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वैदिक ईश्वर

“वह तेजस्वियों का तेज, बलियों का बल, ज्ञानियों का ज्ञान, मुनियों का तप, कवियों का रस, ऋषियों का गाम्भीर्य और बालक की हंसी में विराजमान है। ऋषि के मन्त्र गान और बालक की निष्कपट हंसी उसे एक जैसे ही प्रिय हैं। वह शब्द नहीं भाव पढता है, होंठ नहीं हृदय देखता है, वह मंदिर में नहीं, मस्जिद में नहीं, प्रेम करने वाले के हृदय में रहता है। बुद्धिमानों की बुद्धियों के लिए वह पहेली है पर एक निष्कपट मासूम को वह सदा उपलब्ध है। वह कुछ अलग ही है। पैसे से वह मिलता नहीं और प्रेम रखने वालों को कभी छोड़ता नहीं। उसे डरने वाले पसंद नहीं, प्रेम करने वाले पसंद हैं। वह ईश्वर है, सबसे अलग पर सबमें रहता है।

यही वैदिक हिन्दू धर्म है। इसी धर्म पर हमें गर्व है।”

टिपण्णी : यहाँ ‘ईश्वर’ से हमारा तात्पर्य है “परम सत्ता ” न कि ‘देवता’ । ‘देवता’ एक अलग शब्द है जिसका अशुद्ध प्रयोग अधिकतर ‘परमसत्ता’ के लिए कर लिया जाता है। हालाँकि ईश्वर भी एक ‘देवता’ है। कोई भी पदार्थ – जड़ व चेतन – जो कि हमारे लिए उपयोगी हो व सहायक हो, उसे ‘देवता’ कहा जाता है । किन्तु उसका अर्थ यह नहीं है कि हर कोई ऐसी सत्ता ईश्वर है और उसकी उपासना की जाये । कोई भ्रम न हो इसलिए इस लेख में हम ‘ईश्वर’ शब्द का प्रयोग करेंगे ।

वह परम पुरुष जो निस्वार्थता का प्रतीक है, जो सारे संसार को नियंत्रण में रखता है , हर जगह मौजूद है और सब देवताओं का भी देवता है , एक मात्र वही सुख देने वाला है । जो उसे नहीं समझते वो दुःख में डूबे रहते हैं, और जो उसे अनुभव कर लेते हैं, मुक्ति सुख को पाते हैं । (ऋग्वेद 1.164.39)

प्रश्न : वेदों में कितने ईश्वर हैं ? हमने सुना है कि वेदों में अनेक ईश्वर हैं ।

उत्तर : आपने गलत स्थानों से सुना है । वेदों में स्पष्ट कहा है कि एक और केवल एक ईश्वर है । और वेद में एक भी ऐसा मंत्र नहीं है जिसका कि यह अर्थ निकाला जा सके कि ईश्वर अनेक हैं । और सिर्फ इतना ही नहीं वेद इस बात का भी खंडन करते हैं कि आपके और ईश्वर के बीच में अभिकर्ता (एजेंट) की तरह काम करने के लिए पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरूरत होती है ।

मोटे तौर पर यदि समानता देखी जाये तो :

इस्लाम में शहादा का जो पहला भाग है उसे लिया जाये : ला इलाहा इल्लल्लाह (सिर्फ और सिर्फ एक अल्लाह के सिवाय कोई और ईश्वर नहीं है ) और दूसरे भाग को छोड़ दिया जाये : मुहम्मदुर रसूलल्लाह (मुहम्मद अल्लाह का पैगम्बर है ), तो यह वैदिक ईश्वर की ही मान्यता के समान है ।

इस्लाम में अल्लाह को छोड़कर और किसी को भी पूजना शिर्क (सबसे बड़ा पाप ) माना जाता है । अगर इसी मान्यता को और आगे देखें और अल्लाह के सिवाय और किसी मुहम्मद या गब्रेइल को मानाने से इंकार कर दें तो आप वेदों के अनुसार महापाप से बच जायेंगे ।

प्रश्न: वेदों में वर्णित विभिन्न देवताओं या ईश्वरों के बारे में आप क्या कहेंगे ? 33 करोड़ देवताओं के बारे में क्या?

उत्तर:

1. जैसा कि पहले भी कहा जा चुका है जो पदार्थ हमारे लिए उपयोगी होते हैं वो देवता कहलाते हैं । लेकिन वेदों में ऐसा कहीं नहीं कहा गया कि हमे उनकी उपासना करनी चाहिए । ईश्वर देवताओं का भी देवता है और इसीलिए वह महादेव कहलाता है , सिर्फ और सिर्फ उसी की ही उपासना करनी चाहिए ।

2. वेदों में 33 कोटि का अर्थ 33 करोड़ नहीं बल्कि 33 प्रकार (संस्कृत में कोटि शब्द का अर्थ प्रकार होता है) के देवता हैं । और ये शतपथ ब्राह्मण में बहुत ही स्पष्टतः वर्णित किये गए हैं, जो कि इस प्रकार है :

8 वसु (पृथ्वी, जल, वायु , अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, नक्षत्र ), जिनमे सारा संसार निवास करता है ।

10 जीवनी शक्तियां अर्थात प्राण (प्राण, अपान, व्यान, उदान, समान, नाग, कूर्म, कृकल, देवदत्त , धनञ्जय ), ये तथा 1 जीव ये ग्यारह रूद्र कहलाते हैं

12 आदित्य अर्थात वर्ष के 12 महीने

1 विद्युत् जो कि हमारे लिए अत्यधिक उपयोगी है

1 यज्ञ अर्थात मनुष्यों के द्वारा निरंतर किये जाने वाले निस्वार्थ कर्म ।

शतपथ ब्राहमण के 14 वें कांड के अनुसार इन 33 देवताओं का स्वामी महादेव ही एकमात्र उपासनीय है । 33 देवताओं का विषय अपने आप में ही शोध का विषय है जिसे समझने के लिए सम्यक गहन अध्ययन की आवश्यकता है । लेकिन फिर भी वैदिक शास्त्रों में इतना तो स्पष्ट वर्णित है कि ये देवता ईश्वर नहीं हैं और इसलिए इनकी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

3. ईश्वर अनंत गुणों वाला है । अज्ञानी लोग अपनी अज्ञानतावश उसके विभिन्न गुणों को विभिन्न ईश्वर मान लेते हैं ।

4. ऐसी शंकाओं के निराकरण के लिए वेदों में अनेक मंत्र हैं जो ये स्पष्ट करते हैं कि सिर्फ और सिर्फ एक ही ईश्वर है और उसके साथ हमारा सम्पर्क कराने के लिए कोई सहायक, पैगम्बर, मसीहा, अभिकर्ता (एजेंट) नहीं होता है ।

यह सारा संसार एक और मात्र एक ईश्वर से पूर्णतः आच्छादित और नियंत्रित है । इसलिए कभी भी अन्याय से किसी के धन की प्राप्ति की इच्छा नहीं करनी चाहिए अपितु न्यायपूर्ण आचरण के द्वारा ईश्वर के आनंद को भोगना चाहिए । आखिर वही सब सुखों का देने वाला है ।यजुर्वेद 40.1

ऋग्वेद 10.48.1

एक मात्र ईश्वर ही सर्वव्यापक और सारे संसार का नियंता है । वही सब विजयों का दाता और सारे संसार का मूल कारण है । सब जीवों को ईश्वर को ऐसे ही पुकारना चाहिए जैसे एक बच्चा अपने पिता को पुकारता है । वही एक मात्र सब जीवों का पालन पोषण करता और सब सुखों का देने वाला है ।

ऋग्वेद 10.48.5

ईश्वर सारे संसार का प्रकाशक है । वह कभी पराजित नहीं होता और न ही कभी मृत्यु को प्राप्त होता है । वह संसार का बनाने वाला है । सभी जीवों को ज्ञान प्राप्ति के लिए तथा उसके अनुसार कर्म करके सुख की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करना चाहिए । उन्हें ईश्वर की मित्रता से कभी अलग नहीं होना चाहिए ।

ऋग्वेद 10.49.1

केवल एक ईश्वर ही सत्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्न करने वालों को सत्य ज्ञान का देने वाला है । वही ज्ञान की वृद्धि करने वाला और धार्मिक मनुष्यों को श्रेष्ठ कार्यों में प्रवृत्त करने वाला है । वही एकमात्र इस सारे संसार का रचयिता और नियंता है । इसलिए कभी भी उस एक ईश्वर को छोड़कर और किसी की भी उपासना नहीं करनी चाहिए ।

यजुर्वेद 13.4

सारे संसार का एक और मात्र एक ही निर्माता और नियंता है । एक वही पृथ्वी, आकाश और सूर्यादि लोकों का धारण करने वाला है । वह स्वयं सुखस्वरूप है । एक मात्र वही हमारे लिए उपासनीय है ।

अथर्ववेद 13.4.16-21

वह न दो हैं, न ही तीन, न ही चार, न ही पाँच, न ही छः, न ही सात, न ही आठ, न ही नौ , और न ही दस हैं । इसके विपरीत वह सिर्फ और सिर्फ एक ही है । उसके सिवाय और कोई ईश्वर नहीं है । सब देवता उसमे निवास करते हैं और उसी से नियंत्रित होते हैं । इसलिए केवल उसी की उपासना करनी चाहिए और किसी की नहीं ।

अथर्ववेद 10.7.38

मात्र एक ईश्वर ही सबसे महान है और उपासना करने के योग्य है । वही समस्त ज्ञान और क्रियाओं का आधार है ।

यजुर्वेद 32.11

ईश्वर संसार के कण-कण में व्याप्त है । कोई भी स्थान उससे खाली नहीं है । वह स्वयंभू है और अपने कर्मों को करने के लिए उसे किसी सहायक, पैगम्बर, मसीहा या अवतार की जरुरत नहीं होती । जो जीव उसका अनुभव कर लेते हैं वो उसके बंधनरहित मोक्ष सुख को भोगते हैं ।

वेदों में ऐसे असंख्य मंत्र हैं जो कि एक और मात्र एक ईश्वर का वर्णन करते हैं और हमें अन्य किसी अवतार, पैगम्बर या मसीहा की शरण में जाये बिना सीधे ईश्वर की उपासना का निर्देश देते हैं।

प्रश्न: आप ईश्वर के अस्तित्व को कैसे सिद्ध करते हैं ?

