि ” जिसका अर्थ ही यही है कि वही पूर्ण ब्रह्म है और कोई नहीं। कृष्ण ने जो विराट रूप दिखाया उसे आप ध्यान से देखें उसमें शंकर सहित हर देवताओं का मुँह है, जिसका सीधा अर्थ यही है कि सारे देवी देवता उसमें

    • devta kya hai vah koi chetan nahi hai shastro ke anusaar sirf 33 devta unko kaha jata hai jis se manushyo aur sabhi praniyo ko laabh milta hai jaise dharti ,sury vayu aadi ! aur yah sab jad hai ! chetan nahi hai !
      viraat rup nahi hota viraat vyakhya hoti hai !
      aham bramahasmi kahana hi galat hai ishvar jiv aur prakriti ke anu alag alag satta hai ishvar saty- chitt – anand- svarup hai !
      jiv sirf chitt- anand svarup hai usme saty ka ansh kam hai kyoki jiv galat kaam bhi karta hai aur jhuth ka acharan bhi karta hai
      aur prakriti sirf anand hai uske paas saty aur chitt [chetanta ]…

      • nahi hai !
        ishvar sarv shreshth hai isliye vah jiv aur prakriti ka bhi malik hai !
        “aham bramhasmi ” sirf vedanti kahate hai jo yatharth nahi hai unka aisa manana hai ki ishvar se hi jiv utpann huye aur prkriti bhi !
        agar ishvar se jiv aur prakriti ke anu utpann huye hote toishvarke sabhi gun un dono me hote jo hargij nahi hai ! isliye advait vaad, dvaitvaad ka siddhant galat hai sirf traitvaad hi thik hai ! aur vedanukul bhi hai

  6. ही निवास करते हैं, उससे ही निकलते हैं और प्रलयकाल के अंत में उसमें ही समा जाते हैं। कृष्ण ही सर्वगुणअवगुण संपन्न हैं इसलिए उन्हें ही पूर्णावतार माना जाता है जबकि ऐसा त्रिदेवों के साथ नहीं है, ब्रह्मा पूर्ण सत्व हैं, विष्णु रज गुण एवं शंकरजी तमोगुणी हैं, अर्थात ब्रह्मा कृष्ण की तरह नाच गान नहीं कर सकते विष्णु ने भी कहीं नहीं किया, शंकरजी भोले भाले हैं वो कृष्ण की तरह छलियों के साथ छल नहीं कर सकते, मतलब यह हुआ कि हर देव में कोई कमी है सिर्फ यही रूप एक ऐसा है जिसमें कुछ भी कम नहीं, चाहे गुण हो चाहे अवगुण। इसीसे साबित होता है कि यही परब्रह्म है और कोई नहीं। कृष्ण महाभारत का युद्ध रोक सकते थे परंतु

    • koi chij manane se saty nahi ho jati hai ! shri krishn ji bhi alpagy the ishvar ke avtaar nahi the ! kitne kamaal ki baayt haiu jo shri krishn ji k ishvarka avtaarmante hai vah yahnahi samajhaate ki shri krishn jikesamne duryodhan adi dabte nahi hai aur unke rishtedaar arjun kunti adi bhi unko ishvar nahi mante the unke samay me bhi ishvar unko nahi mana ja tha
      brahma vishnu shankar adi gun vachak naam hai vah sabhi ishvar ke naam hai !
      shri krishn ji ne mahaabharat yuddh rokne ki bharsak koshish jarur ki lekin unki asfalta ko inkaar nahi kya ja sakta aur us daag se unko vancit bhi

      • nahi kiya ja sakta hai ,
        shri krishn ji bhramh nahi balkii ek shreshth manushy jarur the ishvar ko janm maran ka dukh nahi hota hai ! ishvar ke hisse me koi dukh nahi hai ishvar anadi aur ananat hai n va h jan m leta haimaur n marta hai isliye ishvar ka avtaar vaad ka siddhant hi galat hai agar ishvar ka avtaar hota to aaj bhi avtaar hota aur yah desh gulam kyo hota hajara saal ki gulami kyojheli gayi ishvar ne us samay avtaar kyo nahi liya
        kalpit devtao ne apne bhakto ki raksha kyo nahi ki !
        shankar ka alag se astitv kabhi nahi raha hai

  7. परंतु उस काल के बाद घोर अधर्म का युग कलियुग आनेवाला था, उस वक्त ब्राह्मणों के पास जो भयानक शक्तियाँ और विद्याएं थीं, उनका गलत उपयोग करके बिना उचित अनुचित का ध्यान किए दुष्ट व्यक्ति सीधे सादे गृहस्थों का जीना हराम कर देते, इसलिए कृष्ण ने महाभारत का युद्ध करवाया ताकि ये दिव्य अस्त्र शस्त्र उन ब्राह्मणों के साथ ही चले जाएँ, यही वजह है कि स्वयं कृष्ण ने युद्ध में हिस्सा नहीं लिया ताकि उनके हाथों किसी ब्राह्मण की हत्या न हो और वो ब्रह्महत्या के पाप के भागी न बनें शुद्ध एवं निष्पाप बने रहें ।

    • kaliyug kya hai ?
      ek samay ke pravah ka naam hai jaise chait baisakh maah fagun aadi
      vai se hi kalp manvantar satyug treta dvapar kaliyug hai
      dharm aaj bhi hai isi kalyug me shankarachary huye buddh huye mahavir adi bhi huye hai
      brahman aaj bhi hai lekin naam matr ke hi hai unme shreshth guno ka abhaav kusangati ke kaarn hua hai ! yuddh me ek paskh banana nishpaap nahi kaha ja sakta hai kyoki vah yuddh nahi rok paye aur vah ek paksh bhi bane is yuddh ke karan kai karod bachhe antah huye mahilaye vidhva huyi sirf 5 gram ke liye satta ke liye ! aur isi karan yah desh…

      • gulam raha n jane kitni pidhiya gulami jhelne ko majbur huyi apne samaaj ko andh vishvas – kuriti pakahndo se abtak mukti nahi mi saki kyoki mahabharat yuddh me achhe vidvaan maare ja chuke the anath ashaay nadaan bachhe apni marmarji karne ko majbur ho chuke the ! unke pas achha gyaan nahi tha ! desh ke raja apas me ladate rahe videshiyo n eunka laabh uthaya ! i sab ke mul doshi shri krishn ji ko diya ja sakata hai
        kyoki us samayvahi shreshth vidvan the vah tatakalin saamj ko sahi rasta samjahne me asfal ho gaye the

    • आपका सवाल बहुत ही महत्त्वपूर्ण एवं सटीक है जिसका जबाब् देना भी इतना आसान नही है सबसे पहले मै गीता पर आधारित श्लोक से बताना चाहूंगा I
      इमं विवस्वते योगं प्रोक्तवानहमव्ययम I
      विवस्वान्मनवे प्राह मनुरिक्ष्वाक वे ऽ ब्रवी त II १ II अध्याय ४ ,श्लोक १
      अर्थात , यह गीता ज्ञान ( अविनाशी योग विद्या ) भगवांन ने पहले सूर्यदेव ( विवस्वान ) को दिया विवस्वान ने मनु को दिया मनुने इक्ष्वाकु को दिया I पर कहीं कहीं वर्णन मिलता है कृष्ण ने गीता अर्जुन को कुरुक्षेत्र युद्ध स्थल पर ५००० वर्ष पहले सुनाई I महाभारत युद्ध का इतिहास कुछ ४०० वर्ष ई.पू.से अधिक पुराना नही लगता, ( जिसका गीता ज्ञान से तालमेल नहीं बैठता है ) मोहनजोदड़ो ,हड़प्पा के जो पुरात्तव उत्खनन हुए है उनसे भारत का इतिहास करीब ३००० वर्ष पुराने तक चला गया है,वह जो लोग पत्थर ,ताम्र,कासे के हथियार इस्तेमाल करते थे लोहे के हथियार ६०० वर्ष ई.पू के बाद ही नियमित रूप से प्रयोग में आने लगे I

