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नारी – अदम्य साहस की प्रतिमा

आज नारी की छवि या तो साहसहीन, निर्बल, भीरू की है या फ़िर उसे भोग्य वस्तु बनाकर पेश किया जाता है| इसका प्रसार मिडिया ने तो किया ही है लेकिन कुछ सम्प्रदाय भी नारी के बारे में यही राय रखते हैं| जिसके कारण समाज की अत्यधिक गिरावट हुई है| नारी की इस अवहेलना और अनादर से ही आज हम असामयिक मौतें , भय और अन्याय से ग्रस्त हैं|

वेदों की घोषणा को महर्षि मनु अपनी संहिता में देते हुए कहते हैं (३३.५६) : “जो समाज स्त्री का आदर करता है वह स्वर्ग है और जहां स्त्री का अपमान होता है, वहां किए गए सत्कर्म भी ख़त्म हो जाते हैं|” वेदों के इस महत्वपूर्ण सन्देश की अनदेखी के कारण ही भारत एक ऐसा गुलाम राष्ट्र बना जिसे गुलामों द्वारा ही चलाया जाता रहा और यही कारण है कि आज बहुत सारी तथाकथित प्रगति के बावजूद भी दुनिया एक खतरनाक और दाहक जगह बन गई है| महिलाएं – जो साहस का उद्गम हैं उनको यथोचित सम्मान न मिलना ही इस का मूल कारण है|

अगर हम ने स्त्रियों को भोगविलास और नुमाइश की वस्तु मान लिया तो कर्मफल व्यवस्था के अनुसार हमें अत्यंत कठोर परिणाम भुगतने होंगे और यही हो रहा है| लेकिन अगर हम मातृशक्ति को साहस और हमारी समस्त अच्छाइयों का प्रतिमान मान लें तो हम संसार को स्वर्ग बना सकेंगे|

वेदों पर आधारित एक बलिष्ठ और सशक्तसमाज में स्त्री का सहज गुण उसका साहस है| उसका यह साहस उसकी अपनी आत्मा औरमन के बल से उपजता है,यह साहस कोई दुस्साहस नहीं है|

देखें, वेद क्या कह रहे हैं –

अथर्ववेद १४. १. ४७ –  हे नारी, तू समाज की आधारशिला है| तेरे लिये हम सुखदायक अचल शिलाखंड को रखते हैं| इस शिलाखंड के ऊपर खड़ी हो, यह तुझे दृढ़ता का पाठ पढ़ायेगा| इस शिलाखंड के अनुरूप तू भी वर्चस्विनी बन जिससे संसार में आनंदपूर्वक रह सके| तेरी आयु सुदीर्घ हो ताकि हम तेरे तेज को पा सकें|

यजुर्वेद ५.१० – हे नारी, तू स्वयं को पहचान| तू शेरनी है| हे नारी, तू अविद्या आदि दोषों पर शेरनी की तरह टूटनेवाली है, तू दिव्य गुणों के प्रचार के लिए स्वयं को शुद्ध कर| हे नारी, तू दुष्कर्मों एवं दुर्व्यसनों को शेरनी के समान विध्वस्त करने वाली है, सभी के हित के लिए तू दिव्य गुणों को धारण कर|

यजुर्वेद ५.१२ – हे नारी तू शेरनी है, तू आदित्य ब्रह्मचारियों को जन्म देती है, हम तेरी पूजा करते हैं| हे नारी, तू शेरनी है, तू समाज में महापुरुषों को जन्म देती है, हम तेरा यशोगान करते हैं| हे नारी, तू शेरनी है, तू श्रेष्ट संतान को देनेवाली है, तू धन की पुष्टि को देनेवाली है, हम तेरा जयजयकार करते हैं, हे नारी, तू शेरनी है, तू समाज को आनंद और समृद्धि देती है, हम तेरा गुणगान करते हैं| हे नारी, सभी प्राणियों के हित के लिए हम तुझे नियुक्त करते हैं|

यजुर्वेद १०.२६ – हे नारी, तू सुख़देनेवाली है, तू सुदृढ़ स्थितिवाली है, तू क्षात्र बल की भंडार है, तू साहसका उद्गम है| तेरा स्थान समाज में गौरवशाली है|