उत्तर: प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष प्रमाणों के द्वारा ।

प्रश्न: लेकिन ईश्वर में प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं घट सकता, तब फिर आप उसके अस्तित्व को कैसे सिद्ध करेंगे ?

उत्तर:

1. प्रमाण का अर्थ होता है ज्ञानेन्द्रियों के द्वारा स्पष्ट रूप से जाना गया निर्भ्रांत ज्ञान । परन्तु यहाँ पर ध्यान देने की बात यह है कि ज्ञानेन्द्रियों से गुणों का प्रत्यक्ष होता है गुणी का नहीं ।

उदाहरण के लिए जब आप इस लेख को पढ़ते हैं तो आपको अग्निवीर के होने का ज्ञान नहीं होता बल्कि पर्दे (कंप्यूटर की स्क्रीन ) पर कुछ आकृतियाँ दिखाई देती हैं जिन्हें आप स्वयं समझकर कुछ अर्थ निकालते हैं । और फिर आप इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इस लेख को लिखने वाला कोई न कोई तो जरूर होगा और फिर आप दावा करते हैं कि आपके पास अग्निवीर के होने का प्रमाण है । यह “अप्रत्यक्ष” प्रमाण है हालाँकि यह “प्रत्यक्ष” प्रतीत होता है ।

ठीक इसी तरह पूरी सृष्टि, जिसे कि हम, उसके गुणों को अपनी ज्ञानेन्द्रियों से ग्रहण करके, अनुभव करते हैं, ईश्वर के अस्तित्व की ओर संकेत करती है ।

2. जब किसी इन्द्रिय गृहीत विषय से हम किसी पदार्थ का सीधा सम्बन्ध जोड़ पाते हैं, तो हम उसके “प्रत्यक्ष प्रमाणित” के होने का दावा करते हैं । उदहारण के लिए जब आप आम खाते हैं तो मिठास का अनुभव करते हैं और उस मिठास को अपने खाए हुए आम से जोड़ देते हैं । यहाँ महत्वपूर्ण यह है कि आप ऐसा प्रत्यक्ष प्रमाण केवल उस इन्द्रिय से जोड़ सकते हैं जिसे कि आपने उस विषय का अनुभव करने के लिए प्रयोग किया है ।

इस प्रकार पूर्वोक्त उदहारण में आम का ‘प्रत्यक्ष’ ‘कान’ से नहीं कर सकते, बल्कि ‘जीभ’, ‘नाक’ या ‘आँखों’ से ही कर सकते हैं ।

हालाँकि समझने में सरलता हो इसलिए हम इसे ‘प्रत्यक्ष प्रमाण’ कह रहे हैं लेकिन वास्तव में यह भी ‘अप्रत्यक्ष प्रमाण’ ही है।

अब क्यूंकि ईश्वर सबसे सूक्ष्म पदार्थ है इसलिए स्थूल इन्द्रियों ‘आँख’, ‘नाक’, ‘कान’, ‘जीभ’ और ‘त्वचा’ से उसका प्रत्यक्ष असंभव है । जैसे की हम सर्वोच्च क्षमता वाले सूक्ष्मदर्शी के होते हुए भी अत्यंत सूक्ष्म कणों को नहीं देख सकते, अत्यंत लघु तथा अत्यंत उच्च आवृत्ति की तरंगों को नहीं सुन सकते, प्रत्येक अणु के स्पर्श का अनुभव नहीं कर सकते ।

दुसरे शब्दों में कहें तो जैसे हम कानों से आम का प्रत्यक्ष नहीं कर सकते और यहाँ तक की किसी भी इन्द्रिय से अत्यंत सूक्ष्म कणों को नहीं अनुभव कर सकते, ठीक ऐसे ही ईश्वर को भी क्सिसिं स्थूल और क्षुद्र इन्द्रियों से प्रत्यक्ष करना असंभव है ।

3. एक मात्र इन्द्रिय जिससे ईश्वर का अनुभव होता है वह है मन । जब मन पूर्णतः नियंत्रण में होता है और किसी भी प्रकार के अनैच्छिक विघ्नों (जैसे कि हर समय मन में आने वाले विभिन्न प्रकार के विचार ) से दूर होता है और जब अध्ययन और अभ्यास के द्वारा ईश्वर के गुणों का सम्यक ज्ञान हो जाता है तब बुद्धि से ईश्वर का प्रत्यक्ष ज्ञान ठीक उसी प्रकार होता है जैसे कि आम का अनुभव उसके स्वाद से ।

यही जीवन का लक्ष्य है और इसी के लिए योगी विभिन्न प्रकार के उपायों से मन को नियंत्रण में करने का प्रयास करता है । इन उपायों में से कुछ इस प्रकार हैं: अहिंसा, सत्य की खोज, सद्भाव, सबके सुख के लिए प्रयास, उच्च चरित्र, अन्याय के विरुद्ध लड़ना, एकता के लिए प्रयास इत्यादि ।

4. एक प्रकार से देखा जाये तो अपने दैनिक जीवन में भी हमे इश्वर के होने के प्रत्यक्ष संकेत मिलते हैं । जब भी कभी हम चोरी, क्रूरता धोखा आदि किसी बुरे काम को करने की शुरुआत करते हैं तभी हमे अपने अन्दर से एक भय, लज्जा या शंका के रूप में एक अनुभूति होती है । और जब हम दूसरों की सहायता करना आदि शुभ कर्म करते हैं तब निर्भयता, आनंद , संतोष, और उत्साह का अनुभव, ये सब ईश्वर के होने का प्रत्यक्ष संकेत है ।
यह ‘अंतरात्मा की आवाज़’ ईश्वर की ओर से है । अधिकतर हम अपनी मूर्खतापूर्ण प्रवृत्तियों के छद्म आनंददायी गीतों के शोर से दबाकर इस आवाज़ को सुनने की क्षमता को कम कर देते हैं । लेकिन जब कभी हम अपेक्षाकृत शांत होते हैं तब हम सभी इस ‘अंतरात्मा की आवाज़’ की तीव्रता को बढ़ा हुआ अनुभव करते हैं ।

5. और जब आत्मा अपने आप को इन मानसिक विक्षोभों/हलचलों/तरंगों से छुड़ाकर इन छाद्मआनंददायी गीतों की दुनिया से दूर कर लेता है तब वह स्वयं तथा ईश्वर दोनों का प्रत्यक्ष अनुभव कर पाता है ।

इस प्रकार प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष दोनों प्रकार के प्रमाणों से ईश्वर के होने का उतना ही स्पष्ट अनुभव होता है जितना कि उन सब पदार्थों के होने का जिन्हें की हम स्थूल इन्द्रियों के द्वारा अनुभव करते हैं ।

प्रश्न- ईश्वर कहाँ रहता है ?

उत्तर-

(1) ईश्वर सर्वव्यापक है अर्थात सब जगह रहता है । यदि वह किसी विशेष स्थान जैसे किसी आसमान या किसी विशेष सिंहासन पर रहता तो फिर वह सर्वज्ञ, सर्वशक्तिमान, सबका उत्पादक, नियंत्रक और विनाश करने वाला नहीं हो सकता । आप जिस स्थान पर नहीं हैं उस स्थान पर आप कोई भी क्रिया कैसे कर सकते हैं ?

(2) यदि आप यह कहते हैं कि ईश्वर एक ही स्थान पर रहकर सारे संसार को इसी प्रकार नियंत्रण में रखता है जैसे कि सूर्य आकाश में एक ही स्थान पर रहकर सारे संसार को प्रकाशित करता है या जैसे हम रिमोट कण्ट्रोल का प्रयोग टी वी देखने के लिए करते हैं, तो आपका यह तर्क अनुपयुक्त है । क्यूंकि सूर्य का पृथ्वी को प्रकाशित करना और रिमोट कण्ट्रोल से टी वी चलना ये दोनों ही तरंगो के आकाश में संचरण के द्वारा होते हैं । हम उसे रिमोट कण्ट्रोल सिर्फ इसलिए कहते हैं क्यूंकि हम उन तरंगों को देख नहीं सकते। इसलिए ईश्वर का किसी भी चीज को नियंत्रित करना खुद ये सिद्ध करता है कि ईश्वर उस चीज में है ।

(3) यदि ईश्वर सर्वशक्तिमान है तो वह स्वयं को छोटी सी जगह में करके क्यूँ रखेगा ? तो ईश्वर जायेगा । ईसाई कहते हैं कि गॉड चौथे आसमान है और कहते हैं कि अल्लाह पर है । और उनके अनुयायी अपने आपको सही करने के लिए आपस में लड़ते रहते हैं । क्या इसका मतलब ये न समझा जाये कि अल्लाह और गॉड अलग अलग आसमानों में इसलिए रहते हैं कि कहीं वो भी अपने क्रोधी अनुयायियों की न लग जाएँ ?