      • पुरातत्ववादी ,इतिहासकार ,अध्यात्मवादी के बीच काफी मतमतांतर है ,महाभारत युद्ध एवं गीता ज्ञान के बारेमे काफी सवाल खड़े होते है,जैसे-
        1.जब कोई गीता को पढता है तो सम्पूर्ण गीता को पढने में एक दिन से अधिक का समय लगता है फिर कृष्ण ने अर्जुन को पूरी गीता मात्र कुछ मिनटों में कैसे सुना दी ? –
        2. जब दोनों सेनाएं युद्ध के लिए तैयार थी और कृष्ण को अर्जुन के सिवाय कोई और देखने सुनने में सक्षम नहीं था तो दोनों तरफ से युद्ध आरम्भ क्यों नहीं किया गया ? प्रद्युम्न और भीष्म किस चीज की प्रतीक्षा कर रहे थे ?
        3. जब कृष्ण को उस समय सिर्फ अर्जुन ही देख सकता था तो युद्धक्षेत्र से काफी दूर राजमहल में संजय धृतराष्ट्र को गीता के उपदेश किस प्रकार सुना सकता था ?
        4. इतने कोलाहल भरे माहौल में जहाँ हजारो हाथी घोड़े चिंघाड़ रहे थे कोई शांति से प्रवचन कैसे दे सकता है और कोई उनको शांति के साथ सही तरह से कैसे सुन सकता है ?
        5. कृष्ण ने उपदेश दिए अर्जुन ने सुने ? दोनों में से लिखा किसी ने नहीं, किसी तीसरे ने उसको सुना नहीं फिर गीता लिखी किसने ?
        6. अगर किसी तीसरे व्यक्ति ने गीता सुनी भी तो उसको युद्धक्षेत्र में लिखा कैसे गया ?
        7. अगर गीता युद्ध के बाद लिखी गयी तो इतने सारे उपदेशो को कंठस्थ किसने किया ? इतने सारे उपदेशो को सुनकर याद रखकर बिलकुल वैसा ही कैसे लिखा जा सकता था ?
        8. अगर गीता के उपदेश इतने ही गोपनीय थे कि उनको सिर्फ अर्जुन ही सुन सके तो इन दोनों के बीच का वार्तालाप सार्वजानिक कैसे हुआ ?

      • 9. अगर गीता के उपदेश सभी लोगो के लिए उपयोगी थे तो कृष्ण को चाहिए था वो अपने उपदेश सभी युद्ध में हिस्सा लेने वाले सभी लोगो को सुनाता ताकि सभी लोगो का ह्रदय परिवर्तन हो सकता और इतने बड़े नरसंहार को टाला जा सकता । कृष्ण ने अपना विश्वरूप दर्शन देने के बाद भी अर्जुन ने कृष्ण को रथ चलाने को कहा होगा !
        10. अगर गीता के उपदेश उस समय सभी के लिए उपयोगी नहीं थे तो आज सभी के लिए कहते है I क्या गीता ज्ञान द्वापर युग में दिया गया ! यहा सवाल यह उठता है की भगवान का गीता ज्ञान केवल अर्जुन के लिए था या सारी मनुष्य जाती के लिए था, अगर गीता ज्ञान द्वापर में दिया तो भी मनुष्य का स्तर ऊपर उठाने के बजाय और भी पापाचार ,भ्रष्टाचार क्यों बढ़ते गया कलियुग में हम और दुखी हुए और भक्ति बढ़ी अब हम पेड़ ,पत्थर ,कच्छ,मत्स ,वाराह ,कण -कण मे उसे ढूंढने लगे फिर मिला नहीं तो आत्मा सो परमात्मा कहने लगे, कोई नेति नेति (हम नहीं जानते) कहने लगे अगर आत्मा ही परमात्मा होता तो उसे मंदिरोंमें पहाडोमे क्यों ढूढ़ते है ,कभी कहते है सर्वव्यापी है ,क्या परमात्मा हर अच्छी या बुरी चीज में भी है ,हर पशु पक्षी में है , अगर है तो ऊपर मुह या हाथ करके पुकारते क्यू है हर धर्मसस्थापक की ऊँगली ऊपर क्यू दिखाई है। अर्थात परमात्मा ऊपर परमधाम में निवास करता है ,और जब बहुत पाप बढ़ता है ,हम पुकारते है पतित पावन आओ हमें दुःखों से छुड़ाओ ,तब ईश्वर सब धर्म का विनाश और एक धर्म की स्थापना करते है।
        यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानि भर्वती भारत।
        अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम।I ७
        परित्राणाय साधुंनाम् विनाशाय च दुष्कृताम।
        धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे ।I ८ अध्याय ४ श्लोक ७

      • कृष्ण सत्ययुग का १६ कला सम्पन्न , अहिंसा परमोधर्म, सर्वगुणसम्पन्न , सर्वश्रेष्ठ राजकुमार यानि देवता था , ना कि परमात्मा ,कृष्ण का अर्थ है सांवला,परमात्मा सावला नहीं हो सकते , परमात्माकी महिमा अलग है ,परमात्मा तेजोमय ,जोतिर्स्वरूपम है I
        अल्लाह एक है , अल्लाह बेनियाज़ है , न उससे कोई पैदा हुआ ,न उसे किसी ने पैदा किया है ,न कोई उसका समकक्ष( हमसर ) है – कुरान सूरतुल इख्लास ११२
        जो वेदोने भी गायी है, अल्लाह ,परमात्मा ,ईश्वर, निराकार ,अजन्मा , अभोक्ता , जो गर्भसे जन्म नहीं लेता है वह सुप्रीम पावर है जिसे वेद , ज्योतिर्स्वरूपं कहते है, क्रिश्चन धर्म गॉड इस लाइट कहते है ,इस्लामी धर्म खुदा नूर कहते है शीख धर्म वाले एक ओंकार सतनाम कहते है, जिसे सभी धर्म वाले मानते है ,
        कृष्ण को सभी धर्म वाले नहीं मानते , सभी आत्माए पुनर्जन्म लेती है कृष्ण ने भी ८४ जन्म लिए है (सतयुग से कलियुग तक) ( परमात्मा सत्ययुग में नहीं आते, जहा सुख ही सुख है ) तो कलियुग के अंत में आते है जब आत्माए उसे पुकारती है वह भी कृष्ण के अंतिम जन्म में ,उस शरीर का आधार ले कर कलियुग के अंत मे भगवान गीता ज्ञान सभी आत्माओंको सुनाते है I ,कल्प सिर्फ ५००० साल का है सतयुग १२५० त्रेतायुग १२५० द्वापरयुग १२५० कलियुग १२५० यह ५००० साल का चक्र घुमता ही रहता है ( कलियुग ४,३२,००० वर्ष का, द्वापर ८,६४,००० वर्ष का, त्रेता युग १२,९६,००० वर्ष का तथा सतयुग १७,२८,००० वर्ष का इसका तालमेल अबकी जनसंख्या से नहीं लगता है ) भगवान कलियुग के अंत में मुक्ति जीवन्मुक्ति का ज्ञान देकर आत्माओं की सत्गति करता भगवान स्वयं , कृष्ण देवता के अर्थात आदिपुरुष (ADAM) जो स्वयंवर के बाद श्री नारायण ( याने विष्णु के चार हाथ दिखाए है अर्थात विष्णुजी के दो हाथ एवं लक्ष्मी जी के दो हाथ मनुष्य को कभी चार हाथ नहीं होते वह प्रतीकात्मक रुप है) बनते है उनके ८४ वे अंतिम मनुष्य तन (प्रजापिता ब्रम्हा) में प्रवेश कर कलियुग के अंत में गीता ज्ञान देते है । जो विष्णु के नाभि से ब्रम्हा निकले कहते है असल में श्री नारायण ही ८४ जनम के बाद ब्रम्हा बनते है , ईश्वरीय ज्ञान द्वारा फिरसे ब्रम्हा ही विष्णु बनते है ,ब्रम्हा को बूढ़ा दिखाया है और हाथोमे शास्र दिखाए है , श्री नारायण के हाथोमे शास्त्र नहीं वह तो चिर निद्रा में दिखाए है ,वहा शास्त्र की जरुरत नहीं…

