UPI - agniveerupi@sbi, agniveer.eazypay@icici
PayPal - [email protected]

Agniveer® is serving Dharma since 2008. This initiative is NO WAY associated with the defence forces scheme launched by Indian Govt in 2022

UPI
agniveerupi@sbi,
agniveer.eazypay@icici

Agniveer® is serving Dharma since 2008. This initiative is NO WAY associated with the defence forces scheme launched by Indian Govt in 2022

ईश्वर तो पागल ही होना चाहिए !

Note: This article does not intend to deride any religious belief. On contrary, Agniveer believes in utmost respect for any religious belief, irrespective of religion, so far it is respectful and tolerant of others. This article is a series of questions addressed specifically to those who believe that only their religion is best and others are inferior. The aim of the article is to drive home the point that religion is a matter of personal faith. Any attempt to desire others to leave their personal faiths and imbibe my favorite religion will be full of logical loopholes. Any reference to name of any religion in this article refers only to those elements in these religions who are indulged in conversion activities.

 अनेक संप्रदायों का इस प्रकार है:

– इश्वर न्यायी, दयालु और परिपूर्ण है|

– यह हमारा पहेला और अंतिम जीवन है|

– इश्वर हमारी कसौटी ले रहा है|

– और इस कसौटी के परिणाम के आधार पर इश्वर हमें स्वर्ग में या तो नर्क में भेजता है|

 

संप्रदायों में थोड़ी सी ही भिन्नता है:

– कसौटी के प्रकार और उसका मापदंड|

– स्वर्ग और नर्क का वर्णन|

– कसौटी में खरा उतरने के लिए जरुरी जनुन या कट्टरपन की हद|

 

पर ये निश्चित रूप से मानते है कि, हमें एक ही जीवन मिलता है, हमारा यह जीवन इश्वर द्वारा ली जाने वाली एक कसौटी है और इस कसौटी के परिणाम के आधार पर इश्वर हमें हमेशा के लिए स्वर्ग में या तो नर्क में भेजता है|

अब हम तर्कपूर्ण प्रश्नों और उदाहरणों द्वारा संप्रदायों की मान्यताओं का विश्लेषण करेंगे और देखेंगे कि यह मान्यताएं कितनी हद तक सच्ची और विश्वसनीय है|

१. माँ के गर्भ में ही काफ़ी सारे बच्चों की मृत्यु हो जाती है| तो फ़िर यह बच्चे मृत्यु के बाद कहा जायेंगे? स्वर्ग में या नर्क में?

इन संप्रदायों के विद्वानों का मानना है कि ये बच्चे स्वर्ग में जायेंगे क्योंकि इन बच्चों ने अपने जीवन में कभी कोई बुरा काम नहीं किया|

पर मेरा प्रश्न यह है कि, क्या इन बच्चों को अपने जीवन में कोई गलत काम करने का एक भी मौक़ा मिला था?

इस्लाम और ईसाई मत का भगवान एक उमेदवार की (वो बच्चे जीनकी मृत्यु माता के गर्भ में हो जाती है) कसौटी लिए बिना ही स्वर्ग में भेज देता है, और दूसरे उमेदवार की एक के बाद एक १०० वर्षों तक कसौटी करता रहेता है| तो क्या ऐसा भगवान पक्षपाती नहीं कहा जायेगा?

२. काफ़ी सारे बच्चों की मृत्यु अपनी परिपक्वता की अवधि में पहुचने से पहलें ही हो जाती है| और अगर मृत्यु के पहलें इन बच्चों ने थोड़े बहुत गलत काम किए भी हो, तो वो बुरे इरादे से नहीं, पर निर्दोषता के कारण ही| तो यह बच्चे मृत्यु के बाद कहा जायेंगे? स्वर्ग में या नर्क में?

अगर ये बच्चे स्वर्ग में जाते है तो फ़िर भगवान हम सब को बचपन में ही मार के हम सब का स्वर्ग में जाना क्यों तय नहीं करता? और अगर भगवान ऐसा नहीं करता तो क्या वह अन्यायी और अपरिपूर्ण नहीं कहा जायेगा?

और अगर भगवान इन बच्चों को नर्क में भेजता है तो फ़िर उस में इन बच्चों की क्या गलती थी? ये बच्चे तो निर्दोष थे!

३. अब मान लो कि किसी के वहा जुड़वा बच्चों ने जन्म लिया| और दोनो बच्चों ने अपने जीवन के पहलें ३ वर्ष निर्दोषतापूर्ण बिताये| फ़िर उनमे से एक बच्चे की मृत्यु हो जाती है| इसलिए इस्लाम और ईसाई मतानुसार यह बच्चा तो जरुर स्वर्ग में ही जायेगा| और दूसरा बच्चा थोड़े और वर्ष निर्दोषतापूर्ण जीवन बिता कर बाद में बुरी आदतों के कारण काफ़िर (स्व:धर्मत्यागी) बन जाता है| और अंत में ६० वर्ष कि उम्र में उसकी मृत्यु हो जाती है| अब कुरान के अनुसार जो काफ़िर है वह तो नर्क में ही जाते है| इसलिए ये बच्चा भी नर्क में ही जायेंगा|

पर मेरा प्रश्न यह है कि क्या इस बच्चे के काफ़िर बनने का कारण इश्वर ही नहीं है? क्योंकि इश्वर ने ही इस बच्चे को ६० साल की उम्र दी थी| अगर इश्वर/अल्लाह ने इस बच्चे को भी उसके भाई कि तरह ३ वर्ष कि उम्र में ही मार दिया होता तो यह बच्चा भी स्वर्ग में जा सकता था!