यजुर्वेद १३.१६ – हे नारी, तू ध्रुव है, अटल निश्चयवाली है, सुदृढ़ है, तू हम सब का आधार है| परमपिता परमेश्वर ने तुझे विद्या, वीरता आदि गुणों से भरा है| समुद्रके समान उमड़ने वाली शत्रु सेनाएं भी तुझे हानि न पहुंचा सकें, गिद्ध केसमान आक्रान्ता तुझे हानि न पहुंचा सकें| किसी से पीड़ित न होती हुई तूविश्व को समृद्ध कर| (अर्थात् पूरे समाज को नारी की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होना चाहिए, ताकि वह समाज में अपना योगदान दे सके| नारी के गौरव के लिए अपने प्राण तक उत्सर्ग करने वाले वीरों का यह प्रेरणा सन्देश है|)

यजुर्वेद १३.१८ – हे नारी, तू अद्भुत सामर्थ्य वाली है| तू भूमि के समान दृढ़ है| तू समस्त विश्व के लिए मां है| तू सकल लोक का आधार है| तू विश्व को कुमार्ग पर जाने से रोक, विश्व को दृढ़ कर और हिंसा मत होने दे| (हर स्त्री को मां के रूप में सम्मान देने से ही समाज में शांति, स्थिरता और समृद्धि आएगी| इस के विपरीत स्त्रियों का भोगवादी चित्रण समाज में दुखों और आपत्तियों का कारण है| आज आदर्श रूप में झाँसी की रानी, अहिल्याबाई आदि वीरांगनाओं को सामने रखना होगा|)

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यजुर्वेद १३.२६ – हे नारी, तू विघ्न – बाधाओं से पराजित होने योग्य नहीं है बल्कि विघ्न- बाधाओं को पराजित कर सकने वाली है| तू शत्रुओं को परास्त कर, सैन्य- बल को परास्त कर| तुझ में सहस्त्र पुरुषों का पराक्रम है| अपने असली सामर्थ्य को पहचान और अपनी वीरता प्रदर्शित कर के तू विश्व को प्रसन्नता प्रदान कर|

यजुर्वेद २१.५ – हे नारी, तू महाशाक्तिमती है, तू श्रेष्ठ पुत्रों की माता है| तू सत्यशील पति की पत्नी है| तू भरपूर क्षात्रबल से युक्त है| तू शत्रु के आक्रमण से जीर्ण न होनेवाली है| तू अतिशय कर्मण्य है| तू शुभ कल्याण करनेवाली है| तू शुभ नीति का अनुसरण करनेवाली है| हम तुझे रक्षा के लिए पुकारते हैं|  (अर्थात् गलत मार्ग पर चलने वाले पति का अन्धानुकरण न करके पत्नी को सत्य और न्याय की स्थापना के लिए आगे बढ़ना चाहिए क्योंकि नारी में असीम शक्ति का निवास है|)

ऋग्वेद ८.६७.१० – हे खंडित न होने वाली, सदा अदीन बनी रहने वाली पूजा योग्य नारी,  हम तुझे परिवार एवं राष्ट्र में उत्कृष्ट सुख़ बरसाने के लिए पुकारते हैं ताकि हम अभीष्ट लक्ष्य प्राप्त कर सकें|

ऋग्वेद ८.१८.५ – हे नारी, जैसे तू शत्रु से खंडित न होनेवाली, सदा अदीन रहनेवाली वीरांगना है वैसे ही तेरे पुत्र भी अद्वितीय वीर हैं जो महान कार्यों का बीड़ा उठानेवाले हैं| वे स्वप्न में भी पाप का विचार अपने मन में नहीं आने देते, फ़िर पाप- आचरण तो क्या ही करेंगे! वे द्वेषी शत्रु से भी लोहा लेना जानते हैं क्योंकि तुम मां हो|

यजुर्वेद १४.१३ – हे नारी, तू रानी है| तू सूर्योदय की पूर्व दिशा के समान तेजोमयी है! तू दक्षिण दिशा के समान विशाल शक्तिवाली है| तू सम्राज्ञी है, पश्चिम दिशा के समान आभामयी है| तू अपनी विशेष कांति से भासमान है, उत्तर दिशा के समान प्राणवती है| तू विस्तीर्ण आकाश के समान असीम गरिमावाली है|