  8. apne jo 33 prakar devi devta ka ullekh diya he usme ek kam he ….aur aapne jo jo bataya he usme v galat he …..aap mujhe ek baat ye batayiye apne jo 12 aditya bataya usko hindi me mahina kehte hen matlab aditya ka matlab mahina he ye kahan ullekh he …..mujhe sanskrit tranlate dikhaiye aditya ka matlab mahina he ……….sanskrut me month ko masi ,mase ,masik ..kehte hen …..6 स्वर व्यंजन मात्रा सहित । इस शब्द का प्रयोग हिंदी में संज्ञा के रूप में किया जाता है और यह पुर्लिंग वर्ग में आता है । जिसकी उत्पत्ति संस्कृत भाषा से हुई है। …..aditi k 12 putra ko 12 aditya kaha geya he ..12 आदित्य : अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु। ……. …aapne 33 prakar. Devi devta ki galat ullekh dikhaya he …….33 prakar iss tarha he …ऐसी मान्यता है कि हिंदू देवी-देवताओं की संख्या 33 या 36 करोड़ है, लेकिन ये सच नहीं है। वेदों में देवताओं की संख्या 33 कोटी बताई गई है। कोटी का अर्थ प्रकार होता है जिसे लोगों ने या बताने वाले पंडित ने 33 करोड़ कर दिया। यह भ्रम आज तक जारी है। देवी और देवताओं को परमेश्वर ने प्रकाश से बनाया है और ये प्रमुख रूप से कुल 33 हैं। ये सभी ईश्वर के लिए संपूर्ण ब्रह्मांड में कार्य करते हैं।देवताओं की शक्ति और सामर्थ के बारे में वेद और पुराणों में उल्लेख मिलता है। हालांकि प्रमुख 33 देवताओं के अलावा भी अन्य कई देवदूत हैं जिनके अलग-अलग कार्य हैं और जो मानव जीवन को किसी न किसी रूप में प्रभावित करते हैं। इनमें से कई ऐसे देवता हैं ‍जो आधे पशु और आधे मानव रूप में हैं। आधे सर्प और आधे मानव रूप में हैं।पहले ये सभी देवी और देवता धरती पर निवास करते थे और अपनी शक्ति से कहीं भी आया-जाया करते थे। मानवों ने इन्हें प्रत्यक्ष रूप से देखा है और इन्हें देखकर ही इनके बारे में लिखा है। महाभारत काल तक ये देवता धरती पर रहते थे, लेकिन महाभारत काल के बाद सभी अंतरिक्ष में चले गए और कुछ सूक्ष्म रूप में धरती पर रहकर उन्हें जो कार्य सौंप रखा है वह करते हैं।तीन स्थान और 33 देवता : त्रिलोक्य के देवताओं के तीन स्थान नियुक्त है:- 1.पृथ्वी 2.वायु और 3.आकाश। प्रमुख 33 देवता ये हैं:- 12 आदित्य, 8 वसु, 11 रुद्र और इंद्र व प्रजापति को मिलाकर कुल तैतीस देवी और देवता होते हैं। प्रजापति ही ब्रह्मा है, 12 आदित्यों में से एक विष्णु है और 11 रुद्रों में से एक शिव है। कुछ विद्वान इंद्र और प्रजापति की जगह 2 अश्विन कुमारों को रखते हैं। उक्त सभी देवताओं को परमेश्वर ने अलग-अलग कार्य सौंप रखे हैं।अगले पन्ने पर जानिए सभी के नाम…

    • जब कलियुग में (स्वयं भगवान) परमात्म शक्ति मनुष्य बूढ़े तन का आधार ले आत्माओं को गीता सुनाती है और ब्रम्हा द्वारा ज्ञान देकर मनुष्य आत्माओ में अच्छे संस्कार भरकर नयी मनुष्य सृष्टी का निर्माण करते है , ईश्वर ही ब्रम्हा द्वारा स्थापना जिसे हम गार्डन ऑफ़ अल्लाह ,पैराडाइस, स्वर्गे ,गोल्डन AGE ,सतयुग कहते है,तब साधारण मनुष्य उसे पहचान नही पाते ,
      अवजानन्ति माम् मूढा मानुषी तनुमाश्रितम् ।
      परं भावम जानन्तो मय भुत महेश्वरम् ।.I अध्याय ९ ,श्लोक ११
      मनुष्य देह में जब मेरा अवतरण होता है तब मुर्ख लोग मुझे जानते नहीं उनको मेरे दिव्य स्वरुप का और मै सबका अधीश्वर हु इसका ज्ञान नही होता है , कृष्ण को तो सभी जानते है ,फिर कृष्ण एैसा क्यू कहेगा I गीता में सब से बड़ी भूल यह है की बाप (रचैता) Creator के जगह बच्चा (रचना) Creation का नाम डाल दिया है I त्रिमूर्ति शिव परमपिता परमात्मा शिव ( शिव अर्थात कल्याणकारी ) जिसका कभी नाम नहीं बदलता है जो सदा……शिव है, महेश है ,जिसे आकार न होने के कारण शिवलिंग के स्वरुप में पूजते है, जोतिर्लिंगम् के स्वरुप में पूजते है ( शंकर भी शिव का ध्यान करते हुए दिखाते है लेकिन सब ने शंकर और शिव को एक समझ लिया है ) वास्तव में शिव ज्ञान का सागर है, सुख का सागर है ,उसे किसी की ध्यान कर्र्ने की आवश्यकता नहीं न गुरु करने की, (गुरु वह करता है जो ज्ञान में लघु (छोटा ) है ) कॄष्ण के भी सांदीपनी गुरु थे, शिव सबका गुरु , सद्गुरु है सबकी सद्गति करनेवाला है ,वही अंतिम समय में विनाश के समय सबको ले जाता है इसलिए उसे कालो का काल महाकाल भि कहते हैं जो ब्रम्हा ,विष्णु शंकर द्वारा स्थापना ,पालना विनाश का कार्य करते है I

      • मनुष्य को ज्ञान की जरुरत तब पड़ती है जब वह अज्ञान अंधेरे मे हो ,गीता ज्ञान कुरुक्षेत्र में अर्थात मनुष्य की यह कर्म भूमि है , जो पहले आत्मभिमानी थी ( Soul Concious ) वह पुनर्जन्म लेते लेते देहाभिमान में ( Body Concious)आती गई और मनुष्य आत्माए विकार वश होते होते और भी पतित और दुखी बन पडी I सतयुग में २४ कैरट शुद्ध सोना थी ,जनम लेते लेते अब उसमे विकारो की खाद पड़ गयी है, अब परमात्म ज्ञान लेकर राजयोग की अग्नि ( ईश्वर की याद में रहकर ) से तपकर फिर से शुद्ध सोना बनना है इस धरती का विनाश होकर फिरसे नई दुनिया सत्ययुग (Paradise )स्थापित होगी जो केवल एक ईश्वर का कार्य है गीता ज्ञान आसुरी वृत्ति से ऊपर उठकर पूर्ण पुरुषोत्तम बनने के लिये यह ज्ञान देते है। मनुष्य की लड़ाई अपने सुक्ष्म विकारो से है ( जो स्थूल लड़ाई दिखाई है ) अच्छाई की लड़ाई (पांडवकी ) बुराई से (कौरव ) से है आज दुनियामे कौरव 100 ( बुराई के मार्गपर चलनेवाले ) अधिक है और पांडव 5 (अच्छाई के मार्गपर चलनेवाले कम है I ईश्वर कभी हिंसात्मक लड़ाई नहीं कराएँगे I

      • Gita me galati nehin he aapko samajhne ki galati he …..aap ek adhyaya ki sirf ek slok dikhaya he …..aapne ek hin padha thik se padho gita me parameswar kaun he

      • ishvar ke anek gun hai usi gun ke nam brahma vishnu mahesh[shiv ] adi hai
        jab shiv nirakaar hai tab uski murti kyo puji jaye kaun si murti jyoti svarup ho sakti hai !

