- ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मन्दिर – सौ से अधिक प्रमाण (भाग-तेरह)
- ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मंदिर – सौ प्रमाण (भाग – बारह)
- ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मंदिर – सौ प्रमाण (भाग-ग्यारह)
- ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मन्दिर – सौ प्रमाण (भाग दस)
- ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मन्दिर – सौ प्रमाण (भाग नौ)
- ताजमहल एक ज्योतिर्लिंग मन्दिर – सौ प्रमाण (भाग आठ)
- ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग सात)
- ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग छः)
- ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग पांच)
- ताज महलः एक ज्योतिर्लिंग मंदिर-सौ प्रमाण (भाग चार)
- ताज महल: एक ज्योतिर्लिंग मंदिर- सौ प्रमाण (भाग तीन)
- ताज महलः एक ज्योतिर्लिंग मंदिर-सौ प्रमाण (भाग दो)
- ताज महलः एक ज्योतिर्लिंग मंदिर-सौ प्रमाण (भाग एक)
- छलावे का अंत और मंदिरों की पुनः प्राप्ति
90. ताज की ओर जाने वाले रास्ते पर जगह-जगह मिट्टी के टीले बने हुए हैं। जब ताज का निर्माण हो रहा था, तब उसकी नींव की खुदाई से निकली मिट्टी से यह टीले बनाए गए थे। ताज परिसर के लिए यह टीले एक तरह से सुरक्षा बाड़ का काम करते हैं। इमारत के बाहर इस तरह के टीले बनाना सुरक्षा का पुरातन हिन्दू तंत्र रहा है। निकट ही भरतपुर में भी ऐसी व्यवस्था देखी जा सकती है।
91. पीटर मंडी ने लिखा है कि शाहजहां ने हजारों मजदूर लगवाकर कुछ टीलों को समतल करवा दिया है। शाहजहां से बहुत पहले ही ताज के अस्तित्व का यह एक पुख्ता सबूत है।
92. ताज के पीछे यमुना नदी किनारे शमशान घाट, स्नान के घाट, कई महल और शिव मंदिर बने हुए हैं। यदि ताजमहल शाहजहां ने बनवाया होता इन हिन्दू चिन्हों का वहां नामो-निशान भी न होता।
93. ताज में सुरक्षा की दृष्टी से दरवाजों पर नोकदार मोटी कीलें लगी हुई हैं तथा ताज के पूर्व में खाई बनी हुई है और पिछवाड़े यमुना नदी भी जल से भरी खाई का ही काम देती है। इस प्रकार की सुरक्षा व्यवस्था से पता चलता है कि ताज कोई मामूली मकबरा नहीं है बल्कि एक विपुल संपत्तिशाली प्रसिध्द राजमन्दिर था।
94. यह कथन कि शाहजहां यमुना पार भी काले संगमरमर से एक और ताज बनवाना चाहता था – एक और प्रायोजित झूठ है। यमुना के पार मौजूद खंडरों के छितरे हुए अवशेष दरअसल किसी दूसरे ताज महल की नींव का आधारभूत ढांचा नहीं हैं बल्कि उन हिन्दू स्थापत्यों के अवशेष हैं, जो मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा धवस्त कर दिए गए थे। शाहजहां जिसने कि सफ़ेद ताज ही नहीं बनवाया वह काला ताज का बनवाएगा! वह तो इतना अत्याचारी और कंजूस था कि उसने ताज को मुस्लिम मकबरे का रूप देने के लिए जो तोड़-फोड़ कर ऊपरी हेर-फ़ेर का काम किया था वह भी कारीगरों और मजदूरों से बेगारी करवाई गई थी।
95. शाहजहां द्वारा जो संगमरमर कुरान की आयतें जड़वाने के लिए लगाया गया था – वह दूधिया छटा वाला है जबकि बाकी दिवारों के संगमरमर में स्वर्णिम आभा झलकती है। यह असंगति दर्शाती है कि कुरान की आयतों वाला संगमरमर बाद में ऊपर से जड़ा गया है।
96. कई इतिहासकारों ने अपनी कल्पना शक्ति का इस्तेमाल कर ताज के रचनाकारों के जाली नाम गढ़ने का काम कर लोगों की आंखों में बखूबी धूल झोंकी है। कुछ ने तो अपने दिमागी घोड़े स्वयं शाहजहां को ही ताज का शिल्पकार घोषित करने के लिए दौडाएं हैं। उनके अनुसार शाहजहां कलात्मक बुद्धि रखनेवाला उच्च कोटि का वास्तुशिल्पी था। जिसने मुमताज़ के वियोग में इतना दुखी होने के बावजूद आसानी से ताज की कल्पना कर उसे साकार रूप प्रदान कर दिया था। ऐसा कहने वाले इतिहास के प्रति अपनी घोर अज्ञानता प्रदर्शित करते हैं क्योंकि शाहजहां एक अत्यंत क्रूर तानाशाह तथा शराब और नशे की लत से ग्रस्त भयंकर व्यभिचारी बादशाह था।
97. शाहजहां को ताज का निर्माणकर्ता बताने के लिए बढ़ा-चढ़ा कर किये गए सभी दावे गोल-मोल हैं। कुछ का कहना है कि शाहजहां ने दुनिया भर से इमारत की रूप-रेखा के नक़्शे मंगवाए और उन में से एक पसंद किया। जबकि कुछ अन्य के अनुसार शाहजहां ने अपने निकटस्थ व्यक्ति से ही मकबरे की रूप-रेखा बनवाई थी और उसे ही मान्य किया गया। यदि इन में से कोई एक बात भी सच है तो इससे सम्बन्धित हजारों नक़्शे शाहजहां के दरबारी दस्तावेजों में होने चाहिए थे परन्तु वहां कोई एक रेखा-चित्र भी नहीं मिलता। यह एक और ठोस प्रमाण है कि शाहजहां ताज का निर्माता नहीं है।
98. ताज के चारों ओर इमारतों के विशाल खंडहर हैं जो इस बात का संकेत हैं कि वहां कई बार युद्ध हुआ था।
99. ताज के दक्षिण-पूर्वी छोर पर एक प्राचीन राजकीय पशुशाला है। तेजोमहालय राजमंदिर की गौएं यहाँ पाली जाती थीं। एक इस्लामी मकबरे में भला गौशाला का क्या काम? गौशाला और मकबरे का कोई मेल नहीं बैठता।
100. ताज के पश्चिमी किनारे पर लाल पत्थर से बने कई उपभवन हैं जो कि एक मकबरे के हिसाब से अनावश्यक हैं।
Original English article is available here: TAJ MAHAL IS A SHIVA TEMPLE – 100 EVIDENCES (PART 12)
From: Works of P.N. Oak