इसलिए अगर इश्वर ने सभी को एक ही जीवन दिया है और मृत्यु के बाद हम सब को सदा के लिए स्वर्ग में या नर्क में भेजता है, तो ऐसा इश्वर अन्यायी है यह बात यहाँ पर साबित हो जाती है|

४. अब मान लो कि किसी के वहा एक मानसिक रूप से अस्थिर बच्चे ने जन्म लिया| और उसका मानसिक विकास केवल ५ वर्ष के बच्चे जैसा ही रहा| पर ऐसी मानसिक स्थिति में भी वह बच्चा काफ़ी वर्षों तक जीवित रहा| तो यह बच्चा मृत्यु के बाद कहा जायेगा? स्वर्ग में या नर्क में?

अगर ये बच्चा अपनी मंदबुद्धि के कारण इश्वर की कसौटी में खरा नहीं उतरे, और इश्वर उसे नर्क में भेजे, तो प्रश्न उठता है कि, “बच्चा इश्वर की कसौटी में खरा उतर सके इसके लिए इश्वर ने उसे बुद्धि ही नहीं दी थी|”

और अगर इश्वर बच्चे की मंदबुद्धि को घ्यान में लेकर उसको स्वर्ग में भेजे, तो प्रश्न उठता है कि, “इश्वर सभी बच्चों को मंदबुद्ध क्यों नहीं पैदा करता?” ऐसा करने से सभी लोगों का स्वर्ग में जाना तय हो जाता|

इसलिए या तो इश्वर अन्यायी साबित होता है, या तो फ़िर स्वर्ग या नर्क में जाने के लिए कसौटी देनी ही पड़ती है, यह बात बिलकुल गलत है|

५. अब मान लो कि चार बच्चों ने अलग-अलग परिवारों में जन्म लिया| हिन्दू परिवार, नास्तिक परिवार, मुस्लिम परिवार और ईसाई परिवार| इसलिए समाज, तालीम, शिक्षा और संस्कार अनुसार यह बच्चे क्रम में कट्टर हिन्दू, नास्तिक, मुस्लिम और ईसाई बनेंगे|

तो फ़िर से वही प्रश्न उठता है कि मृत्यु के बाद कौन कहा जायेंगा? अब इस्लाम के अनुसार केवल कुरान और मोंहमद को मानने वाले ही स्वर्ग के अधिकारी है| और ईसाई मत अनुसार जीसस को समर्पित होने वाले ही स्वर्ग में जायेंगे|

हिन्दू और नास्तिक परिवारों में जन्म लेने वाले बच्चे तो निश्चित रूप से नर्क में ही जायेंगे क्योंकि वो कुरान और जीजस को नहीं मानेंगे| पर मेरा प्रश्न यह है कि इश्वर ने सभी लोगों को ईसाई या मुस्लिम परिवारों में जन्म क्यों कही दिया? हिन्दू और नास्तिक परिवारों में लोगों को जन्म देकर उनके लिए नर्क के द्वार क्यों पहलें से ही खुलें छोड दिये? क्या ऐसा कर के इश्वर ने उन लोगों के साथ अन्याय नहीं किया?

अगर मेरा जन्म और पालन हिन्दू परिवार में हुआ है और मुझे कुरान और बाइबल में विश्वास रखने का एक भी कारण नहीं मिला, तो उसमे मेरी क्या गलती है? इन परिवारों में जन्म दे के क्यूँ ईश्वर ने मेरा नर्क में जाना पहलें से ही तय कर दिया?

६. मान लो कि कोई व्यक्ति इस्लाम में दृढ विश्वास रखता है| और वो मानता है कि बच्चे हमेशा स्वर्ग में जाते है क्योंकि ऐसा इस्लाम मत के विद्वानों का कहना है| इसलिए वह व्यक्ति आत्म बलिदान का आदर्श दृष्टान्त स्थापित करने के लिए बच्चों की ह्त्या करना शरू कर देता है| वो सोचता है कि भले ही उसे नर्क में सदा के लिए जलना पड़े, पर वो तो इन मासूम बच्चों को स्वर्ग में भेजने के लिए कुछ भी करेगा|

वैसे देखा जाय तो इस व्यक्ति ने तो निष्काम कर्म और समाजसेवा ही कि है| तो फ़िर यह व्यक्ति मृत्यु के बाद कहा जायेंगा? स्वर्ग में या नर्क में?

अगर वो स्वर्ग में जाता है तो ये बात साबित होती है कि अल्लाह बाल ह्त्या को समर्थन देकर समाज के लिए गलत दृष्टान्त स्थापित करता है| और अगर वो नर्क में जाता है तो यह बात साबित होती है कि अल्लाह निष्काम कर्म और समाज सेवा के खिलाफ है|

ऊपर से, जब तक क़यामत का दिन नहीं आता तब तक ये तय नहीं होता कि कौन स्वर्ग में जायेंगा और कौन नर्क में| उसका यही अर्थ निकलता है कि अल्लाह ने बहुत सारे निश्वार्थ समाज सेवकों को बाल ह्त्या के लिए प्रेरित कर दिया है|

७. कोई भी विषय के बारे में लोगों के ज्ञान कि निष्पक्ष कसौटी करने के लिए:

– पहलें तो हर एक व्यक्ति को वह ज्ञान कि शिक्षा एक समान तरीके से देनी चाहिए,

– और फ़िर, लोगों के ज्ञान का मूल्यांकन एक समान परिस्थिति के तहत ही होना चाहिए

ठीक इसी प्रकार, स्वर्ग या नर्क में भेजने से पहलें लोगों कि निष्पक्ष कसौटी करने के लिए:

– पहलें तो इश्वर/अल्लाह/जीजस को कुरान या बाइबल (उन दोनो में से जो भी सही हो वह) का ज्ञान सभी लोगों के हदय में आत्मसात् करना चाहिए|

– फ़िर उन सभी लोगों को कुरान या बाइबल में मानने वाले परिवारों में ही जन्म देना चाहिए|

– और फ़िर उन सभी लोगों का पालन एक समान परिस्थितिओं के तहत होने के बाद ही उन सबके ज्ञान कि कसौटी लेनी चाहिए|

पर देखनें में आता है कि इश्वर/अल्लाह इस दुनिया में लोगों को अलग-अलग धर्मों का पालन करने वाले परिवारों में जन्म देता है| इसलिए लोग उसी धर्म कि मान्यताओं में पलते है और फ़िर उसी प्रकार के संस्कार ग्रहण करते है| इसलिए सभी मनुष्यों की परिस्थितियाँ एक समान नहीं रहती| और इसलिए लोगों कि निष्पक्ष कसौटी कर पाना संभव नहीं होता| तो फ़िर इश्वर/अल्लाह दयालु, न्यायी और परिपूर्ण कैसे माना जायेगा?