      • आदरणीय राज जी, आपने ईश्वर के अनेक गुण कहे है, जिसमे परमात्मा का एक गुण भी है, शिव अर्थात कल्याणकारी ,शिव भी परमात्मा का गुणवाचक नाम है ,शिव अजन्मा ,अनादि ,निराकार होने से अभोक्ता है, निजानन्द,सत्चितानन्द ,ज्योतिर्स्वरूपम् है वही सुप्रीम पावर,ऑल्माइटी अथॉरिटी ,सदाशिव है, आत्माका हर जन्म में नाम बदलता है लेकिन शिव का नाम अजन्मा होने से नहीं बदलता है वह तो सदा….. शिव ही है ,वह ब्रम्हा ,विष्णु शंकर के भी रचैता है , ब्रम्हाद्वारा स्थापना।,विष्णुद्वारा पालना और शंकर द्वारा विनाश उसीका कार्य है ,वही सुखकर्ता,दुखहर्ता है, पुरानी दुनिया का विनाश तथा नई दुनिया की स्थापना उसी का काम है वही धरती पर स्वर्ग बनता है (गार्डन ऑफ़ अल्लाह ),पैराडाइस बनाने वाला भी वही है I पूजापाठ करनेवाले उसका सही अर्थ न समझने के कारण, उसका स्वरूप भी न समझने के कारण,पत्थर का शिवलिंग बना दिया है ,नहीं तो दूध ,जल ,फूल आदि किसपर चढ़ाएंगे I सोमनाथ ( ज्ञानरूपी सोमरस पिलाने वाले जिससे परमात्मा का सही परिचय प्राप्त होकर उसका नशा चढ़ जाये ) ,अमरनाथ , मनुष्यको अमर बनने का ज्ञान ( जिससे अकाल मृत्यु नहीं होती ) देनेवाले, भोलेभण्डारी ( ख़ुशी का भंडार भरपूर करने वाले ),मुक्तेश्वर ( मनुष्य की गति ,सत्गति करनेवाले )ओंकरेश्वर ( एक ओंकार स्वरप ), त्रम्बकेश्वर, त्रि अर्थात ब्रम्हा,विष्णु,शंकर के भी ईश्वर ,विश्वेश्वर (सारे विश्व का ईश्वर),महाकाल ,विनाश के समय सभी आत्माओंको एक साथ परमधाम ( निर्वाणधाम )में ले जाने वाला ,शिव है ,वही सत्य है ,सुन्दर है वही शिव है (सत्यम, शिवम, सुंदरम )केवल एक ईश्वर की महिमा है I
        ईश्वर की पूजा नहीं उसे स्मरण किया जाता है ,वह निराकार है तो उसे शरीर न होने के कारण पाव भी नहीं है फिर पूजा कैसी ,उसे स्मरण करना अर्थात याद करना,देहधारी से देहधारी की पूजा नहीं परमात्मा देहधारी नहीं है ,आत्मा ने देह धारण किया तो वह कर्मा बंधन में जरूर फसता है,परमात्मा जनम मृत्यु में न आने कारण बंधन मुक्त है,अपनेको आत्मा रूप में देख परमात्मा को याद करना (आत्माका परमात्मासे योग अर्थात जुड़ना ) परमात्माके निरंतर सदा याद में रहना (अजपाजाप) और अपने नित्य कर्म करते रहनेवाला ही कर्मयोगी है, ना कि, संसार की जिम्मेवारी छोड़ मन्दिरमे बैठे रहना ,और परमात्मा नाम का जाप करना ,वह पूजा, जाप, मंत्र, महिमा आदि भक्ति से…

      • प्रसंन्न नहीं होता वह तो अपने बताये गए मार्ग पर चलने वाले पर खुश होता है ,जब मोबाईल डिस्चार्ज होता है तो उसे मैं पावर सप्लाय के लिए कनेक्ट किया जाता है ठीक उसी प्रकार आत्मा की बैटरी जन्मजन्मांतर से डिस्चार्ज हो गई है अब उसे चार्ज करने के लिए परमात्मा से (सुपर पावर) योग (कनेक्शन )लगाना चाहिए
        शिव और शंकर में फर्क है ,उनके गुण ,कर्त्तव्य अलग है ,शिव है, परमधामवासी परमात्मा, शंकर है ,सुष्म वतनवासी देवता ,शिव है निराकारी ,शंकर है आकारी, शिव परमात्मा शंकरद्वारा विनाश करते है, शंकर एक तपस्वी स्वरुप दिखाया गया है ,उसे शिवलिंग के आगे तपश्या करते दिखाते है यहाँ शिव और शंकर में फरक है अगर शिव ही शंकर हो तो वह स्वतः सपूर्ण होने के कारण फिर ध्यान किसका करते है ( दुनियावाले नासमज के कारण कह देते है वह विष्णु का करते है ,कोई कहता राम का ,और राम फिर शिव का ध्यान करता है बस सर्किल पूरा कर देते है ) शंकर का स्वरुप देखो वह योगमुद्रा मे है , मस्तक पर चन्द्रमा जो योगी का शीतलता का प्रतिक है शरीर पर भस्म वैराग्यता का प्रतिक है सबसे मित्रता भी हो और न्यारा पन भी हो ,सबका प्यारा भी हो , त्रिनेत्री, तीन आखे वाला नहीं बल्कि त्रिकालज्ञानी जो भूत, भविष्य और वर्तमान की स्तिथी को जानकर जीवनमे आगे चलता हो, गलेमें सॉफ अर्थात विकारो पे जीत पाई हो, सर पर गंगा अर्थात परमात्मका शुद्ध ज्ञान की गंगा मुख से सदैव बहती हो ऐसा योगी परमात्माको प्रिय है I शिव और शंकर को एक दिखाकर परमात्मा की असली पहचान से वंचित कर दिया है I

      • param adarniy shri anand ji, ham aapki bahut si bato se sahamat hai !
        fir bhi kuch antar rakhne ke ichhuk hai shankar ki jo bat rakhi gayi hai vah bhi ek cartoon pratik ke rup me hai ! ishvar kabhi khsuh v naraj nahi hota kyoki dono vikaar hai
        karma nusaar nyay jarur karta hai!

      • @Ananad

        Sir, aap ke vichar brahmkumari sanstha se liye gaye hai aisa lagata hai? Braham Kumari santha ke anusar Ishwar sabhi jagah nahi. Wo bhi Islam ki tarah ishwar ko simit sthan par batate hai.

      • ishwr srv shktimaan he uska koi aakar nhi to jb wo srv shktimaan he to arsh yaani satve aasman se b sb kuch dekh or sun skta he. or jb wo hm mnushyo ko ese remote cntrl bnane or robert banane ka dimag de skta ho to socho uske pas kitni shkti or dimag hoga. ek mnushya phn k through kisi b jgh se sunne ki shkti de skta he to khud andaaza lgalo k khuda vha se kya nhi kr skta. usko kisi cheej me smane ki jrurt nhi wh apne ek ishare se sb bna b skti he or mita b.