वास्तव में ये एकदम बच्चों जैसी बातें हैं । जब ईश्वर सर्वशक्तिमान और सरे संसार को नियंत्रण में रखता है तो फिर कोई कारण नहीं है कि वह खुद को किसी छोटी सी जगह में सीमित कर के रखे । और अगर ऐसा है तो फिर उसे सर्वशक्तिमान नहीं कहा जा सकता ।

प्रश्न- तो क्या इसका यह अर्थ हुआ कि ईश्वर अपवित्र वस्तुओं जैसे कि मदिरा, मल और मूत्र में भी रहता है ?

उत्तर-

(1) पूरा संसार ईश्वर में है । क्यूंकि ईश्वर इन सब के बाहर भी है लेकिन ईश्वर के बाहर कुछ नहीं है । इसलिए संसार में सब कुछ ईश्वर से अभिव्याप्त है । मोटे तौर पर अगर इसकी समानता देखी जाये तो हम सब ईश्वर के अन्दर वैसे ही हैं जैसे कि जल से भरे बर्तन में कपडा । उस कपडे के अन्दर बाहर हर ओर जल ही जल है । उस कपडे का कोई भाग ऐसा नहीं है जो जल से भीगा न हो लेकिन उस कपडे के बाहर भी हर ओर जल ही जल है ।

(2) कोई वस्तु हमारे लिए स्वच्छ या अस्वच्छ है यह इस बात पर निर्भर करता है कि हमारे लिए उस वस्तु की क्या उपयोगिता है । जिस आम का स्वाद हमको इतना प्रिय होता है वह जिन परमाणुओं से बनता है वही परमाणु जब अलग अलग हो जाते हैं और अन्य पदार्थों के साथ क्रिया करके मल का रूप ले लेते हैं तो वही हमारे लिए अपवित्र हो जाते हैं । वास्तव में ये सब प्राकृतिक कणों के योग से बने भिन्न भिन्न सम्मिश्रण ही हैं । हम सब का इस संसार में होने का कुछ उद्देश्य है, हम हर चीज को उस उद्देश्य की तरफ़ बढ़ने की दृष्टि से देखते हैं और कुछ को स्वीकार करते हैं जो कि उस उद्देश्य के अनुकूल हों और बाकि सब को छोड़ते चले जाते हैं । जो हम छोड़ते हैं वो सब हमारे लिए अपवित्र / बेकार होता है, और जो हम स्वीकार करते हैं मात्र वही हमारे लिए उपयोगी होता है । लेकिन ईश्वर के लिए इस संसार का ऐसा कोई उपयोग नहीं है, इसलिए उसके लिए कुछ अपवित्र नहीं है । इसके ठीक विपरीत उसका प्रयोजन हम सबको न्यायपूर्वक मुक्ति सुख का देना है, इसलिए पूरी सृष्टि में कोई भी वस्तु उसके लिए अस्पृश्य नहीं है ।

(3) दूसरी तरह से अगर समानता देखी जाये तो ईश्वर कोई ऐसे समाजसेवी की तरह नहीं है जो कि अपने वालानुकूलित कार्यालय में बैठकर योजनायें बनाना तो पसंद करता है लेकिन उन मलिन बस्तियों में जाने से गुरेज करता है जहाँ कि समाज-सेवा की वास्तविक आवश्यकता है । इसके विपरीत ईश्वर संसार के सबसे अपवित्र पदार्थ में भी रहकर उसे हमारे लाभ के लिए नियंत्रित करता है ।

(4) क्यूंकि एक मात्र वही शुद्ध्स्वरूप है इसलिए उसके हर वस्तु में होने और हर वस्तु के उसमे होने के बावजूद भी वह सबसे भिन्न और पृथक है ।

प्रश्न- क्या ईश्वर दयालु और न्यायकारी है ?

उत्तर- हाँ! वह दया और न्याय का साक्षात् उदहारण है ।

प्रश्न- लेकिन यह दोनों गुण तो एक दुसरे के विपरीत हैं । दया का अर्थ है किसी का अपराध क्षमा कर देना और न्याय का अर्थ है अपराधी को दंड देना । ये दोनों गुण एक साथ कैसे हो सकते हैं ?

उत्तर- दया और न्याय वास्तव में एक ही हैं । क्यूंकि दोनों का उद्देश्य एक ही है ।

(1) दया का अर्थ अपराधी को क्षमा कर देना नहीं है । क्यूंकि अगर ऐसा हो तो बहुत से निर्दोष लोगों के प्रति अत्याचार होगा । इसलिए जब तक अपराधी के साथ न्याय नहीं किया जायेगा तब तक निर्दोष लोगों पर दया नहीं हो सकती । और अपराधी को क्षमा करना, यह अपराधी के प्रति भी दया नहीं होगी क्यूंकि ऐसा करने से उसे आगे अपराध करने के लिए बढ़ावा मिलेगा। उदाहरण के लिए, अगर एक डाकू को बिना दंड दिए छोड़ दिया जाये तो वह अनेक निर्दोषों को हानि पहुंचाएगा । किन्तु यदि उसे कारगर में रखा जाये तो इससे वह न सिर्फ दूसरों को हानि पहुँचाने से रुकेगा बल्कि उसे खुद को सुधारने का एक मौका मिलेगा और वह आगे अपराध नहीं कर पायेगा । इसलिए न्याय में ही सबके प्रति दया निहित है ।

(2) वास्तव में दया इश्वर का उद्देश्य है और न्याय उस उद्देश्य को पूरा करने का तरीका है । जब इश्वर किसी अपराधी को दंड देता है तो वास्तव में वह उसे आगे और अपराध करने से रोकता है । और निर्दोषों की उनके अत्याचारों से रक्षा करता है । इस प्रकार न्याय का मुख्य उद्देश्य सबके प्रति दया करना है ।

(3) वेदों के अनुसार और जो कुछ हम संसार में देखते हैं उसके अनुसार भी दुःख का मूल कारण अज्ञान है, यही अज्ञान दुष्कर्मों को जन्म देता है जिन्हें की हम अपराध कहते हैं । इस्ल्ये जब कोई जीव दुष्कर्म करता है तो ईश्वर उसकी दुष्कर्म करने की स्वतंत्रता को बाधित कर देता है और उसे अपनी अज्ञानता और दुखों को दूर करने का मौका देता है ।

(4) माफ़ी मांग लेने भर से ईश्वर अपराधों को क्षमा नहीं कर देता । पापों और अपराधों का मूल कारण अज्ञानता का होना है और जब तक वो नहीं मिट जाता तब तक जीव कई जन्मों तक निरंतर अपने अच्छे और बुरे कर्मों के फल को भोगता रहता है । और इस सब न्याय का उद्देश्य जीव के प्रति दया करना है जिससे की वह परम आनंद को भोग सके ।

प्रश्न- तो क्या इसका अर्थ ये है कि ईश्वर मेरे पापों को कभी भी क्षमा नहीं करेगा ? इससे तो इस्लाम और ईसाइयत अच्छे हैं। वहां अगर मैं अपने अपराध क़ुबूल कर लूं या माफ़ी मांग लूं तो मेरे पिछले सारे गुनाहों के दस्तावेज नष्ट कर दिए जाते हैं और मुझे नए सिरे से जीने का अवसर मिल जाता है ।

उत्तर –

(1) ईश्वर तुम्हारे पापों को वास्तव में क्षमा तो करता है । ईश्वर की माफ़ी तुम्हारे कर्मों का न्यायपूर्वक फल देने में ही निहित है न कि पिछले कर्मों के दस्तावेज नष्ट कर देने में ।

(2) अगर वह तुम्हारे गुनाहों के दस्तावेज नष्ट कर दे तो यह उसका तुम्हारे प्रति घोर अन्याय और क्रूरता होगी । यह ऐसा ही होगा जैसे कि तुम्हे तुम्हारी वर्तमान कक्षा की योग्यता प्राप्त किये बिना ही अगली कक्षा के लिए प्रोन्नत कर देना । ऐसा करके वह तुमसे जुड़े हुए अन्य व्यक्तियों के साथ भी अन्याय करेगा।

(3) क्षमा करने का अर्थ होता है एक नया अवसर देना न कि 100% अंक दे देना जबकि आप 0 की पात्रता रखते हों । और ईश्वर यही करता है । और याद रखिये कि योग्यता का बढ़ना कोई एक पल में नहीं हो जाता, और न ही माफ़ी मांग लेने से योग्यता बढ़ जाती है । इसके लिए लम्बे समय तक समर्पण के साथ अभ्यास करना पड़ता है । केवल प्रमादी व्यक्ति ही बिना पूरा अध्ययन किये 100% अंक लेने के तरीके खोजते हैं ।

(4) यह दुर्भाग्य की बात है कि जो लोग ईश्वर से अपराध क्षमा कराने के नाम पर लोगों को अपने मत/ सम्प्रदायों की ओर आकर्षित करते हैं वो खुद को और दूसरों को बेवकूफ बना रहे हैं। मान लीजिये किसी को मधुमेह की समस्या है क्या वह माफ़ी मांगने से ठीक हो सकती है ? जब एक शारीरिक समस्या का उपचार करने के लिए माफ़ी मांगना पर्याप्त नहीं है तो फिर मन जो कि मनुष्य को ज्ञात संसार का सबसे जटिल तंत्र है उसका उपचार मात्र एक माफ़ी मांग लेने से कैसे हो सकता है ।