इस प्रश्न के जवाब में इन संप्रदायों के विद्वानों का कहना है कि अल्लाह मनुष्यों को अलग अलग परिस्थितिओं और वातावरण में जन्म देता है| और उसमे रह कर मनुष्य जो भी अच्छे बुरे काम करता है उसके आधार पे ही अल्लाह मनुष्यों के भाग्य का निर्णय करता है| पर ये तो ऐसी बात हुए कि जैसे इश्वर Duckworth-Lewis फोर्मूला का (जब कोई कारण से क्रिकेट मैच बिच में ही रोक देनी पड़ती है, तब अधूरी मैच पूरी किए बिना ही Duckworth-Lewis फोर्मूला का उपयोग कर कौन सी टीम मैच जीती है उसका निर्णय लिया जाता है|) उपयोग करता है|

इस बात से कुछ और सवाल खड़े होते है|

पहेला:

अगर इश्वर सही अर्थ में परिपूर्ण है और उसके पास स्कोर देने का फोर्मूला है तो फिर उसने क्यों ये सब नाटक कर इतने सारे वर्ष बरबाद किए| ईश्वर/अल्लाह को यह फोर्मूला का प्रयोग पहेले से ही करके सबको स्वर्ग में या नर्क में भेज देना चाहिए|

दूसरा:

अगर यह फोर्मूला का प्रयोग कर ईश्वर गर्भ में ही मर जाने वाले बच्चों और छोटे बच्चों को सीधे स्वर्ग में जगह देता है तो फ़िर अल्लाह ने दूसरे लोगों को परेशानियाँ उठाने के लिए लंबी उम्र क्यों दी? लंबी उम्र दे कर ईश्वर ने लोगों के साथ पक्षपात क्यों किया?

तीसरा:

इश्वर की यह कसौटी के असतत परिणाम देखने को मिलते है! कुरान के अनुसार स्वर्ग में जाने वाले सभी लोगों को ७२ कुँवारीकाएँ मिलती है! यहाँ पर कर्म के अनुसार मिलने वाले फल में विभिन्नता या घटबढ़ देखने को नहीं मिलती| अलग अलग पुस्तके स्वर्ग का अलग अलग वर्णन करती है| पर उससे केवल स्वर्ग और नर्क की संख्या में घटबढ़ होती है| पर फिर भी निरन्तर श्रेणीकरण तो कही देखने को नहीं मिलता| यहाँ पर गणितीय सिद्धांत के विरुद्ध, कन्टिन्यूअस फंगक्शन इक्वेश़न कोई डिस्क्रीट परिणाम देता है|

८. ऐसा माना जाता है कि स्वर्ग में लोग हमेशा युवा अवस्था में ही रहते है| तो फ़िर क्या वो लोग अपनी इच्छा अनुसार अपना रूप भी बदल सकते है? निर्दोष बच्चे और माँ के गर्भ में मर जाने वाले बच्चों का स्वर्ग में जाने के बाद क्या होता है? क्या वो स्वर्ग में पहुचनें के बाद युवा हो जाते है? क्या इन बच्चों को हिब्रू या अरबी जेसी दूसरी कोई स्वर्ग की भाषाओं की तालीम दी जाती है? अगर हा, तो फ़िर अल्लाह ने वहीँ भाषा को इस दुनिया की एक मात्र भाषा क्यों नहीं बनाई?

९. प्राणियों और अन्यं जिव जंतुओं का क्या? वो स्वर्ग में जाते है या नर्क में? पहलें तो यह माना जाता था कि प्राणियों में तो आत्मा ही नहीं होती| पर अब यह बात साबित हो चुकी है कि प्राणि भी मनुष्यों की तरह ही सुख और दुःख की अनुभूति करते है| इसलिए यहाँ पर अब दो राय पड़ गई है|

कुछ लोगों का कहना है की सभी प्राणी स्वर्ग में जाते है, और कुछ लोगों का कहना है कि अल्लाह को सब पता है!

अगर सभी प्राणि स्वर्ग में जाते है तो ईश्वर/अल्लाह ने सभी को प्राणी योनी में जन्म क्यों नहीं दिया? अगर अल्लाह बाकियों को भी प्राणि बनाता तो वह सभी के लिए भी स्वर्ग के दरवाजे खुल जाते| ऐसा न करके अल्लाह ने उन लोगों के साथ पक्षपात क्यूँ किया?

और अगर प्राणि नर्क में जाते है तो उसमें प्राणियों की क्या गलती है? क्या स्वर्ग में जाने के बाद प्राणि प्राणि ही रहता हे या फ़िर वो इंसान बन जाता है? स्वर्ग में जाने के बाद प्राणियों की बुद्धि विकसित होती है या नहीं?

१०. इन संप्रदायों के अनुसार अगर स्वर्ग और नर्क हमेशा के लिए होते है तो फ़िर ऊपर के मुद्दों को ध्यान में लेते हुए ईश्वर के अन्याय की कोई सीमा नहीं रह जाती|

क्योंकि ईश्वर कुछ लोगों की कसौटी लिए बिना ही उनको सीधे स्वर्ग में जगह दे देता है, और दूसरे लोगों की वर्षों तक कसौटी लेता रहता है| कुछ लोगों को स्व:धर्म त्यागी के घर में पैदा करता है, तो कुछ लोगों को देवदूत के घर में|

क्या यह सबसे बड़ी धोखेबाजी नहीं है?