  9. *8 वसु : आप, ध्रुव, सोम, धर, अनिल, अनल, प्रत्यूष और प्रभाष।
    *12 आदित्य : अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य, पूषा, भग, मित्र, वरुण, वैवस्वत और विष्णु।
    *11 रुद्र : मनु, मन्यु, शिव, महत, ऋतुध्वज, महिनस, उम्रतेरस, काल, वामदेव, भव और धृत-ध्वज ये 11 रुद्र देव हैं। इनके पुराणों में अलग अलग नाम मिलते हैं।
    *2 अश्विनी कुमार : अश्विनीकुमार त्वष्टा की पुत्री प्रभा नाम की स्त्री से उत्पन्न सूर्य के दो पुत्र हैं। ये आयुर्वेद के आदि आचार्य माने जाते

    अब जानिए क्षेत्रवार देवताओं के नाम:-
    1.
    आकाश के देवता अर्थात स्व: (स्वर्ग):- सूर्य, वरुण, मित्र, पूषन, विष्णु, उषा, अपांनपात, सविता, त्रिप, विंवस्वत, आदिंत्यगण, अश्विनद्वय आदि।

    2.
    अंतरिक्ष के देवता अर्थात भूव: (अंतरिक्ष):- पर्जन्य, वायु, इंद्र, मरुत, रुद्र, मातरिश्वन्, त्रिप्रआप्त्य, अज एकपाद, आप, अहितर्बुध्न्य।

    3.
    पृथ्वी के देवता अर्थात भू: (धरती):- पृथ्वी, उषा, अग्नि, सोम, बृहस्पति, नद‍ियां आदि।
    अज एकपाद’ और ‘अहितर्बुध्न्य’ दोनों आधे पशु और आधे मानवरूप हैं। मरुतों की माता की ‘चितकबरी गाय’ है। एक इन्द्र की ‘वृषभ’ (बैल) के समान था। राजा बली भी इंद्र बन चुके हैं और रावण पुत्र मेघनाद ने भी इंद्रपद हासिल कर लिया था। इसके अलावा विश्वदेव, आर्यमन, तथा ‘ऋत’ नाम के भी देवता हैं। अर्यमनन पित्रों के देवता हैं, तो ऋत नैतिक व्यवस्था को कायम रखने वाले देवता।
    वेदों में हमें बहुत से देवताओं की स्तुति और प्रार्थना के मंत्र मिलते हैं। इनमें मुख्य-मुख्य देवता ये हैं: प्राकृतिक शक्तियां : अग्नि, वायु, इंद्र, वरुण, मित्र, मरुत, त्वष्टा, सोम, ऋभुः, द्यौः, पृथ्वी, सूर्य (आदित्य), बृहस्पति, वाक, काल, अन्न, वनस्पति, पर्वत, पर्जन्य, धेनु, पूषा, आपः, सविता, उषा, औषधि, अरण्य, ऋतु, त्वष्टा, श्रद्धा आदि।

    दिव्य शक्तियां : ब्रह्मा (प्रजापति), विष्णु (नारायण), शिव (रुद्र), अश्विनीकुमार, 12 आदित्य (इसमें से एक विष्णु है), यम, पितृ (अर्यमा), मृत्यु, श्रद्धा, शचि, दिति, अदिति, कश्यप, विश्वकर्मा, गायत्री, सावित्री, सती, सरस्वती, लक्ष्मी, आत्मा, बृहस्पति, शुक्राचार्य आदि।

    गायत्री मंत्र के 24 अक्षरों को 24 देवताओं संबंधित माना गया है। इस महामंत्र को 24 देवताओं का एवं संघ, समुच्चय या संयुक्त परिवार कह सकते हैं। इस मंत्र के जाप से 24 देवता जाग्रत हो उठते हैं।
    गायत्री के 24 अक्षरों में विद्यमान 24 देवताओं के नाम:-
    1.
    अग्नि
    2.
    प्रजापति
    3.
    चन्द्रमा
    4.
    ईशान
    5.
    सविता
    6.
    आदित्य
    7.
    बृहस्पति
    8.
    मित्रावरुण
    9.
    भग
    10.
    अर्यमा
    11.
    गणेश
    12.
    त्वष्टा
    13.
    पूषा
    14.
    इन्द्राग्नि
    15.
    वायु
    16.
    वामदेव
    17.
    मैत्रावरूण
    18.
    विश्वेदेवा
    19.
    मातृक
    20.
    विष्णु
    21.
    वसुगण
    22.
    रूद्रगण
    23.
    कुबेर
    24.
    अश्विनीकुमार।
    गायत्री ब्रह्मकल्प में देवताओं के नामों का उल्लेख इस तरह से किया गया है:-
    1-
    अग्नि, 2-वायु, 3-सूर्य, 4-कुबेर, 5-यम, 6-वरुण, 7-बृहस्पति, 8-पर्जन्य, 9-इन्द्र, 10-गन्धर्व, 11-प्रोष्ठ, 12-मित्रावरूण, 13-त्वष्टा, 14-वासव, 15-मरूत, 16-सोम, 17-अंगिरा, 18-विश्वेदेवा, 19-अश्विनीकुमार, 20-पूषा, 21-रूद्र, 22-विद्युत, 23-ब्रह्म, 24-अदिति ।

    • ishvar ke alava any koi pujniy nahi hai !
      devta kaun hai
      jo dete ho vah devta
      aur levta kaun hai jo samaj se bal purvak lete ho apardh karte ho vah levta
      jaise chor badmash rahazan dakait hatyare repisht adi ! thag dhokhebaaz aadi bi !

  10. 33
    देवी और देवताओं के कुल के अन्य बहुत से देवी-देवता हैं: सभी की संख्या मिलकर भी 33 करोड़ नहीं होती, लाख भी नहीं होती और हजार भी नहीं। वर्तमान में इनकी पूजा होती है।
    *शिव-सती : सती ही पार्वती है और वहीं दुर्गा है। उसी के नौ रूप हैं। वही दस महाविद्या है। शिव ही रुद्र हैं और हनुमानजी जैसे उनके कई अंशावतार भी हैं।
    *विष्णु-लक्ष्मी : विष्णु के 24 अवतार हैं। वहीं राम है और वही कृष्ण भी। बुद्ध भी वही है और नर-नारायण भी वही है। विष्णु जिस शेषनाग पर सोते हैं वही नाग देवता भिन्न-भिन्न रूपों में अवतार लेते हैं। लक्ष्मण और बलराम उन्हीं के अवतार हैं।
    *ब्रह्मा-सरस्वती : ब्रह्मा को प्रजापति कहा जाता है। उनके मानसपुत्रों के पुत्रों में कश्यप ऋषि हुए जिनकी कई पत्नियां थी। उन्हीं से इस धरती पर पशु, पक्षी और नर-वानर आदि प्रजातियों का जन्म हुआ। चूंकि वह हमारे जन्मदाता हैं इसलिए ब्रह्मा को प्रजापिता भी कहा जाता है।
    निष्कर्ष : आपने देखा की 12 आदित्यों में से ही एक विष्णु और 11 रुद्रों में से ही एक शिव और ब्रह्मा को ही प्राजापति कहा गया है। 8 वसु भी दक्षकन्या वसु के पुत्र थे जिनके पिता कष्यप ऋषि थे और 11 रुद्रों के ‍पिता भी कश्यप ऋषि थे। रुद्रों की माता का नाम सुरभि था।

    आप् वाता सक्ते हेँ iswar k baad kaun he jo dayalu aur krupalu he ……aap nehin bata sakte kyun ki aap unke khilap he

    • shatpath brahman granth 14-5-7-4 me sirf 33 devta kahe gaye hai usme sury dharti jal pavan chandr buddh brahaspati mangal shukr shani i grah adi hai saal ke 12 maah bhi devta hai aur yah sabhi devta apujy hai
      sirf ishvar ki hi upasna karne yogy hai jo yah sab devta hai unko bhi ishvar ne hi banaya hai
      tab vah ishvar se bade harguij nahi ho sakte hai
      isliye sirf ishvar hi pujy hai !