(5) वास्तव में इनके सिद्धांतों में एक स्पष्ट त्रुटि/दोष है और वो ये है कि ये सिर्फ एक जन्म में विश्वास रखते हैं पुनर्जन्म में नहीं । इसलिए वो लोगों को आकर्षित करने के लिए ईश्वर तक पहुँचने के झूठे तरीके गढ़ना चाहते हैं। और अगर कोई उनकी बात न माने तो उसे नरक की झूठी कहानियां सुनाकर डराते हैं। अपने लेख Is God testing us? के द्वारा हम पहले ही एक जन्म वाली अवधारणा की खामियों को उजागर कर चुके हैं ।

(6) वैदिक दर्शन अधिक सहज, वास्तविकता के अनुरूप और तार्किक है । उसमे न कोई नरक है जहाँ माँ के समान प्रेम करने वाला ईश्वर आपको हमेशा के लिए आग में जलने के लिए डाल देगा और न ही वो आपको अपने प्रयासों के द्वारा अपनी योग्यता बढाने और अपनी योग्यता के अनुरूप उपलब्धियां प्राप्त करने के अवसरों से वंचित करेगा । आप खुद ही देह्खिये की क्या अधिक संतोषप्रद होगा:
(अ) आपको सर्वोच्च अंक दिलाने वाला झूठा अंकपत्र, जबकि आप जानते हैं की वास्तव में आपको 0 प्राप्त हुआ है ।
(ब) दिन रात कठिन परिश्रम करके प्राप्त किये गए सर्वोच्च अंक, जबकि आप जानते हैं कि आपने विषय में विशेषज्ञता अर्जित करने के लिए अपनी ओर से अधिकतम प्रयास किया ।

इसलिए वेदों में सफलता के लिए कोई आसान या कठिन रास्ते नहीं हैं वहां तो केवल एक ही सही मार्ग है ! और सफलता उन सबसे अधिक संतोष दायक है जो कि इन छद्म आसान रास्तों पर चलने से प्राप्त होता हुआ प्रतीत होता है ।

The-Vedic-God

प्रश्न- ईश्वर साकार है या निराकार ?
उत्तर- वेदों के अनुसार और सामान्य समझ के आधार पर भी ईश्वर निराकार है ।

(1) अगर वो साकार है तो हर जगह नहीं हो सकता । क्यूंकि आकार वाली वस्तु की अपनी कोई न कोई तो परिसीमा होती है । इसलिए अगर वो साकार होगा तो वह उस परिसीमा के बाहर नहीं होगा ।

(2) हम ईश्वर के आकार को देख पायें यह यह तभी संभव है जब कि वह स्थूल हो। क्यूँकि प्रकाश को परावर्तित करने वाले पदार्थों से सूक्ष्म पदार्थों को देखा नहीं जा सकता । किन्तु वेदों में ईश्वर को स्पष्ट रूप से सूक्ष्मतम, छिद्रों से रहित तथा एकरस कहा है (यजुर्वेद 40.8) । इसलिए ईश्वर साकार नहीं हो सकता ।

(3) ईश्वर साकार है तो इसका अर्थ है कि उसका आकार किसी ने बनाया है । लेकिन ये कैसे हो सकता है क्यूंकि उसीने तो सबको बनाया है तो उससे पहले तो कोई था ही नहीं तो फिर उसे कोई कैसे बना सकता है । और अगर ये कहें कि उसने खुद अपना आकार बनाया तो इसका अर्थ हुआ कि उसके पहले वो निराकार था ।

(4) और अगर आप ये कहें की ईश्वर साकार और निराकार दोनों है तो यह तो कैसे भी संभव नहीं है क्यूंकि ये दोनों गुण एक ही पदार्थ में नहीं हो सकते ।

(5) और अगर आप ये कहें कि ईश्वर समय समय पर दिव्य रूप धारण करता है तो कृपया ये भी बता दें कि किसका दिव्य रूप लेता है क्यूंकि अगर कहें कि ईश्वर मनुष्य का दिव्य रूप धारण करता है तो आप ईश्वरीय परमाणु और अनीश्वरीय परमाणु की सीमा कैसे निर्धारित करेंगे ? और क्यूंकि ईश्वर सर्वत्र एकरस (एक समान ) है तो फिर हम मानवीय- ईश्वर और शेष संसार में अंतर कैसे करें ? और यदि हर जगह एक ही ईश्वर है तो फिर हम सीमा कैसे देख रहे हैं ?

(6) वास्तव में जो मानव शरीर हम देख रहे हैं ये द्रव्य और ऊर्जा का शेष संसार के साथ निरंतर स्थानान्तरण है । किसी परमाणु विशेष के लिए यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता कि ये मानव शरीर का है या शेष संसार का । इसलिए मानवीय-ईश्वर के शरीर तक को अलग नहीं किया जा सकता। उदहारण के लिए, क्या उसके थूक, मल, मूत्र, पसीना आदि भी दिव्य होंगे ?

(7) वेदों में कहीं पर भी साकार ईश्वर की अवधारणा नहीं है । और फिर ऐसा कोई काम नहीं है जो की ईश्वर बिना शरीर के न कर सके और जिसके लिए कि उसे शरीर में आने की आवश्यकता हो ।

(8) जिन्हें हम ईश्वर के दिव्य रूप मानते हैं जैसे कि राम और कृष्ण, वास्तव में वो दिव्य प्रेरणा से कर्म करने वाले थे । याद कीजिये कि हमने ‘अंतरात्मा की आवाज़’ के बारे में बात की थी । ये महापुरुष ईश्वर भक्ति तथा पवित्र मन का साक्षात् उदहारण थे । इसलिए साधारण व्यक्तियों की दृष्टि में वे स्वयं ही ईश्वर थे । किन्तु वेद, ईश्वर के अतिरिक्त अन्य किसी की भी उपासना का निषेध करते हैं । इसलिए बजाय उनकी पूजा करने के, हमे अपने जीवन में उनके आदर्शों का अनुकरण करना चाहिए, यही उनके प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी । यह महापुरुषों का अनुकरण वेदानुकूल है और इसका विवरण The power of Now! – Know Vedas. में दिया गया है ।

(9) यदि ईश्वर अवतार लेता और उन अवतारों की पूजा से मुक्ति हो जाती तो वेदों में इस विषय का विस्तृत वर्णन अवश्य ही होता। लेकिन वेद में ऐसे किसी विषय का संकेत तक नहीं है ।

प्रश्न- तो इसका यह अर्थ है की राम, कृष्ण, दुर्गा और लक्ष्मी के मंदिर और इनकी पूजा करना सब गलत है ?
उत्तर- इसे समझने के लिए उदहारण के तौर पर किसी दूर दराज के गाँव में रहने वाली एक माता को देखिये जिसके बेटे को सांप ने काट लिया है। वो अपने बच्चे की जान बचाने के लिए झाड़-फूँक कराने के लिए किसी पास ही के के पास जाती है । आप उसे सही कहेंगे या गलत ? आज के समय में अधिकतर ईश्वर भक्त चाहे वो हिन्दू हों, मुस्लिम हों , ईसाई हों या फिर कोई भी हों, इसी प्रकार के हैं । उनकी भावनाएं सच्ची हैं और सम्मान के योग्य हैं । लेकिन अज्ञानतावश वो ईश्वर भक्ति का गलत रास्ता चुन लेते हैं । इसका स्पष्ट पता इस बात से ही चल जाता है कि यहाँ तक कि वेदों के बारे में जानने वाले व्यक्ति ही विरले हैं । फिर भी कम से कम हिन्दू तो हैं ही जो कि इनको सर्वोच्च मानते हैं ।

अपने पूर्ववर्ती महापुरुषों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही हो सकती हैं कि हम उनके गुणों को आत्मसात करके उनके अनुसार शुभ कर्म करें । उदहारण के लिए, हम सब ओर फैले भ्रष्टाचार, आतंकवाद और अनैतिकता आदि रावणों को देखते हैं । यदि हम न्यायपूर्वक इनका प्रतिकार करने के लिए एकजुट हो जाएँ तो यह श्री राम का सच्चा गुणगान होगा । इसी प्रकार श्री कृष्णा, दुर्गा, हनुमान आदि के लिए भी । मैं जीवन भर श्री हनुमान जी का प्रशंसक रहा हूँ और उनका गुणगान करने का मेरा तरीका ये है कि मैं अपना उच्च नैतिक चरित्र बनाये रखूँ और अपने शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए प्रयास करूँ जिससे कि मैं समाज की सेवा कर सकूं । हनुमान जी की पूजा करने का मतलब ही क्या है अगर हमारा शरीर कमजोर हो और पेट ख़राब और फिर भी हम उसमे भारी लड्डू भरते जाएँ ! हालाँकि पूजा करने के इन सब तरीकोण के पीछे जो उद्देश्य है वह वास्तव में सरहानीय हैं और हम किसी भी संप्रदाय के भक्तों की पवित्र भावनाओं पर नतमस्तक हैं, किन्तु हमारी कामना है कि सब ईश्वर भक्त पूजा करने का एक ही तरीका अपना लें वही जो कि श्री राम और श्री कृष्ण ने अपने जीवन में अपनाया था ।

प्रश्न- क्या ईश्वर सर्वशक्तिमान है ?
उत्तर- हाँ, वह सर्वशक्तिमान है । लेकिन इसका यह अर्थ नहीं है कि वह जो चाहे वो कर सकता है । अपनी इच्छा से कुछ भी करते जाना तो अनुशासनहीनता का संकेत है । इसके विपरीत ईश्वर तो सबसे अधिक अनुशासनपूर्ण है । सर्वशक्तिमत्ता का अर्थ यह है की उसे अपने कर्तव्य कर्मों – सृष्टि की उतपत्ति, स्थिति और प्रलय , को करने के लिए अन्य किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं होती । वह स्वयं ही अपने सब कर्त्तव्य कर्मों को करने में समर्थ है ।

लेकिन वह केवल अपने कर्तव्य कर्मों को ही करता है । उदाहरण के लिए, वह दूसरा ईश्वर बनाकर खुद को नहीं मार सकता । वह खुद को मूर्ख नहीं बना सकता । वह चोरी, डकैती अदि नहीं कर सकता ।

प्रश्न- क्या ईश्वर का कोई आदि (आरम्भ) है ?