अगर एक ही कसौटी के परिणाम स्वरुप हमें हमेशा के लिए स्वर्ग में या नर्क में जाना पडता हो तो फ़िर ईश्वर/अल्लाह सबसे बड़ा अन्यायी और धोखेबाज़ है|

११. दूसरा सवाल ये उठता है कि अगर स्वर्ग में जाने के बाद लोग एक दूसरे को मारना शुरू कर दे या दूसरे अनैतिक काम करना शुरू कर दे तो क्या अल्लाह उन लोगों को स्वर्ग में से नर्क में ट्रांसफर देगा? इन संप्रदायों की पुस्तकें इस बात पर चुप है|

पर अगर अल्लाह उन लोगों को स्वर्ग में से नर्क में ट्रांसफर देगा तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उन लोगों ने अल्लाह को मुर्ख बनाया| इन लोगों ने सिर्फ स्वर्ग में जाने के लिए ही पृथ्वी पर अच्छे काम किये| एक बार स्वर्ग में धुसने के बाद फ़िर से पापकर्म शुरू कर दिये| इसका यहीं अर्थ निकलता है कि अल्लाह ने इन लोगों को स्वर्ग में प्रवेश दे के गलती कि| इससे दो बातें साबित हो जाती है: एक तो “अल्लाह परिपूर्ण नहीं है|” और दूसरी, “अल्लाह सब जानता है यह बात गलत है|”

और अगर अल्लाह इन लोगों को स्वर्ग में ही रख कर उनकी मनमानी चलने देता है तो फ़िर स्वर्ग में और पृथ्वी में क्या अंतर रह जायेगा? इस पृथ्वी पर भी लोग लड़ते रहते है और स्वर्ग में भी लड़ते रहेंगे| इस पृथ्वी पर भी शांति नहीं है और स्वर्ग में भी शांति नहीं रहेंगी| इसलिए स्वर्ग एक निरर्थक स्थान के अतिरिक्त और कुछ नहीं रह जायेगा| पर अल्लाह तो कभी कुछ निरर्थक बनाता ही नहीं है! इससे यह बात साबित हो जाती है कि अल्लाह परिपूर्ण नहीं है| और फ़िर भी अगर अल्लाह पृथ्वी के मनुष्यों को उनके अच्छे कर्मो के फल स्वरुप स्वर्ग में ही भेजता है, तो फ़िर ये तो इन अच्छे लोगों के साथ अन्याय होगा| इस कारण से भी अल्लह अन्यायी और अपरिपूर्ण साबित होता है|

१२. सुनने में आया है कि २ महीने की बच्ची पर बलात्कार किया गया| तो फ़िर यहाँ किसकी कसौटी हो रही है? बच्ची की या फ़िर बलात्कारी की?

अगर बच्ची की कसौटी हो रही है तो क्या यह बच्ची अपना बचाव करने के लिए सक्षम थी?

और अगर बलात्कारी की कसौटी हो रही है तो अल्लाह ने इतनी छोटी बच्ची को ही बलात्कार का शिकार क्यों बनाया? इस में इस बच्ची की क्या गलती थी?

इसलिए अगर स्वर्ग और नर्क की बातें सच है तो ईश्वर मुर्ख, पागल और मनोरोगी तानाशाह साबित होता है|

१३. पूर्व के देशो में तत्त्व-ज्ञान पर लिखी गई लगभग सभी पुस्तकें एक ही जन्म में नहीं मानती| उनके अनुसार जीवन हमेशा चलने वाला एक ऐसा चक्र है जिसे मृत्यु भी नहीं रोक सकती| दूसरे शब्दों में कहे तो वे सभी कर्म के सिद्धांत में मानती है|

अगर यह बात सच नहीं है तो फिर इश्वर/अल्लाह ने कुछ लोगों को पूर्व के देशो में जन्म दे कर उनको दुविधा में क्यों डाल दिया?

बाइबल और कुरान के अनुसार इश्वर ने पूर्वकाल में बहुत सारे चमत्कार किये है| जैसे कि पुरे शहर को जला देना, जीजस जैसे देवदूत को बिना पिता के ही पैदा कर देना| अगर इन संप्रदायों का इश्वर ऐसे चमत्कार कर सकता है तो फिर उसने पूर्व देशो में तत्त्व-ज्ञान पर लिखी गई सभी पुस्तकों को जला क्यों नहीं दिया| क्योंकि उसने ही तो तय किया था कि जो जीजस या मोंहमद को मानने का इनकार करेगा उसे नर्क में ही जाना पडेंगा| आदर्शतः इश्वर को एसी पुस्तकों के सर्जन पर पहले से कि रोक लगा देनी चाहिए थी!

१४. मुस्लिम ग्रंथो के अनुसार मोंहमद ने कह दिया है की उसने स्वर्ग को पुरुषों से भरा हुआ और नर्क को स्त्रियों से भरा हुआ देखा है! इसका अर्थ यह निकलता है कि स्वर्ग पहले से ही पुरुषों के लिए आरक्षित है! अगर ऐसा है तो इश्वर/अलाह अस्थिर मन वाला तानाशाह नहीं कहा जायेगा? (Refer KITAB AL-RIQAQ, Chapter 1, Sahih Bukhari Book 36, Number 6596, Book 36, Number 6597, Book 36, Number 6600)

स्वर्ग में सभी को ७२ कुँवारीकाएँ मिलती होने के कारण शायद समलैंगिक स्त्रियाँ ही स्वर्ग में जा सकती होगी!

१५, इस्लाम के अनुसार स्वर्ग में जाने वाले हर एक पुरुष को चार निष्ठावान पत्नियाँ मिलती है| पर मोंहमद के दावे के अनुसार अगर स्वर्ग केवल पुरुषों से ही भरा पड़ा है तो क्या स्वर्ग एक समलिंगकामुक पुरुषों कि जन्नत नहीं कहा जायेगा? क्योंकि स्वर्ग में अधिकांश पुरुष होने के कारण गणित के अनुसार हर एक पुरुष को चार पत्नियाँ मिलना संभव नहीं| और अगर स्वर्ग में समलैंगिकता ही एक मात्र रास्ता है तो फिर पृथ्वी पर उसका इतना विरोध क्यों?