      • Manine kab kaha ki iswar ki puja nehin hoti …maine sirf 33 koti devta ka ullekh dia he ……..aap mujhe ek baat bataiye ..ved ko iswar ne khud likh k dia ya phir wo sirf kaha he aur likha koi aur he …..mujhe iss baat ki uttar den pehle….aur kya isawar ko palan har srusti karta aur binash karta kaha jata he …agar haan kehenhe toh jis pap ki nadi me allha duba hua he aise hin ved ki iswar v dub jayega ….100% …….pehle mujhe iski zawab do phir me aapko bataunga

      • adarniy shri raam ji aapne durga adi ka hi naam liya hai jo hamari drishti me kalpit hai unak kabhi astitv nahi raha hai
        buddh ji to ved virodhi aur ishvar virodhi bhi the tab unko vishnu ka avtaar kaise kaha ja sakta hai
        hamari samajh me sansaar banan e ke baad 4 yogy vyaktiyo ne samaadhi avastha me jakar jo unko gyan aatmsaat hua usko ishvariy gyan kah diya gaya hai ! ved ka ek arth hai gyan
        ishvar ke asankhy gun hai usi me palan karta srishti ko sthir karta aur vinash karta bhi hai ! yh sansaar asankhy baar bana aur mita hai age bhi banega aur mitega bhee
        jaise ishvar nadi aur ananat hai usi t arah se uske sabhi gun bhi anadi aur ananat hain

  11. रश्न- कृपया ईश्वर के मुख्य गुणों को संक्षेप में बताएं ।
    उत्तर- उसके गुण अनंत हैं और शब्दों में वर्णन नहीं किये जा सकते । फिर भी कुछ मुख्या गुण इस प्रकार हैं :

    1. उसका अस्तित्व है ।
    2. वह चेतन है ।
    3. वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है ।
    4. वह निराकार है ।
    5. वह अपरिवर्तनीय है ।
    6. वह सर्वशक्तिमान है ।
    7. वह न्यायकारी है ।
    8. वह दयालु है ।
    9. वह अजन्मा है ।
    10.वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता ।
    11. वह अनंत है ।
    12. वह सर्वव्यापक है ।
    13. वह सब से रहित है ।
    14. उसका देश अथवा काल की अपेक्षा से कोई आदि अथवा अंत नहीं है ।
    15. वह अनुपम है ।
    16. वह संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है ।
    17. वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है ।
    18. वह सब कुछ जानता है।
    19. उसका कभी क्षय नहीं होता, वह सदैव परिपूर्ण है ।
    20. उसको किसी का भय नहीं है ।
    21. वह शुद्धस्वरूप है ।
    22. उसके कोई अभिकर्ता (एजेंट) नहीं है । उसका सभी जीवों के साथ सीधा सम्बन्ध है।

    question—-Iswar hai kon . Wo aadmi hai ya aurat hai .ya fir koi aur. Usne humhe racha hai par kyo.
    kyo hume iswar ki aaradhana karni chahiye . ye to ek swarth ka rista ho gya ki hum uski aaradhana kare aur wo humhe uska fal de. Kyo usne ye le ne dene ka chhakkr chalaya………..

    • @Umakant

      Good question……these answers are not provided by any religion

      I have read the answer of Agniveer……and I must say I was unsatisfied….though I didn’t expect a satisfactory answer to this question

      The answer to your question cannot be answered by either the vedas or Agniveer or anybody else…..only ishwar (if there is one) can answer this

      Unfortunately Arjun had that chance with Lord krishna…..he didn’t do it

      Nachiketa had that oppurtunity……..he however used it ask about OM instead

      • It’s answer is Adwait. Non-duality. God wishes to experience himself by creating duality in his own mind. Duality is just illusion.

    • आदरणीय अग्नीवीरजी ,
      सबसे महत्वपूर्ण बात यह है की, आत्मा का (Soul ,रूह, ) कोई धर्म नहीं होता है , शरीर का धर्म होता है ,धर्म के रिवाज से मृत शरीर जलाया या दफनाया जाता है, जब आत्मा शरीर धारण करती है और आत्मा को किसी परिवार या व्यक्ति से पिछले जन्म का हिसाब किताब ( लेंन देंन ) के कारण उसे उस धर्म या परिवार मे जन्म लेना पड़ता है , आत्मा जिस धर्म में पैदा होती है उसी धर्म का संस्कार उस आत्मा में बचपन से ही पड जाता है, इसीकारण वह अन्य धर्म की बाते आसानी से स्वीकार नहीं कर पाता है , ईश्वर ने इस सृष्टी नाटक रंग मच पर समय – समय पर आज जितने भी धर्म सस्थापक ( पैगम्बर ) भेजे उन्होंने मनुष्य को कैसा सुखमय जीवन जीना चाहिए,उन नैतिक मूल्योंकी पालना करने की हमें शिक्षा दी ,उन को जीवन में धारण करना ही धर्म का नाम है , हर कोई धर्म ने अच्छी ही शिक्षा दी है, और वह धर्म की शिक्षाये उस समय के काल और स्थान अनुसार थी, साथ -साथ ईश्वर का परिचय भी दिया गया परन्तु सब ने ईश्वर को पूर्ण रीति से नहीं जाना , जैसे चार सूरदास (दृष्टी हीन ) को हाथी के अलग -अलग अंग पर खड़ा किया और कहा गया की, हाथी कैसा है,जो हाथी के पुंछ के पास था उसने कहा की, हाथी साफ जैसा है , जो हाथी के कान के पास था उसने कहा की हाथी सूफ जैसा है,जो हाथी के पाँव के पास था उसने कहा की हाथी स्तंभ जैसा है ,जो हाथी के सूंड के पास था उसने कहा की हाथी पेड़ जैसा है ,सभी ने अपने अपने स्पर्श अनुभव से ठीक कहा लेकिन सबकी बाते मिलकर हाथी का आकार पूर्ण होता था ,ठीक उसी प्रकार सब धर्म की बाते सुनकर ही हम परमात्मा को अच्छी तरह जान सकते है ,
      सर्व धर्माणी परित्यजेत् मामेकं शरणम व्रज -गीता अ. १८,श्लोक ६६ अर्थात ईश्वर ने ज्ञान अर्जन करने वाले हम सभी अर्जुन ( पार्थ अर्थात पृथ्वीपर पैदा हुए सभी पृथ्वी पुत्र) को उद्देश देते हुए कहा की , सब धर्म और धर्म की एवं शास्त्र, की बाते छोड़ उसमे तेरा समय जायेगा ,अब मै स्वयं सब शास्त्र का सार सुनाता हु , तू मेरे शरण में आ I
      माम् च यो ऽ व्यभिचारेण भक्तियोगेन सेवते I
      स गुणांसमतिर्येता नब्रह्मभुयाय कल्पते I I २६ I I गीता अ. १४
      जो केवल मेरी ही अव्यभिचारी भक्ति करता है (अव्यभिचारी अर्थात केवल एक परमात्माकी ,व्यभिचारी अर्थात सभी देवताओं की ) वह प्रकृति के ( माया से )भी पार होकर वह ब्रम्हस्तर प्राप्त होनेमें…