उत्तर- ईश्वर का न कोई आदि है और न ही कोई अंत । वह हमेशा से था , है और हमेशा रहेगा । और उसके सभी गुण हमेशा एक समान रहते हैं ।
जीव और प्रकृति अन्य दो अनादि , अनंत वस्तुएं हैं ।

प्रश्न- ईश्वर क्या चाहता है ?

उत्तर- ईश्वर सब जीवों के लिए सुख चाहता है और वह चाहता है कि जीव उस सुख के लिए प्रयास करके अपनी योग्यता के आधार पर उसे प्राप्त करें ।

प्रश्न- क्या हमें ईश्वर की उपासना करनी चाहिए ? और क्यूँ ? आखिर वो हमे कभी माफ़ नहीं करता !

उत्तर- हाँ हमें ईश्वर की उपासना करनी चाहिए और एकमात्र वही उपासनीय है । ये ठीक है की ईश्वर की उपासना करने से आपको कोई उत्तीर्णता का प्रमाणपत्र यूं ही नहीं मिल जायेगा यदि आप वास्तव में अनुत्तीर्ण हुए हैं । केवल आलसी और धोखेबाज लोग ही सफलता के लिये ऐसे अनैतिक उपायों का सहारा लेते हैं ।

ईश्वर की स्तुति के लाभ और ही हैं :

अ) ईश्वर की स्तुति करने से हम उसे और उसकी रची सृष्टि को अधिक अच्छे से समझ पाते हैं ।
ब) ईश्वर की स्तुति करने से हम उसके गुणों को अधिक अच्छे से समझकर अपने जीवन में धारण कर पाते हैं।
स) ईश्वर की स्तुति करने से हम ‘अन्तरात्मा की आवाज़’ को अधिक अच्छे से सुन पाते हैं और उसका निरंतर तथा स्पष्ट मार्गदर्शन प्राप्त कर पाते हैं ।
द) ईश्वर की स्तुति करने से हमारी अविद्या का नाश होता है, शक्ति प्राप्त होती है और हम जीवन की कठिनतम चुनौतियों का सामना दृढ आत्मविश्वास के साथ सहजता से कर पाते हैं ।
इ ) अंततः हम अविद्या को पूर्ण रूप से हटाने में सक्षम हो जाते हैं और मुक्ति के परम आनंद को प्राप्त करते हैं ।

यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि स्तुति का अर्थ मंत्रोच्चारण या मन को विचारशून्य करना नहीं है । यह तो कर्म, ज्ञान और उपासना के द्वारा ज्ञान को आत्मसात करने की क्रियात्मक रीति है । इसे हम बाद में विस्तारपूर्वक बताएँगे । अभी के लिए आप How to worship? का अध्ययन कर सकते हैं ।

प्रश्न- जब ईश्वर के अंग और ज्ञानेन्द्रियाँ नहीं है तो फिर वो अपने कर्मों को कैसे करता है ?

उत्तर- उसकी क्रियाएं जो कि अत्यंत सूक्ष्म स्तर पर होती हैं उन्हें करने के लिए उसे इन्द्रियों की आवश्यकता नहीं होती । वह अपनी स्वाभाविक शक्ति से उन्हें करता है । वह बिना आँखों के देखता है क्यूंकि उसकी आँखें आकाश में प्रत्येक बिंदु पर हैं, उसके चरण नहीं है फिर भी वह सबसे तेज है, उसके कान नहीं हैं फिर भी वह सब कुछ सुनता है । वह सब कुछ जानता है फिर भी सबके पूर्ण प्रज्ञान से परे है । यह श्लोक उपनिषद् में आता है । ईशोपनिषद भी इसका विस्तृत वर्णन करता है ।

प्रश्न- क्या ईश्वर को सीमायें ज्ञात हैं ?
उत्तर- ईश्वर सर्वज्ञ है। इसका अर्थ है कि जो कुछ भी सत्य है वह सब जानता है । क्यूंकि ईश्वर असीमित है इसलिए वह जानता है की वह असीमित है । यदि ईश्वर अपनी सीमाओं को जानने का प्रयास करेगा जो कि हैं ही नहीं तब तो वो अज्ञानी हो जायेगा ।

प्रश्न- ईश्वर सगुण है या निर्गुण ?
उत्तर- दोनों। यदि ईश्वर के दया, न्याय, उत्पत्ति, स्थिति आदि गुणों की बात करें तो वह सगुण है । लेकिन यदि उन गुणों की बात करें जो कि उसमे नहीं है जैसे कि मूर्खता, क्रोध, छल , जन्म, मृत्यु आदि, तो ईश्वर निर्गुण है । यह अंतर केवल शब्दगत है ।

प्रश्न- कृपया ईश्वर के मुख्य गुणों को संक्षेप में बताएं ।
उत्तर- उसके गुण अनंत हैं और शब्दों में वर्णन नहीं किये जा सकते । फिर भी कुछ मुख्या गुण इस प्रकार हैं :

1. उसका अस्तित्व है ।
2. वह चेतन है ।
3. वह सब सुखों और आनंद का स्रोत है ।
4. वह निराकार है ।
5. वह अपरिवर्तनीय है ।
6. वह सर्वशक्तिमान है ।
7. वह न्यायकारी है ।
8. वह दयालु है ।
9. वह अजन्मा है ।
10.वह कभी मृत्यु को प्राप्त नहीं होता ।
11. वह अनंत है ।
12. वह सर्वव्यापक है ।
13. वह सब से रहित है ।
14. उसका देश अथवा काल की अपेक्षा से कोई आदि अथवा अंत नहीं है ।
15. वह अनुपम है ।
16. वह संपूर्ण सृष्टि का पालन करता है ।
17. वह सृष्टि की उत्पत्ति करता है ।
18. वह सब कुछ जानता है।
19. उसका कभी क्षय नहीं होता, वह सदैव परिपूर्ण है ।
20. उसको किसी का भय नहीं है ।
21. वह शुद्धस्वरूप है ।
22. उसके कोई अभिकर्ता (एजेंट) नहीं है । उसका सभी जीवों के साथ सीधा सम्बन्ध है।

एक मात्र वही उपासना करने के योग्य है, अन्य किसी की सहायता के बिना।

यही एक मात्र विपत्तियों को दूर करने और सुख को पाने का पथ है ।

This translation has been contributed by one of our sisters. Original post in English is available at http://agniveer.com/vedic-god/. This post is also available in Gujarati at http://agniveer.com/the-vedic-god-gu/*

Sanjeev Newar
Sanjeev Newarhttps://sanjeevnewar.com
Sanjeev Newar is an eminent data scientist, entrepreneur, best-selling author, and speaker with expertise in Vedas and Sanskrit. He is an alumnus of IIT Guwahati and IIM Calcutta. He quit the corporate world to work for social inclusion and the protection of the vulnerable. For his work on Dalit inclusion and empowerment, he received the Neelkantha Award in 2019. He founded the Sewa Nyaya Utthan Foundation to make quality education accessible to vulnerable groups and marginalised communities.

266 COMMENTS

  1. मैने ये पूरा लेख पढा और लोगो के कमेंट भी पढे और नतीजा ये निकला कि,

    1. ईश्वर अभी भी एक अबूझ पहेली है । जिसको अब तक कोई जान नही पाया और कई लोग गलतफहमी मे है कि हमने जान लिया ।

    2. मनुष्य ईश्वर को जैसे देखना चाहता है उसे वो वैसे ही दिखाई देता है । उदहरण के तौर पे मुसलमानो के लिये वो अल्लाह है । ईसाईयो के लिये वो प्रभु यीशु । वैष्णव जनो के लिये भग्वान विष्णु ।शैवो के लिये भगवान शंकर । शाक्तो के लिये भगवती जगदम्बा इसी प्रकार बौद्ध,जैन,पारसी,बहाई,सबके अपने-अपने ईश्वर है और उनको पाने की विधिया है ।

    3. अगर भगवान राम और भगवान कृष्ण नही थे । राम सेतु और समुद्र के नीचे पाई गई द्वारका किसने बनाई ।

    4. ईश्वर के नाम पर झगडा करने वाले, तर्क-कुतर्क करने वाले, अपने को सही बता कर दुसरो को नीचा दिखाने वाले
    धर्म के नाम पर झगडा करने वाले सभी मुर्ख होते है ।

    क्योकि जाकि रही भावना जैसई प्रभु मुरत देखई तिह तैसई ।

    • sri krishn aur raam ji ke astitv ko kaun inkaar kar raha hai ? vah ishvar nahi is baat ka inkaar jarur hai ! agar vah ishvar hote to sita ji ko dhudhne ki jarurat nahi padti “antaryami ” gun hone ke karan vah svamev jaan jate ki sita ji kis sthan par hai !
      agar sri krishn ji ishvar hote to mahabharat yuddh bhi kyo hota ishvariy gun hone ke karan duryodhan grup tatkal “ishvar” sri krishn ki baat maan lete !
      ab ishvar ka apman nahi kaha jayega ?
      kya tatkalin manushy, mitr jan adi kya sri krishn ji ko ishvar mante the?
      fir aaj bhi unko ishvar kyo mana jaye ?