१६. जहाद के नाम पर आतंकवादी बनने के लिए जिन लोगों का बचपन में ही मत परिवर्तन(brainwash) किया जाता है उन लोगों का क्या? मुंबई के आतंकवादी हमले के लिए जिम्मेदार कासब मर ने के बाद कहा जायेंगा? स्वर्ग में याँ नर्क में? कासब जैसे लोगों का मत परिवर्तन अल्लाह के नाम पर ही शस्त्र उठाने के लिए कट्टरवादि द्वारा किया जाता है!

१७. अगर सही में एक ही जीवन है तो इश्वर ने मानवजाति को दिये हुवे अपने मूल संदेश को लेकर इतनी दुविधाएं पैदा क्यों कि?

आज बाइबल की मूल आवृत्ति अस्तित्व में नहीं है! कुरान का संकलन भी मोंहमद की मृत्यु के बाद हुआ था! और जिन लोगों ने कुरान का संकलन किया था वो सभी एक दूसरे की जान के दुश्मन थे| मानवजाति को अल्लाह के मूल संदेश देने की क्षमता एसे खून के प्यासे लोगों में कैसे हो सकती है? इसके उपरांत, ऐसा माना जाता है कि मोंहमद पर सैतान के प्रभाव के कारण कुरान में कुछ अनुवाक्यों बाद में डाले गये थे!

अगर इश्वर/अल्लाह सही में न्यायी है और हम सब को मात्र एक ही जीवन देता है, तो फिर उसने ऐसी दुविधाएं क्यों पैदा की जिसे कोई भी मनुष्य सुलजा न सके? और फिर उसके मापदंड के अनुसार अगर हम इस दुविधाओं में से बहार नहीं आ पाते तो हमारा नर्क में जाना पक्का! यह सब करके भी इश्वर संतुष्ट नहीं हुआ, और उसने कुछ लोगों को अपने संदेश से हमेशा के लिए दूर रहने का दोष लगाया!

१८. इस्लाम और ईसाई संप्रदायों के अनुसार अगर कोई व्यक्ति उनके मत का स्वीकार करेंगा तो उनका ईश्वर उस व्यक्ति के सभी पापों को माफ़ कर देंगा| इसका अर्थ यही हुवा कि भले आपने अपने जीवन में कुछ भी किया हो, पर अंत में अगर आप इन संप्रदायों के ईश्वर के सामने माफ़ी मांग कर, इनके मतों का स्वीकार करेंगे, तो आपके लिए स्वर्ग के द्वार खोल दिए जायेंगे| पर भले आपने इन मतों का आजीवन पूरी श्रद्धा के साथ पालन किया पर अगर अंत में आप को सत्य का ज्ञान हुआ और आपने इन संप्रदायों के ईश्वर में मानने का इनकार किया, तो फ़िर आपको नर्क में धकेला जायेंगा|

इस बात से कुछ और शंकाएँ पैदा होती है|

पहली:

अगर ऐसा है तो क्या जीवन और इस जीवन के सभी आयामों और उसकी विविधताएं व्यर्थ नहीं बन जायेगी? हमारा पूरा जीवन, जीवन सफल बनाने के लिए किये गए सभी प्रयास, हमारा ज्ञान और ज्ञान को पाने के लिए किया गया अभ्यास, ये सब व्यर्थ हो जायेगा, और अंत में रह जायेगी तो बस हमारी आखरी हाँ या ना| क्या ऐसा करना कुदरत के विरुद्ध नहीं?

हम सभी जानते है कि गुस्सा करना बुरी बात है, पर फिर भी कभी कभी हमारी अज्ञानता और स्वभाव के कारण हमें गुस्सा आ जाता है| ऐसी भूल होना स्वाभाविक है|

ठीक उसी तरह, अगर कोई व्यक्ति जीवन भर अल्लाह को मानता रहा हो, पर अपने जीवन के अंतिम दिनों में उलजन में आ कर स्वधर्म त्यागी बनाता है तो फिर उसको नर्क में भेजने जैसी कठोर सजा क्यों मिलती है?

और अगर कोई व्यक्ति जीवन भर स्वधर्म त्यागी रहा हो, पर अंत समय में इन धर्म संप्रदायों के इश्वर का स्वीकार करता है, तो उसके बुरे कामो को ध्यान में न लेते हुए उसे स्वर्ग में क्यों भेजा जाता है?

हर एक निर्णय में थोड़ी बहुत उलजन तो रहती है| सही निर्णय लेना तभी संभव के जब हमें सब कुछ पता हो और हम सभी वस्तुओं का विश्लेषण कर सके| पर मनुष्य के लिए सब कुछ जान पाना संभव नहीं| इसलिए मनुष्यों द्वारा लिया गया कोई भी निर्णय अंतिम या विश्वसनीय नहीं हो सकता|

इसलिए अगर कोई बाइबल/कुरान में मानता हो के न मानता हो, पर उसके निर्णय के मूल में तो उलजन और मर्यादित ज्ञान ही होगा|

और अगर एसी अज्ञानता के कारण लिए गये निर्णय के आधार पर इश्वर व्यक्ति को हमेशा के लिए नर्क में भेज देता है, तो क्या यह इश्वर पागल नहीं माना जायेगा?

इश्वर ने मनुष्यों की कसौटी करके उसका भाग्य हमेंशा के लिए निश्चित करने के लिए यह कैसी दोषपूर्ण व्यवस्था बनाई है जो लोगों की अज्ञानता पर निर्भर है? क्या यह इश्वर पागल नहीं माना जायेगा?