      • समर्थ है I
        आज हमें जरुरत है की, हर मजहब की बातों को गहनता से समझ उसके सार (एसेन्स ) को समझ ,ज्ञान को जीवन में धारण करे ,ईश्वर ने हमें सबसे बड़ा उपहार दिया है बुद्धि इस बड़े ज्ञानसागर में डुबकी लगाकर गहराई में उतरकर खोजे तो हमें ज्ञान मोती सहज ही प्राप्त होंगे ,मूल बात यह है की ,क्या परमात्मा सर्वज्ञ है और सर्वव्यापी है ?जिसे हम ईश्वर , अल्लाह परमात्मा, गॉड ,सुप्रीम सोल ,ऑलमाइटी अथॉरिटी,निराकारी ,निर्विकारी,अभोक्ता,जन्म -मरण रहित मुल बीज रूप, सर्व शक्तिमान ,ज्ञान सागर ,प्रेम सागर ,आनंद सागर सुख सागर ,शांति सागर, ग्रेट ग्रेट ग्रैंडफादर कहते है, सर्वमे व्याप्त अर्थात कण कण में भगवान हर चीज में भगवान , हम उसे इसीकारण एक का अनेक भगवान कर दिया है उसके अवतार मानने लगे है ,वराह ,कुर्म, मत्स्य, नरसिंह क्या ईश्वर जानवरो के अवतार लेते है ,फिर हमने जिसकी मदत मिली या डर लगा उसे ईश्वर मान लिया या ईश्वर के पास बिठा दिया जैसे हाथी ,सिह ,सॉफ ,बैल ,चूहा ,सूर्य तारे ,चाँद को भी ईश्वर माना ,हम भक्ति में इतने गिरते गए की, हम गुरु, माता -पिता,धर्म सस्थापक , पेड़,पत्थर ,आदि को भी ईश्वर समझ लिया फिर तो 27 नक्षत्र ,आदि को भी ईश्वर समझने लगे हम उस एक को भूल गए और ईश्वर को अनेकता में ला दिया यही सबसे बड़ी भूल है की, हमने उसे सर्वव्यापी बना दिया और हर चीज में उसे ठोक दिया ,अब आप कहे यह उसकी महिमा है की ग्लानि क्या परमात्मा पेड़ के हर पत्ते को भी हिलाते रहता है , जिसमे चेतना है ,उसको दूसरा कोई काम नहीं है, सब जड़ चेतन में ईश्वर है , अगर वह सबमे रहे तो उसका अपना स्वतंत्र अस्तित्व कहा रहा, परमात्माका स्वतंत्र स्वरुप अर्थात अतिसुष्म ज्योतिर्बिंदु है लेकिन सर्वशक्तिमान भी है ,
        कविं पुराण मनुशसितारमणो रनियांसमनुस्मरेधः I
        सर्वस्य धातारमचिन्त्यरूपमादित्यवर्ण तमसः परस्तात I I ९ I I गीता अध्याय ८
        अर्थात ,मै सर्वज्ञ हूँ जो मुझे सभी जानते है ,सारे धरतीपर मेरा अनुशासन है मै अणु से भी अति सुष्म ज्योतिर्बिंदु हुँ, जो मै सबका पालनहार हुँ मेरा स्वरुप बुद्धि के तर्क से बाहर है ,मैं सूर्य के समान तेजोमय हूँ (यहाँ सूर्य समान कहा है अर्थात सूर्य नहीं पर सूर्य की रौशनी जैसा प्रकाशमय हूँ ) , मै इस अंधकार रूपी प्रकृति से भी परे हूँ , इसका हि ध्यान मनुष्य ने करना चाहिये I
        हम आत्माए महान काम करके वाले…

      • महात्मा ,दिव्या गुणों वाले दिव्यात्मा ,पुण्य कर्म करने वाले पुण्यात्मा , देने वाले देवता ,या पाप कर्म करने वाले पापात्मा ,दॄष्टात्मा बन सकते है लेकिन परमात्मा नहीं ,परमात्मा तो केवल एक की ही महिमा है ,आत्मा सो परमात्मा कहना भी गलत है , आत्मा और परमात्मा की महिमा अलग है, ततत्व असि – छान्दोग्योपनिषद – अर्थात ,वह तुम हो या अहंब्रम्हाश्मि – बृहदारण्यकोपनिषद अर्थात मै ही ब्रम्ह हुँ ,( यह गलत नहीं है ) ,वह तुम हो अर्थात सतयुग में तुम ने अच्छे कर्म कर १६ कला संपूर्ण देवता बने थे फिर जन्म-जन्म विकारों मे कलियुग तक आते- आते गिरते गए ,अब अच्छा पुरुषार्थ कर फिर से तुम्हे देवता बनना है जो पहले तूम ही थे यह बात परमात्मा ने आत्मा को कही है I जब आत्मा अपनी योग साधना से दिव्य दॄष्टि द्वारा परमात्मा का साक्षात्कार कर लेता है तब आत्मा सब बन्धनोंसे मुकत अनुभव करती है अर्थात विश्व बंधुत्व की भावना जागती है Iॐ सर्वे भवन्तु सुखिनः
        सर्वे सन्तु निरामयाः ।
        सर्वे भद्राणि पश्यन्तु
        मा कश्चिद्दुःखभाग्भवेत् ।
        ॐ शान्तिः शान्तिः शान्तिः ॥
        अर्थात
        1: Om, May All become Happy,
        2: May All be Free from Illness.
        3: May All See what is Auspicious,
        4: May no one Suffer.
        5: Om Peace, Peace, Peace. सारा संसार ही मेरा परिवार है अब मुझमें में और इस ब्रम्ह में कोई अंतर नहीं है परमात्माके दिव्य गुण आनेसे एक ऐसी स्थितिः को अहंब्रम्हाश्मि कहा जाता है

        एक आत्मा / परमात्मा अलग- अलग चीज में कैसे रह सकती है ( दो शरीर में एक आत्मा कैसे हो सकती है अगर एक में रहे तो दूसरा शरीर मृत हो जायेगा सब में एक ही सोल / सुप्रीम सोल नहीं रह सकती है या चेतन नहीं रख सकती है परमात्मा के अधीन संसार है ,संसार में परमात्मा नहीं
        प्रकृति स्वामवष्टभ्य विसृजामि पुनः पुनः I
        भूतग्राममिमं कृत्स्नमवशप्रकृतवर्शात् I I 8I I गीता अध्याय ११
        सारी सृष्टि मेरे अधीन है मेरे संकल्प मात्र से सारी सृष्टि मै निर्माण करता हु और मेरे ही संकल्प से मैं अंतिम समय में सृष्टि का संहार करता हुँ , सारा संसार ही परमात्मा कैसे हो सकता है , फिर संसार का विनाश याने स्वयं का विनाश हूआ ,यदि ईश्वर किसी चीज को नियंत्रित करता है तो यह कैसे सिद्ध हो सकता है की ईश्वर स्वयं उस चीज में है अगर मान ले की मै कार को अपने नियंत्रण में चलाता हू तो वह जड़ कार…

      • मै थोड़ी हु या मै कार हु यह कहना गलत है , ईश्वर सर्व शक्तिमान होकर भी अति सूक्ष्म ज्योतिर्बिंदु है हम आत्माए भी अति सूक्ष्म र्बिंदु है पर दोनों के क्वॉलिटी में फर्क है अगर केमिकल भाषा में कहे कैल्सियम का एक छोटा अणु और यूरेनियम का एक छोटा अणु दोनों सूक्ष्म है पर दोनों की अनुरेणु की संरचना अलग है एक यूरेनियम का सूक्ष्म अणु में विनाशकारी पावर भरी है जो कैल्सियम के अणु में इतनी नहीं है आपने कहा की,अगर ईश्वर आसमाँ में है तो वह ऊपर से सब कारोबार या क्रिया कैसे कर सकते है (यहाँ सवाल यह उठता है आपने परमात्माको स्थूल रूप दे दिया है ) अगर वह शरीरी है तो नामुनकिन है पर परमात्मा तो अशरीरी है सुप्रीम सोल है, आत्मा प्रकाश की गति से भी अति तीव्र गति से भ्रमण करती है क्योकि उसको अपना द्रव्यमान बहुत ही कम है ,