      • Raj vai ..shri ram khudko kabhi v iswar nehin kaha agar wo chahte raban ko ek chutki me mardete ..kyun ki wo iswar ho kar v ek manab roop me the WO jantethe agar wo khudko iswar manke manusya jesi nehin karte toh WO srusti k birudh hoga ..log aur itihaas kehta k sri ram manab ho kar v manab jaisa dukh kast nehin jhela…kya iswar swayang khud kiya hua manab ka niyam tod dete …..kuch na kuch rahasya he Jo manab nehin janta

  2. agni veer ji plz mery problem solve karo
    mein nasha mukti kendra mein thaa wahan bahut log they par do log mery pichey pad gaye
    ek ka naam saurabh jain thaa .usney kaha ki wo sai baba hai.wo sari desho ko shaktiya baat raha hai.usney kaha uskey dimag mein current dood raha hai.usney mujhey yeah table bataye
    monday tea shivji
    tuesday milk hanuman
    wednesday tea gutam buddha
    thursday water (no milk) maha guru (agar thursday ko milk piya to snake aa jayegye
    friday tea(jesus)
    saturday milk( allah)
    sunday (tea) sun
    monday again start with drinking tea
    usney kaha ki sarey log mar gaye hain aur wo ro raha hai.
    \/////////////////////////////////////////////
    dusra ladka mila uska naam suraj thaa
    wo bola ki mein bahoot dukhi hoon
    meiney kaha kyun
    wo bola ki mujhey bholey naath ne kaha ki suraj mein tumsey bahut pyaar karta hoon
    phir wo bola ki wo sahkti ka upasak hai
    aur apni maa ke saath sex karna chata hai
    phir bola ek raja thaa wo roj nabalig ladki pakad ke lata thaa ur unko rep karkey maar deta thaa //// uska kya karna chahiye?
    phir wo raat ko aaya bola ki wo mahakaal hai
    maha kaal kya hota hai
    baad mein bola tery marney ki baad hamara waqt ayega
    mujhey bola mujhko koi bhi gali de par bahen ka loda mat bolna(jiska ling kaam na karta ho)
    soory but yeah mery saath hooa hai
    mein usey maha kaal samajh bethaa hoon
    plz tell me ki wo kya thaa ////plz reply iam depressed.
    ……………………………………………………………………..
    god ka matalab bola genretor operator director

  3. BHAGWAN HE YA NAHI MARNE KE BAAD DEKH LENA FILHAL TO JIS HINDU DHARM ME
    JANM LIYA HE JIS HINDU NAAM SE PAHCHANE JATE HO USKI RAKSHA KARO USE AGE
    BADAO JARURAT PADNE PE AGE AAO SAMJO YAHI HINDU DHARM HE

  4. iska matlab bholenath ,maa durga ,krishan ,aur ram yeah bhagwan nahi hai???
    to hum hindu hokar koi festival na manaye

    • yahsab ishvar nahi hai durga to kalpnik hai saath me bhole naath bhi, khushiya manana bura nahi hai un me sudhar ki disha honi chahiye apvyay kyo kiiya jaye /

    • yah thik hai ! ishwar ke yah tin bhi gun ha i brahma vishnu mahesh. jagat banana uska palan karna aur nasht bhi hona

  5. ish purey vedic ishwar ke lesson se yeah baat nikalti hai ki ishwar ek hai aur baki sab devi devta kuch nahi na shiv na parvati na krishna ..yani ki hum festival na manye kyon ki sarey festival krishn ram aur shiv par aadharit hai..? plz answer me kyonki yeah sab bhagwan nahi hai

    • raam ji v sri krishn ji mahapurush the unka janm divas khushi se n manaiye aur unke “achhe ‘guno ko sabhi atmsaat bhi kare !tyoharo me sudhar ki disha chuniye dipavali me patakhe hargij mat chudaaiye karib 20 arab rupaye ke pathakhe dipavali me yah desh chudata hai ! is dhan ka achhe karyo me bhi lagaya ja sakata hai jaise garib bachho ki kitabe -kapi- pensil adi par, garib rogi ke liye ilaz adi par 1

  6. vedo ke anusar jeevan kya h?
    kahte h insaan ko uske karmo ka phal yahin bhugtna padta h. phir bhi kabhi- kabhi yah dekha jata h ki ek insaan zindgi bhar acche kaam krta h, logo ka bhala krta h phir bhi wah dukhi rhta h aur jo log use dukh dete h unhe koi asar nhi padta. esa kyu h?

    • isme likhna kya hai? jaise ravivaar somvaar manglvaar adi hote hai janvari adi maah hote hai vaise hi sat,treta adi yug hote hai !yah samay ke vibhajan ka ek tarika matr hai aur unke naam hai
      manu ji ne apne granth manusmriti ke 1/68-73 me iska ullekh kiya hai- jisme
      satyug 17 lakh 28 hajar varsh
      tretayug 12 lakh 96 hajar varsh
      dvapar yug 8 lakh 64 hajar varsh
      kaliyug sirf 4 lakh 32 hajar varsh ka hai

    • sara gyaan khoj ka vishay hai kuch “mool” bate ved me bhi mil sakti hai 1 agar khoj karne ke baad gyaan alag nikata hai to ved ki bate chodi bhi ja skati hai

  7. aapne kaha ishwar har jagah har aadanmi me hai ,,,tab to ye bhi sidh hota hai ki ishwar hatyare aur ek papi me bhi hai….to prashn ye uthata hai ki kya wahi ishwar pap bhi karwata hai…..

    • agar ishvar kahe ki tum bura kaam karo tab ishvar doshi hoga \
      , jeev [vyakti ] koi bhi kary karne me svatantr hai. ishvar sirf karmo ka fal deta hai.
      ishvar sarvvyapak hai to vaj kan- kan me majud hai achhe me bhi aur bure me bhi .

  8. @raj.hyd
    Aapane kaha- //ishvar sarvvyapak hai to vaj kan- kan me majud hai acche me bhi bure me bhi//
    Main bhi exactly yah maanati hun– Brahm satyam jagat mithyam. God is the only truth, the universe or diversity or multiplicity of selves is illusion.
    Kya aap bata sakate hain- maya aur mithya main kya difference hain ?
    Awaiting your reply….

    • pramadarniya aknksha ji , ham aapse kuch bato me ashamat hone ki anumati chahte hai
      brahm saty jagat mithya nahi apitu dono saty hai yah jagat karm karneke liye bana hai jo jaisa karega usko vaisa hi fal milega aagar jagat mithya hota to vyakti karm kyo karta ?
      janvar adi jarur koi vishesh karm nahi karte hai unko pichle karmo ko bhogna jarur padta hai ! ishwar bhi saty hai aur jeev aur yah prikrati bhi saty hai. agar prikrati saty n hoti to ham sabko sury se roshni kaise mil pati

      • [2] aur dharti se ann ,fal tarkaari adi bhi kaise mil pate ? isliye isko bhi saty kaha jayega !
        maya bahut din tak tikaaoo nahi hoti hainisliye kuch log us maya ke virodhi ho jayet ahai jab ki maya ki bhi sakht jarurat rahati hai isliye maya bhi saty hai jo mithya hai vah to mithya hi rahega uska paksh kaise liya ja sakta hai

  9. @rai.hyd
    I don’t think I deserve to be respected by you. Muze nahi lagata hain ki aapko mera aadar ya paramaadar karane ki jarurat hain. Main aapase aayu aur gyan main bhi chhoti hun.
    Main aapase sahamat hun. Par main yah bhi kehna chahti hun jab manushya samajata hain ki paramatma sarw wyapi hain to wah karm yogi banata hain aur nishkaam karm karata hain. Usaki bhawana hoti hain- har jagah main hi hun. Everything is expansion of my ‘self’.

    • samman ke yogy Akanksha ji jab ajanabi se vishesh baat ki jati hai tab hamko uski umr ya gyaan se parichay to hota nahi hai fir bhi aga raap hamse choti bhi hai to samman se batchit to ki hi ja sakti hai anek log to gali galauj se bat arambh karte hai , jab vah hamari shaili samjhenge to unko bhi ek nasihat mil sakti hai !
      sabse badi dikkat is baat ki hai ki achhi bato ka vyapakta se parchaar nahi hota iske karan har vyakti apni manmarji se jo chahe karta rahata hai jo thik nahi hai

    • chaliye ham apki baat maan lete hai agar hamne sabko nahi likha to bahuto ko to avashy likha hai 1 hamara uddeshy kisiko narvous karna nahi hai, apitu samman ke saath varta karna jarur hota hai !