दूसरी:

क्या इश्वर की यह दोषपूर्ण व्यवस्था मनुष्यों को जीवन भर निरर्थक काम करते रहने कि और अंत में माफ़ी मांग कर स्वर्ग में जगह पा लेने कि प्रेरणा नहीं देती?

इसी कारण से हम देखतें है कि बुढापा आते ही लोग माफ़ी मांग कर स्वर्ग में जाने के लिए “संत” बन बेठते है| और कुछ “होशियार” लोग पहले जीवन भर निरर्थक काम करते है और फिर अपने पापों को कबूल कर, माफ़ी मांग, स्वर्ग में जाने कि कोशिश करते है|

तीसरी:

अगर यह सच है तो फिर कुदरत इश्वर की यह व्यवस्था के विरुद्ध काम क्यों करती है? क्या जब इश्वर परिपूर्ण नहीं था तब उसने कुदरत की रचना की थी? या फिर इश्वर ने सैतान के साथ मिलकर कुदरत की रचना कि है?

क्योंकि अगर आप कुदरत के नियमों के विरुद्ध काम करते हो तो आपको उसकी कीमत चुकानी पड़ती है!

अगर ज्यादा चीनी खाने से आपको मधुमेह हो गया है तो मधुमेह रोग का इलाज सिर्फ माफ़ी मांग कर नहीं हो जाता| मधुमेह के इलाज के लिए आप को पूरी चिकित्सा पद्धति से गुजरना पडता है| सिर्फ माफ़ी मांग लेने से हम रोग मुक्त नहीं हो जाते! माफ़ी मांग लेने से हमें हमारे टूटे हुए दांत वापस नहीं मिल जाते! माफ़ी मांग लेने से हमें शक्ति प्रदान नहीं होती| माफ़ी मांग लेने से हम विद्वान नहीं बन जाते, और माफ़ी मांग लेने से ना ही हम किसी काम में कुशलता प्राप्त कर सकते है! तो फिर माफ़ी मांग लेने से हम स्वर्ग में कैसे जा सकते है?

पर इसके विपरीत, कुदरत में सब कुछ अपरिवर्तनशील नियमों अनुसार अविरत चलता रहता है| उसमे से भाग छुटने का कोई मार्ग नहीं! तो फिर इश्वर अचानक यहाँ पर क्यों कुदरत के नियमों के विरुद्ध काम कर लोगों को स्वर्ग में या नर्क में भेजता है?

१९. अगर ईश्वर/अल्लाह सही में न्यायी और दयालु है तो, वह हमें हमेशा के लिए स्वर्ग या नर्क में भेजने के लिए एसी वस्तुओ में विश्वास करने को क्यों कहता है, जिसको हम कभी देख या सुन नहीं सकते, और जिसका हम कभी विश्लेषण या अनुभव नहीं कर सकते?

बाइबल और कुरान में जिस ईश्वर का वर्णन किया गया है उसको हम कभी देखतें नहीं, ना ही उसके द्वारा किये जाने वाले चमत्कारों को देखतें है| हम ना ही ईश्वर के कोई एजंट, प्रतिनिघि या पैगम्बर को देखतें है, और ना ही किसी बच्चे को बिना पिता के जन्म लेते हुवे देखतें है| ना ही हम कभी इडन के बाग को ढूँढ़ सके और ना ही हम कभी चौथे या सातवे आसमान को ढूँढ़ सके| और ना ही हमें कभी स्वर्ग या नर्क की ज़लक देखने को मिली|

पर फ़िर भी स्वर्ग में जाने के लिए आपको ये सभी बातों को मानना ही पडेंगा, नहीं तो आपका नर्क में जाना पक्का!

२०. इन संप्रदायों के अनुसार मनुष्य अपने कर्मो के अनुसार मरने के बाद या तो नर्क में हमेशा के लिए जलता रहेंगा, या तो फिर स्वर्ग में जा कर ७२ कुँवारीकाएँ के साथ मजे लुटेगा|

पर मेरा प्रश्न यह है की नर्क में मनुष्य को जलने की पीड़ा की अनुभूति कैसे होती है? स्वर्ग में मनुष्य ७२ कुँवारीयों के साथ मजे कैसे लुटता है? ये दोनों बातें होने के लिए मनुष्य शरीर और इन्द्रियों की आवश्यकता होती है|

पर हम तो देखतें है की जब कोई मुसलमान या ईसाई की मृत्यु हो जाती है तो उसके शरीर को इसी पृथ्वी में दफनाया जाता है| इसलिए ये तो पक्की बात है की मरे हुए आदमी का यह शरीर स्वर्ग में या नर्क में नहीं जाता| इस बात से यह साबित होता है कि स्वर्ग में ७२ कुँवारीकाओं के साथ मजे लुटने के लिए या किर नर्क में जलने के लिए अल्लाह मनुष्य को दूसरा शरीर देता है| और अगर अल्लाह यह नहीं करता तो स्वर्ग या नर्क का कोई अर्थ नहीं रह जाता| इसलिए सही में स्वर्ग और नर्क है यह बात साबित करने के लिए भी अल्लाह को मनुष्यों को दूसरा शरीर(पुन:जन्म) देना पडता है| और अगर अल्लाह यह नहीं करता तो फ़िर से अल्लाह अपरिपूर्ण सिद्ध हो जाता है|

इसलिए स्वर्ग और नर्क में मानना पर पुन:जन्म में न मानना ये तो एसी बात हुई की आप दिन के उजाले में मानते हो पर सूरज में मानने से इनकार करते हो| इसलिए यदि स्वर्ग और नर्क में पुन:जन्म होता हो तो फ़िर इस पृथ्वी पर भी पुन:जन्म होता है इस बात का विरोध क्यों?