        आइन्स्टाइन के सापेक्षता के सिद्धांत (Theories of relativity) ने प्रकाश के वेग को अधिकतम सीमा के रूप में बताया है , इसके ऊपर किसी की गति हो नहीं सकती है,मुक्त अवकाशमे प्रकाश की गति 3 x 10^8 m per sec.है तेज से तेज रॉकेट की गति 2 x 10^4 m per sec बना सकते है इलेक्ट्रान जैसे बहुत छोटे कण ही प्रकाश की गति तक पहुँचने वाले वेग से घूमते है यदि एैसा हो तो आत्माओं को परमधाम से पृथ्वी पर आने में संभवतः सैकड़ो वर्ष लग जायेंगे किन्तु व्यवहार में यह तथ्य नहीं है, अगर कोई ऑब्जेक्ट प्रकाश की गति से भी तीव्र प्रवास करना चाहती है तो उसे इंफिनिटी एनर्जी की आवश्यकता होगी ,परन्तु सुप्रीम सोल के अंदर इंफिनिटी एनर्जी है ,वह तो ऑब्जेक्ट नहीं है वह आधिभौतिक सत्ता है ,आत्माएं , फोटोनों या प्रकाश की अपेक्षा अधिक वेग से यात्रा करती है वे १ सेकंड के खरब वे भाग में कही भी पहुंच सकती है , (The Heisenberg Uncertainty Principle allows these virtual particles to move faster than light.- According to the mass-energy equivalence formula E = mc2, an object travelling at c would have infinite mass and would therefore require an infinite amount of energy to reach c.
        Now Professor Jim Hill and Dr Barry Cox in the University’s School of Mathematical Sciences have developed a new way to extend Einstein’s sums to understand how faster than light movement can be possible.)_
        आज कुछ भौतिकविद यह कह रहे है…

    • ma baap kon he? hm unki respect q krte he? Hme wo sbse pyaare q he?
      coz unhone hme jnm diya, paala posa. khilaya pilaya. ungli pkdkr chlna shikhaya.
      usi trh allah ne hmare liye snsar bnaya, khane pine ki cheeje duniya me bnayi. ma baap srf apne bchcho ko khilate he lekin allah pahaado me chlrhi chiti ko b khilata he. jis trh hm ma baap ki baate maane awche se pdhe likhe to wo hme jo mango wo dete he sari facilities provyd krte he usi trh allah b uski manne wale ko apne reham se nwaz deta he.

    • 1) Ishwar wo h jisne duniya bnayi h. Ishwar wo h jisne roshni bnayi h, ishwar wo h jisne dharti ko paani se alg kiya. Ishwar h jo hme bnaya aur ishwar wo h jo hmara swargiya pita h.
      Asal me ishwar ko sirf mehsus kiya ja skta h. Uska varnan krna smbhav nhi h. ‘Ishwar wo h jo Hai.’

      2) Wo na aadmi h na aurat. Wo sharirdhaari nhi h. Wo in sbse alg h. Wo param aatma h.

      3)Usne hme racha taki hum uske sath reh sake aur uske diye gye tohfo ko enjoy kr ske.

      4) Aradhana aur prathna parmeshwar k sath waqt guzaarna hota h. Len den ki koi baat nhi par parmeshwar aapke sath rhna chahta h. Ab aapki mrzi h aap waqt guzaro ya nahi.

      Ishwar ki aaradhana isiliye nhi krni h taki wo fal de. Balki isiliye krni h kyuki usne bina maange hi hme bhut kuch diya h. Aaradhana diye hue chijo k liye ki jati h na ki kisi chij k liye.

      Baat rhi Len den ki to apne pita se koi cheej maagna len den nhi h balki ek adhikaar h aur hmare pita ka anugrah.

  12. Hi
    Main yeh janna chahta hu ki jab shrishti ki rachna Brahma ne ki hai to sabhi devi devta rishi muni yogi aadi keval Bharat me hi kyu hue. Ye Islam air Christian dharm aadi videsh kyu hue.
    Please koi mujhe reply de

    • भारत ऐसा अविनाशी खंड है , जहाँ स्वयं भगवान का अवतरण होता है ,गर्भ से जन्म नही होता है या न कोई अवतार लेते है बल्कि मनुष्य तन का आधार लेते है जिसे भगवान स्वयं ब्रम्हा नाम रखते है , कलियुग में पतित आत्माओं को परमात्मा दिव्य ज्ञान ( श्रीमत ) ब्रम्हा तन का आधार ( माध्यम ) ले के देते है , कलियुग के अंत में भगवान की श्रीमत द्वारा आत्माओं मे फिरसे अच्छे संस्कार भरे जाते है ,जो आत्माए योगबल से फिर सारी शक्तियां प्राप्त कर ( दिव्य गुणों को धारण कर ) फ़िर से सतयुग मे दिव्यात्मा ( देवता ) के रूप में जन्म लेते है , सतयुग को कहा जाता है, स्वर्ग, नई दुनिया (बहिश्त),पैराडाइस धरती पर, सतयुगमे सिर्फ ९ लाख आत्माये जन्म लेती है , त्रेता युग तक उन दिव्य आत्माओं की संख्या ३३ करोड़ तक पहुँचती है , यहाँ के समय तक आनेवाली आत्माए देवता कहलाती है जो दिव्य गुणों वाली श्रेष्ठ आत्माए है वह भी सिर्फ भारत में जन्म लेती है ( इसलिए भारत में ३३ करोड़ देवी – देवता का गायन है ) सबसे पहले परमात्मा ने ब्रम्हा द्वारा सतयुग में अर्थात भारत में ही स्वर्ग की स्थापना की है , अन्य किसी भी खंड पर नहीं । आदि सनातन हिन्दू देवी – देवता धर्म सबसे पुराना धर्म है परन्तु पुनर्जन्म लेते -लेते और विकारो मे गिरने के कारण तथा पतित होने के कारण सिर्फ हिन्दू कहलाने लगे, ( यहाँ धर्म अर्थात दिव्य गुणों की धारणा करने वाले ) जहा स्वयं परमात्मा का अवतरण होता है और दिव्य गुणों वाली आत्माओं का जन्म होता है उस धरती को आज हम भारत माता ( वन्दे मातरम) कहते है बाकी सारे पृथ्वी पर किसी भी देश को माँ का संबोधन नहीं करते है इसलिये भारत पहले सोने की चिड़िया था कहते थे, हिन्दू धर्म सबसे पुराना होने से इसके संस्थापक स्वयं भगवान हैं यह हम भूल गए है बाकि अन्य धर्म अलग – अलग खंड पर अलग – अलग धर्म संस्थापक द्वारा स्थापित हुए , जैसे आज से लगभग २५०० वर्ष पहले इब्राहिम ने इस्लाम धर्म स्थापित किया ,लगभग २२५० वर्ष पूर्व महात्मा गौतम बुद्ध ने बौद्ध धर्म स्थापित किया , लगभग २००० वर्ष पूर्व ईसा ने ईसाई धर्म स्थापित किया ,१५०० वर्ष पूर्व शंकराचार्य ने कर्म- सन्यास सम्प्रदाय स्थापन किया और कोई १४०० वर्ष पूर्व मुहमद पैंगबर जी ने मुसलमान धर्म स्थापित किया , इसी प्रकार अन्य आत्माए भी अपने पूर्व जन्म के संस्कार अनुसार उन धर्म में आती गई , आज अनेक भाषाएँ तथा…

  13. shri krishan hi puran parmatmaa par barhmaa hai wa hi sab kuj hai aap bramaavarvat puran pada main kuj nahi kaho ga yeh hi nirakar ishwar sawroop hai inmaa vishu shiv barhmaa main kio anter nahi hai inhona nirakar sa akar roop parpat kiya taki ki hum inko jaan sakaa yaha tak ki ya hamar beech bi aata hai jab bi darti par julam hota hai yah hi jyoti hai main kio tark nahi karna chata hindu darm sab sa pahala darm hai is main hi sara darmo ki utpati hui hai jaisa sankrit si sari lang nikli hai

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