  10. respected sir,
    MAIN YEH JAANANA CHAHTA HOON K HINDU HISTORY MEIN INSAAN KO DHARTI PAR BHEJNE WALE, USKI AAYU LIKHNE WALE, US K KARMON KA HISAB RAKHNE WALE AUR DHARTI PAR HI US KE PAAPON KA DAND DENE WALE DEVTAYON KE KYA NAAM HAI.

  11. Vai mera ye soch kya satya kya ho sakta hai Zara dhyan de ……………..jaisa ki aapne kaha agar nirakar iswar khud ko sakar banaye toh ho sakta hai …toh ye sach hai nirakar iswar ne khud ko kisi na kisi Karan sakar banaya aur wo khud ko 3 roop me sakar banaya bramha Vishnu aur mahesh ..ye 3 ek hin hai aap tridev ki koi v puran dekhen ye 3 khud ko ek hin kaha hai koi ek dusre se alag nehin bramha(srusti karta)Vishnu(palan karta)shiv(binashak) in 3 se hin bramhand juda hai …

  12. Vai mera ye soch kya satya kya ho sakta hai Zara dhyan de ……………..jaisa ki aapne kaha agar nirakar iswar khud ko sakar banaye toh ho sakta hai …toh ye sach hai nirakar iswar ne khud ko kisi na kisi Karan sakar banaya aur wo khud ko 3 roop me sakar banaya bramha Vishnu aur mahesh ..ye 3 ek hin hai aap tridev ki koi v puran dekhen ye 3 khud ko ek hin kaha hai koi ek dusre se alag nehin bramha(srusti karta)Vishnu(palan karta)shiv(binashak) in 3 se hin bramhand juda hai …yugo yugo se ye

  13. Aur aap mujhe iss prasna ka uttar de ..
    Jab shree krishna khud ko iswar kaha aur apna biswa swaroop dekhaya tab kya nirakar iswar Krishna ko nehin rokte ki wo iswar na ho k khud ko iswar kaha kya nirakar iswar itna durbal the ki Krishna ko rokne ki sakti nehin ….yadi Krishna iswar nehin manab hai ..kya koi manab apne ek hath k ungli se ek parbat utha sakta hai agar Krishna iswar nehin hote toh jab chote the apne muh me baramhand kaise dikhaye apne Maaa ko …..Krishna iswar hin the…

    • yah kahaniya matr hai ! ki ek ungli se govardhan pahaad utha liya ya apne munh se pura bramhand dikha diya aadi ! isme lesh mattr sachhai nahi hai ! agar aap kisi ka katl bhi kar de to ishvar aapoi rokne nahi ayega yah uski durbalata ka pratik nahi apiti apko kisi bhi tarah ka karm karne ki chut hai ! ishvar koi bhi achha ya galat kaam karne se nahi rokta balki karmo ka fal jarur deta hai
      agar sri krishn ji ishvar hote to karodo vyaktiyo ko mahabharat yuddh me marnese rok sakte the !

      • agar shri krishn ji ishvar the to aaj kaun ishvar hai ? bagair sri krishn ji ke yah brahmand”vidhi purvak” kaise chal raha hai?
        jai aaj chal raha hai vaise hi shri krishn ij ke samay par bhi chal raha tha !
        ishvar ke niyam ek saman hote hai har samay saman roop se lagu rahate hai uske niyam badalte nahi hai

  14. Yadi shree Krishna iswar nehin the toh WO jab dharti par aaye itne rakshas chah kar v kaise nehin mar paye ..aap Mahabharat shree Krishna Zara thik se dekhen aur soche …nirakar iswar ne khud ko sakar banaya he aur WO tridev hin he kisi na Karan WO khud ko sakar kiya ….Krishna janm nehin liya hai WO yog aur Maya k balse bachha banke Maa k samne the agar janm liya hotha toh kya devki ko pata nehin chalta ………yadi Krishna manab the toh aag unki sarir ko kyun jala ne se dargeya ……….

  15. Nirakar iswar khud ko kisi na kisi Karan khud ko sakar banaya aur WO bramha Vishnu mahesh he ye me manta hun biswas he aur rahega …..shree Krishna iswar hin the aur ye sach he koi mane ya na mane ……Jo mandir dharti pe adi ant se he WO jhoot nehin ho sakta …… iswar aur allha ek nehin ye me nehin bed aur quran keh raha hai kyoun ki quran sirf musalmana k liye aur ved sari manusya k liye …..yakin na ho toh YouTube me pandit mahendrapal arya video search karen aur WO proof v dikhaye hen

      • Yadi Krishna iswar nehin toh phir aisa kyoun kaha ….
        Yada yada hin dharmasya glanir bhabati bharat avyuthanam adharmasya tadatman srujanyaham paritranayam sadhunam vinasaya cha dushkritam dharmasansthapnaya
        Sambhavami yuge yuge

      • yah unki”sirf” kamna thi ki jab jab dharm ki hani ho tab- tab ham janm lekar dharm ki sthapana kare ! kamna puri ho yah jaruri bhi nahi tha
        agar vah ishvar the to jab yah desh aur samaj hajar saal tak gulam raha tab vah ishvar bankar kyo nahi aye
        jab desh ka vibhajan hua tab vah ishvar bankar kyo nahi aye
        jab do baar vishv yuddh hua usme bharat bhi shamil tha tab vah ishvar ke rup me kyo nahi aye ? maha bhaart yuddh agar ruk gaya hota to apna hindu samajbarbaad nahi hota

  16. Kuch v ho iswar Jo koi v ho mera koi dukh nehin parantu mereliye shree ram shree Krishna hin mera iswar he mera janm ka prarambh se kisiko iswar mana hai toh ye dono hin he aur koi nehin aur meri jiban k ant tak ye dono hin mera iswar rehenge iskeliye iswar mujhe koi v saza de me swikar kar lunga ..shree ram mera atma shree Krishna mera pran in dono k bina iss sarir ka koi mulya nehin …..aapki jankari k liye dhanyabad iswar aapko khusrakhe ….

    • apke abhibhavko ne aapka naam ramshyam rakha hai isliye aap aisa agrh shayad kar rahe hai!
      agar parashuram rakhte to aap unko ishvarkahb dete ishvar ka avtaar unki bhi sanatan dharmkahata hai vah to ishvar virodhi buddh ko bhi ishvar ka avtaar man leta hai ! kya apki najar me “do ishvar hai “?
      aap jara sochiye ki raam ji aur shaym ji dono samapt ho chuke hai aur unke samay ke pahale yani dashrath ji basudev ji adi ko pratipal svaanso ke madhyam se jivan kaun de raha tha ? vahi aaj bhi…

      • Srimat Bhagvat Gita arthat keval ek shri shri Bhagwan ki gayi hui maat na ki manushya maat. shrimaat bhagvat gita krishna ki nahi hai vah to devta janam lene wala devta thahra. usne bhi us bharga (jyoti) vaan (swarupam) se divya guno ki shakti lekar 16 kala sampurna bana. vah satya yug ka pahla prince hai vaha dukha hota nahi na manushya bhagwan ko pukarte ki hame dukkho se chhudao .jaha bagwan swayam hai vaha dukkha nahi ho sakta hai.
        gita me hinsatmak ladai dikhai hai lekin aisa nahi hai.

  17. Par mera man keh raha hai aap gita path nehin kiya aap sirf ek mates ved se parichit hai(raj vai mera koi v baat aapko kast deneki udesya nehin ya phir insult karne ki me sirf aapne iswar ki satya k liye keh rehin hun ……..me aapse hath jodke kshyama v mangta hun yadi mere Karan aapko koi v kast hua ho ……aap sirf ved ka adhyan kia hai na?

  18. Thik hai ..me gita se har din aapko kuch puchunga Jo ki ye sidhh karta hai k Krishna iswar hin the ….me aapse maafi chahta hun ..
    Ved se juda hua har baat puchunga ek v chodunga nehin

    • jis jagah ham ajkal rahate hai us sthan par ved hamare paas nahi hai isliye ham uska uttar thik se nahi de payenge !
      kaha jata ha ki gita ka gyan yuddh ke maidan me diya tha ! yuddh sthal par kuch bate badha chadha kar di jati hai taki apne paskhh ka manobal bahut jyada rahe!
      gita mahabharat ka ek ang hai !
      aajkal guru mata ji sab ti vi par subah 6 baj se 6.28 tak gita par hi bol rahi hai aap chahe to unki sngati sunne ke liye kar sakte hai ! dhayn rahe ham unke bhi vishesh bhakt…

  19. hum eshwar use mane jise sabhi dharma wale mante ho keval ek dharma wale nahi. . hindu dharma wale eshwar ko jyotir swarupam mante hai .chritian dharma wale God is light kahate hai. islami khuda noor hai kahate hai. parasi agni ki pooja karte hai. nanak gi ne ek ungali upar uthai hai sai ne sabka malik ek kaha hai arthat param atma ek hai wah nirakar hai ajanma hai.. krishna ,ram eshwar nahi hai divya gun wale devta hai.
    Gita ek bhagwan ki srimat hai krisha ki nahi.

  20. krishna yah nahi kah sakta sarva dharmani paritejet mamekam sharanam vraj -sare dharm ke vivado ko chodo shirf mere sharan me aao. agla slok hai yada yada hi dharma shya glani bharvati bharat………….jab jab dharma ki ati glani hoti hai tab mai aata hu..dharma ki aati glani ,sabhi aati dhukhi ab hai.aab use aana hai. agar krusna aya tha to fir bhi hum sabhi dharma ki glani karte karte etne niche gire q. mahabharat ki ladai hui nahi thi na 18 aukshan sena thi tab etni jansankya kaise hogi.