एसी अस्पष्टताओं और दुविधाओं होने के बाद भी, ईश्वरने हमें सच और झूठ को अच्छी तरह समज कर निर्णय लेने के लिए बुद्धि भी दी है| और दुनिया में हम ऐसे ही बुद्धिजीवियों को बहुत सन्मान देते है|

पर मुझे लगता है कि ऐसे इश्वर के राज में तो विवेक बुद्धि होना और उसका उपयोग करना बहुत ही बड़ा पाप है|

इसलिए केवल अज्ञानता रूपी अंधकार में रहनें वाले ही स्वर्ग में जायेंगे, और विवेक बुद्धि और तर्क का उपयोग करने वाले सभी नर्क में!

निश्चित ही, इश्वर कि यह दुनिया तो बहुत ही अस्पष्ट और दुविधापूर्ण है|

इसलिए मुझे लगता है कि इश्वर/अल्लाह तो पागल ही होना चाहिए!

Original post in English is available at http://agniveer.com/god-testing/

Agniveer
Agniveer
Vedic Dharma, honest history, genuine human rights, impactful life hacks, honest social change, fight against terror, and sincere humanism.

10 COMMENTS

  1. Ek bat btao ram or sita jungal me kya khake jinda rhete the..?…
    Fal khake insan jyada din jinda nahi reh saqta…
    Or ha sita ne ram se hiran ka chamda laneko bola to hiran ko mare bger chamda laye the ya marke???
    Or agar marke to ram ne pap nahi kiya???
    Ganpati ka sar Shankar ne gusse me kat diya… badme ek hathi ka sar katke ganpati pe bitha diya….kya sankar ne hathi ko marke pap nahi kiya…..?…. dekho miya bal ki khal utaroge to har dharm me nikle GI….

    • ganesh ki bate ek kalpnik hai isme sachhai nahi hai !
      ram v sita van me jo fal adi the unka sevan karte the ! baba ramdev ji ne karib 18saal se ann nahi khaya v ah aaj bhi jivit hai aur urjavaan bhi hai . jo svabhavat mare huye hiran the unka chmda istemaal kiya gaya hoga !

  2. Aapki sare bate ki jabab de sakte hu par, q ki aap sawal bachcho jaise karte ho. . .mai apki jabab dunga par uski koi faida nahi hoga. . .
    Mujhe aap ek bat ki jabab diye. . .

    Hindu ki mutabik mai koi ginha karu, jaise kisi ko rape kia. . .to meri kya hogi. . .agar sare log Hindu ki anusar chale to. . .aap kehte ho Iswar pariksha nahi lete sirf wo madat karte hai. . .to kya mujhe rape karne mai madat karegi? . .or agar ye gunha hai to kya hogi maeri bataye? . . mai agar chote chote bachchi ko bure nazar mai dekhu to kya hogi meri , kiu ki aaj kaal India mai 4 sal ki bachchi vi rape hoti hai. . .bataye Hindu dharm ki anusar kya hogi meri. . .kuch vi nahi hogi. . .na dharam koi saja degi na Iswar. . .jo saja hogi is jarm ki bad hogi. . .to baat aisa bana ki, mai koi vi gunha kar sakta hu is jarm mai. . .jo parinam hogi anewale jarm mai hogi. . .mai wo sehen logi, agar mai lange or andhe vi hongi to vi sehen longi, is jarm mai to kuch nahi hogi. . .

    kya mai sahi hu Agniveer. . .or sayad kai log khudko Iswar bolke kursi mai beth jati hai. . .kiu ki usko saja to is jarm koi nahi degi or nahi Iswar koi saja degi. . .ye kaisa Iswar hai ki, dunia mai aisa system banaya. . .ki koi kanhe ki liye tarap rahi hai. . .koi rape karne ki liye. . .or Iswar kehete hai mai madat karunga tumhe. . .or madat vi nahi kar pate hai. . .Ha Ha Ha.

    • jo bhi galat kam karega uski saja raja deta hai sarkari vyavstha aaj bhi deti hai ab rahi baat ishvar ke madad ki koi chori kare ya rep kare ya khushiya bante ishvar kisi ka haath rokne ke liye kabhi nahi pakdta hai ! jara kalpit allah ko bhi dekh lijiye vah bhi saja kaaynat ki samapti ke baad dene ka daava karta hai kitna andher hai ! kam se kam dusre janm to saja mil jayegi !

      • vai Raj, Islam last mai saja deta hai sahi hai, par, hum ye nahi sochte hai ki hame bar bar moka milega, hum sochte hai ye hamari last and final moka hai achche Inshan sabit karne ka. . .or Hindu ki mutabik Inshan ko bar bar moka milte hai. . .ye aisa kanun hai jaise tum kisiko kaho, agar koi kisi Inshan ko khun karega to use 2 sal jail hogi phir chor dia jayegi. . .to koi Inshan kisiko katil karegi or jail mai saja legi, phir 2 sal bad chor dia jayegi phir or ek katil karegi, phir jail mai dhukegi. . . . . istarah jalte rahegi. . .par Islam kehete hai kisiko katil karogi to sare jindegi jail mai gujarna paregi. . .ab batao konsa kanun mai hum jyada safe hai?

        or jaha tak sarkari saja ki bat ho, to ihapar Dharam ki bat ho rahi hai. . .sngbidhan ek alag kitab hai. . .usko bich mai kiu la rahi ho. . .agar Inshan ki banaya hua sangbidhan man sakte ho to Quran kiu nahi? . .ihapar kisi sangbidhan mat lao. . .har jaga mai alag alag kanun hai or hamari des mai itni kanun hai phir vi gunha jayada hoti hai. . .to Idiot jaise bate mat karo. . .or des ki kanun tumko bahar ki gunha se bachayegi or jo ghar ki andar gunah hoti usmai kon bachayegi? . .kuch din pehele ek news ayay ki ek ghar mai apne pita apne beti ko 2 sal se rape kar rahi thi, bechari 2 sal bad ek teacher ko kahi thi tab usko saja mili. . .ab batao ki konsa kanun is gunha ko rokegi? des ki kanun? ya phir Hindu dharam?