ऋग्वेद १०.८६.१० – नारी तो आवश्यकता पड़ने पर बलिदान के स्थल संग्राम में भी जाने से नहीं हिचकती| जो नारी सत्य विधान करने वाली है, वीर पुत्रों की माता है, वीर की पत्नी है, वह महिमा पाती है| उसका वीर पति विश्व भर में प्रसिद्धि पाता है|

यजुर्वेद १७.४४ –हे वीर क्षत्रिय नारी, तूशत्रु  की विशाल सेनाओं को परास्त कर दे| शत्रुओं के लिए प्रयाण कर, उनकेह्रदयों को शोक से दग्ध कर दे| अधर्म से दूर रह और शत्रुओं को निराशा रूपघोर अंधकार से ग्रस्त कर ताकि वो फ़िर सिर न उठा पाएँ|

यजुर्वेद १७.४५ – विद्वानों द्वारा शिक्षा से तीक्ष्ण हुई एवं प्रशंसित तथा शस्त्र आदि चलाने में कुशल हे नारी, तू शत्रुओं पर टूट पड़| शत्रुओं के पास पहुंचकर उन्हें पकड़ ले और किसी को भी छोड़ मत, कैद करके कारागार में डाल दे|

ऋग्वेद ६.७५.१५ – हेवीर स्त्री, अपराधियों के लिए तुम विष बुझा तीर हो| तुम में अपार पराक्रमहै| उस बाण के समान गतिशील, कर्म कुशल, शूरवीर देवी को हम भूरि- भूरिनमस्कार करते हैं|

ऋग्वेद १०.८६.९ – यह घातक मुझे अवीरा समझ रहा है, मैं तो वीरांगना हूं, वीर पत्नी हूं, आंधी की तरह शत्रु पर टूट पडने वाले वीर मेरे सखा हैं| मेरा पति विश्वभर में वीरता में प्रसिद्ध है|

ऋग्वेद १०.१५९.२ – मैं राष्ट्र की ध्वजा हूं, मैं समाज का सिर हूं| मैं उग्र हूं, मेरी वाणी में बल है| शत्रु – सेनाओं का पराजय करने वाली मैं युद्ध में वीर- कर्म दिखाने के पश्चात ही पति का प्रेम पाने की अधिकारिणी हूं|

ऋग्वेद १०.१५९.३ – मेरे पुत्रों ने समस्त शत्रुओं का संहार कर दिया है| मेरी पुत्री विशेष तेजस्विनी है और मैं भी पूर्ण विजयिनी हूं| मेरे पति में उत्तम कीर्ति का वास है|

ऋग्वेद १०.१५९.४ – मेरे पति ने आत्मोसर्ग की आहुति दे दी है, आज वही आहुति मैंने भी दे दी है| आज मैं निश्चय ही शत्रु रहित हो गई हूं|

ऋग्वेद १०.१५९.५ – मैं शत्रु रहित हो गई हूं, शत्रुओं का मैंने वध कर दिया है, मैंने विजय पा ली है, वैरियों को पराजित कर दिया है| शत्रु – सेनाओं के तेज को मैंने ऐसे नष्ट कर दिया है, जैसे अस्थिर लोगों की संपत्तियां नष्ट हो जाती हैं|

आइए, नारी को उसके सत्य स्वरुप – मां के स्वरुप में पूजें और नारी भी अपने स्व को पहचाने ताकि समाज, राष्ट्र और पूरी मानव जाति का कल्याण हो|

संदर्भ- ऋषि दयानंद के भाष्य, वैदिक नारी – पं. रामनाथ वेदालंकार, वैदिक शब्दार्थ विचार – पं. रामनाथ वेदालंकार, वैदिक कोष – पं. राजवीर शास्त्री|

This translation in Hindi has been contributed by Aryabala. Original post in English is available at http://agniveer.com/woman-hallmark-of-true-valor/  

Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
Sanjeev Newar is an eminent data scientist, entrepreneur, best-selling author, and speaker with expertise in Vedas and Sanskrit. He is an alumnus of IIT Guwahati and IIM Calcutta. He quit the corporate world to work for social inclusion and the protection of the vulnerable. For his work on Dalit inclusion and empowerment, he received the Neelkantha Award in 2019. He founded the Sewa Nyaya Utthan Foundation to make quality education accessible to vulnerable groups and marginalised communities.

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