  21. ladai to aab lagi hai .sushma ladai hum aatmaye hamare andar ke duguno se lad rahe hai .sari gita eshwar ne uttam se uttam purush banane ke liye kahi hai gita gyan keval ek arjun ko nahi par hum sare arjun gyan arjan karnewale hai.hum pandavoki durgun rupi kaurose hai. gita gyan keval padne aur sunane k liye naahi hai jivan me uski dharna karni hai. tabhi hum dukho sechhut sakte hai. krishna satyayug ka pahla prince hai jo 16 kala sampurna hai .jo racheita ki rachana hai..

  22. rachaita eshwar keval ek almighty authority hai vahi es dhara par punha swarga sthapan karta hai. aab yah dharti narka samaan bani hai kyoki har prakar ke dukkha hum dekh rahe hai aab dharti ki saphi jarur hone wali hai. aur esi dhara par swarga firse hoga na ki swarga uppar hai. manushya ki 84 lakh yoni bhi nahi hai .aam ke guthali se aam hi ugega na ki babul ka ped. hum manushya aatmaye maanush ka hi punarjanma leti hai. lekin hamare karma nusaar agla jaanam me aate hai aur vasa pad milta hai

  23. agar koi manushya es jaanam me chori karta hai aur use agla janam billi ka mile to bhi vah chori chori dudha piti rahe to yaha use apni saja ka ahsas kaha hai ,fir se galti kar rahi hai.arthat hamare 84 lakh yoni nahi hai aakhir shashra to manushya arthat dehdhari ne hi rache hai naki us shri shri bharga -jyoti, van- swarupam jyotirswarupam ne mat to keval ek shri ki hogi manushya mat nahi. shri shri ki mat yane shri bhagvad gita . ek hi bhagvanne gayee hui ,

  24. guru ji namaskar.
                aaj me aapko ek kahani sunane vala hu jo ki ek sachhi kahani ye kahani hi jila bulandshahar gram shairiya post oocha gao uttar pradedh ki hi vaha mera nanihal hi us gao me mere nana ek baar raat ke samay apne khet par so rahe the kyoki khet me pani ja raha tha tabhi kuchh dushmano yani badmasho ne unhe mar dala. ab agar me apse poochoo ke kya vo log saja payenge is karm ki. vedon ke anusar kyoki apke anusar ye kaha gaya hi ki eeshvar nyay karta hi. to kya insaf…

  25. kya insaf milega? chalo me uttar bhi khud hi bata deta hu ki nyay milega our bilkul milega. ye to tha aapke anusar. ab mere anusar suniye jo bhi mere nana ke sath huaa vo pehle se hi nishchit tha kyoki is ghatna ke baad mere nana ne paas ke gao me janm le liya. aur unhe apna pichhla janm poora yaad hai.aur vo janm lene ke baad apni parivar se milne bhi aye. aur unhone un logo ko bhi bataya jinhone unhe mara tha. maje ki baat ye hi ki ye khabar news par bhi ayi thi aap chahe to ise chek bhi kara

  26. ise chek bhi kara sakte hi. mere anusar jo kuchh bhi is duniya me ghatit ho raha hi vo sab pehle se hi nishchit hi isme kisi ka koi yogdan nahi hi aur na kisi ka koi dosh.is sansaar ko ek shakti chala rahi hi. vo jo kuchh bhi karti hi keval apni ichha se karti hi. or doosri baat me aapko bata du na to is sansaar me koi paap karta hai or na koi punya jo kuchh bhi ham karte hi vo sab vo shakti hi karati hi to paap or punya ka savaal hi paida nahi hota. is baat ka bhi suboot mere paas hai abhi kuc

  27. abhi kuchh dino pehle mera ladka ek durghatna me samapt ho gaya joki keval 6 saal ka tha vo do bhai the judva bhai jab mere bete ka dehant huaa to logo ne kaha ki pichhle janm me kuchh bura kiya hoga jiski saja mili hai. chalo mai maan leta hoon ki ye theek hai. lekin is hisaab se to mujhe eeshvar moorkh najar aata hi are jise saja di use itni chhoti umra me saja or karm dharm inka matlav tak bhi nahi pata to eisi saja or niyam ka kya fayda jisme bhogi ko ye bhi pata na ho ki vo kis baat ka bhog

  28. na ho ki vo kis baat ka bhog hai.isse saaf saaf hai ki ye ek shakti hi joki sare sansaar ko apni ichha se niyantrit karti hi. iski marji ko koi pooja aaradhna ya kisi ki vinti nahi badal sakti.or na hi aaj tak ise kisi ne dekha hi. or rahi baat vedo ki ved bhi aapki or meri trah trah trah ke manushyon ne like hi apni apni anubhooti ke adhar par. jisne jaisa anubhav kya likh diya jo varshon pehle likha hi use kyon dekhte ho are manushyon thoda sa dhyan lagakar apne dilo dimag or tark shakti se is

  29. apne dilo dimag or tark shakti se is sansaar ko dekh sab samajh me aa jayega koi ved puran upnishad padhne ki koi jaroorat nahi. padegi
    Bhasha ya writing way par dhyan na deke tark par dhyan de .
    Or batayen me kahan tak galat or kahan tak sahi hoon

    • adarniy shri thakur ji , sury adi grah nakshatr adi ishvar dvara jarur niyantrit hai !
      lekin jiv nahi hai jiv ek alag svatarntr satta hai
      vah jaisa karega vaisa hi fal payga agar apke hisaab se ishvar dvara niyantrit jiv hai to jiv ke karmo ka fal ishvar ko milna chahiye ! jo nahi milta
      agar kisi ne hatya ki hai aur adalat me sabit ho jati hai to usko dandit kiya jata hai vah hatyara yah nahi kahata ki hamne apni ichha se hatya nahi ki balki ishvar ne hamse karvaai hai !

  30. Adarniy shri thakur ji ,
    Eshwar ko Sukh karta Dukh Harta Kaha hai. vah kisi ko bhi dukha nahi deta hai. na sukh bhi .lekin agar insan neki k raste par chale.mansa, vacha, karmna kisi ko bhi dhukh na de, to Eshwar hame dukh k samay rasta batata. vah guide k rup me kisi na kisi swarup me madat mil jati hai .Hamare karmo ka hisab kitab accurate chalta hai. esme hamare pichale janam k acche bure karma aur vartman k bhi karma k hisab se accha ya bura fal milta hai.

  31. Sare Drama (film )ka raj eshwar hi janta hai . hum pichale janam ki smruti bhul jate hai .es me hamari bhalai bhi hai. Nahi to pichla dukkh yaad kar aur sahan nahi kar payenge .hum manushya es film ka keval Ek episode jante hai .shuru se na dekhne k karan hame hisab kitab ka pata nahi chalta aur hum Eshwar ko dosh dete hai.
    jo bhi hame sukha kaho ya dukha yah sab hamare karan hi prapta hote hai .vah nirakar, nirvikari hone se bandhan mukta hai .hum atmaye jevan bandh me hai .

  32. jivan bandh se chudane wala keval vah ek hai . hum u se patit pawan bhi kahate hai. u se yaad karne se arthat atma ka parmatma se yog lagane se hi hamari batari charge hoti hai aur yogagni se hi pap bhasma hote hai.
    murti ki pooja paath karne se nahi. pahle satyug me hum atmaye 24 carat sona thi ab janam janam k pap arthat alloy (vikari karma) mixed hone se sona impur ho gaya hai . hum kahte bhi hai Papatma,Punya atma ,Mahatma, devatma,pap sharir punya sharir nahi.

    • adarniy shri anand ji , paap bhasm nahi hote balki unko bhugatna jarur padta hai !
      ek bund jahar ka asar sharir me jarur padta hai aue ek bund dava ka asar bhi padta hai

  33. Eshwar janam k chakkar me na aane k karan sabhi sukha aur dkukha se mukta hai Hum atmaye sharir dharan karne se endriya vash hokar kaam krodh ,lobh ,moh ,ahankar me aakar bure karma kar baithte hai .hum endriyo ko vash kar le to dukh nahi hoga .es k liye endriyajit banna pade.vah rasta bhagvadgita me hai . MANUSHYA EUM MANUSHYANAM KARAN BANDHAN MOKSHYO. bandan ya mukta hona yah khud hum manushya par nirdharit hai . agar rasta chahiye ho us k bataye marga par chalo nahi to bhukto..

      • Sabhi ko shivratri parv par Hardik shubh kamnaye . Hum Krishna janmashstami ,Ram janmashtami, manate hai lekin Shiv janmashtami nahi Shivratri Manate Hai, yaha spsta hai Krishna ji, Ramji ne garbh se janam liya lekin Shiv ne nahi ,Hum Krishna devtai namha,Ram devtai namaha kahate hai lekin hum Shiv Parmatmay namha kahate hai Arthat Hum sabke sharir ka Pita alag -alag hai lekin Sabhi atmaoka Pita Param Atma Suprim Soul ,Almighty Authority keval ek Shiv hi hai.vah sare Aalum k Aalum panah Hai u se jotirswarup me, khuda noor k rup me, god is light k rup me ,Ek Onkar Satshree k rup me…

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