      • aap kis kuran ki baat karte hai?
        batlaiye kuran me kaun si ayat hai jise khatana ho
        5 baar namaj ki baat ho
        ya kalma ho!
        agar koi pita apni beti se kai saal se rep karta hai
        jab yah baat samaj ke samne ayegi tabhi to uski saja milegi !!
        agar kisi ko saja 2 saal ki milti hia uska ashay hai ki age vah sudhar sakta hai
        agar nahi sudhrega to age fir saja milegi !
        sajaye isliye banayi jati hai ki vaykti ko anek baar sudharne ka avasar mile
        jo yah sochte hai ki “ham nahi sudhrenge”
        unke liye ajivan karavas aur maut ki saja bhi di jati hai !

        kya quran abtak yazeed ko saja dilva paya ?
        kyab quran garbhvati fatima ji hatya ro ko saja dilva paya ?
        kya khaleefa usman ke hatyaro ko saja mili ?!

        manu ji ki ” manusmriti” ko bhi padh lijiye bahut tarah ki saja ka vidhan raja ke liye batlaya gaya hai !

  3. पहले ए समझो की परमेश्वर अति पवित्र है। और अगर हम पाप करते हैं तो हम अपवित्र हो जाते है, तो हम अपवित्र हौकर स्वर्ग कैसे जा सकते हैं???
    क्यों की बच्चों में कोई पाप नहीं होता तो परमेश्वर उन्हें नरक में क्यों डालेगा? , यदि कोई वयस्क है और उसमें तिनका भर भी पाप ना हो तो ,वह भी पवित्र ठहरा तो परमेश्वर उसे क्यों नरक में डालेगा??
    फीर भी यदि कोई वयस्क है और उसे पापो का अहसास हुआ और वह अपने पापो की क्षमा चाहता है तो यह हो सकता है। परमेश्वर ने येशु मसीह को जगत का प्रभु और उद्धारक ठहराया है और मसीह ने क्रूस पर लहु बहाकर अपने आप को बलिदान किया, ताकि उसके लहू के हमारे पाप क्षमा हो,
    दुसरी बात यह है कि परमेश्वर ने पहले मनुष्य आदम को मिट्टी से बनाया और उसमें प्राण फूंक दिया , फिर आदम की फसली से हव्वा को बनाया और उनके मिलन से मनुष्य बढ़ते गए, अब बच्चे पैदा कैसे होते हैं, नर और नारी के मिलन के द्वारा, परमेश्वर हस्तक्षेप नहीं करता, लेकिन विशेष परीस्तीथी में वह हस्तक्षेप करने की क्षमता रखता है,
    गर्भावस्था में महिलाओं की स्थिति कैसी होती है,वह क्या खाती पीती है, किसी कारण से बच्चे गर्भ में मरते हैं या मंदबुद्धि पैदा क्यों होते हैं तो उनके कारण हम मेडिकल साइंस के द्वारा जांच सकते हैं,
    २) काफि बच्चे परीपक्वता की अवधि में पहोंचने से पहले मृत्यु हो जाती है, उसके कई कारण होते है , परमेश्वर उन्हें नहीं मारता
    आप कहते है, परमेश्वर सबको बचपन में ही मारे ताकी हम स्वर्ग में जाए ,हम वयस्क होकर भी स्वर्ग जा सकते हैं ,
    ३) कुरान के अनुसार भले ही गैर मुस्लिम काफिर कहलाता हो,पर सच्चा परमेश्वर कभी भी किसी इन्सान में फर्क नहीं करता,हर एक मनुष्य में परमेश्वर का अंश है और समस्त संसार से वह प्रेम करता है
    ४) यदि कोई मनुष्य मानसीक तौर से अस्थीर जन्मा तो और काफी सालो तक जीवित रहा तो वह स्वर्ग में ही जाएगा क्योंकि वह पाप से अंजान होता है,और यदि उसमें कोई पाप नहीं होगा तो क्यों परमेश्वर उन्हें नरक में डालेगा???
    ५)परमपीता परमेश्वर ने कोई धर्म नहीं बनाया, परमेश्वर ने आरंभ से नर नारी करके बनाया, मनुष्य ने अपने फायदे के अनुसार धर्म का निर्माण किया
    नाही ईसाई कोई धर्म है,
    येशु मसीह ने समस्त संसार के लिए अपना लहू बहाया, जो कोई विश्वास करें उद्धार पाए , अगर कोई ईसाई परिवार में जन्मे और मसीह पर विश्वास ना करें तो वह उद्धार नहीं पा सकता,
    वैसे ही यदी कोई ईसाई परिवार में ना जन्मा हो , और यह विश्वास करें की येशु मेरे लिए क्रूस पर मरा और मेरे पापो का दाम चुकाया,पुरे मन से पच्छाताप करें, पापो से तौबा कर लें तो उसके उद्धार को कौन रोक सकता है??
    क्या हम मसीह के बीना उद्धार पा सकते हैं ,तो ईसका उत्तर हां है, यदि उस व्यक्ति में तीनका भर भी पाप न हो तो
    परमेश्वर सही अर्थ में परीपुर्ण है,वह किसी पर अन्याय नहीं करता, परमेश्वर अति पवित्र है और केवल हमारे पाप हमें परमेश्वर से अलग करते हैं, हमारे पाप हमें नरक में ले जाते है
    फिर भी परमेश्वर जगत से प्रेम करता है,इसी लिए मसीह जगत में आया और हमारे पाप का दाम चुकाया अपनी जान दे कर
    सच्चे परमेश्वर के समक्ष हम स्वर्गदूत के समान होंगे और नहीं कोई हूरों का वादा करता है, परमेश्वर सही भाषा समझता है और हम हम हर एक भाषा में उससे संवाद कर सकते हैं

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Stay Connected

0FansLike
0FollowersFollow
91,924FollowersFollow
0SubscribersSubscribe
Give Aahuti in Yajnaspot_img

Related Articles

Categories